शकील शम्सी
उर्दू से अनुवाद, न्यू एज इस्लाम
31 अक्टूबर, 2020
पूरी मिल्लते इस्लामिया इस समय सख्त मानसिक कोफ़्त में मुब्तिला है। एक तरफ तो पश्चिमी देशों और इस्लाम दुश्मनों के मुस्लिम देशों, इस्लामी हितों, दीनी शिक्षाओं और हुजूर सरवरे कायनात की मुकद्दस ज़ात पर हमले हैं और दूसरी तरफ खुद इसकी सफों में ऐसे लोग भी मौजूद हैं जो निहत्तों का खून बहाने, महिलाओं की गर्दन काटने और निर्दोष लोगों की जान लेने को इस्लामी शरीअत का हिस्सा बना देने पर आमादा हैं। मुश्किल यह है कि बाहरी ताकतों के हमलों का सामना तो हम कर सकते हैं मगर अंदर से जो वार हो रहे हैं उनका क्या किया जाए? कैसे रोका जाए उन लोगों को जो आतंकवाद को इस्लाम की कामयाबी की जमानत समझते हैं? किस तरह उन तत्वों पर काबू पाया जाए जो अत्याचार के बदले में अत्याचार करने को हक़ बजानिब समझते हैं? किस तरह रोका जाए उन सरफिरे मुसलामानों को जो स्कूलों, मदरसों, इबादत कदों और सड़कों पर आत्मघाती हमले करने को ऐन इबादत समझते हैं? किस तरह आतंकवादियों की रोक थाम हो जो सरकारों के कयाम या मुख्तलिफ देशों से आज़ादी हासिल करने के लिए बरसरे पैकार हैं और अपनी संघर्ष को पवित्र करार देने के लिए उन्होंने अपनी लड़ाई को जिहाद का नाम दे रखा है? क्या उन लोगों ने इस्लामी जंगों का इतिहास नहीं पढ़ी? क्या उन्होंने नहीं देखा कि आप हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी किसी बेगुनाह की जान नहीं ली? मुसलमानों का किरदार तो ऐसा था कि अगर किसी मद्दे मुक़ाबिल के हाथ से तलवार गिर गई तो उस पर वार नहीं किया तो भला सोचिये कि किसी निहत्ते पर हमला करने की कल्पना भी कहाँ संभव थी? मैदानों को छोड़ कर किसी के घर में घुसी हों आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की फौजें तो हमको बताएं। किसी औरत पर, किसी बच्चे पर तलवार चलाई हो रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुकद्दस फौजों ने तो इतिहास के पन्ने हम को पढ़वाएं। हमें इससे मतलब नहीं कि बादशाहों या आमिरों ने क्या क्या ज़ुल्म ढाए या निरपेक्ष शासकों ने कैसे कैसे मौत के बाज़ार गर्म किये, क्योंकि उन्होंने भी देशों को फतह करने के लिए वही काम किये जो आम बादशाह किया करते थे। हम को तो सीरते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रौशनी में बहस करना है और आतंकवाद विकल्प करने वालों से पूछना है कि वह रसूल की इहानत करने के आरोप में किसी राहगीर को किस इस्लामी कानून की तरफ से मार सकते हैं? अगर कोई शख्स इहानते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मुजरिम है तो उसको सज़ायाब करने के बजाए क्या चर्च में इबादत में लीन किसी महिला या किसी पुरुष का गला काटा जा सकता है और क्या हर मुसलमान को इस बात का हक़ हासिल है कि वह जिसको इहानते रसूल का दोषी समझे उसको क़त्ल कर दे? क्या किसी अदालत या किसी क़ाज़ी की कोई आवश्यकता नहीं है? आज की दुनिया में तो इहानत करने वालों से निमटने के सैकड़ों तरीके मौजूद हैं, आज तो आलमी पैमाने पर मुसलमानों की संख्या इतनी है कि अगर संगठित हो कर केवल आवाज़ भी बुलंद करें तो इहानत करने वालों के पसीने छूट जाएंगे। आज तो आप बाईकाट के माध्यम से भी उनको हानि पहुंचा सकते हैं जो आपके जज़्बात को मजरुह करते हैं। आज तो हर मुस्लिम देश के पास उसका अपना मीडिया है, हर मुस्लिम देश एक मुहिम चला सकता है उन लोगों के खिलाफ जो किसी कौम के जज़्बात को मजरुह करने और किसी मुकद्दस व्यक्तित्व की इहानत किये जाने को अभिव्यक्ति की आज़ादी का हिस्सा करार देते हैं। इसलिए फ्रांस के राष्ट्रपति ने अगर मुसलमानों का दिल दुखाया था या उसने पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इहानत करने को अगर जायज़ करार दिया था तो मैक्रून का तमाम मुस्लिम देशों को बाईकाट करना चाहिए था। अपने देश में उनके दाखले पर पाबंदी लगाना चाहिए था। मगर एक सिरफिरे, कम अक्ल, दीवाने और जाहिल त्युनिशियाई युवक ने अपने एक हाथ में चाकू ले कर और दुसरे हाथ में कुरआन उठा कर जब तकबीर का नारा बुलंद किया तो उसने न केवल तीन निर्दोष लोगों को क़त्ल करने का अपराध किया बल्कि कुरआन की आयतों की भी तौहीन की और तकबीर के नारे के पवित्रता को भी मजरुह किया। इसकी वजह से मुसलमानों का मुकदमा कमज़ोर हुआ, क्योंकि फ्रांस वालों को आतंकवाद की आड़ ले कर मजलूम बनने का मौक़ा मिल गया। इहानते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पीछे हो गई और आतंकवाद आगे हो गई। काश कोई इन गुमराह लड़कों को समझाए कि इस्लाम को फैलाने वाले पैगम्बर को अल्लाह ने रह्मतुल्लिल आलमीन बना कर दुनिया में उतारा था, उस अजीम पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नाम पर दहशत, नफरत और हलाकत का खेल नहीं खेला जा सकता। मगर समस्या यह है कि आम मुस्लिम युवाओं को गुमराह वही ताकतें कर रही हैं जो आतंकवाद का इस्तेमाल मुस्लिम देशों या अपने विरोधी शाशकों के देशों में अराजकता पैदा करने के लिए करती आई हैं। क्या कभी पश्चिमी देशों ने गिना है कि मुस्लिम देशों में अब तक कितने मुसलामानों का खून आतंकवादियों ने बहाया है? और मुसलमानों का खून बहाने वालों को हथियार किस ने उपलब्ध कराया था?
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Urdu Article: Islam Is Religion Of Character, Not The Sword اسلام تلوار نہیں کردار والوں کا مذہب ہے
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