ग्रेस मुबाशिर, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
7 अप्रैल, 2022
अयमन अल-जवाहिरी का संदेश एक क्रूर हत्यारे की तरह है जो केवल
मानव जीवन को नष्ट कर सकता है
प्रमुख बिंदु:
1. हम भारतीय मुसलमान अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा
के लिए कभी बाहरी समर्थन नहीं मांगते
2. भारत लोकतंत्र और बहुलवाद का सबसे बड़ा मंदिर है
3. अल-कायदा के सुप्रीम कमांडर अयमान अल-जवाहिरी ने भारत
में हिजाब विवाद पर एक अलग बयान जारी किया है।
4. इस्लाम, किसी भी अन्य धर्म की तरह, कानूनों और सांस्कृतिक विकास
के संदर्भ में परिवर्तनों को स्वीकार करता है
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मैं शुरू में ही यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मैं अल-कायदा प्रमुख अयमान अल-जवाहिरी द्वारा लगाए गए निराधार आरोपों का स्पष्ट रूप से खंडन करता हूं। हम भारतीय मुसलमान अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए कभी भी बाहरी समर्थन नहीं मांगते। अयमान अल-जवाहिरी का संदेश एक बर्बर हत्यारे की तरह है जो केवल मानव जीवन को नष्ट कर सकता है।
Ayman
al-Zawahiri, the chief of the terror group Al Qaeda
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थ्योक्रेटिक तानाशाही हुकूमतों के विपरीत, जो आप कायम करना चाहते हैं जहां गलत और निराधार धार्मिक आदेशों को आधार बना कर व्यक्तिगत स्वतंत्रता का गला घोट दिया जाता है, भारत लोकतंत्र और बहुलवाद का सबसे बड़ा मंदिर है। हमारे देश के पास अपने आंतरिक मतभेदों को जज़्ब करने और उसे खत्म करने की काफी सलाहियत है।
अपने प्राकृतिक मौत की खबरों का खंडन करते हुए अल-कायदा के सुप्रीम कमांडर अयमन अल-जवाहिरी ने भारत में हिजाब विवाद पर एक और बयान जारी किया है। यह एक ऐसे संगठन के प्रमुख का बयान है जिसने महिलाओं को स्कूलों से निकाल कर उनकी स्वतंत्रता को समाप्त करने का समर्थन किया है, जैसा कि आज अफगानिस्तान या अफ्रीकी देशों में हो रहा है जहां अल-कायदा का प्रभाव है। कुछ दिनों के एतेदाल पसंदी के दिखावे के बाद, अल-कायदा समर्थित तालिबान सरकार, जो अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद से मजबूत हुई है, कट्टरपंथियों के दबाव के आगे झुक गई है। इसने एक बार फिर साबित कर दिया है कि यह अभी भी नागरिक स्वतंत्रता और विभिन्न धर्मों के बारे में उसी पुरानी आदिवासी इस्लामी विचारधारा के लिए प्रतिबद्ध है।
यद्यपि उन्होंने अपने भाषणों में भारत का अस्पष्ट रूप से उल्लेख
किया है, लेकिन विशेष रूप से हमारे
देश के मुद्दे पर उनके प्रकाशित संदेश पर ध्यान देने की आवश्यकता है। यह अल-कायदा द्वारा
क्षेत्र में लोकतंत्र के साथ अस्थायी असंतोष का फायदा उठाने के लिए इस्तेमाल की जाने
वाली रणनीति को दर्शाता है। भारत और इसकी बड़ी मुस्लिम आबादी इस्लामी खिलाफत की स्थापना
के उनके विचार में महत्वपूर्ण रही है। समुदाय के नेताओं और सुरक्षा कर्मियों को,
विशेष रूप से साइबर दुनिया में,
इन कट्टरपंथी प्रवृत्तियों को
मिटाने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए।
अलकायदा का इस्लाम
अलकायदा के धार्मिक विचारों की हलकी फुलकी समझ भी संदेशों के संदर्भ के अंदर बेहतर तरीके से समझने में मददगार होगी। अलकायदा जातीय कबायली इस्लामी रिवायात पर यकीन रखता है जो मध्य पूर्व से बरामद की गई है जिसे सख्त गीर सल्फियत ने परवान चढ़ाया है। यह बहुलतावादी धार्मिक व्याख्या के खिलाफ है और जिस में गैर लचकदार इस्लामी शरीअत की पैरवी की शिक्षा दी जाती और जो धर्म की रूह तसव्वुफ़ से पुरी तरह खाली है। पितृसत्तात्मक प्रणाली पर आधारित कबायली रिवायात की पैरवी करने और जंग से हासिल होने वाली माले गनीमत पर गुज़र बसर करने वाले यह लोग इस्लाम की सख्त गीर व्याख्या पर विश्वास रखते हैं।
इस्लाम किसी भी दुसरे धर्म की तरह नियमों और सांस्कृतिक विकास के लिहाज़ से परिवर्तन को स्वीकार करता है। अल कायदा वक्त और हालात के तकाज़े के मुताबिक़ मज़हब के अंदर किसी भी नई चीज का खंडन करता है और उन्हें निराधार आविष्कार करार देता है क्योंकि वह एक खालिस मज़हब पर यकीन रखते हैं। उनकी राजनितिक स्कीम में पश्तून और दुसरे अफ्रीकी नस्लों को बालाद्स्ती हासिल है। वह एक बहुत गैर लिबरल पितृसत्तात्मक सामाजिक निजाम की पैरवी करते हैं इस लिए महिलाओं को जनता सज़ा देती है।
अल-कायदा की इस्लामी व्याख्या के अनुसार, वे "शिर्क" के रूप में किसी भी चीज़ को नष्ट करने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं। वे इस्लाम की बहुलवादी और बहुसांस्कृतिक शिक्षाओं को आसानी से भूल जाते हैं। अपनी कट्टरपंथी विचारधारा को फैलाने के लिए इस्लामी खिलाफत की स्थापना उनकी राजनीतिक विचारधारा का केंद्र है। अल-कायदा के अनुसार, जो राजनीतिक सल्फियत से बहुत समानता रखता है, इस्लाम एक राजनीतिक सरकार के बिना जीवित नहीं रह सकता है।
भारतीय मुसलमान अल-कायदा की विचारधारा को खारिज करते हैं
अल कायदा के पास भारतीय मुसलमानों का मार्गदर्शन करने का कोई नैतिक औचित्य नहीं है। अल-कायदा भारतीय लोकतंत्र की मूल बातों को समझे बिना नुकसान पहुंचाने में है। भारतीय लोकतंत्र को इसलिए नहीं माना जाता कि यह आंतरिक अंतर्विरोधों को ख़त्म करने वाली है। बल्कि इसलिए कि इसके अंदर व्यावहारिक उपायों के जरिए मतभेदों को दूर करने की क्षमता है।
हालांकि जवाहिरी का उपदेश मुख्य रूप से हिजाब के मुद्दे के बारे में था, यह लोकतंत्र को बदनाम करने और पर्दे के पीछे की व्यवस्था को नष्ट करने का संदेश भेजने के लिए एक शातिर चाल थी। अपने उपदेशों में उन्होंने वास्तव में विचित्र और धार्मिक राजनीतिक संदेश देने का प्रयास किया है। भारतीय लोकतंत्र के खिलाफ काफिर हिंदू धर्म का समर्थन करने के आरोप स्पष्ट रूप से भ्रामक हैं, और अल-कायदा जैसी कट्टर थियोक्रेसी सह-अस्तित्व की धारणा को हज़म नहीं कर सकती।
इस्लाम में इस बात को लेकर असहमति है कि हिजाब धार्मिक रूप से
जरूरी है या नहीं। लेकिन अल-कायदा के लिए, जो पितृसत्तात्मक व्यवस्था का समर्थन करता है, मुस्लिम महिलाओं की नुमाइश को
सीमित करने के लिए हिजाब एक आवश्यक कदम है। अनिवार्य यूनीफ़ॉर्म वाले स्कूलों में हिजाब
पर प्रतिबंध लगाने का कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय खुद भारतीय प्रणाली के भीतर
ही असंतोष की गुंजाइश को दर्शाता है। भारतीय न्यायपालिका में शांतिपूर्ण तरीकों से
शिकायतों के निवारण की पर्याप्त गुंजाइश है। यह मामला पहले ही सुप्रीम कोर्ट जा चुका
है।
चरमपंथी हिंदुत्व उग्रवाद देश की तसव्वुर के लिए वजूदी खतरा
बनता जा रहा है, लेकिन देश में ऐसे दंगों को सामान्य होने से रोकने की शक्ति है। यद्यपि बहुसंख्यक
राष्ट्रवाद की हालिया लहर संदेह पैदा करती है, लेकिन इस देश के पास संविधान को लागू करने का शऊर भी
है जो धार्मिक पहचान से परे सभी को न्याय की गारंटी देता है। लेकिन इस अराजक स्थिति
के आधार पर अलकायदा के मुखिया द्वारा भारतीय राष्ट्रीयता की विचारधारा का अपमान करना
सूर्य पर थूकने के समान है। इससे, वास्तव में, मुस्लिम समुदाय को ही चोट पहुंचा है, जैसा कि कर्नाटक के गृह मंत्री के बयान से स्पष्ट है,
जिन्होंने हिजाब विरोध को 'बाहरी हस्तक्षेप' करार दिया है।
भारतीय इस्लाम की कई व्याख्याओं में से एक है। यह व्यापकता, स्थानीयता और सुसंगतता के लिहाज़ से बुनियादी तौर पर अल-कायदा के खालिस परस्त अकीदों से अलग है। भारतीय इस्लाम अमल के काबिल है और एक धर्म के रूप में समय के विकास के अनुकूल है। यह बहुसांस्कृतिक समाज और बहुसांस्कृतिक नैतिकता को बढ़ावा देता है। भारतीय मुसलमान गैर यकीनी की चक्की में पिस रहे नाहमवार इलाके से मार्गदर्शन लेने के लिए मजबूर नहीं हैं।
Muskan
and her father during an interview
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अल-जवाहिरी के हथियार उठाने के आह्वान को एक स्व-घोषित उपदेशक की आवाज के रूप में नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। यह बहु-धार्मिक समाजों में आमूल-चूल विद्रोह को बढ़ावा देने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा है। भारतीय मुसलमानों ने पहले भी काफिर देश से लड़ने के लिए ISIS में शामिल होने के आह्वान को खारिज कर दिया है। मुस्लिम समुदाय को "बाहरी ताकतों" की कट्टरपंथी कार्रवाइयों से अधिक सावधान रहने की जरूरत है। साथ ही, सरकारों की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वे अल्पसंख्यक समुदायों की चिंताओं को दूर करें ताकि उनकी रक्षा की जा सके।
गौरतलब है कि एक वीडियो सामने आने के तुरंत बाद, जिसमें अल-कायदा प्रमुख अयमान अल-जवाहिरी ने हिजाब पहनने के अपने अधिकार का बचाव करने के लिए बीबी मुस्कान खान की प्रशंसा की, मंडिया की छात्रा के पिता ने उसे फटकार लगाई है। अपने वीडियो में, जवाहिरी एक कविता के माध्यम से मुस्कान की प्रशंसा करते हुए दिखाई दे रहे हैं, जिसे उन्होंने कथित तौर पर खुद लिखा है। मुस्कान के पिता मुहम्मद हुसैन खान ने कल संवाददाताओं से कहा कि वह किसी आतंकवादी संगठन के मुखिया से कोई प्रशंसा नहीं चाहते। "हम इस [वीडियो] के बारे में कुछ नहीं जानते, हम नहीं जानते कि वह (अल-जवाहिरी) कौन है," मैंने उसे आज पहली बार देखा। वह अरबी में कुछ कहता है ... भारत में हम सभी भाइयों की तरह प्यार और विश्वास के साथ शांति से रहते हैं। मुहम्मद हुसैन खान ने कहा कि उनका (जवाहिरी का) बयान "उद्देश्य कलह पैदा करना है और हम भारतीयों में तफरका डालना है," मुस्कान के पिता ने कहा कि इस मतभेद ने मेरे खानदान का सुकून गारत कर दिया है इसलिए हम मुस्कान को एक ऐसे कालिज में दाखिल करने पर गौर कर रहे हैं जिसमें छात्राओं को हिजाब पहनने पहनने की अनुमति है।
गौरतलब है कि फरवरी में जब हिजाब का मामला जोरों पर था, तब मांडिया के एक कॉलेज में बीकॉम सेकेंड ईयर की छात्रा को हिजाब पहनकर कॉलेज में प्रवेश करने पर भगवा शॉल पहने छात्रों के एक समूह द्वारा परेशान किया गया था। मुस्कान ने "जय श्री राम" के नारों का जवाब "अल्लाहु अकबर" के नारों से दिया था। नतीजतन, वह दुनिया भर में और विशेष रूप से पाकिस्तान में इस्लामी कट्टरपंथी तत्वों के लिए एक नायक बन गई। पिछले महीने ISIS मैगजीन वॉयस ऑफ हिन्द ने भी अपनी कवर स्टोरी में भारत में चल रहे हिजाब विवाद का जिक्र किया था। और यही काम अल कायदा ने भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी पत्रिका नवा ए ग़ज़वा ए हिंद में भी किया था। ये सभी आतंकवादी समूह मौजूदा स्थिति में भारत के अंदर अपने लिए एक अवसर देखते हैं। वे शांतिपूर्ण मुसलमानों को अपने समूह में शामिल होने के लिए उकसाना चाहते हैं। यह उग्र पानी में मछली पकड़ने की कोशिश करने जैसा है। लेकिन मुस्कान के पिता की स्पष्ट प्रतिक्रिया इंगित करती है कि भारतीय मुसलमान अपने देश के आंतरिक मामलों में किसी भी विदेशी हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करेंगे। भारत में अभी भी मजबूत कानूनी संस्था हैं जो मुसलमानों की किसी भी शिकायत का समाधान कर सकता है
English Article: We Indian Muslims Need No Sermons From The Al-Qaeda
Chief Ayman Al-Zawahiri
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