राम पुनियानी
28 अक्टूबर 2023
गत 7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इजरायल के कुछ ठिकानों पर हमले और करीब 200 यहूदियों को बंधक बना लिए जाने के बाद से इजरायल फिलिस्तीन पर हमले कर रहा है। दोनों ही हमलों की निष्ठुरता को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। ऐसे हमलों में सबसे ज्यादा नुकसान हिंसा का शिकार होने वालों का होता है- चाहे वे सैनिक हों या नागरिक। अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस समेत कई प्रमुख पश्चिमी देशों ने इजरायल के साथ एकजुटता प्रदर्शित की है। यहां तक कि हमास के हमले के कुछ ही घंटों बाद भारत ने भी इजरायल का समर्थन कर दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मणिपुर के बारे में मुंह खोलने में कई महीने लग गए। और जब वे बोले भी तब भी घुमाफिरा कर। मगर इजरायल के साथ हमदर्दी जताने में उन्होंने ज़रा भी देरी नहीं की।
इस मामले में कई स्तंभकार केवल हमास को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं और युद्ध की स्थितियां निर्मित करने के लिए उसे ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं। लेकिन साथ ही यह स्वागतयोग्य है कि इंग्लैंड और अमेरिका में इजरायल के खिलाफ कई बड़े प्रदर्शन हुए हैं (हालांकि मीडिया ने उनकी बहुत कम चर्चा की) और कई यहूदियों ने पश्चिम एशिया में इजरायल की नीतियों की आलोचना की है।
जहां तक भारत का सवाल है, पूर्व में इजरायल के मामले में उसकी नीतियां इस मुद्दे पर महात्मा गांधी के विचारों पर आधारित रहीं हैं। गांधीजी ने 1938 में लिखा था, “फिलिस्तीन उसी तरह से अरब लोगों का है, जिस तरह इंग्लैंड, अंग्रेजों का और फ्रांस, फ्रांसीसियों का है।” उन्होंने यह भी लिखा कि ईसाईयों के हाथों यहूदियों ने प्रताड़ना भोगी है। मगर इसका यह मतलब नहीं है कि उन्हें मुआवज़ा देने के लिए फिलिस्तीनियों से उनकी ज़मीन छीन ली जाए।
यहूदी यूरोप में व्याप्त यहूदी-विरोधवाद के शिकार रहे हैं। यहूदियों के प्रति ईसाईयों के बैरभाव के कई कारणों में से एक यह है कि ऐसा माना जाता है कि ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाए जाने के लिए यहूदी ज़िम्मेदार थे। आगे चलकर व्यापारिक होड़ के कारण यह बैर और बढ़ा। यहूदी-विरोधवाद का सबसे क्रूर और सबसे हिंसक पैरोकार था एडोल्फ हिटलर जिसने लाखों यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया। अकेले गैस चैम्बरों में 60 लाख यहूदी मारे गए। हिटलर द्वारा यहूदियों को हर तरह से प्रताड़ित किया गया।
यूरोप में यहूदियों को कई तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता था। इसी के नतीजे में ज़ोयनिज्म या यहूदीवाद का जन्म हुआ। थियोडोर हर्ट्सज़ल ने ‘द ज्यूइश स्टेट’ शीर्षक से एक पुस्तक लिखी और इस मुद्दे पर स्विट्ज़रलैंड के बाल शहर में कुछ यहूदियों की बैठक हुई। ओल्ड टेस्टामेंट के हवाले से उन्होंने घोषणा की कि फिलिस्तीन की भूमि यहूदियों की है। उनका नारा था, “भूमिविहीन मानवों (यहूदियों) के लिए मानव-विहीन भूमि (फिलिस्तीन)।”
जाहिर है कि यह नारा उस भूमि पर 1,000 साल से रह रहे फिलिस्तीनियों के साथ बेरहमी करने का आव्हान था। और ये फिलिस्तीनी केवल मुसलमान नहीं थे। उनमें से 86 फ़ीसदी मुसलमान, 10 फीसदी ईसाई और 4 फीसदी यहूदी भी थे। बहरहाल एक “ज्यूइश नेशनल फंड” स्थापित किया गया और दुनिया भर से यहूदी फिलिस्तीन आकर वहां ज़मीन खरीदने लगे।
शुरुआत में अधिकांश यहूदी भी यहूदीवाद के खिलाफ थे। जो यहूदी फिलस्तीन में बसे, उनसे कहा गया कि वे अपनी ज़मीन न तो किसी अरब को किराये पर दें और न किसी अरब को बेचें। उनका इरादा साफ़ था, धीरे-धीरे फिलिस्तीन पर कब्ज़ा जमाते जाओ। यहूदियों की संख्या बढ़ती गई। फिर एक अंतर्राष्ट्रीय समझौते के अंतर्गत फिलिस्तीन का शासन इंग्लैंड के हाथ में आ गया और वहां की आतंरिक समस्याएं बढ़ने लगीं। सन 1917 में इंग्लैंड ने बेलफोर घोषणापत्र जारी कर “फिलिस्तीन में यहूदी लोगों के लिए गृहराष्ट्र की स्थापना” का समर्थन किया।
इस तरह फिलिस्तीन की समस्या की जड़ में ब्रिटिश उपनिवेशवाद है। महान यहूदी लेखक आर्थर केस्लेर ने बेलफोर घोषणापत्र के बारे में लिखा, “इससे विचित्र दस्तावेज दुनिया ने पहले कभी नहीं देखा था।” अमेरिकी-इजरायली इतिहासवेत्ता मार्टिन क्रेमर के अनुसार, “यह दस्तावेज संकीर्ण और तरह-तरह के प्रतिबंधों और रोकों पर आधारित राजनैतिक यहूदीवाद की ओर पहला कदम था।” अरब लोगों ने 1936 के बाद से इस घुसपैठ का प्रतिरोध करना शुरू किया, परन्तु उसे ब्रिटेन ने कुचल दिया।
हिटलर द्वारा यहूदियों की प्रताड़ना के चलते द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद, यहूदी और बड़ी संख्या में यहां बसने लगे। यह दिलचस्प है कि यूरोप के देशों और अमेरिका ने यहूदियों को उनके देश में बसने के लिए कभी प्रोत्साहित नहीं किया। कुछ वक्त बाद, फिलिस्तीन को दो हिस्सों में बांट दिया गया– फिलिस्तीन और इजरायल और यह तय हुआ कि येरुशलम और बेथलेहम को अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण में रखा जाएगा। ज़मीन का बंटवारा अरब लोगों के हितों के खिलाफ था। लगभग 30 प्रतिशत यहूदियों जो सात प्रतिशत ज़मीन पर रह रहे थे, को 55 प्रतिशत ज़मीन दे दी गई। फिलिस्तीनियों को केवल 45 प्रतिशत ज़मीन दी गई और उन्होंने इस निर्णय को अल-नकबा (तबाही) की संज्ञा दी।
इजरायल को अमेरिका और ब्रिटेन का पूरा समर्थन मिला। युद्धों के ज़रिये वह धीरे-धीरे अपने कब्ज़े की ज़मीन का विस्तार करता गया और आज स्थिति यह है कि वह मूल फिलिस्तीन की 80 प्रतिशत से भी ज्यादा ज़मीन पर काबिज़ है। फिलिस्तीनी अपनी ही ज़मीन पर शरणार्थी बन गए हैं और आज 15 लाख फिलिस्तीनी सुविधा-विहीन कैम्पों में रहने पर मजबूर हैं। शुरूआती विस्थापनों में से एक में 14 लाख फिलिस्तीनियों को अपने घरबार छोड़ने पड़े थे।
इन्हीं विस्थापितों में से प्रतिरोध की एक नायिका लैला ख़ालिद उभरी थीं। वे “पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ़ पेलेस्टाइन” की सदस्य थीं। प्रतिरोध के एक अन्य बड़े नायक थे यासेर अराफात, जिन्होंने बीच का रास्ता चुना और फिलिस्तीन को वैश्विक मुद्दा बनाया। समाधान के कई प्रयास असफल हो गए जिनमें ओस्लो समझौता शामिल है। जमीन को बांट कर वहां दो देशों– फिलिस्तीन और इजरायल की स्थापना का प्रस्ताव इजरायल को मंज़ूर नहीं है। बल्कि इजरायल तो एक तरह से फिलिस्तीन को मान्यता ही नहीं देता। इजरायल की एक प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर ने कहा था “फिलिस्तीन जैसी कोई चीज़ नहीं है।” इजरायल की मूल नीति यही है।
इजरायल लगातार फिलिस्तीन की भूमि पर कब्ज़ा बढाता जा रहा है और इस बारे में संयुक्त राष्ट्रसंघ के कई प्रस्तावों को इजरायल नज़रअंदाज़ करता आ रहा है। अमरीका इजरायल की यहूदीवादी नीतियों का खुलकर समर्थन करता आ रहा है। और इसके बदले इजरायल पश्चिम एशिया में कच्चे तेल के संसाधनों पर कब्ज़ा ज़माने में अमेरिका की मदद करता रहा है।
दुनिया में शायद ही कोई समुदाय इतना प्रताड़ित हो जितना कि फिलिस्तीनी हैं। वे उनकी ही भूमि पर कुचले जा रहे हैं, उन्हें उनकी ही ज़मीन से बेदखल किया जा रहा है। फिलिस्तीनी ब्रिटिश उपनिवेशवाद और अमेरिकी साम्राज्यवाद के शिकार हैं। पिछले कुछ दशकों में संयुक्त राष्ट्रसंघ को बहुत कमज़ोर बना दिया गया है। ऐसे में इन प्रताड़ित लोगों को कौन न्याय देगा? यह दुखद है कि हिटलर ने यहूदियों के साथ जो किया था, वही यहूदी फिलिस्तीनियों के साथ कर रहे हैं।
यह अन्याय यदि और गंभीर होता जा रहा है तो इसका कारण है पश्चिमी देशों का इजरायल को अंध-समर्थन। पश्चिम समस्या के मूल में नहीं जाना चाहता। वह नहीं स्वीकार करना चाहता कि समस्या के मूल में है यहूदी विस्तारवाद और फिलिस्तीनियों का दमन। आवश्यकता इस बात की है कि पश्चिम एशिया के संकट के सुलझाव के लिए शांति और न्याय पर आधारित आन्दोलन चलाया जाए। वर्तमान स्थिति में एक मात्र अच्छी बात यह है कि इजरायल के मनमानी के खिलाफ प्रदर्शनों में बड़ी संख्या में यहूदी भी हिस्सा ले रहे हैं।
(लेख का अंग्रेजी से हिंदी में रूपांतरण अमरीश हरदेनिया द्वारा)
-----------------------
URL:
New Age Islam, Islam Online, Islamic Website, African Muslim News, Arab World News, South Asia News, Indian Muslim News, World Muslim News, Women in Islam, Islamic Feminism, Arab Women, Women In Arab, Islamophobia in America, Muslim Women in West, Islam Women and Feminism