मुजाहिद नदवी
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
3 जून, 2022
कुरआन पाक में अल्लाह पाक ने हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ाते अकदस को मुसलमानों के लिए एक बेहतरीन और काबिले तकलीद नमूना करार दिया है,: “हकीकत यह है कि तुम्हारे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ाते (मुबारका) में एक बेहतरीन नमूना है हर उस शख्स के लिए जो अल्लाह और आखिरत के दिन पर ईमान रखता हो। (अल अहज़ाब, 21)
सेहत, जो कि आज कल इंसानी ज़िन्दगी का सबसे अहम मसला बन कर उभरी है, बल्कि कोविड-19 ने सारी दुनिया के सामने यह साबित कर दिया कि इंसानी तरक्की के सारे दावे किस कदर खोखले और निराधार हैं, इंसान विकास के अपने बड़े बड़े दावों में कितना बोदा और इस तरह की अचानक आफतों के लिए कितना तैयारी से दूर साबित हुआ है। लेकिन अल्लाह का लाख लाख शुक्र व एहसान है कि मज़हबे इस्लाम में इंसान को एक सेहतमंद ज़िन्दगी के संबंध में पुरी हिदायत कुरआन व हदीस में जारी कर दी गईं, और यह हिदायत क्यों न जारी होतीं इसलिए कि मोमिनीन की जान मामूली और बेकार नहीं, उनको तो अल्लाह पाक ने खरीद लिया है। और जब यह हमारे खालिक की अमानत हुई तो उसने ही इसकी हिफाज़त का तरीका भी हमको सिखाया है।
सेहत की नेमत और हिदायत:
हम सुबह सुबह अक्सर पार्क में और सड़कों पर लोगों को चलते और दौड़ते देखते हैं। एक अच्छी खासी संख्या इस मॉर्निंग वाक की आदी नज़र आ रही है। लेकिन अगर इन सुबह सुबह चलने और वर्जिश करने वालों का एक चार्ट तैयार किया जाए तो मालुम होगा कि उनमें से अक्सर शुगर और ब्लड प्रेशर जैसे बीमारियों का शिकार हैं और डॉक्टर के मशवरे पर अब इस पर अमल कर रहे हैं। बहुत अच्छी बात है। लेकिन इस हरकत और वर्जिश की जरूरत उनको भी है जो किसी मर्ज़ का शिकार नहीं हैं और अल्लाह के फज़ल व करम से सेहतमंद हैं। इसलिए कि आज की लापरवाही का खामियाजा अक्सर कल चुकाना पड़ता है। उसी की तरफ हमारी तवज्जोह दिलाते हुए सरवरे कौनैन हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: “वह नेमतें ऐसी हैं कि जिनके मामले में अक्सर लोग गफलत में पड़े हैं: सेहत और खाली वक्त।“ (बुखारी) इसके अलावा एक और हदीस में है: “मश्गुलियत से पहले अपने खाली वक्त को और बीमारी से पहले अपनी सेहत को गनीमत जानो।“ (हाकिम)
ताकतवर मोमिन, कमज़ोर मोमिन:
इस्लाम मुसलमानों को जिस्मानी ताकत हासिल करने के लिए हर तरह से उभारता है। मुस्लिम शरीफ में हज़रत अबू हुरैरा रज़ी० अ० से रिवायत है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “ताकतवर मोमिन बेहतर है और अल्लाह को महबूब है कमज़ोर मोमिन के मुकाबले में, और हर किसी में खैर हैं।“
हालांकि इमाम नौवी रहमतुल्लाह अलैह और कुछ इमामों ने यहाँ ताकत से मुराद ईमान की ताकत ली है, लेकिन आम तौर पर लगभग सभी उलमा और इमाम इससे मुराद जिस्मानी ताकत मुराद लेते हैं। और कहते हैं कि ज़ाहिरी व बदनी ताकत वाला मोमिन सब्र में, अमल में और इबादत में आगे बढ़ा हुआ होगा, इसलिए उसकी फजीलत बयान की गई है। और कमज़ोर लोगों की भी दिल शिकनी न हो इसके लिए दोनों में खैर होने की बात कह दी गई है। लेकिन इस हदीस में मुसलमानों के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि उनकी सेहत, उनकी बदनी आफियत उनको अल्लाह का महबूब बनाने वाली है और अल्लाह पाक की इबादतों के लिए जिस्मानी सेहत एक बहुत अहम ज़रिया है, इसलिए उनको इसके हुसूल की कोशिश और उसके मिलने के बाद उसकी हिफाज़त बहुत जरूरी है।
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
का उसवा:
एक सेहतमंद जिंदगी गुज़ारने के लिए सबसे ज़्यादा अहम बात यह है कि हम सेहतमंद ज़िन्दगी का तरीका अपनाएं। अपने रोजमर्रा के मामूलात का एक निज़ाम बनाएं और उस पर मजबूती से कायम रहें। इन मामूलात में हमारे मेहनत और हरकत मौजूद हो। हमारे नबी हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पाक ज़िन्दगी इस अँधेरी दुनिया में हमारे सामने बिलकुल एक रौशन दिये की तरह मौजूद है, जो हमको ज़िन्दगी के हर मोर्चे पर आगे बढ़ने का रास्ता बताती है। विभिन्न किताबों के हवाले से आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का यौमिया मामूल (जो वक्त और हालात के हिसाब से कभी कभार बदल बी जाता था) इन बातों पर मुहीत था कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तहज्जुद के वक्त उठने के आदी थे, फज्र बाद सोने का मामूल न था (लॉक डाउन की वजह से एक अच्छी खासी संख्या इसका शिकार हो चली है) हाँ जुहर के बाद कुछ देर आप सल्लल्लाहु अलैहि वासल्लम आराम फरमाया करते थे जिसको अरबी में कैलुला कहा जाता है और जिससे हमें भरपूर कुवत व तवानाई मिलती है। रात में इशा के बाद जल्द सो जाने का मामूल था। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुद के आराम के लिए अपने अहलो अयाल के लिए कुछ वक्त ज़रूर फारिग किया करते थे। घर में जब होते तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने हाथ से अपने काम करने को तरजीह देते थे। यह साड़ी आदतें इंसान के लिए एक निहायत ही खुशहाल, खुश व खुर्रम और सेहतमंद ज़िन्दगी की जामिन है। अगर हम इन बेहतरीन आदतों का आइना सामने रख कर आज हमारी ज़िन्दगी का जायज़ा लें तो मालुम होगा कि न केवल यह कि हम इस तरीके से कहीं बहुत दूर निकल आए हैं बल्कि इसकी बहुत भारी कीमत भी चुका रहे हैं।
गिज़ा में एतिदाल व तवाजुन
कुरआन में अल्लाह पाक ने केवल छः शब्दों में बहुत ही संक्षिप्त और व्यापक अंदाज़ में सारे इंसानों के लिए खाने पीने की सबसे बेहतरीन हिदायत जारी कर दी हैं। सुरह आराफ, आयत 31 में अल्लाह पाक इरशाद फरमाता है: “और खाओ और पियो, और फुजूल खर्ची मत करो।“ तफसीर इब्ने कसीर में है कि अल्लाह पाक ने साड़ी की साड़ी तिब को आयत के इस आधे हिस्से में जमा कर दिया है। इसलिए कि अल्लाह पाक ने इंसान को खाने पीने की इजाज़त दी और तुरंत इसराफ और ज़्यादती न करने का हुक्म दिया।और जिसने अपने खाने को कंट्रोल कर लिया, उसने अपनी सेहत पर उबूर हासिल कर लिया। अतिब्बा का मानना है कि इंसानी जिस्म की 80 फीसद बीमारियाँ मेदे में खराबी की वजह से ही होती है।
गिज़ा की बात निकली है तो हम सबके लिए यह हदीस रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी मशअले राह के तौर पर काफी है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “किसी आदमी ने अपने पेट से बुरा बर्तन कभी नहीं भरा। आदमी के लिए वह कुछ लुकमे ही काफी हैं जो उसकी कमर को सीधा रख सकें। और अगर उसको (ज़्यादा) खाना ही हो तो फिर एक तिहाई खाने के लिए, एक तिहाई पानी के लिए और तिहाई हवा के लिए होना चाहिए। (निसाई, तिरमिज़ी)
यह स्पष्ट हिदायतें एक इंसान को न केवल गिज़ा के संबंध में बेहतरीन हिदायत देती हैं बल्कि यही इंसान की सेहत की सबसे बड़ी ज़ामिन हैं शर्त यह है कि दस्तरख्वान पर बैठ कर भी इनको याद रखा जाए और इन पर भरपूर अमल किया जाए , न कि तकल्लुफ बरतरफ, निवाला हर तरफ, को अमल में लाया जाए।
बीमार होने पर:
और अगर यह सब करने के बाद भी इंसान को बीमारी आती है, और वह कभी कभार समय समय पर आती ही रहती है तो यहाँ भी इस्लाम हमको असहाय नहीं छोड़ता बल्कि इंसान को इलाज की तरफ रागिब करता है। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: इलाज किया करो, इसलिए कि हर बीमारी का इलाज है, सिवाए बुढ़ापे के(बुखारी, मुस्लिम) और अबू दाउद की एक हदीस में है कि “अल्लाह पाक ने बीमारी और दवा दोनों नाज़िल की हैं, हर बीमारी की दवा है तो तुम इलाज करवाया करो और हराम चीज के जरिये इलाज न करो।“ ज़ाहिरी इलाज के साथ साथ कुरआन मजीइड और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से साबित दुवाओं से भी इलाज की तालीमात दी गईं हैं। सुरह फातिहा को सुरह अल शिफा इसी लिए कहा जाता है कि इसमें हर बीमारी से शिफा मौजूद है।
संक्षिप्त यह कि इंसान की सेहत और उसकी आफियत इस्लाम में बहुत अहमियत की हामिल है, और इस्लाम ने इसी लिए इस दिशा में पूरी रहनुमाई फरमा दी है ताकि वह अपनी सेहत की हिफ़ाज़त करे और इस तरह दीन में इबादात और अल्लाह पाक के कामों के लिए खुद को ज़्यादा से ज़्यादा चाक व चौबंद बना सके। अब इंसान के लिए जरूरी है कि वह अपनी सेहत की अहमियत को समझे, अपने बदन को अल्लाह की अमानत समझ कर इसका ख्याल रखे। आज के इस दौर में जब पता नहीं गिज़ा के नाम पर क्या क्या हमारे पेट में जा रहा है, अच्छी और मोतदिल मिकदार में गिज़ा का एहतिमाम करे ताकि वह एक सेहतमंद और तवानाई से भरपूर ज़िन्दगी गुज़ार सके, एक ऐसी ज़िन्दगी जिसमें अल्लाह पाक की ज़्यादा से ज़्यादा इबादत हो क्योंकि यही तो इंसान की तखलीक का मकसद है।
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