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Hindi Section ( 28 Aug 2020, NewAgeIslam.Com)

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Growing Tendency to Commit Suicide आत्महत्या का बढ़ता रुझान

मौलाना नादीमुल वाजिदी

आत्महत्या भी इस दौर के सामाजिक समस्याओं में सबसे उपर है, आज भारत में ही नहीं बल्कि पुरी दुनिया में लोग आत्महत्या कर रहे हैं, और जान जैसी अमूल्य चीज को खुद अपने हाथों नष्ट कर रहे हैं, अगर हम भारत की बात करें तो यह समस्या यहाँ कुछ अधिक ही गंभीर रूप धारण कर चुका है, अभी तक तक समाधान और अनुबंध के मालिक इस गंभीरता की ओर आकर्षित नहीं हो सके, आने वाले समय में यह समस्या पुरे जोर के साथ उभरे गा, और उस समय सरकार को कोई ना कोई सख्त कदम उठाना ही पड़ेगा, कर्ज की अदायगी की कोई सबील ना निकल पाने की सूरत में आत्महत्या करने वालों की बढती हुई संख्या ने सरकार के जमीर को झिंझोड़ा तो है, और महाराष्ट्र के दोरभ क्षेत्र में आत्महत्या करने वाले किसानों के कर्जों की अदायगी के लिए सरकार ने कुछ रकम निश्चित भी की है, लेकिन यह रकम प्रभावितों को मिल रही या नहीं इसके बारे में यकीन के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता वैसे भी यहाँ का नौकरशाही निजाम सरकारी पैसे को सहीह जगह तक ना पहुचने देने में माहिर समझा जाता है, इसलिए उम्मीद यह है कि अभी तक सरकार अपने एलान के अनुसार कर्ज़दार और मायूस किसानों की कोई मदद नहीं कर पाई है। भारत में आत्महत्या के कारण और मंशा दुसरे देशों के मुकाबले में कुछ अधिक ही हैं, उनमें से कुछ कारण तो ऐसे हैं जो केवल इसी देश में पाए जाते हैं, जब तक के सहीह कारण का पता लगा कर उनका निवारण नहीं किया जाएगा और मर्ज को जड़ से समाप्त करने की कोशिश नहीं की जाती उस समय तक आत्महत्या की घटनाओं पर काबू पाना बहुत कठिन है, भारत में अभी तक नई आर्थिक प्रणाली पूरी तरह परिचित नहीं हो सका है, आज भी कस्बों और देहात में गरीब लोग अपनी आर्थिक मजबूरियों से चला  आ रहा है और देश की रगों में खून बन कर दौड़ रहा है, एक व्यक्ति आज भी अपनी बेटी के हाथ पीले करने के लिए, या अपने बीमार माँ बाप का इलाज कराने के लिए, या अपनी विरासत में मिली जमीन पर सर छिपाने के लिए घर बनवाने की खातिर सूद खोरों से ऊँची दर सूद पर क़र्ज़ लेने के लिए मजबूर है, यह सूद की दर इतनी अधिक होती है कि बेटी खुद औलाद वाली हो जाती है, माँ बाप की हड्डियों को राख हुए सालों गुज़र जाते हैं और सर छिपाने के लिए बनाया गया कच्चा पक्का घर तेज़ हवा या तूफानी बारिश की जद में आकर ज़मीन पर गिर जाते हैं, लेकिन कर्ज़ लेने वाले का क़र्ज़ सूद समेत अपनी नस्लों के लिए विरासत के तौर पर छोड़ देता है, अब सरकार ने कम दर पर सूद वाले ग्रामीण बैंक खोले हैं और उनसे कर्ज़ लेने की तरगीब दी जा रही है, लोग कर्जे हासिल भी कर रहे हैं पहले तो इन बैंकों से हर जरूरत मंद क़र्ज़ नहीं ले पाता, फिर उसकी रस्मी कार्यवाही इतनी लम्बी होती है कि ज़रूरतमंद घबरा कर इरादा ही मुलतवी कर देता है, और अगर वह किसी तरह क़र्ज़ मंज़ूर भी करा लेता है तो उसे रिश्वत में इतनी रकम संबंधित अफसरों को देनी पड़ती है कि क़र्ज़ से हासिल होने वाली रकम का एक उचित हिस्सा उसके हाथ से निकल जाता है, फिर यह क़र्ज़ साधारणतः जाती जरूरतों से अधिक खेती के लिए मिलता है, बहुत सारे लोग क़र्ज़ तो लेते हैं लेकिन जिस उद्देश्य के लिए वह क़र्ज़ लेते हैं उसमें असफल रह जाते हैं, परिणाम स्वरूप वह कर्ज़ की अदायगी नहीं कर पाते, हमारे देश में आत्महत्या करने वालों की अच्छी खासी संख्या ऐसे लोगों की है जो किसी महाजन या किसी बैंक से लिया हुआ क़र्ज़ अदा नहीं कर पाते और मायूस हो कर आत्महत्या का रास्ता अपना लेते हैं।

भारत में जात पात का निजाम हर चीज पर हावी है, यही कारण है अगर दो भिन्न जातों और बिरादरियों के लड़के लड़कियों में इश्क हो जाए और वह शादी कर के एक साथ जीवन व्यतीत करना चाहें तो उनके माता पिटा, अभिभावक, गाँव के मुखिया और समाज के कर्ता धर्ता उन्हें इसकी इजाज़त नहीं देते, अगर उनके पास साधन होते हैं या हिम्मत होती है तो वह घर से फरार हो कर वैवाहिक जीवन में जुड़ जाते हैं, वरना मायूस हो कर ज़हर खा लेते हैं, या रेल के निचे आकर अपनी ज़िन्दगी ख़त्म कर लेते हैं, या गले में फांसी का फंदा डाल कर छत के पंखे में या किसी पेड़ की शाखा पर झूल जाते हैं।

आत्महत्या के उपर्युक्त कारणों में से एक बड़ा कारण घरेलु समस्याएं भी हैं आम तौर पर औरतें जहेज़ के नाम पर सताई जा रही हैं, और उनके माता पिता का शोषण किया जा रहा है, कभी कभी कम जहेज़ लाने वाली महिलाओं को ज़िंदा जला दिया जाता है, और कभी वह इतनी मजबूर हो जाती हैं कि उनके सामने आत्महत्या के अलावा कोई दुसरा रास्ता नहीं रहता, जहेज़ के नाम पर महिलाओं का उत्पीड़न करने की कोशिश भारतीय सभ्यता की पेशानी पर बद्नूमा दाग बन चुका है, अखबारों के पन्ने के पन्ने तकलीफ पहुंचाने की खबरों से भरे रहते हैं, जनसंख्या प्रतिशत में बढ़ोतरी के बावजूद अभी तक भारतीय समाज के अंधेरों में डूबा हुआ है।

शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है, और इससे अधिक जीवन का स्तर ऊँचा होता जा रहा है, खानदान को उभरने के लिए पैसे की जरूरत है, जो किसी अच्छी नौकरी या बड़े व्यापार के माध्यम से प्राप्त हो सकता है, जीवन की दौड़ में जारी इस मुकाबले ने बच्चों से उनका बचपन चीन लिया है, माता पिता उनसे शैक्षणिक मैदान में आला कारकर्दगी की उम्मीद करते हैं, कभी कभी बच्चे उनकी उम्मीदों पर पूरा नहीं उतर पाते उनमें से कुछ बच्चे हालात से समझौता कर लेते हैं और कुछ कम हौसला बच्चे हिम्मत हार बैठते हैं और अपनी ज़िन्दगी का खात्मा कर लेते हैं, आत्महत्या का रुझान ताज़ा है और तेज़ी के साथ बढ़ रहा है। इनके अलावा भी कुछ ऐसे कारण हैं जो आदमी को आत्महत्या की और ले जाते हैं। आर्थिक और वित्तीय तरक्की की वजह से अगर खुशहाली बढ़ी है मगर देश का हर नागरिक खुशहाल हो गया हो ऐसा नहीं है, आज भी एक बड़ी आबादी वित्तीय तरक्की के लाभ से उसी तरह वंचित हैं, या औसत वर्ग में शुमार किये जाते हैं वह तरक्की की चका चौंध में अपना भविष्य तलाश करते हैं और जब उन्हें मायूसी हाथ लगती है तो बहुत कम हिम्मत वाले लोग हालात से लड़ने के बजाय मौत की आगोश में चले जाने को तरजीह देते हैं, इंसान की घरेलू उलझने बढ़ रही हैं, इसमें अमीर व गरीब की भी तख्सीस नहीं है, अमीर की परेशानियां दूसरी किस्म की हैं, गरीब की मुश्किलें किसी और तरह की हैं ख़ुदकुशी के जो घटनाएं पेश आते हैं उनमें दस प्रतिशत के पीछे घरेलू समस्याएं होती हैं, और अब तो लोगों ने मुहब्बत व लगाव के इज़हार के लिए भी आत्महत्या करना शुरू कर चुके हैं, अब एक नया रुझान यह पैदा हुवा है कि कुछ लोग सरकारी अधिकारियों की बेईमानी के खिलाफ विरोध के तौर पर अपने आप को आग के हवाले कर रहे हैं समग्र रूप से हमारे देश में आत्महत्या के माध्यम से मरने वालों की वार्षिक संख्या सात लाख से अधिक हो चुकी है, इसमें मर्द भी हैं, औरतें भी हैं और बच्चे भी, यह संख्या लगातार बढ़ रही है, और आने वाले वर्षों में इस रुझान के ख़त्म होने के कोई आसार नहीं हैं। इन हालात में जरुरी है कि आत्महत्या के पीछे मौजूद वास्तविक कारण का पता लगाया जाए और इसके रोकथाम की कोशिश की जाए, जहां तक अखबार आदि के अध्ययन से पता चलता है आत्महत्या के घटनाएं मुसलमानों से अधिक हम वतनों में पाए जा रहे हैं, (यहाँ आत्मघाती हमलों की बात रहने दीजिये, यह विषय एक अलग बहस का दावेदार है) ऐसा लगता है कि हमारे वतन भाई इंसानी जान की कद्र व कीमत से सहीह तौर पर परिचित नहीं हैं, उन्हें यह भी पता नहीं कि ज़िन्दगी खुदा की दी हुई अमानत है, हमें इसे ख़त्म करने का कोई अधिकार नहीं, उन्हें यह मालुम नहीं कि मरने के बाद भी एक ज़िन्दगी है जो हमेशा हमेश की और अनंत हैं, जहां इंसान को उसके किये का फल मिलेगा, वह यह भी नहीं जानते कि मायूसी इंसान की बहुत बड़ी कमजोरी है, सहीह अर्थों में इंसान वही है जो बुलंद हौसला रखता हो, परेशानियों का मुकाबला करने की सलाहियत रखता हो, और किसी भी हालत में मायूस ना होता हो, हालात कितने ही भिन्न क्यों ना हों सब्र का दामन हाथ से ना छोड़ता हो, ऐसा लगता है कि इस्लाम ही एक ऐसा धर्म है जो इंसान को अज्म व हिम्मत और सब्र व बर्दाश्त के साथ जीने का सलीका सिखाता है, आवश्यकता है कि हम इस्लामी शिक्षाओं के इस पहलु को अपने हम वतन भाइयों से परिचित कराएं।

अल्लाह पाक ने इंसान को पैदा किया और उसे शरफ और फजीलत अता फरमाई, जैसा कि कुरआन करीम में है: और हम ने इज्ज़त दी है आदम की औलाद को और सवारी दी उनको जंगल और दरिया में और रोज़ी दी उनको पाकीज़ा चीजों से, और फजीलत दी उनमें बहुतों पर बी जिन्हें हमने पैदा किया” (बनी इस्राइल: ७०)। इस आयत में अल्लाह पाक ने अक्सर जीवों पर इंसान की फजीलत का ज़िक्र फरमाया है यह फजीलत उन विशेषताओं की वजह से है जो केवल इंसान में पाई जातो हैं इसके अलावा दूसरी जीवों में नहीं पाई जातीं, जैसे यह कि उसे हुस्ने सूरत, एतिदाल ए जिस्म एतिदाले कद व कामत और एतिदाले मिजाज़ अता किया गया है, सबसे बढ़ कर यह कि उसे अक्ल व शऊर बख्शा गया, जिसके जरिये वह कायनात में फैली हुई दूसरी जीवों से अपने काम निकालता है, कुछ जीवों को वह अपनी सवारी के लिए इस्तेमाल करता है, कुछ जीवों के जरिये वह अपनी गिज़ा और लिबास तैयार करता है, इसे अक्ल व शऊर के साथ बोलना भी अता किया ताकि अपना माफ़ी ज़मीर दोसरों तक पहुंचा सके, और दूसरों के ख्यालात आसानी के साथ समझ सके, यह वह अंतर हैं जिन में इंसान का कोई शरीक व सहीम नहीं है, क्या यह दानिश मंदी होगी कि इतने अमूल्य शरीर और इतने विशेषताओं का हामिल वजूद ख़त्म कर लिया जाए, और इसे मौत के हवाले कर दिया जाए, यह सहीह है कि मौत एक अटल हकीकत है, और एक दिन हर जानदार को मौत की आगोश में जाना है, लेकिन यह विकल्प केवल खुदा को है, उसी ने पैदा किया है और वही मौत देगा। इंसान को केवल जीने का विकल्प दिया गया है, मौत का विकल्प नहीं दिया गया, यही कारण है कि इस्लाम ने आत्महत्या को हराम करार दिया है और उलेमा ने इसकी हुरमत की वजह से इसे कबीरा गुनाहों में शुमार किया है, कबीरा गुनाह की भिन्न परिभाषाएं दी गई हैं, उनमें से सब से अधिक व्यापक और पूर्ण परिभाषा यह है कि जिस गुनाह पर कोई वईद, या हद, या लानत बयान की गई हो, या वह गुनाह किसी ऐसे गुनाह के बराबर हो जिस पर कोई वईद या लानत आई हो, हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़िअल्लहु अन्हु फरमाते हैं कि जिस गुनाह पर अल्लाह पाक ने दोज़ख के अज़ाब की धमकी दी हो या अपने गुस्से और लानत के इज़हार फरमाया हो कबीरा है, अल्लामा इब्ने कय्यिम का ख्याल है कि जो गुनाह बज़ात ए खुद निषिद्ध हों या कबीरा है और जिनसे इस लिए रोका गया हो कि वह किसी बुराई का कारण बनते हैं वह सगीरा अहिं, बहर हाल कबीरा गुनाहों पर बड़ी वईदें वारिद हैं, और उनके मुर्तकेबीन को सख्त तरीन सजाओं का हकदार करार दिया गया है। वैसे तो अल्लाह पाक कुदरत रखता है वह चाहे तो बड़ा से बड़ा गुनाह अपने फजल व कर्म से मुआफ कर सकता है, और चाहे तो छोटे से छोटे गुनाह पर पकड़ कर सकता है, लेकिन कुरआन व सुन्नत से कबीरा के सिलसिले में जो कुछ मालूम होता है वह यह कि कबीरा गुनाह या तो काफ्फारात  (हुदूद व किसास) के जरिये मुआफ होते हैं या तौबा के जरिये, इस रौशनी में देखा जाए तो आत्महत्या ऐसा गुनाह है कि इसके मुर्तकब पर कोई हद वगैरा जारी नहीं हो सकती और ना वह तौबा कर सकता है, क्योंकि आत्महत्या करने के बाद वह इस काबिल ही नहीं रहता कि उस पर ताज़ीरी कार्यवाही की जा सके या वह तौबा कर के अपना गुनाह मुआफ करा सके। कुरआन करीम की निम्नलिखित आयतों से आत्महत्या की हुरमत पर रौशनी पड़ती है एक जगह इरशाद फरमाया गया: “और तुम अपने आप को कत्ल मत करो बेशक अल्लाह पाक तुम पर मेहरबान हैं, और जो व्यक्ति ज़ुल्म व जोर से ऐसा करेगा तो हम उसे अवश्य आग में डालेंगे”। (अलनिसा: २९-३०)

इस आयत में बिल इत्तेफाक मुफ्स्सेरीन आत्महत्या भी दाखिल है, इस्लाम ने हर तरह के खून रेज़ी को हराम करार दिया है, चाहे खुद को कत्ल करना हो या दुसरे को क़त्ल करना हो, और इसकी सज़ा भी निर्धारित कर दी है कि हम इसे आखिरत में दोज़ख के अज़ाब की दर्दनाक सज़ा देंगे। एक और आयत में फरमाया: “और अपने आप को अपने हाथों से हलाकत में मत डालो”। (अल बकरा:१९५) इस आयत को मुफ़स्सेरीन ने आम मानी पर मह्मुल किया है अर्थात वह सारी वैकल्पिक सूरतें नाजायज हैं जो तबाही, बर्बादी और हलाकत की और पहुंचाने वाली हों, फुजूल खर्ची हथियार के बिना मैदान ए जिहाद में कूद पड़ना, दरिया में डूब कर, आग लगा कर, ज़हर खा कर, चाक़ू मार कर या दुसरे तरीकों से खुद को हलाक करने की कतई तौर पर मनाही है, इस हदीस की मुमानियत से भी सबुत मिलता है, इससे पहले जो आयत ज़िक्र की गई है सहाबा किराम इससे यही मफहूम निकालते थे, इसलिए हज़रत अम्र बिन आस रज़ी० फरमाते हैं कि गजवा ए सलासिल के दौरान एक अत्यंत ठंढी रात में मुझे गुसल की जरूरत पेश आ गई, ठंढक की वजह से नहाने की हिम्मत ना हुई, मुझे डर हुआ कि मैंने गुसल किया तो मैं सर्दी की शिद्दत से मर जाऊँगा, यह सोच कर मैं ने तयम्मुम कर लिया और साथियों के साथ सुबह की नमाज़ में शरीक हो गया, बाद में मैंने यह घटना सरकार ए दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में अर्ज़ किया, आपने फरमाया तुमने नापाकी की हालत में नमाज़ पढ़ लिया, मैंने अर्ज़ किया गुस्ल के बजाए मैंने तयम्मुम कर लिया था क्योंकि मैंने अल्लाह पाक का यह इरशाद सूना है لا تقتلو ا انفسکم यह सुन कर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुस्कुराए और कुछ ना फरमाया, हाफ़िज़ शमसुद्दीन ज़हबी ने किताबुल कबाएर में लिखा है कि इस घटना से मालूम होता है कि हज़रत अम्र बिन आस ने शब्द “कतला नफस” से खुद कुशी मुराद ली है और आप ने इस पर कोई नकीर भी नहीं फरमाई, इस किताब में अल्लामा ज़हबी ने आत्महत्या की निंदा में विभिन्न रिवायतें नकल की हैं जिनमें से कुछ यहाँ दर्ज हैं:

हज़रत जुन्दुब बिन अब्दुल्लाह रिवायत करते हैं कि सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि बनी इस्राइल में एक शख्स के (हाथ में) कोई जख्म हो गया था वह शख्स इसकी तकलीफ से इतना परेशान हुआ कि छुरी ले कर उसने अपना वह हाथ काट डाला जिस में जख्म था, कटे हुए हाथ से इतना खून बहा कि वह शख्स मर गया, अल्लाह पाक ने फरमाया! मेरे बंदे ने अपनी जान के सिलसिले में जल्द बाज़ी की (अब) इस पर जन्नत हराम है एक हदीस में अहि कि किसी शख्स ने ज़ख्मों की शिद्दत से बेचैन हो कर खुद को तलवार से हालाक कर लिया, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि वह शख्स जहन्नमी है, एक हदीस में है मोमिन पर लानत करना ऐसा है जैसे उसे कत्ल कर दिया जाए, अगर कोई शख्स आत्महत्या करेगा तो जिस चीज से उसने आत्महत्या की है उसी चीज से उसे कयामत के दिन अज़ाब दिया जाएगा, इस सिलसिले में कुछ तफसील दूसरी हदीस में है फरमाया! जिस शख्स ने अपने आप को तलवार से हालाक किया उसे दोज़ख में तलवार दी जाएगी कि वह उसे अपने पेट पर मारता रहे, जिस शख्स ने ज़हर खा कर आत्महत्या किया से जहन्नम में ज़हर दिया जाएगा कि वह उसे खाता रहे और जिस शख्स ने पहाड़ से कूद कर खुद को हालाक किया उसे जहन्नम में पहाड़ के उपर से गिराया जाता रहेगा। आदमी आत्महत्या क्यों करता है? इसका जवाब केवल यह है कि वह हालात के सामने हौसला हार देता है, और मुश्किलात व मसाइब से घबरा कर फरार की राह विकल्प करने लगता है, इस्लाम ने एक तरफ आत्महत्या की निंदा करके लोगों को यह बतलाया कि ज़िन्दगी जीने के लिए होती है, ख़त्म करने या बर्बाद करने के लिये नहीं होती, दूसरी ओर इस दुनिया को दारुल इम्तिहान और दारुल अमल करार दिया गया है, दारुल इम्तिहान इस अर्थ में कि हर इंसान की कठिन घड़ी से गुज़रता है, अगर इस मरहले से कामयाबी के साथ गुज़र गया तो उसने अपनी ज़िन्दगी बामुराद बना ली वरना नाकाम रहा, दारुल अमल इस अर्थ में कि यह ज़िन्दगी केवल अमल के लिए है, दारुल जज़ा या दारुल मकाफात वह दुसरा जहां है जो मरने के बाद हमारे सामने आने वाला है, अच्छे आमाल होगे अच्छा सिला मिलेगा, और बुरे आमाल होंगे तो बुरे परिणाम सामने आएँगे, अच्छे आमाल के लिए जरूरी है कि आदमी अल्लाह पाक की बख्शी हुई ज़िन्दगी उसके हुक्म के मुताबिक और उसकी रज़ा के लिए जिए। जहां तक मसाइब और मुश्किलात का संबंध है अल्लाह अपने कुछ बन्दों को अपनी हिकमत ए अमली के तहत मुसीबतों और परेशानियों में मुब्तिला करता है लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि आदमी घबरा जाए, मायूस हो जाए और ज़िन्दगी से राहे फरार इख्तियार कर के मौत की आगोश में चला जाए। कुरआन ने मसाइब के समय सब्र की तलकीन की है, सब्र एक ऐसी हकीकत है जिस के जरिये इंसान बड़ी से बड़ी मुसीबत को ज़ेर कर सकता है और बड़ी से बड़ी मुश्किल पर काबू पा सकता है। इरशाद फरमाया: “जरुर तुम्हारी आज़माइश करेंगे किसी कदर खौफ में, और माल व जान और फलों के नुक्सान में मुब्तिला करके, आप खुश खबरी सूना दीजिये ऐसे सब्र करने वालों को कि जब उन पर मुसीबत पड़ती है तो वह कहते हैं कि हम अल्लाह के हैं और अल्लाह की तरफ हमें लौटना है” (अल बकरा: १५५-१५६) । कुरआन में नव्वे जगहों पर सब्र का ज़िक्र आया है और सोलह तरीकों से इसकी तलकीन की गई है, जिससे इसकी अहमियत को ज़ाहिर करती है, एक तरफ तो अल्लाह पाक यह फरमाते हैं कि हम अपने बन्दों को विभिन्न तरीकों से आज़माइश में मुब्तिला करेंगे, किसी को दहशत और खौफ में मुब्तिला करेंगे, किसी को जानी और माली नुकसान की आज़माइश से गुजारेंगे, किसी को खेतियों और बागों में पैदावार की कमी की मुसीबत का सामना करना पड़ेगा, दूसरी तरफ यह इरशाद है कि कामयाब वही होंगे जो सब्र करेंगे, हर मुसीबत को अल्लाह पाक की तरफ से समझ कर राज़ी रहेंगे, ऐसे लोगों के लिए रहमतें हैं, हिदायत और मगफिरत है, सब्र को कामयाबी की कुंजी करार दिया गया है, इसके बिना आदमी किसी मकसद में कामयाब नहीं हो सकता, सब्र से मुसीबत हलकी पड़ जाती है, सब्र के वाजिब होने पर इज्मा ए उम्मत है, एक हदीस में सब्र को आधा ईमान करार दिया गया है। बुखारी शरीफ की एक हदीस है:

(مسندابی یعلی:3 /380،رقم الحدیث:1854):سئل رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم عن الایمان فقال الصبر والسماحۃ 

 ”سرکاردوعالم صلی اللہ علیہ وسلم کی خدمت میں عرض کیا گیا کہ ایمان کیا ہے، فرمایا صبر اور سخاوت“۔

इस हदीस को जवामिउल कलिम में से करार दिया गया है, क्योंकि इसमें ईमान की हकीकत बहुत ही जामियत और इख्तिसार के साथ वाजेह की गई है, आदमी के नफस पर दो ही चीजों की पाबंदी हो सकती है, एक तो यह कि जो कुछ उससे माँगा जाए उसको पेश कर दे और जिस चीज से मना किया जाए उससे रुक जाए। बहार हाल सब्र एक ऐसा हथियार है जिसके जरिये आदमी ज़िन्दगी में पेश आने वाली बड़ी से बड़ी मुसीबत का आसानी के साथ मुकाबला कर सकता है, उलेमा ने लिखा है कि मसाइब व शदाइद के मुकाबले सब्र करने में तीन चीजें सहायक साबित हो सकती हैं, एक यह कि आदमी को आखिरत की बेहतर जज़ा का यकीन हो, यह यकीन जितना बढ़ेगा उतना ही मुसीबतों को बर्दाश्त करना आसान हो जाएगा, दुसरे यह कि इसके अंदर इतना हौसला होना चाहिए कि वह मसाइब के खात्मे और राहत व कुशादगी हासिल होगी, तीसरे यह कि उसके दिल में अल्लाह पाक की अनगिनत नेमतों का इस्तिह्जार हो, और वह सोचे कि अगर कुछ मसाइब उसकी तकदीर में हैं तो क्या हुआ अनगिनत नेमतें भी तो मिली हैं, यह भी हो सकता था कि मुसीबतें ही मुसीबतें होतीं राहतों का नाम व निशाँ भी नहीं होता, अगर आदमी सब्र करे और यह तदबीर इख्तियार करें तो उम्मीद ही नहीं यकीन है कि वह ख़ुदकुशी का रास्ता अपनाने के बजाए ज़िन्दगी के हुस्न व जमाल से लुत्फ़ अन्दोज़ होना अधिक पसंद करेगा।

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