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Hindi Section ( 7 Jun 2021, NewAgeIslam.Com)

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False Authority of Men over Women: Part 1 औरतों पर पुरुषों की झूठी फ़ज़ीलत: भाग-१

मौलवी मुमताज़ अली की माया नाज़ तसनीफ

उर्दू से अनुवाद, न्यू एज इस्लाम

पुरुष और स्त्री एक इंसान हैं। उनमें इंसान की हैसियत से एक दुसरे पर किसी प्रकार की वरीयता नहीं हो सकती। बल्कि वह कुछ विशेषताएं जो पुरुष को स्त्री से अलग करती हैं उनमे आवश्यकता इस बात की है कि उनके फ़राइज़ और तरीके तमद्दुन में भी केवल इन विशेषताओं के सामान भिन्न हो। इस प्रकार के अंतर के सिवा जो स्त्री और पुरुष के बनावटी अंतर पर आधारित हैं जिस कदर और मतभेद पाए जाएंगे या एक को दुसरे पर वरीयता देने के लिए कोई उमूर साबित किये जाएंगे उन सबकी बिना केवल मिश्रित पहचान व लैंगिक मतभेद पर होगी और ज़ाहिर है कि इस प्रकार के अंतर केवल इत्तेफाक और आरजी और गैर मोतबर होते हैं और मसकन के मतभेद और आबो हवा के मतभेद और सभ्यता के मतभेद इत्यादि कारणों से पैदा होते हैं। हम साबित करेंगे कि सभ्यता की वर्तमान पद्धति के अनुसारपुरुषों और महिलाओं की स्थिति और उनके अधिकारों के बीच का अंतर सृष्टि और प्रकृति के बीच मौजूद अंतर से अधिक है और अज्ञानता पर आधारित है। और यह पुरातनता की बर्बरता का सबसे खराब उदाहरण हैजिसने मानव सभ्यता को बर्बाद कर दिया है और दुनिया को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया है।

हमारी सभ्यता की विभिन्न स्थितियां पूरी तरह से इस झूठे दावे पर आधारित हैं कि पुरुष शासक हैं और महिलाएं अधीन हैं और महिलाओं को पुरुषों के आराम के लिए बनाया गया है। और इसलिए स्त्रियों के लिए उनके पास लगभग वही शक्तियाँ हैं जो वे सभी प्रकार की संपत्ति पर रखते हैं और उनके अधिकार पुरुषों के अधिकारों के बराबर नहीं हो सकते। हम धैर्यवान होंगे यदि पुरुष इस गलत और अशुद्ध सिद्धांत को अपने स्वयं के पूर्वाग्रह और स्वार्थ का परिणाम मानते हैं और इसके समर्थन में कोई तर्क देने का दावा नहीं करते हैं। लेकिन क्रूरता यह है कि वे इस झूठे दावे को न्याय और तर्कसंगत तर्कों और खुदा की इच्छा के अनुसार जानते हैं। विचारों की त्रुटि को उजागर करना और उनकी गैरबराबरी को उजागर करना हमारे लेखन का विषय है।

सरलता के लिए हम इस चर्चा को पाँच भागों में बाँटते हैं। पहले भाग में हम उन अकली और नकली कारणों  पर नजर करेंगे जो पुरुषों की वरीयता के सुबूत में पेश की जाती हैं। दूसरे भाग में हम स्त्री शिक्षा पर चर्चा करेंगेतीसरे भाग में पर्दा और चौथे भाग में विवाह की विधि और पांचवें भाग में समाजिक जोड़े के बारे में चर्चा करेगा।

जहाँ तक हम जानते हैंपुरुषों की श्रेष्ठता के प्रमाण के रूप में दिए गए कारण इस प्रकार हैं।

(१) अल्लाह ने पुरुषों को महिलाओं की तुलना में अधिक शारीरिक शक्ति दी हैइसलिए उन सभी विकल्पों पर उनका अधिकार है जिनके लिए मजबूत अंगों और कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है। इसलिए साम्राज्यजो एक स्पष्ट शक्ति का परिणाम हैपुरुषों का ही अधिकार है।

(२) पुरुषों की मानसिक शक्ति भी उनकी शारीरिक शक्ति के अनुपात में महिलाओं की मजबूत मानसिक शक्ति की तुलना में बहुत अधिक और मजबूत होती है। इसलिए महिलाओं को हर युग और हर देश में पागल माना गया है। महिलाओं की प्रारंभिक मान्यताएं।  ना मामला फहमी। कोताह अंदेशीबेवफाई आदि जैसे गुण बुद्धि के इस दोष पर आधारित हैं।

(३) जैसे राज्य सभी सांसारिक आशीर्वादों में सबसे अच्छा हैवैसे ही नबूवत सभी इलाही पुरस्कारों में सर्वोच्च है। वह भी अल्लाह पाक द्वारा पुरुषों के लिए आरक्षित किया गया है। उसने दुनिया का मार्गदर्शन करने के लिए किसी भी महिला को नबी के रूप में नहीं भेजा।

(४) धार्मिक रूप सेपुरुषों के गुण मेंकुरआन की आयत को उद्धृत किया गया है जिसमें अल्लाह पाक ने कहा है, "الرجال قوامون علی النساऔर इसका अर्थ समझा जाता है कि पुरुष महिलाओं पर शासक हैं।

(५) एक और नकली तर्क यह है कि परमेश्वर ने पहले आदम को बनाया और फिर उसके आराम के लिए एक महिला को बनाया। इसलिएयह एक महिला के लिए एक पुरुष के अधीन और दासी होने और उसके आराम और खुशी का स्रोत बनने और उसके आराम को अपने आराम पर मुकद्दम रखना असली इलाही मंशा मालुम होता है।

(६) क़ुरआन में दो स्त्रियों की शहादत को एक पुरुष की शहादत के बराबर मानना और उत्तराधिकार के बंटवारे में स्त्रियों के हिस्से को पुरुषों के हिस्से का आधा मानना भी मर्दों के फजीलत का पक्का सबूत है। .

(७) तथ्य यह है कि पुरुषों को एक बार में चार महिलाओं से शादी करने की अनुमति है और इसके विपरीत जायज ना होना भी एक स्पष्ट संकेत है कि अल्लाह पाक ने पुरुषों को अधिक विशेषाधिकार दिए हैं।

(८) आखिरत में पुरुषों को अच्छे कामों के बदले में सुंदर बीवियां देने का वादा किया गया हैलेकिन महिलाओं को ऐसे अच्छे कामों बदले इस प्रकार का वादा नहीं किया गया है।

इन तर्कसंगत और कुरानिक तर्कों के अलावाबहारे दानिश की नजिस की हिकायतों से कुछ अन्य तर्क लिए गए हैंजिनके उल्लेख से लेखक मुंशी इनायतुल्ला साहब को शर्म नहीं आईलेकिन हमें इसके हवाले से शर्म आती है। यह हैं तमाम प्रमाण जिनको चाहे काल्पनिक कहो चाहे दार्शनिक। चाहे ख्याली अवहाम, उन्हें तर्क की बिना पर वह हुक्मे नातिक सादिर किया गया है जिसके रु से आधी दुनिया को जलील गुलामी में डाल कर पुरुषों को हल्का बगोश गुलाम बल्कि गुलाम से बदतर बनाया है और अशरफुल मख्लुकात में से अहसनुल तक्वीम मखलूक को पाजी से पाजी पुरुष की केवल नापाक शहवत रानी और नालायक कजरवी और बे ठिकाना खुद पसंदी के इगराज़ पूरा करने का जरिया करार दिया है।

अब हम इन तर्कों को ध्यान से देखते हैं और यह देखना चाहते हैं कि क्या ये तर्क वास्तव में तार्किक तर्कों की स्थिति में हैं या केवल मनगढ़ंत कथन हैं जिनका उपयोग झूठे दावेदार अपने दिलों को खुश करने के लिए करते हैं। जो शख्स अपने लिए सांस्कृतिक प्रभावों से खाली ज़ेहन होकर के और बिना इस बात के डर के जो कुछ मैं कहता हूँ उस पर वास्तव में मुझ को अमल करना पड़ेगा। और इस कार्रवाई का परिणाम होगा कि समाज की वर्तमान स्थिति में मेरा या मेरे परिवार का क्या होगा। उपरोक्त तर्कों को करीब से देखने पर पता चलेगा कि ये तर्क पूरी तरह से बेतुके और अर्थहीन बयान हैं जिन्हें शरई हुज्जत नहीं कहा जा सकता। न ही तार्किक सबूत। न ही यह सामान्य अनुमान लगाने के लिए उपयोगी है। भले ही उनसे कोई निश्चित लाभ प्राप्त हो (जारी)

 

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