हसन कमाल
उर्दू से अनुवाद, न्यू एज इस्लाम
३ नवम्बर २०२०
यह ज़ाएरीने हरीमे मगरिब हजार रहबर बनें हमारे
हमें भला उनसे वास्ता क्या जो तुझ से ना आशना रहे हैं
(डॉक्टर अल्लामा इकबाल)
मुसलामानों का आखरी नबी मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से जूनून की हद तक इश्क एक ऐसी सिफत है, जिसे बेनजीर ही कहा जा सकता है। मशहूर कम्युनिस्ट विचारक डॉक्टर अशरफ ने एक लेख में लिखा था कि यह अजीब बात है कि अगर कोई किसी मुसलमान के सामने खुदा की शान में बुरा बोले तो बिलकुल संभव है कि वह मुसलमान गुस्से का इज़हार न करे या यह सोच कर खामोश भी रह जाए कि इससे तो अल्लाह खुद ही समझ लेगा, लेकिन अगर किसी मुसलमान के सामने कोई नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी करे तो फिर चाहे वह नाम ही का मुसलमान क्यों न हो, फ़ौरन गुस्सा हो जाएगा। डॉक्टर अशरफ के इस कथन का खंडन मुश्किल से ही किया जा सकेगा। हाँ यह अवश्य कहा जा सकता है कि कोई चाहे कितना ही गुस्सा हो जाए, उसे कानून हाथ में लेने या हिंसा पर उतरने से हर हाल में बाज़ रहना चाहिए। केवल इसलिए कि यह सभी समाज के सिद्धांतों का तकाजा है, बल्कि इसलिए भी कि हम उस रह्मतुल्लिल आलमीन के उम्मती हैं, जिसने उस शख्स को भी माफ़ कर दिया था, जिसने हुदैबिया के सुलह नामे पर उनके नाम के आगे से रसूलुल्लाह का लकब भी कटवा दिया था। मक्का फतह होने के बाद यह शख्स अम्र बिन सुहैल मुसलमान भी नहीं हुआ था और उसने अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मिस्र जाने की इजाजत मांगी, जो उसे मिल भी गई। हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तो हिन्दा जिगर खोर को भी माफ़ कर दिया था, जिसने उनके महबूब चचा हजरत अमीर हमजा को शहीद करके उनका कलेजा चबा डाला था। उसे बस यह सजा दी थी कि वह कभी उनके सामने न आए।
इन दिनों सारी दुनिया में एक रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना बहस का विषय बनी हुई है। घटना यह है कि पेरिस के एक शैक्षणिक संस्थान में एक टीचर अपनी क्लास में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का एक नाज़ेबा खाके की नुमाइश की तो एक मुसलमान छात्र ने उसका सर धड़ से जुदा कर दिया। उसने ऐसा कैसे और किस हथियार से किया? उसकी कोई तफसील सामने नहीं आ सकी है।इसके बाद हंगामा बरपा हो गया और उस छात्र को भी गोली मार कर हलाक कर दिया गया। निश्चित रूप से उस छात्र की इस हरकत को किसी भी हाल में जायज़ नहीं कहा जा सकता। किसी को कानून अपने हाथ में लेने का कोई हक़ नहीं था। लेकिन इसी के साथ फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुइल मैक्रून ने जो कुछ किया, वह भी माफ़ी के काबिल नहीं था। उन्होंने इस घटना की बजा तौर पर निंदा की, लेकिन इसी के साथ उन्होंने उस टीचर की हरकत की निंदा करने के बजाए यह कह कर बचाव किया कि उस टीचर ने बोलने की आज़ादी के उस बुनियादी हक़ का उपयोग किया था, जो फ़्रांस के संविधान से लिया था। साथ ही उन्होंने इस घटना को इस्लामी आतंकवाद का नाम भी दे दिया। एक बड़े देश के सरबराह को एकतरफा बयान देना जेब नहीं देता। उस छात्र ने यकीनी तौर पर एक अपराध का प्रतिबद्ध किया था और उसे इसकी सज़ा भी मिलनी चाहिए थी, लेकिन एक टीचर को भी यह मालुम होना चाहिए था कि उसकी आज़ादी वहाँ ख़त्म हो जाती है, जहां दुसरे की नाक शुरू होती है। राष्ट्रपति मैक्रून को उस टीचर की भी निंदा करी चाहिए थी। छात्र के मां बाप का कहना था कि अगर फ्रांस में पवित्र हस्तियों की पाकी पामाल करना अपराध समझा जाता और ऐसा कोई कानून होता तो यह हादसा पेश न आता, क्यों कि उस स्थिति में लड़का स्कुल के जिम्मेदारों से उस टीचर की शिकायत कर सकता था। लेकिन फ्रांस में तो अभिव्यक्ति की आज़ादी के सिवा किसी चीज को पवित्रता ही हासिल नहीं है।
एक हकीकत को जान लेना और समझ लेना जरूरी है। दूसरी जंगे अजीम के बाद अमेरिका सहित पश्चिमी देशों में मज़हब बेजारी के रुजहान में रोज़ ब रोज़ इजाफा जारी है। पहले ख्याल किया जाता था कि साधारणतः विज्ञान पढ़ने वाले और कम्युनिस्ट बेदीन हो जाते हैं। लेकिन पिछले पचास वर्षों से भी अधिक समय से यह देखा जा रहा है कि बेदीन लोगों की अक्सरियत विज्ञान पढ़ने वालों की या कम्युनिस्टों की नहीं है। बहुलता उन लोगों की है जो केवल सरमाया परस्त और सरमाया दाराना निजाम के मानने वाले हैं। इसके कारण अनेकों हैं, लेकिन एक कारण वह तथाकथित रौशन ख्याली भी है, जिसने बढ़ते बढ़ते राह से बे राह रवी का रूप इख्तियार कर लिया है। पश्चिमी समाज में धर्म से बेज़ारों को कुशादा दिल, कुशादा ज़हन और मोहतरम समझा जाने लागा है। परिणाम यह हुआ कि समलैंगिकता, औरत और मर्द का शादी के बिना लैंगिक रिश्ते कायम कर लेना और समलैंगिकों की आपस में शादी जैसी मज़हब के खिलाफ और फितरत के खिलाफ बातें समाज में स्वीकार की जाने लगी हैं।
यह तथाकथित रौशन ख्याली इल्म और मुताले का परिणाम नहीं। यह केवल फैशन बन चुकी है। कोई तीस साल पहले कुछ गायकार युवा लड़कों और लड़कियों ने एक ग्रुप बनाया था जो ACDC के नाम से जाना जाता था। पूरा नाम Anti Christ Devil,s Children अर्थात ईसा विरोधी शैतान की औलादें था। इस ग्रुप ने हजरत ईसा की शान में गुस्ताखी के गानों के कई अलबम बनाए और सैंकड़ों स्टेज प्रोग्राम किये, जो बहुत मकबूल भी हुए। इसी तरह एक और तफरीही ग्रुप बना था जो KISS के नाम से जाना जता था। इसका पूरा नाम Knights in Servicr of Satan जिसका अर्थ ‘ शैतान के बेहद सम्मानित सेवक होता है, यह भी यूरोप और अमेरिका में बहुत मकबूल हुआ। यह दोनों ग्रुप आज भी मौजूद है मगर अब उनकी मकबूलियत बहुत कम हो गई है। उनकी जगह अब एक और ग्रुप Illuminati ‘शैतान के पुजारी’ ने ले लिया है। कथित तौर पर कुछ बालीवुड के लोग भी इस ग्रुप के सदस्य हैं। पर यह भी कि ऐसी तमाम हरकतें प्रोटेस्टेंट ईसाईयों के कुछ जैली फिरके ही करते हैं, जिन्हें यहूदियत से करीब समझा जाता है। प्रोटेस्टेंट बीबी मरियम को वह महत्व नहीं देते, जो कैथोलिक इसी और मुसलमान देते हैं। कुछ तो उनके कंवारी मां की हैसियत को भी स्वीकार नहीं करते और यह मानते हैं कि बीबी मरियम अपने बचपन के मंगेतर जोज़फ की मंकुहा थी और हजरत ईसा उन्ही की औलाद थे। एक प्रोटेस्टेंट ईसाई अदीब डेन ब्राउन का एक नाविल ‘डाविंची कोड’ दस बारह साल पहले एक वैश्विक उथल-पुथल का कारण बना था। नाविल का थीम यह था कि एक इटली का चित्रकार डाविंची की एक चित्र में यह दिखाया गया था कि बीबी मरियम मेरी मैगडलीन बहुत गुस्सैली नज़रों से देख रही थीं। नाविल में उसी तस्वीर की व्याख्या की गई थी। याद रहे कि मेरी मैगडलीन एक फाहेशा औरत थी, लेकिन एक दिन हजरत ईसा की बातों से प्रभावित हो कर ईमान ले आइ और फिर बाक़ी उम्र एक बहुत पारसा आबिदा बन कर ज़िंदा रही। नाविल में कहा गया था कि असल में हज़रत ईसा ने मेरी मैगडलीन से शारीरिक संबंध कायम कर रखे थे और उसके पेट से उनकी औलाद भी थी और उस औलाद का खानदान आज भी मौजूद है। नाविल पर कैथोलिक ईसाईयों और मुसलमानों ने सख्त एतिराज़ और एहतिजाज किया था। इस तरह पश्चिम की मज़हब बेजारी इस्लाम और मुसलमानों तक ही सीमित नहीं रही है। कैथोलिक ईसाई भी उसका निशाना बने रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि पश्चिम की अभिव्यक्ति की यह तमाम आजादी उस समय ना जाने कहां फना हो जाती है जब कोई गलती से बस इतना कह देता है कि हिटलर के हिरासती कैम्पों में यहूदियों की हलाकत की जो संख्या बताई जाती है वह तहकीक तलब है। यूरोप हो या अमेरिका ऐसा कहने वाले को फ़ौरन जेल में बंद कर दिया जाता है। इस दोहरे मेयार की कोई मंतिक नहीं बताई जाती है। बहर हाल फ्रांस के हालिया सानहे के बाद एक परिवर्तन नजर आइ है। सारी दुनिया के मुसलमान एक हो कर विरोध कर रहे हैं। तमाम मुस्लिम देशों में फ्रांसीसी सामानों का बाईकाट हो रहा है। कुवैत, दुबई, कतर और तुर्की में दुकानदारों ने तमाम फ्रांसीसी सामान दूकान से बाहर कर दी हैं। तुर्की और पाकिस्तान की सदनों ने फ्रांस के सदर के रवय्ये की सख्त निंदा की है। इस्लामी तआउन संगठन ने भी एक निंदा तजवीज़ पास की है और मुसलमानों से फ्रांसीसी सामानों के बहिस्कार की अपील की है। यह बिलकुल सहीह और तकलीद के काबिल प्रतिक्रिया है। देखना है कि फ्रांसीसी ताजिर कब तक यह नुक्सान बर्दाश्त कर पाएंगे, क्यों कि अरब दुनिया का बहिष्कार किसी छोटे मोटे घाटे का कारण नहीं होगा।
Urdu Article: Extreme Of Enlightenment Is Also A Flaw روشن خیالی کی انتہا پسندی بھی
مذموم عیب ہے
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