उसने इस्लाम के पैगंबर को आतंकवादी कहा था
प्रमुख बिंदु:
1. पूर्व मुस्लिम मुबारक बाला अब नास्तिक हैं
2. उसने 2014 में एक ईसाई महिला की हत्या के बाद इस्लाम छोड़ दिया था
3. उसकी तौहीने रिसालत वाली टिप्पणी से पहले उसे एक मनोरोग अस्पताल
में भर्ती कराया गया था
4. वो धर्म की स्वतंत्रता का समर्थक था
5. उसने नाइजीरिया में इस्लामी चरमपंथ की आलोचना की और उलेमाओं
का विरोध किया
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न्यू एज इस्लाम स्टाफ राइटर
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
7 अप्रैल, 2022
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Mubarak
Bala / FACEBOOK
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नाइजीरिया के मुस्लिम बहुल राज्य कानो के 29 वर्षीय नास्तिक मुबारक बाला को उच्च न्यायालय ने 24 साल जेल की सजा सुनाई है। उस पर इस्लाम और इस्लाम के पैगंबर का अपमान करने का आरोप लगाया गया था और उसे 2014 में गिरफ्तार किया गया था।
मुबारक बाला नाइजीरिया के ह्यूमैनिटेरियन एसोसिएशन का अध्यक्ष है और उसने धर्म की स्वतंत्रता की वकालत की है। उसने अपने देश में इस्लामी चरमपंथ की बार-बार आलोचना की है, जहां अल-शबाब और अल-कायदा सक्रिय हैं जो ईसाइयों के खिलाफ लगातार हिंसा का प्रतिबद्ध करते रहते हैं।
मुबारक का जन्म एक धर्मनिष्ठ मुस्लिम परिवार में हुआ था, लेकिन 2013 में अपनी ही उम्र के कुछ लड़कों द्वारा एक ईसाई महिला का सिर कलम किए जाने का वीडियो देखने के बाद 2014 में इस्लाम छोड़ दिया। वह अक्सर फेसबुक पर इस्लाम के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी पोस्ट करता था। उसने चरमपंथी विचारधाराओं का प्रचार करने वाले मौलवियों का भी विरोध किया था।
जब उसने 2014 में इस्लाम त्याग दिया, तो उसके परिवार ने उसे पागल समझ लिया, इसलिए उन्होंने उसे जबरन एक मनोरोग अस्पताल में भर्ती कराया, जहाँ से उसे 18 दिनों के बाद छुट्टी दे दी गई।
मुबारक बाला ने 2020 में इस्लाम के पैगंबर के खिलाफ गुस्ताखी वाली टिप्पणी पोस्ट की थी जिसमें उसने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को (मआज़ अल्लाह) आतंकवादी करार दिया था।
लेकिन मुबारक ने बाद में माफी मांगी और अदालत से कहा: "मेरी पोस्ट का उद्देश्य हिंसा फैलाना नहीं था, हालांकि मुझे पता था कि इसमें हिंसा फैलाने की क्षमता है। मैं वादा करता हूं कि मैं भविष्य में इसका ख्याल रखूंगा।"
उसने अपने खिलाफ सभी 18 आरोपों को मान भी लिया केवल इस उम्मीद पर कि अदालत कुछ दया दिखाएगी, लेकिन उसकी माफ़ी का अदालत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और उसे 24 साल जेल की सजा सुनाई गई।
मुबारक बाला उन मुसलमानों में से एक हैं जिन्होंने अल कायदा, अल शबाब और अन्य आतंकवादी संगठनों की असहिष्णु विचारधारा में विश्वास करने वाले चरमपंथी मुसलमानों द्वारा गैर-मुसलमानों पर की गई हिंसा और क्रूरता के कारण मुर्तद हो चुके हैं। कई नाइजीरियाई मौलवी और राजनेता भी इन आतंकवादी संगठनों को इस्लाम का अनुयायी मानते हैं। ये आतंकवादी संगठन नियमित रूप से ईसाइयों और सूफियाना मिजाज़ रखने वाले मुसलमानों को बाकायदा क़त्ल करती हैं और अल्पसंख्यकों और ईसाइयों के घरों को जला देती हैं।
हिंसा और उत्पीड़न के कारणों में से एक तौहीने मज़हब भी है। उदाहरण के लिए, 2007 में, मुसलमानों के एक समूह ने एक ईसाई महिला को सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि उसने कुरआन की एक प्रति वाले एक बस्ते को हाथ लगा दिया था।
2007 में, मुसलमानों ने फिर से नौ ईसाइयों को मार डाला और कुछ चर्चों में आग लगा दी क्योंकि कुछ ईसाई छात्रों ने इस्लाम के पैगंबर का अपमान किया था।
हालांकि मुबारक ने अदालत में अपना गुनाह कबूल कर लिया और अदालत से दया और नरमी की गुहार लगाई, लेकिन उसे न तो माफ किया गया और न ही उसके साथ नरमी बरती गई। बल्कि उसे 24 साल जेल की सजा सुनाई गई।
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने इस फैसले की आलोचना की है। इस्लामी मानकों के मुताबिक आरोपी को माफ कर देना चाहिए था। पहला, क्योंकि उसका मानसिक बीमारी के लिए इलाज किया गया था, और दूसरा, क्योंकि उसने दया मांगी थी और फिर से तौहीने रिसालत नहीं करने का वादा किया था।
तीसरा, उसने अपने धार्मिक भाइयों के कुकर्मों के कारण इस्लाम को त्याग दिया, जिन्होंने तौहीने मज़हब के आरोप में निर्दोष ईसाइयों को मार डाला, और उलमा ने उसके अपराध को सही ठहराया। कुरआन कहता है कि मक्का के मुशरिक पवित्र पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मजनून, 'पागल', 'जादूगर' और 'शायर' कहकर उनका अपमान करेंगे लेकिन फिर भी खुदा ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को और मुसलमानों को हुक्म दिया कि वह अं देखा करें और अपने आत्म-नियंत्रण का ख्याल रखें। (अल-अनआम: 186) हालाँकि कुरआन उन लोगों को जो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अपमान करते हैं को आख़िरत में सबसे कड़ी सजा से खबरदार करता है, लेकिन यह मुसलमानों को इस दुनिया में ऐसे लोगों को माफ़ करने का आदेश देता है। कुरआन तौहीने रिसालत या इर्तेदाद के लिए कोई दंड निर्धारित नहीं करता है। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अमल भी यही है कि उन्होंने उन लोगों को क्षमा कर दिया जिन्होंने आप पर बोहतान लगाने के बाद क्षमा मांगी।
मुबारक बाला का मामला इस बात का एक और उदाहरण है कि तौहीने मज़हब दुनिया में इस्लामोफोबिया का एक प्रमुख कारण है। और तो और नाइजीरिया में एक ईसाई का कुरआन रखे बैग को छूना तौहीने मज़हब समझ लिया जाता है। पाकिस्तान में, अगर कोई मुसलमान (हाफ़िज़े कुरआन) गलती से कुरआन को तंदूर पर गिर जाए, तो उसे तौहीने मज़हब के लिए मार दिया जाता है। अफगानिस्तान में, एक मुस्लिम लड़की को मुस्लिम भीड़ ने सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि उसने कुरआनी शब्दों पर आधारित तिलिस्म की एक किताब जला दी थी।
मुस्लिम जगत में तौहीने मज़हब पर हत्याओं की ऐसी अनगिनत घटनाएं होती रहती हैं।
मुबारक बाला के मामले की सुनवाई शरिया अदालत नहीं बल्कि एक साधारण अदालत कर रही थी। अगर उनके मामले की सुनवाई शरिया कोर्ट करती तो उन्हें मौत की सजा दी जाती। नाइजीरिया में कानो सहित एक दर्जन मुस्लिम बहुल राज्य हैं, जहां शरिया अदालतें सामान्य अदालतों के समानांतर चलती हैं। हालाँकि उसके मामले की सुनवाई एक साधारण अदालत ने की थी, लेकिन शायद उलमा के प्रभाव के कारण उसे एक कठोर फैसला सुनाया गया।
मुबारक बाला का मामला नाइजीरिया और अन्य अफ्रीकी देशों में पाए जाने वाले उग्रवाद और असहिष्णुता की गंभीर याद दिलाता है।
English
Article: Ex-Muslim Mobarak Bala Of Nigeria Gets 24 Years In
Jail For Blasphemy Despite His Apology
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