चूँकि सब कुछ खुदा का है, इसलिए ‘हमारी’ माद्दी दौलत असल में खुदा की
अमानत है।
प्रमुख बिंदु:
जब कि हमें सदका देना जरूरी है, हमें इस दौलत के हकीकी मालिक
खुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ ही इस जिम्मेदारी को अदा करने की जरूरत है।
इसलिए कि जो माल हम सदका व खैरात में दे रहे हैं वह केवल उन्हीं
मसारिफ में इस्तेमाल किया जाए जिनसे अल्लाह राज़ी है, हमें इस मामले में अल्लाह की रहनुमाई हासिल करने के
लिए उसी की तरफ रुजूअ करना चाहिए।
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मीशा ओह, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
4 जून 2021
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Courtesy:
wardtrademarks.com/intellectual-property-issues-facing-charities
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विभिन्न धर्म सदके में अपनी दौलत को बांटने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं। इस तरह के अतियात से न केवल खैरात लेने वालों बल्कि उसे देने वालों को भी लाभ होता है। देने वालों को इससे यह लाभ है कि उनका दुनियावी दौलत से लगाव कम होगा और उनके अंदर हमदर्दी और मेहरबानी जैसी कुदसी सिफात पैदा होंगे और उसके नतीजे में रूहानी तरक्की होगी। सदका, अगर सहीह नियत के साथ दिया जाए और अगर सहीह मकसद में दिया जाए तो सदका देने वाला तरक्की करता है।
जबकि अपनी माद्दी दौलत को जरूरत मंदों के साथ बांटने की जरूरत स्पष्ट है, हमें किसकी मदद करनी चाहिए और हमें यह काम कैसे करना चाहिए, यह हमेशा स्पष्ट नहीं होता। कभी कभी हम इसमें बड़ी गलतियां कर देते हैं, जिससे खुदा के अता किये हुए संसाधन बर्बाद हो जाते हैं।
मैं अपने तजुर्बे की रौशनी में बेजा अतियात व सदकात के केवल दो घटनाओं का हवाला पेश करता हूँ। कई साल पहले, मेरी मां बीमार हुईं और उन्हें हस्पताल में दाखिल कराया गया। मैं बहुत परेशान था और मैं चाहता था कि मेरी मां ठीक हो जाएं इसके लिए मैंने एक बड़ी रकम (मैं उसका उल्लेख नहीं करूँगा- क्या आप मुझे बेवकूफ समझते हैं!) अपनी मां के घर में काम करने वाले को दे दिया। मुझे याद नहीं है कि ऐसा करने के पीछे मेरा मकसद क्या था, लेकिन मैंने सोचा होगा कि अगर मैं उस व्यक्ति को रकम दे दूँ तो खुदा खुश होगा और वह मेरी मां को जल्द स्वस्थ कर देगा।
जब मैं अब इसके बारे में सोचता हूँ तो मुझे हैरत होती है कि क्या मैंने वाकई सहीह काम किया था। अगर सदके में रकम देने का मेरा मकसद यह होता कि इसके बदले में अल्लाह मेरी मां को जल्द स्वस्थ कर देगा, तो मुझे नहीं मालुम कि क्या वाकई खुदा चाहता है कि हम इस तरह का “सौदा” करें।
फिर सवाल यह पैदा होता है कि अगर इस मौके पर इतनी बड़ी रकम सदका करना वाकई अकलमंदी का काम था तो क्या वाकई मैंने सहीह व्यक्ति का चुनाव किया था? हो सकता है कि ऐसे लोग और मकासिद मौजूद हों जो उससे कहीं अधिक हकदार हों जिसे मैंने रकम दी थी।
इसके अलावा, क्या मुझे कोई अंदाजा था कि मैंने इतनी बड़ी रकम जिस व्यक्ति को दी है वह उसका इस्तेमाल किस तरह करेगा? क्या मुझे यकीन था कि वह उसे किसी अच्छे मकसद के लिए इस्तेमाल करेगा? क्या होगा अगर उसने अपनी बहन के लिए मोटरसाइकल या ज़ेवरात खरीदने या खानदान में शादी के लिए इसमें से कुछ खर्च किया हो, जिन चीजों पर मैं यकीनी तौर पर पैसा बर्बाद नहीं करना चाहता था?
यहाँ नेक नीयती पर आधारित खैरात की एक और मिसाल है जो शायद बौद्धिक नहीं थी। दुसरे दिन एक एन जी ओ में गार्ड के तौर पर काम करने वाले एक शख्स ने मुझ से राब्ता किया। उसकी बेटी की फिलहाल ही शादी हुई थी और उसके ज़िम्मे लड़की के सुसराल वालों पर बड़ी रकम वाजिबुल अदा थी- शायद वह शादी के दौरान और उसके फ़ौरन बाद होने वाले खर्च हों। वह मदद चाहता था। अब, मैं जानता हूँ कि यह आदमी बहुत मुखलिस और मेहरबान है और मैं यह भी जानता हूँ कि वह मामूली तनख्वाह कमाता है, जिसकी वजह से उसके लिए अपने खानदान के लिए रोज़ी कमाना काफी मुश्किल है, लेकिन मैं ने थोड़ी बेहिसी इख्तियार की। आखिर में, अगर चह, मैंने उसे काफी बड़ी रकम भेजी। मैंने स्पष्ट कर दिया कि मैं रकम वापस नहीं चाहता।
अब, क्या मैंने सहीह काम किया? क्या मेरा सदका देना अकलमंदी वाला काम था? शायद जब मैंने रकम भेजी तो मैंने सोचा कि मैंने जो किया वह ठीक था। लेकिन अब मैं सोचता हूँ कि क्या वाकई मेरा वह अमल अच्छा था। क्या होगा अगर यह रकम शादी से संबंधित फुजूल खर्चियों को पूरा करने में इस्तेमाल की जाए, जैसे एक शानदार दावत या दुल्हन के खुबसूरत लिबास या शादी की वीडियो रिकार्डिंग या ऐसी किसी भी चीज में जो मैं कभी भी नहीं चाहूँगा?
यह उन कई स्थितियों में से केवल दो हैं जिनका मैंने पिछले सालों में अनुभव किया है बेजा खैरात क्या हो सकती है जिससे यह स्पष्ट होता है कि माद्दी तौर पर खुद से कम खुशहाल लोगों की मदद करना बहुत अच्छी चीज है, लेकिन हमें किस की मदद करनी चाहिए और इसका तरीका क्या होना चाहिए, यह फैसला करना हमेशा आसान नहीं होता है। खैरात व सदकात देना अच्छी बात है, लेकिन जज़बाती तौर पर बिना सोचे समझे ऐसा करना ठीक नहीं।
सदका देने के बारे में फैसला करते समय यह बात मन में रखना अच्छा है कि हमारे पास जो भी माद्दी दौलत है वह खुदा की तरफ से एक नेमत है। चूँकि सब कुछ खुदा का है “हमारी” माद्दी दौलत भी असल में खुदा की ही मिलकियत है, हमारी नहीं। इसलिए हमें खुदा के हुक्म के मुताबिक़ इस दौलत का कुछ हिस्सा सदका में देना चाहिए जिससे खुदा ने हमें नवाज़ा है, लेकिन हमें यह काम पुरी जिम्मेदारी के साथ खुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ करना चाहिए जो कि उसका हकीकी मालिक है। यह जानते हुए कि दौलत असल में खुदा की है और यह कि हम केवल उसके अमानतदार हैं, हमें इस अंदाज़ में खैरात करने की जरूरत है जो खुदा को पसंद हो। हमारा सदका केवल उन मकासिद के लिए जाना चाहिए जिनकी तकमील खुदा चाहता है। हमें लग सकता है कि इस काम में हमें मदद करना चाहिए लेकिन हो सकता है कि खुदा की मर्जी इसके उलट हो।
इसलिए अगर हम चाहते हैं कि जो माल हम खैरात में दे रहे हैं वह केवल उन कामों में इस्तेमाल किया जाए जिनसे अल्लाह पाक राज़ी हो और हम उसे बर्बाद न करें, तो हमें इस मामले में अल्लाह से रहनुमाई हासिल करने के लिए उसकी तरफ रुजूअ करना अच्छी बात है। अगर मान लें कि कोई हम से किसी ख़ास मकसद के लिए पैसे मांगे तो हमें खुदा के सामने मामला पेश करना चाहिए और उससे दरख्वास्त करनी चाहिए कि वह हमारी रहनुमाई करे कि हमें क्या करना है। फिर, हमें उस रहनुमाई की पैरवी करनी चाहिए जो हमें अंदर से हासिल हो। इस तरह हमारा सदका सहीह मकसद में खर्च हो सकता है और बर्बाद होने से बच सकता है।
English Article: To Help, or Not? Making the Right Decisions For
Charity
Urdu Article: To Help, or Not? Making the Right Decisions For
Charity مدد
کریں، یا نہیں؟ صدقہ کے لیے صحیح فیصلہ
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