अरशद आलम, न्यू एज इस्लाम
११ नवंबर २०२०
बिहार के मुसलमानों के लिए, हालिया
बिहार चुनावों का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम यह है कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी, ऑल
इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने मुस्लिम वोट का एक बड़ा
हिस्सा जीता है। । लेकिन जो पार्टी पिछले पांच सालों से राज्य में काम कर रही है, उसके
लिए सिर्फ पांच विधानसभा सीटें जीतना कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है। इस तथ्य की
महत्वपूर्ण बात यह है कि ये सीटें पूर्वी बिहार से प्राप्त हुई हैं, जहाँ
30% से अधिक आबादी मुस्लिम है। यह वह क्षेत्र है जिसे बिहार में सबसे कम विकसित
क्षेत्रों में से एक माना जाता है। इस तथ्य से कोई इनकार नहीं करता है कि कांग्रेस, जदयू
या राजद के नेतृत्व वाली सरकारों के खोखले वादों ने इन दलों के साथ मुसलमानों के
एक बड़े हिस्से को अलग-थलग कर दिया है।
असदुद्दीन ओवैसी
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ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन ने इन
मुसलमानों को एक वैकल्पिक मंच दिया है जिसके माध्यम से वे अपनी समस्याओं को हल
करना चाहते हैं और अपनी वर्तमान स्थिति में कुछ सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं।
मुसलमानों पर रोजाना हो रहे हमलों और उनकी पहचान के संदर्यभ में' बहुत
महत्वपूर्ण माना जाता है।
कई मुसलमानों का मानना है कि ऐसी स्थिति में भी
ओवैसी उनकी एकमात्र आवाज़ बन गए हैं, जबकिअधिकांश धर्मनिरपेक्ष दलों ने
मुस्लिम नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने की अपनी जिम्मेदारी छोड़ दी है। यही
वह कारण है कि असदुद्दीन ओवैसी एक मुस्लिमहमदर्दी रखने वाले भारतीय नेता के रूप
में उभर रहे हैं।
मजलिस की शानदार जीत को उत्तरी भारत में
धर्मनिरपेक्ष दलों की हार का कारण बताया जा रहा है। यह आरोप लगाया जाता है कि
ओवैसी भाजपा के एजेंट हैं और उनकी पार्टी की उपस्थिति ने मुस्लिम वोटों को विभाजित
किया है, जिससे पूर्वी बिहार में बहुमत वाली सीटों को
जीतने में सत्तारूढ़ जेडीयू-भाजपा गठबंधन सफल रही। और यह आरोप आम लोगों द्वारा
नहीं बल्कि शिक्षित विद्वानों, धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों और तथाकथित
धर्मनिरपेक्ष दलों द्वारा लगाया जा रहा है। जबकि ये बेबुनियादआरोप हैं। किसी भी
पार्टी को कहीं से भी चुनाव लड़ने से रोकने की अनुमति नहीं है। कोई भी पार्टी कहीं
से भी चुनाव लड़ सकती है। इसलिए, AIMIM हक़ पर है और उसे कहीं से भी विधानसभा
चुनाव लड़ने का अधिकार है।
इन धर्मनिरपेक्ष दलों पर ओवैसी का आरोप लगाने
का असली कारण यह है कि उन्हें लगता है कि अब बिहार में मुसलमानों को एक नया विकल्प
मिल गया है। वे डर गए हैं क्योंकि उन्हें
पता है कि यह अनुभव पश्चिम बंगाल या उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में दोहराया जा
सकता है। कई सालों से, इन धर्मनिरपेक्ष दलों ने मुसलमानों को
अपने व्यक्तिगत वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है। मुसलमानों के विकास के लिए
कोई महत्वपूर्ण काम किए बिना, इन दलों को यह विश्वास हो गया था कि वे
मुसलमानों के वोट पाने में सफल होंगे और इसके लिए उन्हें केवल यह बताना होगा कि
हिंदुत्व की राजनीति और सरकार मुसलमानों के लिए खतरनाक साबित होगी। मुसलमान इस बात
पर यकीनन चिंतित रहते हुए धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को वोट देते रहे लेकिन सब्र की
भी कोई सीमा होती है कि जब मुसलमान समय समय से भीड़ के हाथों मारे जा रहे थे तो
सेकुलर पार्टियां किस तरह मूक दर्शक बनी बैठी रहीं । आखिरकार मुसलमानों को एहसास
हुआ कि जब मुस्लिम युवाओं को झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया जा रहा था तो ये दल
कैसे चुप रहे। इसीलिए मुसलमान सोचते हैं कि उन्हें एक बार ओवैसी की पार्टी को
अजमाना चाहिए और उन्हें ऐसा करने में कोई गलती नहीं दिखती। निस्संदेह, वह जानते
हैं कि ओवैसी अकेले उनके भाग्य को बदल नहीं सकते हैं,
लेकिन
उन्हें अभी भी प्रोत्साहित किया गया है और आश्वस्त किया गया है कि कम से कम ओवैसी
ने लगातार मुस्लिम अधिकारों की रक्षा में अपनी आवाज उठाई है। इसके अलावा, एआईएमआईएम
की उपस्थिति ने मुसलमानों को उन सभी दलों के साथ मोलभाव करने का बेहतर अवसर दिया
है जिन्होंने इनका इस्तेमाल अपने निजी लाभ के लिए किया है।
कांग्रेस पार्टी के एक प्रवक्ता ने ओवैसी पर
मुसलमानों के बीच "कट्टरता" फैलाने का आरोप लगाया है। लेकिन इस तरह के
विचार केवल कांग्रेस पार्टी के नहीं हैं, बल्कि सामान्य धर्मनिरपेक्ष मानसिकता
का हिस्सा बन गए हैं। इस प्रकार, कांग्रेस के एक प्रमुख विरोधी योगेंद्र
यादव ने यह कहने में संकोच नहीं किया कि ओवैसी की पार्टी का उदय उन्हें परेशान कर
रहा था। हम सभी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि अलगाव वाद के माहौल में कट्टरता
और कट्टरवाद पनपते हैं। लेकिन ऐसे माहौल में भारतीय मुसलमान कट्टरपंथ क्यों नहीं
बन रहे हैं? इसका एक कारण यह है कि भारत का राजनीतिक
दृष्टिकोण मुसलमानों को राजनीति में शामिल होने,
उनकी
विफलताओं को दूर करने और सकारात्मक बदलाव लाने का एक अच्छा अवसर देता है। इसलिए, आईएमआईएम
जो कर रहा है, उससे मुस्लिमों को उम्मीद है कि केवल
राजनीतिक कार्रवाई के माध्यम से उनकी स्थिति को बदला जा सकता है। इसे कट्टरवाद के
रास्ते पर चलना नहीं कहा जा सकता है, लेकिन यह लोकतंत्र की प्रक्रिया को
गहरा कररहा है, जो कट्टरपंथ के लिए जहर है। और निश्चित
रूप से यादव के पास परेशान होने केबहुत कारण हैं क्योंकि एआईएमआईएम के साथ मुस्लिम
अपनी आवाज बनने की कोशिश कर रहे हैं। यह श्री यादव जैसे लोगों के लिए बहुत परेशान
करने वाला होगा कि कैसे वर्षों से वह बिना किसी से सलाह लिए मुद्दों पर मुसलमानों
का प्रतिनिधित्व करने के आदी हो गए हैं। एआईएमआईएम के साथ इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष
दलों की एकमात्र समस्या यह है कि ओवैसी मुसलमानों को राजनीतिक शक्ति प्रदान करेंगे
और उन्हें अपनी आवाज उठाने का मौका देंगे।
कांग्रेस को एआईएमआईएम पर भाजपा के एजेंडे पर
काम करने का आरोप लगाना बंद करना चाहिए। क्योंकि भाजपा हिंदू बहुमत की मुख्य
पार्टी है। जब महाराष्ट्र में मुस्लिम विरोधी पार्टी के साथ सरकार बनाने के लिए
बाबरी मस्जिद को ध्वस्त किया जा रहा था, तो कांग्रेस ने देश में मुस्लिम विरोधी
बयानबाजी को बढ़ावा दिया। कई अल्पसंख्यक मारे गए,
लेकिन
कांग्रेस अभी भी एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी होने का दावा करती है। यह केवल कुछ समय
पहले की बात है जब मुसलमान इस धोखे को नजरअंदाज करते थे लेकिन अब वे अपनी स्थिति
को बदलना चाहते हैं और इसीलिए वे एक ऐसी पार्टी के साथ गठबंधन कर रहे हैं जिसका
एजेंडा सामाजिक-आर्थिक विकास है।
बेशक, कोई एआईएमआईएम की राजनीतिक सक्रियता से
असहमत हो सकता है। तीन तलाक जैसे मुद्दों पर मजलिस की 'विचारधारा'
यह
स्पष्ट करती है कि यह एक प्रगतिशील पार्टी नहीं है। जब मुस्लिम राजनीति और खासकर
बिहार की बात आती है, तो उन्होंने जाति के सवाल पर बात नहीं
की है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि ओवैसी की
पार्टी पर धर्मनिरपेक्ष दलों को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया जाना चाहिए। यदि ये
धर्मनिरपेक्ष ताकतें हिंदू बहुमत को हराने के लिए वास्तव में गंभीर थीं, तो
उन्होंने असदुद्दीन ओवैसी की मांगों को स्वीकार क्यों नहीं किया और अपनी पार्टी को
महागठबंधन का हिस्सा क्यों बनाया? धर्मनिरपेक्षता बनाए रखने के लिए केवल
मुसलमानों को अपने जाइज अधिकारों को छोड़ने की आवश्यकता क्यों है? ये
ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब अब हर उस पार्टी को देना होगा जो मुस्लिम वोट हासिल करना
चाहती है।
उर्दू से अनुवाद, न्यू एज इस्लाम
URL for English article: https://www.newageislam.com/islam-and-politics/arshad-alam-new-age-islam/bihar-elections-radical-owaisi-is-not-the-problem-the-shallowness-of-this-secularism-definitely-is/d/123443
URL for Urdu article: https://www.newageislam.com/urdu-section/bihar-elections-radical-owaisi-problem/d/123607
URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/bihar-elections-radical-owaisi-problem/d/123619
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