मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
10 जून 2022
नबी की हैसियत आम इंसानों की नहीं होती, वह कायनात के खालिक का नुमाइंदा और उसकी इच्छा का प्रवक्ता होता है, उसका उठना बैठना, चलना फिरना, खाना पीना, दोस्तों और दुश्मनों के साथ उसका रवय्या, सफ़र व हज़र, बल्कि जीवन का एक एक पल और एक एक हरकत व अमल इंसानियत के लिए उसवा और नमूना होता है, उसके बोलने में भी इंसानियत के लिए सबक है और उसकी खामोशी में भी। नबूवत का सिलिसला जनाब मुहम्मदुर्रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर मुकम्मल हो गया, आपके बाद न कोई नबी आया है और न आ सकता है, इसलिए इस्लाम के पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ात वाला सिफात सौ दो सौ और हज़ार दो हज़ार साल के लिए नहीं; बल्कि कयामत तक के लिए नमूना है, और आपकी सीरत व सुन्नत की इत्तेबा में आखिरत की भी फलाह है और दुनिया की भी कामयाबी है।
ज़िन्दगी का एक महत्वपूर्ण विभाग अज्दावाजी और खानदानी ज़िन्दगी है, जिससे हर इंसान गुज़रता है। हर शख्स हाकिम और क़ाज़ी नहीं बनता, हर शख्स तिजारत और कारोबार नहीं करता, लेकिन लगभग हर शख्स खानदान का हिस्सा होता है, शादी ब्याह के मरहले से गुज़रता है और इसके जरिये एक नया खानदान वजूद में आता है। खानदान का हिस्सा मर्द भी होते हैं और औरतें भी होती हैं, इसको कदम कदम पर रहनुमाई की जरूरत पेश आती है, इसलिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को आम लोगों के मुकाबले ज़्यादा निकाह की इजाज़त दी गई, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अलग अलग कबीलों में निकाह किये, जिससे इस्लाम की इशाअत में मदद मिली, महिलाओं और खानदानी ज़िन्दगी से संबंधित अहकाम की तफसीलात मुहय्या हुईं, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मजमुई हैसियत से जिन औरतों से निकाह किया, उनकी संख्या ग्यारह है, उनमें उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीका रज़ीअल्लाहु अन्हा के अलावा सबकी सब बेवा या तलाकशुदा थीं। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पहला निकाह हज़रत खदीजा रज़ीअल्लाहु अन्हा से किया जो उम्र में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पन्द्रह साल बड़ी थीं, और एक बेवा खातून थीं, 55/ साल की उम्र होने तक आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के निकाह में एक ही बीवी रहीं: हज़रत खदीजा रज़ीअल्लाहु अन्हा। उनके बाद हज़रत सौदा रज़ीअल्लाहु अन्हा। ज़िन्दगी के आखरी आठ साल में बकिया अज़वाज आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के निकाह में आईं।
तो पहला निकाह आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पचीस साल की उम्र में चालीस साल की खातून से किया, दुसरे: एक के सिवा आपकी तमाम बीवियां बेवा या तलाक शुदा थीं, तीसरे: जो इंसानी ज़िन्दगी में असल शबाब का ज़माना होता है, उसमें आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की एक ही बीवी रहीं और उम्र के आखरी मरहले में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कई निकाह किये। अगर इन बिंदुओं का लिहाज़ रखा जाए तो वह बहुत सी गलतफहमियाँ दूर हो जाएंगी जो इस्लाम के दुश्मन की तरफ से फैलाई जाती हैं, जिनमें से एक हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा से निकाह भी है। हकीकत यह है कि उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीका रज़ीअल्लाहु अन्हा का रिश्ता पहले जुबैर इब्ने मुतअम के लड़के से तय हो चुका था, यह खानदान अभी मुसलमान नहीं हुआ था, जुबैर की बीवी ने कहा कि अगर अबू बकर की लड़की हमारे घर आ गई तो हमारा घर भी बददीन हो जाएगा; इसलिए हमको यह रिश्ता मंज़ूर नहीं (मुसनद अहमद: 6/211); इसलिए यह रिश्ता खत्म हो गया। फिर जब हज़रत खदीजा रज़ीअल्लाहु अन्हा का इन्तेकाल हो गया तो हज़रत खौला रज़ीअल्लाहु अन्हा ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से हज़रत सौदा रज़ीअल्लाहु अन्हा और हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा का रिश्ता पेश किया, हज़रत सौदा रज़ीअल्लाहु अन्हा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हम उम्र थीं, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे निकाह फरमाया और कुछ गैबी इशारों की बिना, पर हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा के रिश्ते को भी कुबूल फरमा लिया, और हज़रत खौला रज़ीअल्लाहु अन्हा से ख्वाहिश की कि वह इस बात को आगे बढ़ाएं, हज़रत खौला रज़ीअल्लाहु अन्हा ने हज़रत अबू बकर रज़ीअल्लाहु अन्हु के सामने यह बात रखी। हज़रत अबू बकर रज़ीअल्लाहु अन्हु को यूँ तो यह रिश्ता दिल व जान से महबूब था; लेकिन चूँकि जाहिलियत के जमाने में मुंह बोले भाई की बेटी से निकाह को हराम समझा जाता था; इसलिए इस पर तामुल हुआ, जब हज़रत खौला रज़ीअल्लाहु अन्हा ने हुजूर पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से यह बात बताई तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अबू बकर रज़ीअल्लाहु अन्हु दीनी भाई हैं न कि सगे भाई, इसलिए उनकी बच्ची से मेरा निकाह हो सकता है, तो फिर वह खटक भी दूर हो गई, इस तरह हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा से आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का निकाह हुआ, निकाह के वक्त राजेह कौल के मुताबिक़ हजरत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा की उम्र छः साल थी और रुखसती के वक्त नौ साल। दुसरे कौल के मुताबिक़ निकाह के वक्त हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा की उम्र अठारह साल थी; लेकिन नौ साल वाली रिवायत को इमाम बुखारी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी किताब में नकल किया है, और अहले इल्म के नज़दीक यही रिवायत अधिक सहीह है।
असल में हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा से निकाह के कई बड़े फायदे हासिल हुए: एक तो जाहिलियत की यह रस्म खत्म हो गई कि मुंह बोला भाई सगे भाई की तरह है और सगे भाई की बेटी की तरह उसकी बेटी से भी निकाह की मनाही है। अगर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने अमल के जरिये इस जाहिलाना रस्म के खात्मे का एलान न किया होता, और सिर्फ जुबानी हिदायत पर इक्तेफा किया होता तो शायद भाई और भतीजी के मसनुई रिश्ते का तसव्वुर आसानी से खत्म नहीं होता, और सदियों से आए हुए इस रिवाज की मुखालिफत लोगों को गवारा नहीं होती; लेकिन जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुद मुंह बोले भाई की बेटी से निकाह कर लिया तो हमेशा के लिए यह तसव्वुर खत्म हो गया।
दुसरे: अल्लाह पाक ने हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हुमा को गैर मामूली जकावत व ज़हानत से नवाज़ा था, 350/ सहाबा व ताबईन ने उसने हदीस हासिल की और उनसे जो हदीसें मनकूल हैं, उनकी संख्या 2210/ है, (सेर आलामुल नबला 2/139)। सात सहाबा वह है, जिनको रिवायत हदीस में मुकस्सेरीन कहा जाता है, यह वह सहाबा हैं, जिन्होंने एक हज़ार से अधिक हदीसें आप से नकल की हैं, उनमें जहां छः मर्दों के नाम हैं, वहीँ एक नाम हज़रत आयशा सिद्दीका रज़ीअल्लाहु अन्हा का भी है, फतावा में भी हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा का पाया बहुत बुलंद था और उनका शुमार सहाबा के जमाने के उन असहाबे फतवा को “मौसूआ फिकह आयशा” के नाम से जमा किया है, जो 767 पन्नों पर आधारित है। इससे फिकह व फतावा के मैदान में उनकी खिदमात का अंदाजा किया जा सकता है। अरबी जुबान में एक इस्तेलाह “इस्तदराक” की है, किसी शख्स की बात या तसनीफ में मोई गलती या गलत फहमी हो गई हो तो उसकी इस्तेलाह को इस्तदराक कहते हैं। हज़रत आयशा ने अकाबिर सहाबा पर इस्तदराक किया है, जिसको अल्लामा जलालुद्दीन सुयूती रहमतुल्लाह अलैह ने “ऐनुल साबतह फी इस्तदराक आयशा अलल सहाबा” के नाम से जमा किया है, और अहले इल्म की राय है कि उमुमन इस्तदराकात में हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा का दृष्टिकोण अधिक सहीह है। फिर यह कि हज़रत आयशा जैसी ज़हीन खातून के आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के निकाह में होने की वजह से ख्वातीन और खानदानी ज़िन्दगी से संबंधित बहुत सारे मसलों का हल उनही की रिवायात से हुआ है; इसलिए उम्मत को आप रज़ीअल्लाहु अन्हा के जरिये जो इल्मी और फिकरी फायदा पहुंचा, वह बज़ाहिर किसी और से नहीं हो सकता था।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा 47/ साल जिंदा रहीं, और उनकी हिदायत व इस्लाह और तालीम व तरबियत का चश्मा जारी रहा, कहा जाता है कि बीस साल में एक नस्ल बदल जाती है, इस तरह हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफात के बाद भी दो नस्लें उनसे फैजयाब हुईं, यह इसीलिए मुमकिन हो सका कि वह कम उमरी में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के निकाह में आ गई थीं।
इसके साथ साथ एक बड़ा फायदा यह भी हुआ कि इस निकाह के जरिये आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने सबसे बड़े मददगार हज़रत अबू बकर सिद्दीक रज़ीअल्लाहु अन्हु और उनके खानदान को इज्ज़त से सरफराज फरमाया। चार रुफका ने सबसे बढ़ कर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मदद की, उनमें से दो हज़रत अबू बकर हज़रत उमर की साहाबजादियों को आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने निकाह में ले कर इज्ज़त बख्शी, और दो रुफका हज़रत उस्मान व हज़रत अली के निकाह में अपनी साहबज़ादियों को दे कर इज्ज़त अफज़ाई की, इस तरह आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन चारों दोस्तों की कुर्बानी के मुकाबले दिलदारी फरमाई, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रत अबू बकर को कितनी ही नेमतें दे देते; लेकिन हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा से निकाह की वजह से उस खानदान को जो इज्ज़त मिली, और जो सआदत हासिल हुई, वह किसी और तरह नहीं हो सकती थी; इसलिए न कभी हजरत अबू बकर को पछतावा हुआ कि उम्र के काफी फर्क के साथ आप रज़ीअल्लाहु अन्हु ने अपनी बेटी का निकाह कर दिया और खुद हज़रत आयशा को; बल्कि वह इस निस्बत को अपने लिए इज्जत और इफ्तेखार की वजह समझते थे, और जब एक मौक़ा पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी बीवियों को इख्तियार दिया कि चूँकि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ रहते हुए बहुत सब्र व शकीब की ज़िन्दगी गुजारनी पड़ती थी, इसलिए अज़्वाजे मुतहरात अगर चाहें तो अपने अधिकार ले कर अलगाव इख्तियार कर लें तो सबसे पहले हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा ने इसको रद कर दिया, और खा कि वह हर हाल में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ ही रहेंगी। रिश्ता निकाह का ताल्लुक असल में बीवी के साथ होता है, तो जब बीवी खुद इस रिश्ते को अपने लिए सआदत का बाईस समझती हो और खुशदिली के साथ बाईसे इफ्तेखार जानते हुए उस पर राज़ी रहे तो कैसे किसी को उस पर एतेराज़ का हक़ हो सकता है?
जहां तक निकाह के समय कम सिनी की बात है तो इसका संबंध असल में सामाजिक ताम्मुल व रिवाज, मौसमी हालात और गिज़ा से ही; इसी लिए अलग अलग क्षेत्रों में बालिग़ होने की उम्र अलग अलग होती हैं, अरब में कम उमरी में लड़कियों के निकाह का रिवाज था, अहदे नबूवत में भी और आपके बाद भी इसकी कई मिसालें मिलती हैं, जिनमें दस साल से कम उम्र में लड़कियों का निकाह कर दिया गया, और जल्द ही वह मां भी बन गईं, खुद हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा के निकाह में हज़रत खौला रज़ीअल्लाहु अन्हा ने रिश्ता पेश किया, और हज़रत अबू बकर रज़ीअल्लाहु अन्हु ने रज़ाई भाई होने का भी उज्र किया; लेकिन उम्र के अंतर पर किसी ताम्मुल का इज़हार नहीं किया, फिर यह कि हिजाज का मौसम गर्म होता है और उस जमाने में वहां की गिज़ा खजूर और ऊंटनी का दूध हुआ करता था, जिसमें बहुत ज़्यादा गिज़ाइयत पाई जाती थी; इसलिए वहाँ के हालात को हिन्दुस्तान पर कयास नहीं करना चाहिए।
इसके अलावा यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि दुनिया के दुसरे धर्मों में भी कम उम्र लड़कियों की शादी का रिवाज रहा है।
1983 ई० तक कैथोलिक कीनान ने अपने पादरियों को बारह साल की लड़की से शादी करने की इजाज़त दे राखी थी।1929 ई० से पहले ब्रिटेन में चर्च ऑफ़ इंग्लैण्ड ने भी बारह साल की लड़की से शादी की इजाज़त दी थी। अमेरिका के स्टीफ़ ऑफ़ डेल्विरा में 1880 ई० तक लड़की की शादी की कम से कम उम्र 8/ साल और कैलिफोर्निया में 10/ साल निर्धारित थी, यहाँ तक कि कहा जाता है कि अमेरिका की कुछ रियासतों में लड़कियों की शादी की उम्र काफी कम राखी गई है, अमेरिका की एक रियासत “मैसीचोसिस” में लड़कियों की शादी की उम्र 12/ साल निर्धारित है, और एक दूसरी रियासत “न्यू हेमस्फर” में 13 साल निर्धारित है।
अगर हिन्दू मज़हब का अध्ययन किया जाए तो इसमें कम उमरी की शादी की बहुत हौसला अफज़ाई की गई है, मनुस्मृति में है कि लड़की के बालिग़ होने से पहले उसकी शादी कर देनी चाहिए, (गौतमा: 15---21) और यह कि बाप को चाहिए कि अपनी लड़की की शादी उसी वक्त कर दे जब वह बे लिबास घूम रही हो; क्योंकि अगर वह बलुगत के बाद भी घर में रहे तो उसका गुनाह बाप के सर होगा। मनुस्मृति में मियाँ बीवी की शादी की उम्र यूँ निर्धारित की गई है: लड़का 30/ साल और लड़की 12/ साल, या लड़का 24 साल और लड़की 8 साल।
गर्ज़ कि कम उमरी में लड़की का निकाह और बीवी व शौहर के बीच उम्र का फर्क तरफैन की आपसी रज़ामंदी, सामाजिक रिवाज, सेहत और बलुगत से संबंधित है। पूरब व पश्चिम के अक्सर समाज में कम उम्र लड़कियों का निकाह होता रहा है, विभिन्न मज़हबी किताबों में न केवल इसकी इजाज़त दी गई है; बल्कि इसकी तरगीब दी गई है।
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