ऐमन रियाज़, न्यू एज इस्लाम
२ सितंबर,२०१२
इस्लाम ही एक ऐसा गैर मसीही मज़हब है जिसके मानने वालों को ईसा अलैहिस्सलाम पर ईमान लाना आवश्यक है: वह मुसलमान, मुसलमान हो ही नहीं सकता अगर वह ईसा अलैहिस्सलाम पर ईमान नही रखता। कुरआने पाक कहता है कि ईसा मसीह अल्लाह के महान पैगम्बरों में से एक थे (६:८५), उनकी विलादत (पैदाइश) मोजज़ाती तौर पर हुई (१९:२२:२३), खुदा की अनुमति से उन्होंने मुर्दों को ज़िंदा करने, पैदाइशी अंधों और कोढ़ों को शिफा बख्शने जैसे मोअजज़े ज़ाहिर किये (५:११०)। एक मुसलमान को उनके नाम के साथ ‘अलैहिस्सलाम’ अवश्य जोड़ना चाहिए।
कुरआन में ईसा मसीह (अलैहिस्सलाम) का नाम पचीस बार उल्लेखित है। उनका नाम कुरआन में इस तरह लिया गया है: ‘मरियम के बेटे’, ‘मसीहा’, ‘अल्लाह के पैगम्बर’ , ‘अल्लाह की निशानी’ , ‘अल्लाह की रूह’ । यह तमाम मोहतरम और सम्मानित नाम उस अज़ीम पैगम्बर के लिए बनाए गए हैं। अगर किसी रूढ़िवादी ईसाई को भी इसकी मंतिकी व्याख्या करने को कहा जाए तो कुरआन में एक भी ऐसा बयान नहीं है कि वह उस पर आपत्ती करे।
शब्द ‘Christ’ इब्रानी भाषा के शब्द ‘messiah’ से लिया गया है, इसे अरबी में ‘मसीह’ कहते हैं जिसका अर्थ होता है मसीह मौऊद। ‘मसीह मौऊद’ के लिए यूनानी भाषा में Christos है हमने इसी से शब्द ‘Christ’ लिया है। ईसा मसीह, मसीह मौऊद थे या खुदा की ओर से उन्हें यहूदियों के बीच सुधार के लिए नियुक्त किया था।
शुरू से आगाज़ करते हैं-
“और जब फरिश्तों ने (मरियम से) कहा कि मरियम! खुदा ने तुमको बर्गजीदा किया है और पाक बनाया है और जहां की औरतों में चुना है।“ (३:४२)
मरियम को यह इज्जत बाइबिल में भी नहीं दिया गया है। कुरआन में मरियम के नाम से एक पूरी सुरह है।
“(वह वाक़िया भी याद करो) जब फ़रिश्तों ने (मरियम) से कहा ऐ मरियम ख़ुदा तुमको सिर्फ़ अपने हुक्म से एक लड़के के पैदा होने की खुशख़बरी देता है जिसका नाम ईसा मसीह इब्ने मरियम होगा (और) दुनिया और आखेरत (दोनों) में बाइज्ज़त (आबरू) और ख़ुदा के मुक़र्रब बन्दों में होगा” (३:४५)
जब खुदा की यह खबर दी जा रही थी, (उपर ३:४५ में) तो मरियम को कहा गया था कि उनके नवज़ायदा बच्चे को ईसा कहा जाएगा, जो मसीह, खुदा का एक ‘कलमा’ होगा इसके बाद यह आयत नाज़िल हुई:
“और (बचपन में) जब झूले में पड़ा होगा और बड़ी उम्र का होकर (दोनों हालतों में यकसॉ) लोगों से बाते करेगा और नेको कारों में से होगा।“(३:४६)
खुदा की ओर से एक नेक और इमानदार बच्चे की खबर सुन कर मरियम ने कहा:
“परवरदिगार मेरे यहाँ बच्चा कैसे होगा जबकि किसी इंसान ने मुझे हाथ तक तो लगाया नहीं”
फरिश्ते ने जवाब दिया:
“(ये सुनकर मरियम ताज्जुब से) कहने लगी परवरदिगार मुझे लड़का क्योंकर होगा हालॉकि मुझे किसी मर्द ने छुआ तक नहीं इरशाद हुआ इसी तरह ख़ुदा जो चाहता है करता है जब वह किसी काम का करना ठान लेता है तो बस कह देता है 'हो जा' तो वह हो जाता है। और (ऐ मरयिम) ख़ुदा उसको (तमाम) किताबे आसमानी और अक्ल की बातें और (ख़ासकर) तौरेत व इन्जील सिखा देगा।“ (३:४७-४८)
“फिर मरियम उस लड़के को अपनी गोद में लिए हुए अपनी क़ौम के पास आयीं वह लोग देखकर कहने लगे ऐ मरियम तुमने तो यक़ीनन बहुत बुरा काम किया। ऐ हारून की बहन न तो तेरा बाप ही बुरा आदमी था और न तो तेरी माँ ही बदकार थी (ये तूने क्या किया)” (19:२७-२८)
यहूदी हैरान थे कि वहाँ कोई यूसुफ बढ़ई नहीं थे। ईसा की मां मरियम ने किसी दूर मकाम पर खल्वत (एकांत) विकल्प कर लिया था। और उस बच्चे की पैदाइश के बाद वह लौट आईं।
अब्दुल्लाह यूसुफ लिखते हैं:
“लोगों के हैरत की कोई इन्तेहा नहीं थी। वह किसी भी मामले में उनके संबंध से बुरा सोचने के लिए तैयार रहते थे, वह कुछ दिनों के लिए अपने रिश्तेदारों से जुदा हो गई थीं, लेकिन अब वह बाहों में अपने बच्चे को लेकर पुरे कर्रो फर्र के साथ आ रही थीं।“
मरीयम ऐसा कैसे कर सकीं? उन्होंने लोगों को कैसे समझाया? जो वह कर सकती थीं वह यह था कि वह बच्चे की तरफ इशारा कर दें, क्योंकि वह जानती थीं कि यह कोई साधारण बच्चा नहीं है। मोजजाती तौर पर अपनी मां का बचाव करते हुए ईसा बोल पड़े, और उन्होंने काफिर श्रोता को वाज़ व नसीहत की।
अल्लाह फरमाता है:
“तो मरियम ने उस लड़के की तरफ इशारा किया ( कि जो कुछ पूछना है इससे पूछ लो) और वह लोग बोले भला हम गोद के बच्चे से क्योंकर बात करें (29) (इस पर वह बच्चा कुदरते खुदा से) बोल उठा कि मैं बेशक खुदा का बन्दा हूँ मुझ को उसी ने किताब (इन्जील) अता फरमाई है और मुझ को नबी बनाया (30) और मै (चाहे) कहीं रहूँ मुझ को मुबारक बनाया और मुझ को जब तक ज़िन्दा रहूँ नमाज़ पढ़ने ज़कात देने की ताकीद की है और मुझ को अपनी वालेदा का फ़रमाबरदार बनाया (31) और (अलहमदोलिल्लाह कि) मुझको सरकश नाफरमान नहीं बनाया (32) और (खुदा की तरफ़ से) जिस दिन मैं पैदा हुआ हूँ और जिस दिन मरूँगा मुझ पर सलाम है और जिस दिन (दोबारा) ज़िन्दा उठा कर खड़ा किया जाऊँगा(33)” (१९:२९-३३)
यह ईसा का पहला मोजज़ा है, जिसे कुरआन ने बयान किया कि उन्होंने नव ज़ायदा बच्चा होने के आलम में मां की बाजुओं में कलाम किया और उनका बचाव किया।
“(ऐ रसूल) ईमान लाने वालों का दुशमन सबसे बढ़ के यहूदियों और मुशरिकों को पाओगे और ईमानदारों का दोस्ती में सबसे बढ़ के क़रीब उन लोगों को पाओगे जो अपने को नसारा कहते हैं क्योंकि इन (नसारा) में से यक़ीनी बहुत से आमिल और आबिद हैं और इस सबब से (भी) कि ये लोग हरगिज़ शेख़ी नहीं करते।“(५:८२)
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