जैन अजली
१५ अगस्त, २०१३
मुझे धमकियां द्दी गईं और मुझे मेरे पीछे देखने के लिए खबरदार किया गया इसलिए कि मैं ने इस्लाम के संबंध में कुछ मसलों के बारे में सवाल करने की हिम्मत की थी। और अंदाजा लगाएं कि कौन लोग मुझे धमकी दे रहे हैं? बेशक मेरे साथी मुसलमान!
ज़ाहिर है, केवल उन्हि लोगों को धर्म के मामले में गहराई के साथ शोध करने की अनुमति है जिनके पास अथाह धार्मिक ज्ञान और काबिलियत है और बाकी हम सबको बस चुप रहना और सुनना चाहिए।
मुझे लगता है कि मुझे उन लोगों को नहीं सुनना चाहिए इसलिए मुझे इस बात का पुख्ता यकीन है कि वह गलत हैं। असल में इस्लाम बहुत ही अच्छा धर्म है, और मुझे यह विश्वास नहीं होता कि यह ऐसी किसी चीज की तबलीग करेगा।
सुरह लुकमान में इस बात का उल्लेख है कि कुरआन और इस्लाम सब के लिए हैं:
“अलिफ़ लाम मीम, यह (हिकमत की भरी हुई) किताब की आयतें हैं, नेक लोगों के लिए हिदायत और रहमत है, जो नमाज़ की पाबंदी करते और ज़कात देते और आखिरत का यकीन रखते हैं।“ (३१:१-४)
और मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर कुरआन का पहला शब्द जो नाज़िल किया गया था वह ‘इकरा’ था जिसका अर्थ है ‘पढ़ो’। सुरह अल अलक में इस प्रकार उल्लेख है:
“(ऐ मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अपने परवरदिगार का नाम ले कर पढ़ो जिसने (आलम को) पैदा किया, जिसने इंसान को फटकी से बनाया, पढ़ो और तुम्हारा परवरदिगार बड़ा करीम है, जिसने कलम के माध्यम से इल्म सिखाया, और इंसान को वह बातें सिखाई जिनके बाते मे उनको इल्म नहीं था।“
और सुरह ताहा में यह बयान है:
“और दुआ करो कि मेरे परवरदिगार मुझे और अधिक इल्म दे!”
आह.......ऐसा लगता है कि इस्लाम असल में लोगों को इल्म हासिल करने की हौसला अफजाई करता है। और अगर आप सवाल आलोचना और विश्लेषण नहीं करते तो फिर इल्म हासिल करने का कौन सा तरीका बचता है?
मुझे लोगों को लगातार सवाल करने और अपने इल्म में इज़ाफा करने का प्रयास करने के लिए हौसला अफजाई करने के संबंध में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हदीस याद है, और खामोश नहीं रहना कितना महत्वपूर्ण है:
“जो शख्स इल्म को छिपाता है कयामत के दिन आग से उसका चेहरा मस्ख कर दिया जाएगा।“
इसलिए अगर हम नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शिक्षाओं का अध्ययन करते हैं तो ऐसा लगता है कि असल में एहतिसाब गैर इस्लामिक है!
आप देखते हैं कि हर किसी को, रस्मी या गैर रस्मी शैक्षिक पृष्ठभूमि से परे इल्म हासिल करने और अपनी समझ में इजाफा करने का हक़ हासिल है।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने पि एच डी की है या आपके पास सेकेंडरी स्कूल की सर्टिफिकेट है या आपको स्कूल जाने का कभी मौक़ा नहीं मिला। अगर आप इल्म हासिल करना चाहते हैं तो आपको इल्म हासिल करने का हक़ है।
और लोगों के लिए समस्याओं के बारे में जानने और समझने के लिए एक रास्ता सवाल करना चैलेंज देना बहस और खयाल का आदान प्रदान करना ही है। अगर लोग खामोश हो जाएं तो उद्देश्य ही मर जाएगा।
वह लोग जो अधिक इल्म वाले हैं उनकी जिम्मेदारी यह है कि वह उन लोगों को इल्म दें जो सवाल कर रहे हैं ताकि इल्म फ़ैल सके। और सामूहिक तौर पर एक शिक्षित समाज का निर्माण हो सके।
अधिक इल्म वालों के बीच और उन लोगों के बीच जो इल्म वाले नहीं हैं अधिक दुरी नहीं होना चाहिए। इल्म बाँटें इसलिए कि बौद्धिक शासन अत्याचार है!
आपको ऐसा क्यों लगता है कि इस्लाम किसी को भी एक मस्जिद के इमाम बनने और नमाज़ की इमामत करने की इजाज़त देता है (जब वह बालिग़ हो जाएं)? इसकी वजह यह है कि इस्लाम इंसानों के बीच इस तरह के अंतर को बढ़ावा नहीं देता।
इसलिए मेरे पास हालांकि अल अज़हर यूनिवर्सिटी की डिग्री नहीं लेकिन मेरी तरफ से उन मसलों के संबंध से सवाल का सिलसिला जारी रहेगा जिनकी समझ में इजाफा करने में मेरी दिलचस्पी है।
और मैं लोगों से ऐसा ही करने के लिए कहूंगा, अगर उनके ज़ेहन व दिमाग में लम्बे समय से किसी भी चीज के ताल्लुक से सवाल और शक हैं।
किसी शख्स को सवाल करने से रोकना उस शख्स को इल्म और इफ्हाम व तफ्हीम हासिल करने से रोकना और उससे महरूम करना है।
मुझे लगता है कि इस्लाम के ताल्लुक से आलोचनात्मक व्यवहार अपनाना बिलकुल अच्छा है। जैसा कि मेरे पसंदीदा मुस्लिम अदीबों में से एक जियाउद्दीन सरदार ने कहा:
“सभी प्रकार के इस्लाम को दमनकारी दृश्य में खराब होने से बचाने के लिए इसे शक और शुबहे के एक स्वस्थ खुराक की आवश्यकता है।“
मज़हबी तौहीन का लेबल लगाए जाने से ना डरें। इसलिए कि अब यह एक ऐसा आरोप है जो साथी सोच के मुसलमान दूसरों पर डालना पसंद करते हैं!
असल में इस्लाम में धार्मिक तौहीन की कोई बुनियाद नहीं है। यह केवल शिक्षित और अनपढ़ लोगों के बीच दूरियों को कंट्रोल करने और बरकरार रखने के लिए इंसान का बनाया हुआ एक इस्तिलाह है।
इसकी तखलीक इसलिए की गई थी कि आम लोग कोई बेहतर बात ना जानने पाएं और डरे रहें। इसे इसलिए बनाया गया था कि लोग उठ खड़े ना हों और अथारिटी को चैलेंज ना करें।
यह उन लोगों की सुरक्षा के लिए बनाया गया था जो सत्ता में हैं और उन लोगों पर अत्याचार करने के लिए जो सत्ता में नहीं हैं। यह क्यों कर गैर इस्लामी हो सकता है!
(उर्दू से अनुवाद: न्यू एज इस्लाम)
स्रोत: http://english.astroawani.com/news/show/criticising-islam-is-islamic-20336
URL for English article: https://www.newageislam.com/ijtihad,-rethinking-islam/zan-azlee/criticising-islam-is-islamic/d/13526
URL for Urdu article: https://www.newageislam.com/urdu-section/zan-azlee,-tr-new-age-islam/criticising-islam-is-islamic-اسلام-پر-تنقید-اسلامی-ہے/d/13557
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