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Hindi Section ( 11 Feb 2012, NewAgeIslam.Com)

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Sectarian Forces Disgusted of Chidambaram साम्प्रदायिक शक्तियां पी. चिदंबरम से नाराज़


ज़फ़र आग़ा (उर्दू से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाट काम)

खुदा का शुक्र है कि टू-जी मामले में चिदंबरम को अदालत से राहत मिल गई। जरा कल्पना कीजिए कि अगर अदालत पी चिदंबरम के खिलाफ फैसला दे देती तो क्या होता? ज़ाहिर है कि चिदंबरम को गृह मंत्रालय से इस्तीफ़ा देना पड़ता। अगर चिदंबरम गृहमंत्री न रहते तो हिन्दुस्तानी मुसलमान क्या हश्र होता? उनका वही हश्र होता जो बटला हाउस के वक्त तक हिंदुस्तान के कोने कोने में हो रहा था, यानी पूरे मुल्क में आए दिन बम धमाके होते रहते और जगह जगह हिंदुस्तानी नौजवान जेल की सलाखों के पीछे भेजे जाते। मीडिया कभी आजमगढ़ तो कभी मालेगांव जैसे शहरों को आतंक के गढ़ का लेबल लगाता रहता और डर से सहमे मुसलमान के सिर पर आतंकवाद की तलवार लटकती रहती।

बटला हाउस इंकाउंटर तक हिंदुस्तान का मुसलमान आतंकवादी ठहरा दिया गया। जगह जगह बम विस्फोट होने की घटनाएं होती थीं। मीडिया में तुरंत मुस्लिम मुजाहिदीन जैसे आतंकवादी संगठनों का शोर मच जाता था और पूरी मुस्लिम कौम के सिर पर आतंकवाद की तलवार लटक जाती थी। फिर मुसलमानों को गैर मुस्लिम आतंकवादी क्यों नहीं मानते। कभी अल कायदा के लोग जिहाद के नाम पर वैसे ही आतंकवादी हमले दुनिया भर में कर रहे होते थे तो कभी पाकिस्तानी आतंकवादी मुंबई में घुस कर ताज होटल और वी टी स्टेशन पर हमलावर होते नजर आते थे। ऐसे माहौल में बस कहीं भी एक बम विस्फोट होता और मीडिया में मुस्लिम मुजाहिदीन जैसे संगठन का शोर मचता तो फितरी (प्राकृतिक) था कि हर मन में शक पैदा होता था कि इस मामले में ज़रूर मुसलमान ही शामिल होंगे। क्योंकि हर आदमी अमेरिका 9/11 हमले से ताज होटल मुंबई तक के संदर्भ में तुरंत यही सोचता था कि मुसलमान होते ही आतंकवादी हैं, इसलिए जो अभी बम धमाका हुआ है उसमें भी मुस्लिम आतंकवादी ज़रूर शामिल होंगे।

वैश्विक आतंकवाद के शोर में मुसलमानों के बारे में हिंदुस्तान में भी यही आम राय बन गई थी। पी चिदम्बरम का कमाल है ये है कि चिदंबरम ने बतौर गृहमंत्री मुसलमानों की छवि को तोड़ दिया। वो कैसे? बटला हाउस की घटना तक देश के किसी कोने में कोई विस्फोट होता था तो बस मुसलमान का नाम आता था, लेकिन बटला हाउस घटना के कुछ ही समय बाद जब चिदंबरम गृहमंत्री हो गये तो उनकी  निगरानी में गृह मंत्रालय के निर्देश में मुंबई पुलिस ने हिंदुस्तानी आतंकवाद का एक नया रूप पेश कर दिया और आतंकवाद का नया चेहरा था साध्वी प्रज्ञा और स्वामी असीमानन्द जैसों का। केसरिया कपड़ों में ये वो लोग थे, जिनका संबंध कभी संघ परिवार से रह चुका था। अब देश में उसी मीडिया जिसने कभी आजमगढ़ को आतंक गढ़ कहा था, नए आतंकवाद के रंग को हिन्दू आतंकवाद का नाम दे दिया। हालांकि ये बात गलत थी। आतंकवाद तो बस आतंकवाद है। इसका किसी धर्म से कुछ लेना देना नहीं है। हालांकि  साध्वी प्रज्ञा जैसों के पकड़े जाने के बाद देश में आतंकवाद का एक नया रूप उभर कर सामने आया, अब केवल साध्वी पर ही उंगली नहीं उठी, बल्कि मीडिया ने इस मामले में संघ को भी कठघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया। फिर छानबीन शुरू हुई और अब तो देश के सामने आतंकवाद की एक दूसरी ही कहानी सामने आई। वो कहानी ये थी कि वह औरंगाबाद बम विस्फोट, मक्का विस्फोट या फिर समझौता एक्सप्रेस बम धमाका, इन सब मामलों का मुसलमानों से कोई लेना देना था ही नहीं।

इसका नतीजा क्या हुआ? वह मुस्लिम समुदाय जो अब तक आम राय में आतंकवादी और जिहादी था, अब उसके लिए खयालात बदलने लगे। अब जो बम धमाके हुए उसमें इंडियन मुजाहिदीन जैसे संगठनों का शोर मचा, लेकिन पूरी कौम के सिर पर आतंकवाद की तलवार नहीं लटकी। मुसलमानों के बारे में ये तब्दीली कैसे हुई? कहने को तो साध्वी प्रज्ञा जैसों को आतंकवाद के मामले में गिरफ्तार करने वाले का नाम था हेमंत करकरे, वह मुंबई आतंकवादी हमलों में मारे भी गए, लेकिन हेमंत करकरे औरंगाबाद मामले की छानबीन करने का फैसला करने वाली शख्सियत का नाम पी. चिदंबरम था। सार ये कि बटला हाउस मामले के बाद सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने राजनीतिक फैसला किया कि देश में मुसलमानों के खिलाफ आतंकवाद के जो आरोप चल रहे हैं, इस पर रोक लगनी चाहिए और यह रोक गृहमंत्री के अलावा और कोई नहीं लगा सकता था, इसलिए इस फैसले के बाद गृह मंत्रालय के पद पर पी. चिदंबरम जैसा एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति नियुक्त किया गया, जिसने हेमंत करकरे जैसे अधिकारी का उपयोग कर देश के सामने आतंकवाद का एक नया चेहरा पेश कर दिया। जिसके बाद मुसलमान के सिर से आतंकवाद की तलवार उतर गई। तभी तो आज अगर विस्फोट होता है तो देश की फिज़ा खराब नहीं होती।

ज़ाहिर यह बात साम्प्रदायिक हिंदू संगठनों को पसंद नहीं आई होगी, जो साध्वी प्रज्ञा और स्वामी असीमानन्द जैसों का इस्तेमाल कर के मुसलमानों को बदनाम कर रही थी। अब इन संगठनों के सामने यह सवाल था कि  फिज़ा (वातावरण) को तब तक नहीं बदला जा सकता है, जब तक पी चिदंबरम को गृह मंत्रालय के पद से बाहर नहीं किया जाये। अब इन्हीं साम्प्रदायिक शक्तियों ने चिदंबरम के खिलाफ साजिश रची। टू-जी मामला ऐसा मामला था जिस पर सारे देश में सरकार के खिलाफ वातावरण बन चुका था। अब सांप्रदायिक संगठनों के नूरे नज़र सुब्रमण्यम स्वामी गृहमंत्री के खिलाफ अदालत पहुंचे। यह वही सुब्रमण्यम स्वामी हैं, जिन्होंने अभी हाल ही में केवल मुसलमानों ही नहीं, बल्कि इस्लाम के खिलाफ भी नफरत से भरा लेख एक अंग्रेजी अखबार में लिखा। इस सिलसिले में स्वामी के खिलाफ अदालत में सुनवाई चल रही है। चूंकि अदालत ने स्वामी के खिलाफ चिदंबरम की अपील रद्द कर दी और चिदंबरम इस मामले में बरी हो गए।

पिछले सात वर्षों में कांग्रेस ने मुसलमानों को दो बड़ी राहत दी है, सबसे पहले, अब देश में कहीं भी बड़े मुस्लिम विरोधी दंगे नहीं होते। अगर होते भी हैं तो उन पर चौबीस घंटे में रोक लग जाती है और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होती है, जैसे राजस्थान में हुआ। फिर आतंकवादी हमलों और धमाकों के बाद मुसलमानों के सिर जो आतंकवाद की तलवार लटकी रहती थी, वह भी साध्वी जैसों की गिरफ्तारी के बाद उतर गई। इन दोनों ही मामलों में बतौर गृह मंत्री पी चिदंबरम की भूमिका काबिले तारीफ रही है। साम्प्रदायिक ताकतें इसीलिए उन्हें बेदखल करना चाहते थे, लेकिन अदालत के फैसले के बाद चिदंबरम बच गए और इस फैसले ने मुसलमानों के लिए बड़ी राहत का सामान पैदा कर दिया।

स्रोतः राष्ट्रीय सहारा, नई दिल्ली

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