यासिर पीरज़ादा
12 दिसम्बर, 2013
एक आम धारणा ये है कि अगर औरत रेप (बलात्कार) का शिकार हो जाए और इस दुर्घटना की गवाही देने के लिए चार गवाह, जो तज़्किया अलशहूद की शर्तों पर पूरे उतरते हों, उपलब्ध न हों तो फिर इस रेप को अदालत में साबित नहीं किया जा सकता और इसके नतीजे में आरोपियों के सुबूतों के न होने के आधार पर रिहा किया जाना शरीयत और कानून के अनुसार होगा। व्यभिचार के मुकदमें में चार गवाहों की शर्त कुछ इस तरह से अनिवार्य है कि इस सम्बंध में किसी प्रकार की जाँच की ज़रूरत ही नहीं समझी जाती। एक आम आदमी की बात छोड़िए, अच्छे खासे आलिम भी यही बताते हैं कि औरत के लिए आवश्यक है कि वो अपने खिलाफ होने वाली ज़्यादती के सुबूत के रूप में चार गवाह लाने के लिए प्रतिबद्ध है। हम मुसलमान कुरान को सोने के गिलाफ़ में लपेट कर घर में किसी ऊंची जगह रख देते हैं, और समझते हैं कि हम ने कुरान की मोहब्बत का हक़ अदा कर दिया। हम इसकी तिलावत ज़रूर करते हैं, लेकिन ज्यादातर कुल या चालीसवाँ के मौके पर और वो भी बिना अनुवाद के। हालांकि अल्लाह की किताब से रहनुमाई लेने का हुक्म तो खुद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने दिया है। तो ज़रा देखिए खुद अल्लाह ने कुरान में इस बारे में क्या फरमाया हैं: ज़िना (व्यभिचार) के बारे में शुरुआती हुक्म सूरे निसा की आयत नंबर 15 और 16 में आया था, और तुम्हारी स्त्रियों में से जो व्यभिचार कर बैठे, उन पर अपने में से चार आदमियों की गवाही लो, फिर यदि वे गवाही दे दें तो उन्हें घरों में बन्द रखो, यहाँ तक कि उनकी मृत्यु आ जाए या अल्लाह उनके लिए कोई रास्ता निकाल दे, और तुममें से जो दो पुरुष यह कर्म करें, उन्हें प्रताड़ित करो, फिर यदि वे तौबा कर ले और अपने आपको सुधार लें, तो उन्हें छोड़ दो। अल्लाह तौबा क़बूल करनेवाला, दयावान है।''
इसके बाद व्यभिचार के बारे में दो टूक हुक्म सूरे नूर में नाज़िल किये गये, आयत नम्बर 2 में हुक्म आया व्यभिचारिणी और व्यभिचारी- इन दोनों में से प्रत्येक को सौ कोड़े मारो।'' इसके बाद आयत नंबर 5 में खुदा फरमाता है, और जो लोग पाक दामन औरतों पर तोहमत (आरोप) लगाएँ, फिर चार गवाह लेकर न आएं, उनको अस्सी कोड़े मारो और उनकी शहादत कभी कुबूल न करो और वो खुद ही फ़ासिक़ हैं, सिवाय उन लोगों के जो इस हरकत के बाद प्रायश्चित करें और अपना सुधार कर लें कि अल्लाह ज़रूर (उनके हक़ में) रहीम है।'' इसके बाद तीसरी सिचुएशन (स्थिति) इसी सूरे की आयत नंबर 9 में बयान की गयी है। और जो लोग अपनी पत्नियों पर दोषारोपण करें और उनके पास स्वयं के सिवा गवाह मौजूद न हों, तो उनमें से एक (अर्थात पति) चार बार अल्लाह की क़सम खाकर यह गवाही दे कि वह बिलकुल सच्चा है, और पाँचवी बार यह गवाही दे कि यदि वह झूठा हो तो उस पर अल्लाह की फिटकार हो, पत्ऩी से भी सज़ा को यह बात टाल सकती है कि वह चार बार अल्लाह की क़सम खाकर गवाही दे कि वह बिलकुल झूठा है, और पाँचवी बार यह कहें कि उस पर (उस स्त्री पर) अल्लाह का प्रकोप हो, यदि वह सच्चा हो।
इन आयतों से पांच बातें साबित होती हैं: पहली, मर्ज़ी से व्यभिचार, जिसे अंग्रेजी में adultery कहते हैं, इसकी सज़ा कुरान ने सौ कोड़े तय की है और ये सज़ा चूँकि खुद कुरान में दी गई है इसलिए इसे हद कहेंगे। दूसरी, जो व्यक्ति किसी पाक दामन औरत पर आरोप लगाए और चार गवाह पेश न कर सके उसकी हद अस्सी कोड़े निर्धारित की गई है। तीसरी, पति अगर अपनी पत्नी पर आरोप लगाए तो उसे क़सम खाकर साबित कर सकता है लेकिन बीवी भी जवाब में अल्लाह की क़सम खाकर उसके आरोप को खारिज कर सकती है। इस स्थिति में कोई सज़ा नहीं। चौथी, महिला के साथ बलात्कार यानि रेप की स्थिति में ये कहीं नहीं लिखा कि इसे साबित करने के लिए औरत को चार गवाह पेश करने होंगे और पांचवीं बात ये कि रजम जिसे अंग्रेजी में stone to death कहते हैं, की सज़ा बयान कुरान में कहीं नहीं है। मौलाना मौदूदी सहित कई उलमा का कहना है कि शादीशुदा लोगों के लिए रजम की सजा पर आम सहमति साबित है लेकिन इस बारे में सूरे निसा की आयत नंबर 25 ये कहती है कि ''फिर जब वो शादी के बंधन में सुरक्षित हो जाएं और उसके बाद किसी बदचलनी का जुर्म करें तो उन पर उस सज़ा की बनिस्बत आधी सज़ा है जो खानदानी औरतों (मोहसिनात) के लिए तय हैं।'' अगर शादीशुदा औरत के लिए रजम की सज़ा होती तो इस स्थिति में उसकी आधी सज़ा कैसे दी जा सकती है? यही वजह है कि कुरान में रजम की सज़ा का दो टूक ज़िक्र कहीं नहीं लेकिन इस्लाम के प्रारंभिक दौर के कुछ मामलों में इसका उल्लेख मिलता है।
चर्चा का विषय सिर्फ ये है कि रेप के केस में औरत के लिए चार गवाह पेश करना कुरान से साबित है? व्यभिचार से सम्बंधित आयत पढ़ने के बाद कहीं से भी ये बात नहीं मिलती कि एक औरत के साथ अगर रेप हो जाता है तो उसे साबित करने के लिए ज़रूरी है कि वो चार गवाह पेश करे अन्यथा घर बैठी रहे। उल्टा चार गवाहों की शर्त मर्दों के लिए है कि अगर वो किसी महिला पर बदचलनी का आरोप लगाएं तो चार गवाहों से साबित करें।
अब सवाल ये पैदा होता है कि बलात्कार की शिकार महिला के साथ इंसाफ कैसे किया जाए? तो इस बारे में अल्लामा जावेद गामदी और दूसरे बड़े उलमा का कहना सौ फीसदी सही है कि राज्य के कानून उसके साथ इंसाफ करेंगे और अपराध साबित होने पर देश का कानून लागू होगा यानि पीड़ित महिला वादी बनकर मुकदमा दर्ज कराएगी। क़ाज़ी आरोपियों को सफाई का मौक़ा देगा और घटना के सुबूतों, डीएनए टेस्ट और शारीरिक निरीक्षण और अन्य तथ्यों और सुबूतों की रौशनी में फैसला सुनाएगा। अगर जुर्म साबित हो जाता है तो राज्य के कानून के अनुसार सज़ा दी जाएगी जो ताज़ीर कहलाएगी। चूंकि इस जुर्म की हद निर्धारित नहीं की गई इसलिए ये सज़ा जुर्म की गंभीरता को देखते हुए उम्र क़ैद या सज़ाए मौत भी हो सकती है।
दरअसल ये सारा कन्फ्यूज़न (भ्रम) हुदूद आर्डिनेंस का फैलाया हुआ है। इसके सेक्शन 8 में लिखा था कि व्यभिचार का सुबूत होने के लिए ज़रूरी है कि आरोपी या तो अपने जुर्म को क़ुबूल करे या फिर इस घटना को चार गवाहों ने जो सच्चे और सही मुसलमान हों, अपनी आंखों से होते देखा हो। नतीजा इसका ये निकला कि जो औरत बलात्कार का आरोप लगाती है वो हुदूद आर्डिनेन्स के अंतर्गत व्यभिचार की 'दोषी' तो ठहरती है लेकिन जिस पर इल्ज़ाम लगाया जाता है वो छाती ठोक कर कहता कि चार गवाह मौजूद नहीं इसलिए बाइज़्ज़त बरी!
गौरतलब है कि ये आर्डिनेन्स इस्लामी नज़रियाती कौंसिल की सिफारिश पर शुरू कराया गया था लेकिन बाद में इसमें महिला संरक्षण अधिनियम 2006 के तहत संशोधन कर दिया गया। इस संशोधन पर भी कौंसिल को आपत्ति है। जिस देश में इस्लामी नज़रियाती कौंसिल का प्रमुख रेप के बारे में कहे कि ये अंग्रेजी शब्द है, मैं इसको नहीं जानता। इस देश में रेप का शिकार होने वाली महिलाओं के साथ इंसाफ कैसे होगा... कोई बतलाये कि हम बतलाएँ क्या?
12 दिसम्बर, 2013 स्रोत: रोज़नामा जंग, कराची
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