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Hindi Section ( 27 Jun 2017, NewAgeIslam.Com)

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Triple Talaq: Accountability of Action is a Must तीन तलाक : कथनी व करनी का हिसाब आवश्यक

 

 

 

उज़मा नाहीद

21 अप्रैल, 2017

मेरे लिए 15 अप्रैल का दिन बहुत महत्वपूर्ण था तब मैंनें पंजाब के बड़े मुफ्ती मुफ्ती फैसल रहमान हिलाल उस्मानी का फोन रिसीव किया। वह मुझे महिलाओं के कल्याण पर विश्व पुरस्कार मिलने पर बधाई दे रहे थे।मुझे यह खुशी इसलिए थी कि मैंनें हमेशा उनके स्वभाव,लेखन में महिलाओं के लिए बहुत सहानुभूति पाई। वे हमेशा शरीअत से वह बातें निकाल करके पेश करते रहे हैं जिनसे उनकी व्यावहारिक जीवन में राहत और आसानी हो।

वही हैं जिन्होंने सबसे पहले निकाह, तलाक, विरासत के बारे में अंग्रेजी और उर्दू में लिखा। मुफ्ती साहब से तीन तलाक पर सवाल करने पर उन्होंने कहा कि तीन तलाक किसी भी युग में अच्छा नहीं माना गया। हमारे साहित्य में तीन तलाक पर चर्चा अरब संस्कृति से ली गई है लेकिन अरब में तलाक दोष है न कि दुसरा निकाह ,लेकिन भारतीय समाज को समझना चाहिए। हमनें तलाक को आसान बना दिया दुसरे निकाह को कठिन। इसलिए मामला जटिल होता जार हा है। मुझे याद है कि जब वह लेख राजीव गांधी (उस समय प्रधानमंत्री थे) को प्रदान की गई तो वो शरीअत की आसानियां और पूर्ण कानून को समझ कर अदब में खड़े हो गए और कहा कि यह नियम तो सभी मौलवियों के लिए फायदेमंद हैं।

दूसरा सवाल मैंनें मुफ्ती इनआमुल्लाह मज़ाहिरी से किया कि हमें तीन तलाक के कार्यान्वयन पर इतना जोर क्यों है। क्या इतनी अनगिनत घटनाएं हैं कि जिनके आधार पर हमारे उलेमा इसे प्रथा योग्य न रखने पर अक्षम हैं।

मुफ्ती साहब ने कहा कि पवित्र पैगंबर के दौर की केवल एक ही हदीस जो महमूद बिन लबया से रवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को एक व्यक्ति के बारे में खबर दी गई कि जिसने एक ही साथ अपनी पत्नी को तीन तलाकें दे दी थीं। आप (यह सुनकर)गुस्से से खड़े हो गए और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया! क्या अल्लाह की किताब को खेल तमाशा बना लिया गया है जब कि मैं अभी तुम्हारे बीच मौजूद हूँ अल्लाह के रसूल को इस कदर गंभीर रूप से गुस्सा देख कर मजलिस वालों में से एक व्यक्ति ने कहा!'' क्या मैं इसे यानी तीन तलाक देने वाले को मार दूँ? '' (सुनन निसाई, किताबुत्तालक,अध्याय अलसलास) इस हदीस के इस पहलू को भी ध्यान में रख सकते हैं कि पवित्र पैगंबर के पहले धारणा को महत्व दे रहे हैं। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खड़े हो गए बल्कि दूसरी को ही महत्व देते चले आ रहे हैं।

मुफ्ती इनआमुल्लाह ने फरमाया कि बाकी हदीसें सहाबा रादिअल्लाहु अन्हुम के निर्णय हैं जैसे एक व्यक्ति का मामला आया तीन तलाक का इसको मान लिया गया लेकिन यह घटना सामने आया कि तलाक से पहले लिआन हो चुका था । तो निकाह तो पहले टूट चुका था । इसके बाद तलाक दी तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चुप रहे। इसी तरह हज़रत अबूबकर रदिअल्लाहु अन्हु और रहज़रत उमर रदिअल्लाहु अन्हु के ही प्रारंभिक दो साल तक तीन तलाक को एक माना जाता रहा। बाद में उमर रदिअल्लाहु अन्हु ने जब तीन तलाक के स्थित होने और उस पर दंड का निर्णय फरमाया तो यह उनका प्रशासनिक निर्णय था,जो वास्तव में जनता के विवेक के लिए होता है। लोगों के घर टूट रहे थे बच्चे बेघर हो रहे थे । उमर रादिअल्लाहु अन्हु ने तीन तलाक सजा के रूप में लागू की थी। लेकिन आज एक बैठक में तलाक के संबंध में जब यह बातें जगह जगह से आ रही हैं कि इसके परिणाम भयानक हैं तब बजाय इसके कार्यान्वयन और इसके तर्क पर पूरी ऊर्जा खर्च की जाती उमर रदिअल्लाहु अन्हु की तरह जनता को ठंडा करनें की कोशिशें शुरू की जानी चाहिए थी।

यूँ भी कोई दया को शरीअत का स्रोत बनाकर सोचें तो रास्ते बहुत हैं। जैसे 'अत्तालाकू मर्रतान'अलग अलग समय दिखाती है। यहाँ अंक के आधार पर अमल नहीं होगा। जैसे एक व्यक्ति सौ तलाकें देता है तो 97 नहीं गिनी जाएगी बल्कि 3 ही गिनी जाएगी।

एक बैठक में तीन तलाक एक दंड है। और नफसानी सुकून के लिये दी जाए तो पाप है। अब यह काम उलेमा का ही है कि अगर इस्लाम का खुल्लम खुल्ला मज़ाक उड़ाया जा रहा हो और खुद मिल्लते इस्लामिया में फसाद का कारण बन रही हो तो उस समय चाहे सरकार से मांग बतौर पूर्वाग्रह हो या वास्तव में चिंतित हो,यह सोचना हमारा ही कर्तव्य होगा कि इस प्रक्रिया से आम जनता को कैसे बाहर निकाला जाए और इस्लाम के लिए उपयोगी कानून साबित किया जाए। लगभग 30 साल से यह अनुभव कर रहा हूं कि लोग तीन तलाक के बंद करने की मांग कर रहे हैं और हम लगातार और पूरा जोर देकर उसकी validityपर बात कर रहे हैं। सवाल यह है कि सरकार का यह सवाल ही नहीं। ये दोनों अलग अलग बातें हैं। इससे कोई समाधान नहीं हो रहा है, बल्कि मुस्लिम समाज की एक अजीब तस्वीर उभर रही है कि यह illegal, जिद्दी, विरोध करने वाली कौम है और इसके रहनुमा जमीनी तथ्य से ही अनजान हैं।

हालांकि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के एफ़ी डेविट के विपरीत हालिया बयान जिसमें जनता से अपील की गई है कि वह कुरआन की प्रस्तावित तलाक का उपयोग करें एक सकारात्मक संदेश है, अच्छा कदम है और विश्वास है कि बोर्ड के इस कदम से जनता का रवैया भी बदलेगा। लेकिन तीन तलाक की समस्या आज भी अटकी हुई है। उस पर यह कहना पर्याप्त नहीं कि इसका इस्तेमाल करने वाले का बहिष्कार कर दिया जाए। यह खुद असाध्य है। यह प्रक्रिया वहाँ तो कारगर हो सकता है जहां बिरादरी 'समम' बनी हुई है। परिवार प्रणाली स्थापित है छोटी बस्तियां हैं। अलबत्ता अब तो गांव से सिमट कर शहरों में आलगे हैं। इस समय छवि है कि यूपी वाले का पड़ोसी तमिल है और कर्नाटक के परिवार का पड़ोसी बिहारी। कौन किसका बहिष्कार करेंगा और क्यों करेगा? वहाँ यह फार्मूला ही बेमतलब है?

दूसरा सवाल यह भी है कि यह कानूनी चीजें उन्हें जनता की सवाब दीद पर छोड़ने का क्या अर्थ हैं जिस समस्या को पूरी जमाअत हल न कर सकती हो, जनता से मांग करनें का क्या अर्थ है? यह जानकर कि अब यह मामला रुकने वाला नहीं और जो सरकार खाने-पीने तक पर पाबंदीं लगा रही है उसके ऐसे नियम जिसकी उपयोगिता से अधिक नुकसान सामने आ रहे हैं, उसे आत्मसम्मान का मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए।

इसका सबसे अच्छा समाधान यह है कि मौलाना थानवी रहमतुल्लाह अलैह की किताब अल हीलतुलफ़ाइज़ह का अध्ययन किया जाए। उन्होंने अपने दर्द में हर मसलक के फुकहा को बुला कर ये कहा था कि आपके फिकह में महिला के आरक्षण के जो भी नियम हैं वह पेश करें। इसके बाद उन्होंने फिक्हे मालिकी के इस कानून को अपने 'कातेबीन नामें' में दर्ज किया था कि अगर कोई व्यक्ति मासूम को तलाक देता (यानी शरई कारण न पाई जाती हों) तो इस को अपना घर महिला के पक्ष में छोड़ना होगा या महर की राशि दो गुनी हो जाएगी।

यह दोनों बिंदु काजी मुजाहिदुल इस्लाम कासमी रहमतुल्लाह अलैहि ने भी पसंद किए थे और खुद मुझसे कहा था कि आप अपने निकाह नामें में यह निकात शामिल कीजिये।

हमनें फिर एक समस्या पर काम किया था कि महर की छह प्रकार भी शामिल की थी जो तलाक के मामले में अगर महर डबल हो तो उसका लाभ होना चाहिए। अगर लोगों ने 500 दिरहम को 500 रुपये में परिवर्तित कर लिया तो दोहरी होकर एक हजार रुपये से भी कोई फायदा नहीं होने वाला है। इस तरह महर सोने, चांदी, संपत्ति, भूमि, कैश आदि में घोषित किया गया था।

मौलाना थानवी रहमतुल्लाह अलैहि ने उस समय भी उल्लेख किया कि महिलाएं अपने इस्लामी अधिकार न पाने और तलाक के रूप में इस्तेमाल होने के करण इर्तेदाद की ओर जा रही हैं इसलिए उन्होंने यह महत्वपूर्ण कदम उठाया था।

आज भी उर्दू टाइम्स ने एक इंटरव्यू लेते हुए जब यह सवाल किया कि 'मुस्लिम बच्चियां यह क्यों कह रही हैं कि हम शरीअत पर क्यों चलें' तो मेरी रूह कांप गई।

परिवार एक अकेला ठिकाना है जो एक परुष और महिला को इकट्ठा करता है इसलिए उसका गठन सुकून , विश्वास और पवित्रता के माहौल में होनी चाहिए न कि उसका उपहास, अपमान और उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए इसी तरह शब्द 'हलाला 'जिसका ज़िक्र भी लोग अकेले पसंद नहीं करते हैं, चर्चा का विषय बन गया। मिल्लते इस्लामिया में जाएँ बल्कि टीवी डिबेट में हदीस में तो हलाला करने वाले व्यक्ति को मलउन कहा गया। जिस तरह इसका इस्तेमाल किया जा रहा है वह वास्तव में हमारे समाज के लिए एक बद नुमा दाग है इसलिए कि यह एक अस्थायी निकाह है जबकि अकद निकाह जीवन भर का पवित्र रिश्ता है।

उमर रदिअल्लाहु अन्हु ने अपने ज़माने में हलाला करने वाले और करवाने वालों के लिए रजम की सजा की घोषणा की थी। अगर इसमें शक होता तो वह इतना बड़ा कदम न उठाते और महिला के लिए यह निहायत गैरत का मसला है । इस संबंध में अपील करूंगी कि इसको तुरंत समाप्त कर दिया जाए। इसकी प्रारूप तो केवल वही हो सकती है कि अगर किसी महिला को तलाक दी गई और बाद में उसका दूसरा निकाह हो गया हो और फिर दूसरा पति या तो मर गया या किसी कारण से तलाक दे दी और फिर पति से निकाह किया जा सकता है। यह कोई प्रस्ताव नहीं है, सख्त पाप की बात है।

21 अप्रैल, 2017 स्रोत: राष्ट्रीय सहारा, नई दिल्ली

URL for Urdu article: https://www.newageislam.com/urdu-section/triple-talaq-accountability-action-/d/110905

URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/triple-talaq-accountability-action-/d/111673

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