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Hindi Section ( 3 Jun 2015, NewAgeIslam.Com)

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The Arab World Is a Pluralistic Region That Lacks Pluralism दूसरे की लड़ाई में अपना नुकसान

  

थॉमस एल फ्रीडमैन

28 मई 2015

अरब जगत एक बहुलवादी क्षेत्र है, लेकिन वहां बहुलतावाद का अभाव है। यानी वहां मतभेदों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने और उसे स्वीकार करने की क्षमता का अभाव है। इसी तरह पश्चिमी एशिया के बहुलतावादी चरित्रों-सुन्नी, शिया, कुर्द, ईसाई, द्रुज, अलवाइट्स, यहूदी, कॉप्ट, यजीदी, तुर्कमानी और विभिन्न जनजातियों- को लंबे समय से कठोर शासन के जरिये नियंत्रित किया जाता रहा। लेकिन नीचे से ऊपर तक नई व्यवस्था बहाल किए बिना जब हमने इराक और लीबिया में तानाशाही शासन को हटा दिया, तो सीरिया एवं यमन के लोगों ने 'जियो और जीने दो' के सिद्धांत को अपनाए बिना स्वयं ही वहां के तानाशाहों को उखाड़ फेंका, नतीजतन वहां एक-दूसरे के खिलाफ भयंकर युद्ध हुआ।

यह संघर्ष सिर्फ इस कारण हुआ कि पिछले 60 वर्षों में वहां का क्रूर नेतृत्व मानव विकास के निर्माण में विफल रहा। संपूर्ण अरब जगत कृत्रिम सीमाओं के साथ तेल और क्रूर ताकत के जरिये ही एक दूसरे से जुड़ा था। विनाश के इस दौर में लोगों को लगता है कि केवल जनजाति और संप्रदाय की पहचान ही उन्हें सुरक्षित रख सकती है। इसका अंदाजा इससे चलता है कि कई इराकी सुन्नी ईरान समर्थक शिया के नेतृत्व वाली सरकार के बजाय उन्मादी इस्लामिक स्टेट के पक्ष में लड़ना-मरना पसंद करते हैं। मैंने इससे बुरा कभी नहीं देखा। पश्चिम एशिया के विश्लेषक साइमन हेंडरसन ने वॉल स्ट्रीट जर्नल के मार्च अंक में इस विघटन पर प्रकाश डालते हुए लिखा है, 'यमन की हिंसक अराजकता गृहयुद्ध कहलाने लायक नहीं है।'

लगता है कि कट्टरवादी तत्वों ने हर जगह कब्जा जमा लिया है। मिडिल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट ने पिछले महीने उत्तरी काहिरा के मानसूरा यूनिवर्सिटी के व्याख्याता शेख अहमल अल-नकीब का इस्लामिक स्टेट की आलोचना करने वाला एक वीडियो पोस्ट किया था, लेकिन वह आगे कहते हैं, 'इसमें कोई संदेह नहीं कि वे (आईएस) उन आपराधिक शिया से कहीं अच्छे हैं, जो सुन्नियों की सिर्फ सुन्नी होने के कारण हत्या करते हैं।'

मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के अर्थशास्त्री ओट्टो स्कार्मर कट्टरपंथी मानसिकता के मुख्य लक्षणों को उसके विपरीत जाकर परिभाषित करते हैं। जैसे, वह सवाल करते हैं, एक खुले दिमाग का विपरीत क्या है? 'आप किसी एक सच से चिपके रहते हैं।' एक खुले मन का विपरीत क्या है? 'आप एक तरह की चमड़ी से ही जुड़े होते हैं, और हर चीज को हमारा बनाम उनका के तौर पर देखते हैं, ऐसे में दूसरों के प्रति सहानुभूति असंभव है।'और एक स्वतंत्र इच्छा के विपरीत क्या है? 'आप उन पुरानी धारणाओं के गुलाम बने रहते हैं, जिनका उद्भव वर्तमान में नहीं, अतीत में हुआ, इसलिए आप नए उभरते अवसरों को खोलने के लिए तैयार नहीं होते।'

अगर यह कट्टरवादी मानसिकता लगातार जारी रहती है, तो आप इस क्षेत्र के भविष्य के लिए केवल रो सकते हैं, जब वहां तेल बहुत कम होगा, बच्चे ज्यादा होंगे और पानी बहुत कम होगा।

फिलहाल सिर्फ दो ही तरीके हैं, जिससे लीबिया, ईरान, यमन और सीरिया में फिर से सुसंगत स्वशासन उभर सकता है-यदि कोई बाहरी शक्ति पूरी तरह से उन पर कब्जा कर ले, उनके सांप्रदायिक युद्ध को खत्म कर दे, कट्टरपंथियों को कुचल दे और अगले पचास वर्षों में इराक, सीरिया, यमन और लीबिया के लोगों को समान नागरिक के रूप में सत्ता में भागीदारी दिलाने की कोशिश करे। हालांकि ऐसा संभव नहीं। दूसरा तरीका यह है कि इस समस्या के अपने-आप सुलझने का इंतजार किया जाए। लेबनान का गृहयुद्ध 14 साल बाद थक-हारकर सुलह के साथ खत्म हो गया। इसी तरह ट्यूनीशिया के विभिन्न गुटों ने स्थिरता पाई-न कोई जीता, न कोई हारा।

हम ऐसे क्षेत्र में प्रभावी तरीके से हस्तक्षेप नहीं कर सकते, जहां हमारे उद्देश्य में भागीदारी करने वाले बहुत कम हों। मसलन, इराक और सीरिया में, ईरान और सऊदी अरब, दोनों आग लगाने और आग बुझाने का काम करते हैं। पहले ईरान ने इराक की शिया सरकार पर सुन्नियों को कुचलने के लिए दबाव बनाया। फिर जब वहां इस्लामिक स्टेट का जन्म हुआ, तो उन्होंने हिंसा की आग बुझाने के लिए ईरान समर्थक लड़ाकों को भेजा। और सऊदी अरब लंबे समय से नैतिकतावादी, बहुलता विरोधी, स्त्री विरोधी बहावी इस्लाम को प्रोत्साहित करता रहा है, जिसने इस्लामिक स्टेट की सोच और सुन्नी कट्टरपंथियों को पनपने में मदद की, जो इस्लामिक स्टेट में शामिल हुए। वास्तव में इस्लामिक स्टेट वह मिसाइल है, जिसे सऊदी अरब से निर्देश और ईरान से ईंधन मिलता है।

ऐसे में अब अमेरिका की नीति नियंत्रण के साथ विस्तार की होनी चाहिए। उसे जॉर्डन, लेबनान, संयुक्त अरब अमीरात और इराक के कुर्द समुदाय की मदद करनी चाहिए, जिन्होंने इस्लामिक स्टेट को नियंत्रित करने की इच्छा जताई है और यमन, इराक, लीबिया या सीरिया में किसी भी रचनात्मक चीज या नेता को बढ़ावा देना चाहिए, लेकिन हमें उनकी जगह खुद को इस लड़ाई में नहीं झोंकना चाहिए। यह उनके भविष्य के लिए उनकी लड़ाई है।

इस सप्ताहांत मैं एक कार के पीछे था, जिस पर वर्जीनिया का लाइसेंस प्लेट लगा था और उस पर लिखा था-आतंकवाद के खिलाफ लड़ें। मैं नहीं समझता कि इसे किसी देश के लाइसेंस प्लेट पर होना चाहिए। हमने एक दशक से ज्यादा समय और धन आतंकवाद से लड़ने की कोशिश में खर्च किया। लेकिन यह व्यर्थ चला गया। किसी देश में आतंकवाद को निर्मूल करने का काम बाहर से संभव नहीं है। इसीलिए हमें यह सीख लेने की जरूरत है कि गलत काम को रोकने के लिए मेहनत से कमाए धन खर्च करना पैसे की बर्बादी है। हमें 'आतंकवाद से लड़ने वाला अमेरिका' बनने से परहेज करना होगा।

Source:http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/columns/our-loss-in-the-battle-of-another-hindi/

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