सुमित पाल, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
16 अप्रैल 2022
पाठक इस बात से वाकिफ होंगे कि पाकिस्तान के बदनामे ज़माना प्रधानमंत्री इमरान खान की पत्नी बुशरा बीबी काला जादू (सेहर) और सिफली इल्म (जादू) की तरफ मैलान रखती हैं। अफवाह तो यह है कि उनके पास दो ‘अजेय’ जिन थे जो हमेशा उनकी पीठ पर रहते और उसकी खिदमत करते थे। अफ़सोस, कि वह भी वज़ीर ए आज़म की कुर्सी बचाने में इमरान की मदद नहीं कर सके। जब इमरान हुकूमत की कुर्सी पर थे तभी पाकिस्तानी परमाणु भौतिक विज्ञानी और कार्यकर्ता परवेज हुडभाय जैसे बुद्धिजीवियों ने इस अंधविश्वास वाली बात को मुर्खता पूर्ण करार दिया था।
असल में जादू टोने की बात बिलकुल बेकार है और इसका इस्लाम से कुछ भी लेना देना नहीं है। सर कारविथ रेड ने काले जादू को धर्म से पहले फिरकों का एक अंधविश्वास करार दिया जो ‘आधुनिक’ धर्मों में चुपके से दाखिल हो गया (पढ़ें, ‘Man and his superstitions’ लेखक सर रेड)। सिफली इल्म जादू और नस्मीत का एक प्राचीन दर्शन है जो इस्लाम से पहले प्रचलित था। पुरी दुनिया में इस्लाम के एक व्यापक अध्ययन से यह बात स्पष्ट होती है कि उपमहाद्वीप और उत्तरी अफ्रीका के मुसलमानों में जादू का रिवाज अब भी मौजूद है।
इस्लाम से पहले उत्तरी अफ्रीकी कबीलों के वोडो और उपमहाद्वीप के जादू टोना का रिवाज इस्लाम में उस वक्त दाखिल हो गया जब इस्लाम इन क्षेत्रों में फैला। चूँकि इंसान फितरी तौर पर कमज़ोर और अंधविश्वासी साबित हुआ है, इसलिए वह इस तरह के घटिया और अनुचित अमलियात की तरफ आकर्षित हो जाता है क्योंकि वह यह मानता है कि इस तरह के अविश्वसनीय कार्य उसे उसके मकसद में कामयाबी से हमकिनार कर सकते हैं। यह बिलकुल गलत है। प्राचीन इस्लाम में इन अंधविश्वासी विकृतियों की कोई गुंजाइश नहीं है। इस्लाम प्राकृतिक तौर पर उन तमाम अंधविश्वासों से नफरत करता है और उनके करीब जाने से मुसलमानों को मना करता है।
यही वजह है कि इस्लाम ने खगोल विज्ञान को बढ़ावा दिया है लेकिन ज्योतिष विज्ञान से मुसलमानों को रोका है। यह बात उल्लेखनीय है कि जब यूरोप बौद्धिक तौर पर अन्धकार में डूबा हुआ था, इस्लामी सल्तनत जो अपने “सुनहरे दौर” में दाखिल हो रही थी, मौरेश स्पेन से मिस्र और यहाँ तक कि चीन तक फैली हुई थी। खगोल विज्ञान इरान और इराक के उलमा ए इस्लाम के लिए ख़ास दिलचस्पी का कारण था और उस समय तक लगभग 800 ईस्वी तक खगोल की वाहिद दरसी किताब बतलीमूस की अल मजस्ती थी जो लगभग 100 ईस्वी में यूनान में लिखी गई। यह अज़ीम किताब आज भी इल्मी हलकों में प्राचीन खगोल के अध्याय में अहम हवाले के तौर पर इस्तेमाल की जाती है।
मुस्लिम उलमा ने इस बुनियादी यूनानी किताब के अरबी अनुवाद का 700 साल तक इंतज़ार किया और एक बार जब यह अरबी में अनुवाद किया जा चुका तो वह उसके सामग्री को समझने में लग गए। लेकिन इस्लाम ने ज्योतिष विज्ञान को कभी बढ़ावा नहीं दिया क्योंकि इसमें अविश्वास और इंसानों के अंदर स्थायी ठहराव पैदा करने की ताकत है। इस्लाम अमल और तहरीक का दाई है और उन लोगों को तुक्ष दृष्टि से देखता है जो सितारों की ताकत पर विश्वास रखते हैं। उर्दू के एक रुबाई से यह अच्छी तरह स्पष्ट होता है:
न रहा चाँद सितारों का मोहताज कभी
अपनी मेहनत के सदा में उजाले देखे
तज़किरा उसने लकीरों का वहीँ छोड़ दिया
जब नुजूमी ने मेरे हाथ के छाले देखे
इस्लाम पुरुषार्थ (कर्मा) पर विश्वास रखता है और इस बात पर ज़ोर देता है कि ‘लकीरों में नहीं महदूद व मुकय्यद इंसान की किस्मत’। जज़ीरा नुमाए अरब में ज्योतिष और रेत विज्ञान मौजूद होने के बावजूद इस्लाम में भविष्य की भविष्यवाणी को बढ़ावा नहीं दिया गया है क्योंकि यह इंसान को तकदीर परस्त बना देता है। इसलिए, ज्योतिष विज्ञान को इस्लाम में हालांकि अंधविश्वास करार दिया गया है लेकिन इस वास्तविकता से इनकार नहीं किया जा सकता कि ज्योतिष विज्ञान असल में एक छद्म विज्ञान है। इस्लाम प्राकृतिक तौर पर बेहतर कल के लिए वर्तमान और उसकी बेहतरी पर यकीन रखता है। इंसान के तौर पर किसी व्यक्ति की तरक्की की खातिर भविष्य को ना मालूम ही रहने दिया जाए। अलेक्जेंडर पोप का कहना है कि, “खालिक ने तमाम मख्लुकात से किस्मत की किताब को छिपा दिया है मगर वर्तमान को इंसानों के सामने रखा गया है।“
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