सुमीत पाल, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
15 अप्रैल 2022
अरब लोग अल्लाह हाफ़िज़ नहीं कहते। बल्कि वह “مع
السلامہ، فی سلامۃ اللہ، فی امان اللہ” आदि कहते हैं।
प्रमुख बिंदु:
1. इस नए हजारिया में उपमहाद्वीप के इस्लाम और साथ ही साथ
हिन्दू मत में सख्त मज़हबी व भाषाई शब्दों का उरूज देखा गया है
2. चुमसकी और सैयद दोनों का ख्याल था कि उपमहाद्वीप के
मुसलमान (ख़ास तौर पर सुन्नी मुसलमान) मज़हबी पहचान और अत्याचार के इज़तेराब का शिकार
हैं
3. अरब "
مع السلامہ، فی سلامۃ اللہ، فی امان اللہ"
आदि कहते हैं
-------
सहीह शब्द (Ramzan) है लेकिन खालीजी अरब (ज़) का तलफ्फुज अदा नहीं कर पाते, इसलिए वह (Ramadan) कहते हैं। क्या हम हिन्दुस्तानियों को गलत रिवायात की पैरवी केवल इस बुनियाद पर करनी चाहिए कि इसका संबंध अरब से है?
शाहिद सिद्दीकी
रमजान का मुबारक व मुकद्दस महीना हमारे सरों पर साया फगन है और मैं अपने मुसलमान (ख़ास तौर पर सुन्नी इस्लाम से संबंध रखने वाले) दोस्तों को रमज़ान की मुबारकबाद देने से डरता हूँ, कहीं ऐसा न हो कि मुझे उनसे जवाब में रमज़ान करीम सुनने को मिले। इस मसले पर गौर करने से पहले, इसके भाषाई पहलु को समझना आवश्यक है। इस महीने के नाम में अक्षर (ज़ाद) है जिसका तलफ्फुज अरबी में ‘दाल’ की तरह होता है। फ़ारसी और उर्दू दोनों भाषाओं में यह शब्द सदियों पहले उधार लिया गया था, लेकिन यह अपने असल तलफ्फुज पर बाकी नहीं रहा। इसके बजाए अब अक्सर बोल चाल में इसे ‘ज़’ से बदल दिया जाता है। इसलिए अब इस तरह (Ramzan) रमज़ान लिखा जाने लगा।
दिलचस्प बात यह है कि इस नए हजारिया में उपमहाद्वीप के इस्लाम और साथ ही साथ हिन्दू मत में भी सख्त मज़हबी व लिसानियाती शब्दों का उरूज देखा गया है। लेकिन मैं सबसे पहले इकीसवी सदी के इस्लाम में होने वाली स्पष्ट परिवर्तनों पर ध्यान केन्द्रित करता हूँ। अब हर जगह खुदा हाफ़िज़ की जगह अल्लाह हाफ़िज़ ने ले ली है और (Ramzan) रमज़ान की जगह (Ramadan) रमज़ान मुरव्वज व मुतदावल हो गया है। नूम चुमसकी की ‘दी पॉलिटिक्स ऑफ़ लैंगुएज’ और प्रोफेसर एडवर्ड डब्ल्यू सईद की ‘सब कांटिनेंटल इस्लामिक लिंग्विस्टिक अरबी फिक्शन’ (जो पहली बार दी डान, पाकिस्तान में नाइन इलेवन के बाद प्रकाशित हुआ था) इस रुझान को गैर जानिबदाराना अंदाज़ में समझने में मददगार होगा।
चुमसकी और सैयद दोनों का ख़याल था कि उपमहाद्वीप के मुसलमान (ख़ास तौर पर सुन्नी मुसलमान) मज़हबी शिनाख्त और ज़ुल्म व सितम के इजतिराब का शिकार हैं। इस्लाम के अजीम हमदर्द प्रोफेसर सईद ने, जो खुद एक फिलिस्तीनी इसाई थे और अपनी मौत से पहले मुल्हिद हो गए थे, एक कदम आगे बढ़ कर (रमजान और अल्लाह हाफ़िज़) जैसे कलमात खैर में होने वाली इन लिसानियाती तब्दीलियों को अरब बमुकाबला उपमहाद्वीप के मुसलमानों के शिनाख्ती बोहरान से मंसूब किया, जिन के बारे में ख्याल किया जाता है कि वह ‘असल’ मुसलमान हैं क्योंकि मक्का और मदीना दोनों जज़ीरा नुमाए अरब में ही स्थित है और इस्लाम की इब्तेदा भी वही से हुई है। अरब के मुसलमानों और उपमहाद्वीप के मुसलमानों ने बसर व चश्म कुबूल कर लिया। इसी लिए खुदा हाफ़िज़ की जगह अल्लाह हाफ़िज़ रिवाज पा गया। खुदा एक फ़ारसी शब्द है और बुनियादी तौर पर अक्सर शिया मुसलमान इस शब्द का इस्तेमाल करते हैं। खुदा को तर्क कर दिया गया और इसकी जगह शब्द अल्लाह दुनिया के इस हिस्से के मुसलमानों की जुबां व ब्यान और लिसानियाती शउर में घर कर गया।
(Ramzan) रमज़ान के बदले (Ramadan) रमज़ान के बढ़ते हुए इस्तेमाल को उपमहाद्वीप इस्लाम की अरबी कारी के संदर्भ में भी समझा जा सकता है। हिन्दुस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल के मुसलमानों का अरब तर्ज़े ज़िन्दगी पर समाजी व मज़हबी इन्हेसार और इस्लामी उसूलों की सख्त अरबी व्यख्या ख़ास तौर पर नाइन इलेवन के बाद बहुत स्पष्ट हो गईं, जिसने किसी न किसी तरह पुरी दुनिया के मुसलमानों को अलग थलग कर दिया था।
हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के मुसलमान अपने तमाम मसलों और परेशानियों के लिए अरब दुनिया की तरफ देखने लगे। इसकी वजह से उनमें समाजी और मज़हबी कमजोरी पैदा हुई। एक कमज़ोर ज़हन हर किस्म के असरात से प्रभावित हो सकता है चाहे अच्छे हों या बुरे। चूँकि इस्लाम का अरबी नुस्खा कदीम और सब से अधिक प्रमाणिक समझा जाता है। इसलिए इससे हम आहंग वहाबी और सलफी तहरीकों को उपमहाद्वीप के बे यारो मददगार मुसलमानों ने भी खामोश समर्थन से नवाज़ा। डॉक्टर जाकिर नाइक जैसे अरब वित्तपोषित उपदेशक ने उपमहाद्वीप के मुसलमानों को इस शर्त पर कि अगर वह सऊदी इस्लाम के सख्त और गैर लचकदार उसूलों पर अम्ल नहीं करते, काफिर व मुल्हिद कह कर हालात मजीद खराब कर देते।
इन मुबल्लेगीन ने इस्लाम को फ़ारसी और उपमहाद्वीप की तमाम तर ‘खराबियों’ से ‘पाक करने’ को अपनी ज़िन्दगी का मिशन बनाया। खुदा हाफ़िज़ को गैर इस्लामी और (Ramzan) रमज़ान को खुल्लम खुल्ला इस्लाम मुखालिफ कहा गया! यह बड़ी दिलचस्प बात है कि खुद अरब भी अल्लाह हाफ़िज़ नहीं कहते। बल्कि वह " مع السلامہ، فی سلامۃ اللہ، فی امان اللہ" आदि कहते हैं। अस्सी की दहाई के बीच में बांग्लादेश और पाकिस्तान के गैर अरबी बोलने वाले उपमहाद्वीप के मुसलमानों ने खुदा हाफ़िज़ के तर्ज़ पर अल्लाह हाफ़िज़ वजअ किया।
प्रोफेसर और इस्लामिक इस्कालर प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के स्वर्गीय बर्नार्ड ल्योस ने इसे (अल्लाह हाफ़िज़ कहने के रिवाज) को उपमहाद्वीप के मुसलमानों की मज़हबी व लिसानी ख्वाहिश से जोड़ कर देखा है। इसे समझने के लिए थोड़ी तफसील दरकार है। उपमहाद्वीप के मुसलामानों की अरबी समझ अधिक अच्छी नहीं है, इस जुबां में गुफ्तगू की तो बात ही छोड़ दें। लेकिन वह अरबी को कुरआन और इस्लाम की भाषा समझते हैं।इसलिए, शब्द अल्लाह का इस्तेमाल उन मुसलमानों के लिए एक हवाला है जो इस बात पर ख़ुशी महसूस करते हैं कि इस्लाम और ख़ास तौर पर फिकही इस्लाम का बुनियादी शब्द उनके लिए किसी हद तक काबिले फहम है! और वह शब्द अल्लाह है। इसलिए, तमाम तरह के कलमात खैर में अल्लाह का नाम लेने की उनकी शदीद ख्वाहिश ज़ाहिर है। यह ऐसा ही है जैसे हिन्दू कहते हैं अहम् ब्रहम्मास्मी या मुसलमान कहते हैं अनल हक़। दोनों शब्दों का मफहूम एक जैसा है (मैं हक़ हूँ) लेकिन दोनों ही बिरादरियां असल में इन दोनों शब्दों के पीछे फलसफे से गाफिल है जो उनके अपने अपने इल्मे तसव्वुफ़ (रूहानियत) से माखूज़ है। हर जगह अल्लाह के नाम के इस्तेमाल की बेजा ताकीद भगवान् की तरह जिसे हिन्दू इस्तेमाल करते हैं, अल्लाह हाफ़िज़ पर ग़ालिब हो गई। यह मंतिक (Ramzan) रमजान के बदले (Ramadan) रमज़ान पर भी लागू हो सकती है। ज़ाद के अरबी तलफ्फुज को समझने से कासिर उपमहाद्वीप के मुसलमानों ने इसे (Ramadan) रमज़ान समझा और ‘d’ पर ज़बरदस्ती इसरार किया जो गलत है। क्या वह शब्द (RiZwan) रिज़वान को भी (RiDwan) रिजवान कहना पसंद करेंगे (जिसका अर्थ खाज़िने जन्नत/ खुदा की रजा पर राज़ी है) क्योंकि रिजवान में भी ज़ाद जैसा मुश्किल हर्फ़ है? संक्षिप्त यह एक लिसानी गुड्मुद है जिस दुनिया के उस हिस्से के मुसलमानों ने जन्म दिया है जो अरबी से बिलकुल ना बलद हैं।
नफ्सियात का एमुलेशन या अपिंग सिंड्रोम (Ramzan) रमज़ान के बजाए (Ramadan) रमज़ान की तशहीर को समझने में मददगार हो सकता है। चूँकि उपमहाद्वीप के मुसलमान आँखें बंद कर के और अक्सर गलत फहमी की बुनियाद पर यह समझते हैं कि अरब हम से बरतर और हमारे आका हैं, इसलिए हर वह चीज जो एक आका करता है उसकी पैरवी करने की गुलामाना मानसिकता उपमहाद्वीप के मुसलमानों के इज्तिमाई तर्ज़े अमल से अयां है। क्या हम सब ने मुशाहेदा नहीं किया कि किस तरह कुछ ‘कान्वेंट’ स्कुलों के पढ़े लिखे लोग मसनुई लबो लहजे में अंग्रेजी बोलते हैं और जब एन आर आई अमेरिका और बर्तानिया से हिन्दुस्तान आते हैं तो वह किस तरह अपने सफेद फाम आकाओं की तरह अंग्रेजी बोलते हैं। इसकी वजह यह है कि हम अभी भी ज़हनी तौर पर अंग्रेजों और सफेद फामों के गुलाम हैं। हम शदीद तौर पर एहसासे कमतरी का शिकार हैं।
यही मंतिक इस देश के मुसलमानों की जानिब से शब्द (Ramadan) रमज़ान के अजीब व गरीब इस्तेमाल पर भी लागू होती है। जो कुछ अरब करते हैं उसकी पैरवी हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी मुसलमान भी करते हैं ताकि उनका अमल मज़हबी तौर पर सहीह मालुम हो। मज़उमा आला अथारिटी के सामने झुकने और उसकी ताबेदारी कुबूल करने का यह सादा और बुनियादी उसूल है। और आला अथारिटी की बात हो तो अरब इस्लाम उपमहाद्वीप के हिन्दवी’ मुसलमानों के लिए एक नमूना या एक बेहतरीन मज़हब है। आखिर में इस उलझन से बचने के लिए मैं अपने मुसलमान दोस्तों को माहे सयाम की मुबारकबाद देता हूँ। बहर कैफ माहे सयाम रोज़े का महीना है, और (Ramzan) रमज़ान का एक मुश्तरका फ़ारसी व अरबी माद्दा है। इसलिए, केवल कलमाते खैर पर कोई मतभेद नहीं होना चाहिए! बहर हाल, हम मज़हबी तौर पर एक घुटन के दौर में जी रहे हैं और हमें हर वक्त राजनितिक, माफ़ी चाहता हूँ, मज़हबी तौर पर हक़ बजानिब रहने की जरूरत है। क्या मैं गलत हूँ?
English Article: How Ramzan Paved The Way For Ramadan In
Subcontinental Islam
Urdu Article: How Ramzan Paved The Way For Ramadan In
Subcontinental Islam برصغیر
کے اسلام میں Ramazan
کا Ramadan تک سفر
URL:
New Age Islam, Islam Online, Islamic Website, African Muslim News, Arab World News, South Asia News, Indian Muslim News, World Muslim News, Women in Islam, Islamic Feminism, Arab Women, Women In Arab, Islamophobia in America, Muslim Women in West, Islam Women and Feminism