सुमित पाल, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
10 मई 2022
बशर के ज़हनों पर किरनों से जो मुसल्लत हैं
बदल रहा हूँ गुमानों में उन यकीनों को
शब्बीर हसन खान ‘जोश’ मलीहाबादी
मैं साधारणतः उत्तर देने से बचता हूँ, जवाब अल जवाब की तो बात ही छोड़ दें, कहीं ऐसा न हो कि किसी बहस या बातचीत का हुस्न एक दुसरे पर कीचड़ उछालने में न बदल जाए। लेकिन, मैं जनाब नसीर अहमद के लम्बे लेख का उत्तर देना मजबूरी समझता हूँ जोकि एक व्यक्तिगत हमले की तरह है। सबसे पहले, मैं स्पष्ट कर दूँ कि मेरा जवाब कोई व्यक्तिगत हमला नहीं है। यह एक पढ़े लिखे आदमी का एक ऐसे शरीफ आदमी को प्यारा सा उत्तर है जो अपने धर्म और उसके सहीफों से बाहर नहीं देख सकता, जिसे वह इल्हामी, नहीं बल्कि एक किताब ए बरहक समझता है।
वैसे मैं कुरआन के अनुवाद का सहारा नहीं लेता। मैं इतनी अरबी जानता हूँ जो जो सामी भाषा में लेख लिखने के लिए पर्याप्त है। इसी लिए, मैं यह कहने की जसारत कर सकता हूँ कि कुरआन कोई एक भाषा का कलाम नहीं है। मुझे विश्वास है कि मिस्टर नसीर अहमद एक पैदाइशी अरबों की तरह अरबी नहीं जानते हैं। इसलिए, मेरा मशवरा है कि वह क्रिस्टोफ़ लक्सेनबर्ग की ‘The Syriac-Aramaic Version of Quran’ अवश्य पढ़ें। एक गंभीर पाठक या मुहक्किक उस समय समझ सकता है जब यह स्वीकार कर ले कि बहुत सारे कुरआनी शब्द अरबी के बजाए शामी- आरामी भाषा के हैं। उत्तम उदाहरण यह है: जन्नत में “शहीद” के पुरस्कार: जब पेश किया जाता है और इसका सुधार किया जाता है, तो आसमानी हदिया कुंवारियों की बजाए मीठी सफेद किशमिश पर आधारित होता है!
अब मुझे बताएं, क्या यह एक (मुखलिस) मुसलमान के लिए गोमगो की सूरते हाल की कलासिकी मिसाल नहीं है? अगर वह दलील देता है कि नहीं, इससे मुराद कंवारी है, तो क्या अल्लाह इतना गैर संजीदा है कि आपको एक इंसान की तरह किसी ऐसी गोश्त और जिस्मानी चीज की लालच देगा, और अगर यह वास्तव में ‘मीठी सफ़ेद किशमिश’ है, तो इसमें इतनी बड़ी बात क्या है?
और, आपके इस्लाम के तथाकथित ‘मुजाहेदीन’ केवल ‘मीठी सफ़ेद किशमिश’ के लिए खुद को उड़ा रहे हैं? यह कितनी नीच बात है! जब इस बात का फैसला करने में इतना इबहाम है कि कुफ्फार को क़त्ल करने पर जन्नत में कंवारी हूरें मिलती हैं या केवल किशमिश, तो क्या इस किताब को इस तरह के मानवी उलझनों और रहस्य के लिए आलोचना का निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए? और जब कुरआन कंवारियों के बारे में बात करता है तो मैं सोचता हूँ कि क्या मुजाहिदों के साथ मोहब्बत की अनंत अकेलेपन के बावजूद उनका बकारत हमेशा के लिए बरकरार रहेगा? वरना कंवारी का मतलब क्या है? किनारे पर, लेकिन अंदर नहीं? संक्षेप में वास्तविकता यह है कि इस्लाम का बुनियादी दावा अर्थात इसका कामिल व अकमल और आखरी होना- हास्यास्पद है।
इसके अनगिनत मुतहारिब और मुतजाद फिरके, इस्माइली से अहमदी तक, सबके सब इसी अटल दावे पर एकमत हैं। कुरआन का दावा है कि खुदा समद है। वह अपनी फैसले में किसी को शामिल नहीं करता। फिर भी मैं डरता हूँ, मुस्लिम उलमा स्वीकार करते हैं कि दुसरे खलीफा उमर के कम से कम पचास अपने विचार अल फुरकान में शामिल किये गए हैं। इनमें महिलाओं को नकाब पहनने का हुक्म देना, जो बाज़नतीनी ईसाईयों से मनकूल एक रिवाज था, और ऐसे दुसरे अकीदे भी शामिल हैं जिनका इस्लाम पर बहुत अधि प्रभाव है। इन विरोधाभास के बावजूद कुरआन खुद को विरोधाभास से पाक करार देता है।
कुरआन में बहुत से ‘वही’ जनाब मोहम्मद के अपने एजेंडे के मुताबिक़ हैं। कुरआन खुद हमें बताता है कि जनाब मोहम्मद के कुछ अनुयायी वही में उनकी दखल अंदाजी को जालसाजी से कम नहीं समझते थे। और ‘मुकद्दस’ किताब में पाई जाने वाली ज़नबेजारी के बारे में क्या ख्याल है? कुरआन की अक्सर इबारत सातवीं सदी के अरब की एतेहासिक हकीकत से मेल खाती हैं।
कुरआन की लैंगिक असमानता और जबरी सातवीं सदी के सहराई खाना बदोशों की संस्कृति को प्रतिबिम्बित करता है। एक दो मिसालें आप को अल्लाह या मोहम्मद की ज़न्बेज़ार मानसिकता को देखने के लिए काफी हैं: सुरह 2:223 में कुरआन कहता है: तुम्हारी औरतें तुम्हारी खेतियाँ हैं, इसलिए तुम जहां से चाहो अपनी खेतियों में जाओ।...(MAS Abdel Haleem, The Quran, Oxford UP, 2004) हमें इस आयत के बारे में कोई गलत फहमी नहीं पालनी चाहिए। इसमें सोहबत की पोजीशन की बात की जा रही है। इस आयत के हाशिये में, हलीम कहते हैं कि मदीना के मुसलमानों ने यहूदियों से सूना था कि जिस औरत के साथ पीछे से जमाअ किया जाए उससे पैदा होने वाले बच्चे को भींगा पन हो जाता है। ‘गुलाम लड़कियां अपने मर्द मालिकों के लिए जिंसी मिलकियत हैं। सुरह 4:24 में कुरआन कहता है: और तुम पर दुसरे लोगों की शादी शुदा बीवियां हराम हैं सिवाए उनके जो तुम्हारे हाथों [जंगी कैदियों के तौर पर] मिलकियत हैं।.. (मौदूदी, जिल्द 1 पेज 319) । और जनाब मोहम्मद के मारिया किब्ती जो नबी की बीवियों की लौंडियों में से एक थीं, के साथ बदनामे ज़माना मोहब्बत की कहानियों के बारे में क्या ख्याल है। जनाग मोहम्मद बिना किसी तकरीब के उसके साथ सो गए, जिसकी वजह से उनकी बीवियों में हंगामा बरपा हुआ और उसे “खुदाई वही” के जरिये हल किया गया।
मैं अपने तर्क को अधिक तूल नहीं देना चाहता। इसलिए, मैं अब अपनी बात खत्म करता हूँ। क्या हम यह नहीं कहते कि अगर आप केंचुए खोदने की कोशिश करेंगे तो सांप निकलेंगे, वह भी ज़हरीले। इसलिए, इससे पहले कि बात अधिक बढ़ जाए, हमें यहीं रुक जाना चाहिए। सब्र करने वाले के गुस्से और हिकमत से बचें। मुनासिब होमवर्क किये बिना कभी भी किसी को न भड़काएं। याद रखें, शीशे के घरों में रहने वालों को दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकना चाहये। आखिर में, जनाब नसीर साहब का शुक्रिया कि आपने मेरे इल्म को एड़ लगाईं। बराहे करम आप सुलतान शाहीन और गुलाम मुहियुद्दीन साहेबान से आजज़ी और कुबूलियत का सबक सीखें। पक्षपाती होना बंद करें।
ठीक है, इससे [पहले कि मैं भूल जाऊं, मैं यह बताना आवश्यक समझता हूँ कि मैंने धर्मों का मज़ाक उड़ाने के लिए उनका अध्ययन नहीं किया। इंसानों पर उनके कुल बुरे प्रभावों को जानने के लिए मैंने इन (धर्मों) का अध्ययन किया है। तमाम इंसान द्वारा निर्मित धर्मों के सहीफे पहले ही हास्यास्पद हैं। उन्हें देख कर कोई उदास इंसान भी हंस पड़े। मैं इससे अलग नहीं हूँ। मैं एक बेपरवाह हूँ। मैं खुदा परस्ती और इल्हाद से आगे निकल चुका हूँ। मज़हब और खुदा मरे लिए कोई मानी नहीं रखते।
English Article: A Rejoinder with Proofs: Islam, Quran and
Controversies
Urdu Article: A Rejoinder with Proofs: Islam, Quran and
Controversies ثبوتوں
کے ساتھ جواب: اسلام، قرآن اور تنازعات
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