सुल्तान शाहीन, एडिटर, न्यु एज इस्लाम
4 सितम्बर, 2012
ऐसा लगता है कि न्यु एज इस्लाम के कुछ पाठक, विभिन्न विषयों पर बहस के दौरान पहली बार नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की शुरुआती समय की जीवनी की किताबों से परिचित हुए जिसे सल्फ़ी अरबों ने आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के निधन के कुछ दशकों के भीतर ही लिखा था। इसके अलावा, शायद उन्हें प्रमाणिक मानी जाने वाली हदीसों जैसे बुखारी और मुस्लिम के अश्लील भाग के बारे में जानकारी नहीं थी।
मुझे याद है जब मैंने पहली बार इन्हें पढ़ा था तो कितना दुख और गुस्सा महसूस किया था। लेकिन मैंने पाया कि एक प्रतिष्ठित अरब इतिहासकार ने उस समय इब्ने हिशाम को तो झूठा कहा था, लेकिन हिशाम, इब्ने इस्हाक़ और तबरी इस्लामी इतिहास, नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की जीवनी पर प्रतिष्ठित स्रोत हैं। कुरान की व्याख्या के मामले में भी तबरी प्रतिष्ठित स्रोतों में से रहे हैं। कोई भी इस्लामी पुस्तकालय इन नफरत के काबिल व्यक्तियों की किताबों या उनके दिए गए संदर्भों के बिना पूरा नहीं होता है। सऊदी जजों ने इन किताबों से जो कुछ सीखा है, वो इन्हीं के आधार पर निर्णय करते हैं और युवा बच्चियों के साथ बलात्कार की अनुमति देते हैं और हकीकत में उन्हें इसके लिए मजबूर करते हैं। उस समय के इन लोगों और अन्य नफरत योग्य सल्फी अरबों ने जो बताया है, शरई कानून उन्हीं पर आधारित है।
वो लोग जिन्होंने नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की निंदा करने वाली बातों को एक जगह जमा किया है उन्हें आज लगभग सभी मुसलमानों की ओर से प्रमाणिक इतिहासकार माना जाता है और इमाम के रूप में उनका आदर किया जाता है। "मौलाना" अबुल आला मौदूदी ने (आज पूरी दुनिया में बहुत से मुसलमान उनके नाम के साथ रहमतुल्लाह अलैहि लगाते हैं) जिन्हें कमजोर हदीसें कहा जाता है उनके आधार पर इस्लाम में महिलाओं की स्थिति पर अपनी पूरी किताब लिखी है।
अगर हम किसी भी हदीस की प्रमाणिकता पर सवाल उठाते हैं तो हम उन्हें कमजोर कहते हैं न कि झूठी और मनगड़ंत। इस तरह उनके "आदर" को बरकरार रखते हैं जबकि कुछ हद तक उनकी प्रमाणिकता को कम करते हैं। लेकिन बुखारी और मुस्लिम के अलावा इन्हें आमतौर पर हदीस की अप्रामाणिक किताब माना जाता है। मदरसों में आलिम और फाज़िल के स्तर पर सिहाए सित्ता का पढ़ाया जाना और इस पर चर्चा करना जारी है।
इस्लाम के दुश्मनों के साथ साथ उन मुसलमानों के जिन्होंने इस्लाम को कम से कम अपने मन में छोड़ दिया है ये उनके लिए स्वभाविक है कि वो उन किताबों को हमारे मुंह पर दे मारें, और इस्लाम में विश्वास रखने वालों से कहेंगे अगर नहीं पढ़ा है तो इन्हें पढ़ो। तुरंत गुस्से में जवाब देने, उन पर हमला करने और उनकी मन्शा (मन्तव्य) पर सवाल करने से मकसद हल नहीं होगा। अगर पश्चिमी देशों या कहीं और के निष्ठावान इस्लामोफोब्स (Islamophobes) (इस्लाम का भय फैलाने वाले) के द्वारा उनकी वित्तीय मदद की जाती हो तब भी! क्या ये उनके अंशों को गलत साबित कर देगा?
प्रारंभिक काल की जीवनी की किताबों और इतिहास के हर अनुसंधान कार्य में जिस विषय को हम पढ़ रहे हों, वो या तो समकालीन लोगों या निकटतम पीढ़ी के लोगों द्वारा लिखी होती हैं, उनका हम बहुत सम्मान करते हैं। हम उदार मुसलमान क्यों बार बार ये कहते हैं कि इब्ने हिशाम के एक समकालीन ने उन्हें झूठा कहा है? जाहिर है अगर हम इब्ने हिशाम को बदनाम करना चाहते हैं तो ये तथ्य बहुत ही संगत है और हमारे दृष्टिकोण को बल प्रदान करता है। तो जो कुछ भी नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के समकालीन या निकटतम समकालीन ने आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के बारे में कहा या आपके फरमान के रूप में बताया है, वो मुनासिब है और जिन लोगों को ये उचित लगता है वो उसे अपनी मान्यता प्रदान करेंगे। हम क्यों खुद हदीसों का सम्मान करते हैं? क्योंकि ये कथित रूप से इतिहास, पारंपरिक कहानी और यहाँ तक कि इस्लाम की प्रारंभिक पीढ़ियों की परंपरा वाली कल्पित कहानियों का एक संग्रह है।
हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि इस्लाम में आज सबसे अधिक सक्रिय और बढ़ती हुई ताकत सल्फ़ी और अहले हदीस लोगों की है। ये लोग विभिन्न नामों से कार्य कर रहें हैं। इन लोगों को अरब पेट्रोडॉलर की वित्तीय सहायता प्राप्त हो रही है और पश्चिमी देशों की सुरक्षा भी हासिल है। इस समूह की एक शाखा सशस्त्र, उग्रवादी, रुढिवादियों की है जिन्हें अरब पेट्रोडॉलर और पश्चिमी देशों की शक्ति से प्राप्त समर्थन के साथ मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के अधिकांश भागों में सत्ता में शामिल किया जा रहा है।
दूसरा बढ़ता हुआ समूह उन उदारवादी और चिंतनशील मुसलमानों का है जिनमें से कुछ खामोशी के साथ, कम से कम अपने मन में इस्लाम को छोड़ रहे हैं। व्यवहारिक कारणों से वो अपने मुस्लिम सम्बंधों को बनाए रख रहे हैं। कुछ को डर है कि उनकी पत्नी उन्हें छोड़ सकती है। (सल्फ़ी लोग औरत से नफरत करने वाले हो सकते हैं, लेकिन कई महिलाएं उन्हें प्यार करती हैं), कुछ को डर है कि उनकी बेटियों की शादी नहीं हो पाएगी, कुछ लोग कुछ समय के लिए नाम के लिए मुसलमान बने रहने में अपनी सुरक्षा देख सकते हैं आदि। इन लोगों ने ये विश्वास करना शुरू कर दिया है कि सऊदी, सल्फ़ी, हदीसी और तब्लीग़ी लोग जिसे इस्लाम के रूप में पेश करते हैं वही इस्लाम है, चूंकि वो ऐसा धर्म नहीं है जिसे कोई समझदार व्यक्ति स्वीकार कर सके, इसलिए इसे छोड़ना ही सबसे अच्छा है। जितना अधिक उदारवादी मुसलमानों को टीवी देखने और संगीत सुनने के लिए पीटा जाएगा जैसा कि पिछले दिनों कराची में तब्लीगियों द्वारा किया गया, ऐसे लोगों की संख्या में उतना ही इज़ाफा होगा।
इन लोगों में से अधिकांश ने हिशाम और तबरी, बुखारी या मुस्लिम नहीं पढ़ा है, लेकिन दुनिया के विभिन्न हिस्सों में मुसलमान क्या कर रहे हैं, उनके व्यवहार के अनुसार इस्लाम के बारे में राय बनाते हैं। जिसे ये मुस्लिम किरदार के रूप में देखते हैं उससे प्रभावित भी होते हैं। इन लोगों को बचपन में बताया गया था कि इस्लाम का मतलब अच्छा चरित्र और सुशिक्षित होने से है। ‘रब्बे ज़िदनी इल्मा’ ये एक दुआ थी जिसे बच्चों को दिन में सौ बार पढ़ने को कहा जाता था। इसका मतलब ये है कि खुदा मेरे ज्ञान में वृद्धि कर। अब वो पूरी इस्लामी दुनिया में आम हो चुके भ्रष्टाचार और अशिक्षा को देखते हैं। इस्लाम ने मुसलमानों में क्या बदलाव लाए हैं, यहां तक कि अरबों या 1400 साल के बाद भी क्या परिवर्तन लाया है? क्या मुसलमान अन्य लोगों से कम भ्रष्ट या दूसरों की तुलना में अधिक शिक्षित हैं? क्या मुसलमान किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने वाले हैं? इन लोगों का आसान निष्कर्ष ये है कि इस्लाम अन्य सभी धर्मों और दर्शनों की तरह विफल हो गया है।
विशेष रूप से अफ्रीका में और हाल ही में कश्मीर में इस समूह से कुछ लोग ईसाई धर्म को स्वीकार कर रहे हैं।
इस समूह की एक शाखा पूर्व मुसलमानों की है जो बहुत सक्रिय हैं, लेकिन अभी भी बहुत छोटी संख्या में हैं जो किसी दूसरे धर्म को स्वीकार नहीं कर रहे हैं और चुप रहने के लिए तैयार नहीं हैं। वो ज़ोर ज़ोर से दुनिया को बताना चाहते हैं कि क्यों उन्होंने इस्लाम को छोड़ दिया और क्यों दूसरे मुसलमानों को भी ऐसा ही करना चाहिए। इस समूह ने हिशाम, इब्ने इस्हाक़, तबरी और बुखारी और मुस्लिम के अश्लील हिस्सों को याद कर लिया है। ये लोग तुरंत इन किताबों के अध्याय और सम्बंधित भाग का विस्तार से हवाला दे सकते हैं।
इस परिदृश्य में जो कुछ हो रहा है वो ये है कि उदारवादी मुसलमानों की संख्या कम होती जा रही है। क्या हम अब भी मुख्य धारा का प्रतिनिधित्व करने वाले हैं, मुझे इस पर शक है। इसी वजह से मैं ये कहता हूँ कि जब आप भारत या पाकिस्तान में कोई सर्वेक्षण करते हैं, तो मुसलमानों का बहुमत ये स्वीकार करने से इन्कार करेगा कि वो वहाबी हैं। लेकिन उनकी सोच, भाषा, शैली, परंपराएं सब कुछ बदल गए हैं। बहुत से लोग अभी तक इसे नहीं जानते, लेकिन वो निश्चित रूप से वहाबी हैं। उन्हें रूढिवादी बनाने में खर्च होने वाले अरबों पेट्रोडालर बेकार नहीं गये हैं।
हम अपने बच्चों को या तो धार्मिक स्कूलों (मदरसों) या धर्मनिरपेक्ष शिक्षा संस्थानों, ईसाईयों द्वारा चलाए जाने वाले स्कूलों, कॉलेजों, कान्वेंट्स या निजी स्कूलों में भेजते हैं। एक अजीब चीज़ हो रही है। मदरसों में जो कट्टरपंथ है उस पर काफी कुछ लिखा जा रहा है। लेकिन धर्मनिरपेक्ष स्कूलों के विद्यार्थियों के बड़े और खतरनाक कट्टरपंथ के पीछे कारणों को अच्छी तरह समझा नहीं जा रहा है। उसे अब जाकर व्यापक तौर पर महसूस किया जा रहा है। 9/11 में शामिल कोई भी आतंकवादी मदरसा शिक्षा प्राप्त नहीं था, सभी ने सेकुलर शिक्षा प्राप्त की थी। ओसामा बिन लादेन स्वयं एक इंजीनियर था, ऐमन अलज़वाहरी एक मेडिकल डॉक्टर है। पूर्व की पीढ़ी के इस्लामी कट्टरपंथ के पितामह "मौलाना" मौदूदी मदरसा से शिक्षा हासिल नहीं की थी और वो प्रशिक्षित पत्रकार थे, सैयद कुतुब ने ब्रिटिश शैली के स्कूल में पढ़ाई की थी, उन्होंने अपने प्रारंभिक दिनों में मदरसा में भी कुछ शिक्षा प्राप्त की थी जिसने उन्हें इसका आलोचक बना दिया। जबकि विभिन्न कारक अलग अलग लोगों के लिए अतीत में जिम्मेदार हो सकते हैं, इंटरनेट पर बड़े पैमाने पर प्रोपगंडा आज के धर्मनिरपेक्ष शिक्षित युवाओं का इस संसाधन पर लगभग पूरी तरह निर्भरता को आधुनिक प्रवृत्ति के पीछे मूल बुराई माना जाता है।
हमारी संख्या तेजी से कम हो रही है। वहाबी हमें बदलने की कोशिश कर रहे हैं, उग्रवादी हम लोगों को हमारी मस्जिदों और दरगाहों में मारने की कोशिश कर रहे, खामोश रहने वाले पूर्व मुसलमान हमें नज़रअंदाज़ कर रहे हैं, और कुछ कम खामोश रहने वाले पूर्व मुसलमान हमें प्रारंभिक जीवनी और "प्रमाणिक" हदीस के अश्लील भाग का अपनी याददाश्त से पेश हवाले द्वारा हम लोगों को सलीब पर चढ़ाना चाहते हैं। हम किस तरह जवाब दें?
बढ़ते हुए विभाजन के दोनों ओर से इस्लाम के आलोचकों पर हमला करने से काम नहीं बनेगा। अगर हम उदारवादी इस्लाम को 21वीं सदी के अंत तक जीवित रखना चाहते हैं तो वर्तमान सदी या इससे बाहर की बात न करें, हमें तुरंत एक दूसरे के साथ मिलकर बात करनी चाहिए।
न्यु एज इस्लाम इसी के लिए है। ये पहले ही दुनिया भर के अलग-अलग विचारों वाले मुसलमानों को एक साथ लाया है। आइए हम एक साथ रहें और एक साथ विचार करें। आइए हम कुछ स्पष्ट बयान करने वाले आलोचकों के उपहार के लिए उन्हें धन्यवाद दें। ये लोग हमें अपने विचारों को स्पष्ट करने का अवसर देते हैं। हम कुछ चीजों में पूरे जोश से विश्वास करते हैं लेकिन इसके बावजूद अर्थपूर्ण ढंग से किसी भी हद तक उसे बताने में असमर्थ हैं। हमें अपने विचारों को फैलाने के स्रोतों की जरूरत है। ख़ुदा ने इसमें से हमें कुछ दिया है। कौन जानता है कि हम उनमें से कुछ लोगों को उदारवादी इस्लाम के दायरे में वापस ले आएं।
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