सुहैल अरशद, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
13 जनवरी 2022
दुनिया के सभी प्राचीन और आधुनिक समाजों में मेहमान नवाज़ी को बहुत महत्व दिया गया है। मेजबान का यह महत्वपूर्ण कर्तव्य है कि वह मेहमानों का गर्मजोशी से स्वागत करे, उनके रहने और खाने का ख्याल करे और उनके आराम का ध्यान रखे। दुनिया के सभी धर्मों को मेहमान के साथ अच्छा व्यवहार करने का निर्देश दिया गया है। हिंदू धर्म में मेहमान को खुदा का रूप कहा गया है। अतिथि देवो भवः (मेहमान खुदा हैं)।
तौरेत और इंजील में भी मेहमानों के साथ अच्छा व्यवहार करने और उनकी अच्छी तरह खातिर तवाज़ो करने का आदेश दिया गया हैं। इंजील में हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि जिसने किसी अजनबी का स्वागत किया उसने जैसे मेरा स्वागत किया।
कुरआन में इब्राहीम और फरिश्तों की कहानी सुनाई गई है। लूत अलैहिस्सलाम की कौम को नष्ट करने से पहले फरिश्ते इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास मानव रूप में आए। इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मेहमानों के रूप में फरिश्तों का स्वागत किया और उनके लिए भुना हुआ बछड़ा ले कर आए।
और हमारे भेजे हुए (फरिश्ते) इबराहीम के पास खुशख़बरी लेकर आए और उन्होंने (इबराहीम को) सलाम किया (इबराहीम ने) सलाम का जवाब दिया फिर इबराहीम एक बछड़े का भुना हुआ (गोश्त) ले आए” (हुद: 69)
इस घटना से यह भी पता चलता है कि पूर्व-इस्लामिक धर्मों में भी, मेहमानों का स्वागत और उनके ज्याफत को एक धार्मिक कर्तव्य माना जाता था।
हदीसों में भी मेहमान नवाज़ी को एक महत्वपूर्ण कर्तव्य बताया गया है। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कई मौकों पर मेहमानों का स्वागत करने और उनकी सेवा करने का निर्देश दिया है। सहीह बुखारी की एक हदीस इस प्रकार है:
अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहु अन्हु ने रिवायत किया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: जो कोई अल्लाह और कयामत पर ईमान रखता है, उसे अपने मेहमान का ख्याल रखना चाहिए और जो कोई अल्लाह और कयामत पर ईमान रखता है, वह अपने नाते वालों से सुलूक करे और जो शख्स अल्लाह और कयामत पर ईमान रखता हो वह नेक बातें निकाले या चुप रहे। (अध्याय 1637 इकरामुल जैफ 1071)
हदीस के अनुसार, मेहमान के लिए एक दिन और रात की खातिरदारी अनिवार्य है और तीन दिन की मेहमान नवाज़ी बेहतर है, इसके बाद सदका है। एक हदीस है:
“हम से अब्दुल्लाह बिन यूसुफ ने ब्यान किया कहा हमको इमाम मालिक ने खबर दी उन्होंने सादी बिन मुकरी से उन्होंने अबू शरीह काबी से कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो शख्स अल्लाह पाक और कयामत पर ईमान रखता हो उनको अपने मेहमान की खातिरदारी करना आवश्यक है एक दिन रात तो मेहमानी अनिवार्य है और तीन दिन तक अफज़ल है इसके बाद सदका है। मेहमान को भी नहीं चाहिए कि मेज़बान पास पड़ा रहे। उसको तंग कर डाले। (बाब 1637 इकरामुल जैफ 1067)
मेहमान के लिए नफिल रोज़ा तोड़ना
हदीस में यह भी कहा गया है कि मेजबान को मेहमान के लिए नफिल रोज़ा भी तोड़ देना चाहिए क्योंकि मेहमान का अधिकार मेजबान पर मुकद्दम है।
इस संबंध में सहीह बुखारी की एक हदीस इस प्रकार है:
“ हमसे मुहम्मद इब्न बशार ने बयान किया कहा कि हमसे जाफर इब्न औन ने कहा हमसे अबू अल-उमैस ने उन्होंने औन इब्न अबी हुजैफा से उन्होंने अपने पिता से उन्होंने कहा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सलमान फ़ारसी और अबू दर्दा को भाई भाई बना दिया था तो सलमान अबुल दर्द की मुलाक़ात को गए क्या देखते हैं कि उनकी बीवी उम्मे दर्दा मैले कुचैले कपड़े पहने हैं। सलमान ने पुचा क्यों (भावज) क्या हाल है उन्होंने कहा तुम्हारे भाई अबुल दर्दा में दुनिया दारी नहीं रही। इतने में अबुल दर्दा आए उन्होंने सलमान के लिए खाना तैयार किया और उनसे कहने लगे तुम खाओ मैं तो रोज़े से हूँ। सलमान ने कहा मैं तो नहीं खाने का जब तक तुम नहीं खाने के। अबुल दर्दा ने (रोज़ा तोड़ डाला) सलमान के साथ खाना खा लिया। जब रात हुई तो अबुल दर्दा (तहज्जुद के लिए) उठने लगे। सलमान ने कहा अभी सो जाओ वह सो रहे, फिर उठने लगे। तो सलमान ने कहा अभी सो जाओ। वह सो रहे। जब आखिर रात हुई तो सलमान ने कहा अब उठो। खैर दोनों ने तहज्जुद की नमाज़ पढ़ी फिर सलमान ने अबुल दर्दा से कहा (भाई साहब) तुम्हारे परवरदिगार का तुम पर हक़ है और तुम्हारी जान का भी तुम पर हक़ है और तुम्हारी जोरू का भी तुम पर हक़ है तो हर एक का हक़ वाले काहक अदा करो। अबुल दर्दा यह सुन कर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ज़िक्र किया आपने फरमाया सलमान सच कहता है अबू हुजैफा का नाम वहब सवाई है उनको वहब अल खैर भी कहते हैं। (बाब 638-1072 सहीह बुखारी)
मेहमान नवाज़ी के आदाब में यह भी शामिल है कि मेजबान या परिवार के सदस्यों को मेहमान की उपस्थिति में तल्ख़ कलामी नहीं करनी चाहिए।और जब मेहमान रुखसत होने लगे तो उसे दरवाज़े तक छोड़ने के लिए जाए। मेहमान के पीछे दरवाज़े को ज़ोर से बंद न करे।
संक्षेप में, अन्य धर्मों की तरह, इस्लाम ने मेहमान नवाज़ी को बहुत महत्व दिया है और मेहमान नवाज़ी को रहमत और बरकत का स्रोत माना जाता है।
Urdu
Article: Importance of Serving the Guests in Islam اسلام میں مہمان نوازی کی
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