शकील शम्सी
४ फरवरी, २०१९
२०१५ ई० में ब्रिटेन के मुसलामानों ने एक बहोत महत्वपूर्ण पहल करते हुए लगभग २० मस्जिदों के दरवाज़े गैर मुस्लिमों के लिए खोल दिए थे और visit my mosque# (मेरी मस्जिद में आइए) के नाम से एक अभियान चलाई थीl इस अभियान के माध्यम से ब्रिटिश मुसलमानों की कोशिश थी कि गैर मुसलिमों के दिलों में इस्लाम के खिलाफ जो शक पैदा हो गए हैं उनको मिटाया जा सकेl इस अभियान के कारण गैर मुस्लिमों के मस्जिदों में आने के साथ साथ मस्जिदों में रखे इस्लामी लिटरेचर तक उनकी पहुँच भी हो गईl इस अभियान से प्रभावित हो कर भारत में भी कुछ पढ़े लिखे मुसलमानों ने यही अभियान शुरू कर दिया है और हैदराबाद, पूना, मुम्बरा (ठाणे) और अहमदाबाद की कुछ मस्जिदों के दरवाज़े गैर मुस्लिमों के लिए खोल दिए हैंl स्पष्ट है कि इससे दोहरा लाभ होगाl पहला तो यह कि गैरमुस्लिम हज़रात मुसलमानों की इबादतों और अकीदों के बारे में जान सकेंगे और साथ ही साथ आपसी भाईचारे और सहिष्णुता में भी वृद्धि होगीl भारत में इस तरह तो मुसलमान एक हज़ार वर्ष से अधिक समय से आबाद हैं, मगर यहाँ के गैर मुस्लिमों की बड़ी संख्या को इस्लाम और मुसलमानों के बारे में बहोत ही कम जानकारी हैं बल्कि जो जानकारी हैं वह गलतफहमियों पर आधारित हैंl प्रसिद्ध कवि कबीर दास ने अज़ान के बारे में जो दोहा कहा है (कांकर पात्थर जोड़ के मस्जिद लियो बनाए, ता चढ़ मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय) इसको स्कूल में पढ़ाया भी जाता है और बहोत सारे लोग इसको मुसलमानों पर की जाने वाली बेहतरीन आलोचना से भी ताबीर करते हैं हालांकि यह दोहा ग़लतफ़हमी और निम्न ज्ञान का परिणाम है, अगर कबीर दास जी को ज्ञान होता कि अज़ान अल्लाह को सुनाने के लिए नहीं बल्कि आस पास रहने वाले मुसलमानों को बुलाने के लिए दी जाती है तो वह कभी इस प्रकार की बात नहीं कहतेl
इस संदर्भ में एक और घटना बताता चलूँ कि जब मैं दूरदर्शन में न्यूज प्रोडियूसर था तो मेरे एक हम निवाला और हम प्याला ब्राह्मण दोस्त ने मुझ से कहा कि भाई अगर तुम बुरा ना मानो तो एक बात पूछूँ? मैंने कहा अवश्य पूछोl उसने कहा मेरी समझ में यह बात नहीं आती कि तुम लोग अज़ान में अल्लाह हु अकबर बादशाह का नाम क्यों लेते हो? जब मैंने उसको अल्लाह हु अकबर का अर्थ समझाया तो वह बहोत शर्मिंदा हुआl इसके अलावा मुसलमानों के अकीदों के बारे में ज्ञान ना होने के कारण भी हमारे गैरमुस्लिम भाइयों के दिलों में बहोत सारी गलतफहमियाँ मौजूद हैं, जिनको दूर करना हर मुसलमान की जिम्मेदारी है और इसको दूर करने के लिए मस्जिदें बेहतरीन मरकज़ साबित हो सकती है, मगर हमारे यहाँ तो हाल यह है कि मस्जिदों के बाहर मैंने यह बोर्ड लगा हुआ देखा कि गैर मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित हैl गैर मुस्लिमों की बात तो छोड़िये कितनी मस्जिदों में इस प्रकार के बोर्ड भी लगे होते हैं कि देवबंदी, वहाबी, शिया, सुलह कुली और अहले हदीस का इस मस्जिद में प्रवेश वर्जित हैl अलग अलग मसलकों की मस्जिदों पर मसलक के नाम लिखने की रिवायत बहोत आम हैl इसलिए भारत में ऐसी कोई तहरीक चलाना कि जिसमें गैर मुस्लिमों को मस्जिद में प्रवेश होने की दावत दी जाए बहोत मुश्किल काम है, लेकिन हमें विश्वास है कि आज के पढ़े लिखे और बड़े दिल वाले मुसलमान इस काम में दिलचस्पी लेना शुरू करेंगे और मस्जिदों को गलतफहमियां मिटाने का केंद्र बना कर इस्लाम की एक बड़ी सेवा करेंगेl आज जब हमारे देश में हिन्दुओं के दिलों में मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरने की एक बहोत गहरी और सोची समझी साज़िश चल रही है, आज जब कि मुसलमानों की ओर से किये गए लाखों कल्याणकारी कार्यों को अनदेखा करके संघ परिवार के लोग मुसलमानों को तबाही और बर्बादी की अलामत बना कर पेश कर रहे हैं और सैंकड़ों मंदिरों के लिए मुसलमानों की दी हुई जागीरों को अनदेखा करके यह तास्सुर दिए जाने की कोशिश की जा रही है कि जैसे मुसलमान यहाँ केवल मंदिर तोड़ने आए थेl आज जबकि हिन्दुओं को यह कह कर गुमराह किया जा रहा है कि मुसलमान आक्रमणकारी थे तो इस समय हमारी जिम्मेदारी है कि हम उनको बताएं कि जब बाबर ने भारत पर हमला किया तो देश की सुरक्षा के लिए अपनी जान देने वाले एक लाख मुसलमान इब्राहीम लोधी की फ़ौज का भाग थेl तैमुर और नादिर शाह की फौजों से टकरा कर इस देश पर कुर्बान होने वाले भी मुसलमान ही थेl
४ फरवरी, २०१९, सौजन्य से: इन्कलाब, नई दिल्ली
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