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Hindi Section ( 18 Apr 2017, NewAgeIslam.Com)

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There is no Issue in Accepting the Defeat हार मान लेने में कोई हर्ज नहीं है




शकील शमशी

21 मार्च, 2017

अब तक तो हम यही सुनते आए थे कि मुसलमान एक ऐसा वोट बैंक हैं जिन्हें धर्मनिरपेक्ष दलों से हमेशा अपनी जीत के लिए इस्तेमाल किया जाता था, यह पहला मौका है जब धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करने वाली पार्टियां अपनी हार के लिए मुसलमानों को दोषी ठहरा रही हैं| इनके वोट एक जगह न पड़ने को उनकी गलती करार दे रही हैं जबकि होना तो यही चाहिए था कि लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखते हुए हारने वाले लोग अपनी हार को स्वीकार करते और विजयी होने वाली पार्टियों को बधाई पेश करके अपनी विफलता का कारण अपने ही अंदर खोजतेl ईवीएम को दोषी ठहरा कर मुसलमानों के वोटों के बटवारे का बहाना बनाकर, मुस्लिम उलेमा के अपीलों के नकारात्मक प्रभाव, मिल्ली संगठनों द्वारा साथ न दिए जाने और मुसलमानों के वोट एक ही पार्टी की झोली में न जाने का शिकवा करने के बजाय हारने वाली पार्टी और पराजित राजनीतिक दल के नेता अपना आत्मनिरीक्षण करें तो बेहतर होगा। उन्हें सोचना होगा कि भेड़िया आया, भेड़िया आया चिल्लाने वाली नीति काम क्यों नहीं आई?

उन्हें सोचना होगा कि केवल भाजपा को सत्ता में आने से रोकने की कोशिश को वे लोग चुनाव का कोई मुद्दा क्यों नहीं बना सके? अपनी सत्ता खोने वालों को खुद से ही सवाल करना चाहिए कि राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल, उलेमा और मशाईख बोर्ड और शिया आलिमों ने उनके खिलाफ वोट डालने की अपील क्यों कीं? पराजित पार्टी ने मुसलमानों के कल्याण का ख्याल रखा या अपनी पार्टी के मुस्लिम नेताओं की झोलियाँ भरीं? क्या मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों का पुनर्वास ऐसा कोई मुद्दा नहीं था जिसकी वजह से मुसलमान नाराज होकर दूसरी पार्टी को वोट दे देने पर मजबूर हुए? क्या आतंकवाद के झूठे आरोपों में जेलों में बंद मुस्लिम युवकों की रिहाई का वादा यूपी की हारी हुई पार्टी ने पूरा किया था? क्या समाजवादी पार्टी ने कितने ही ऐसे मुस्लिम युवकों को जेल में नहीं डाला जिन्होंने वक्फ बोर्ड में चल रही अनियमितताओं के खिलाफ आवाज बुलंद करने का साहस किया था? क्या निर्दोष मुस्लिम नौजवानों पर केवल इसलिए गुंडा अधिनियम नहीं लगाया गया कि वह विराम गबन के विरुद्ध सामने आए थे और अगर हाईकोर्ट गुंडा अधिनियम समाप्त नहीं करता तो क्या उनके युवाओं का जीवन बर्बाद नहीं होता? क्या समाजवादी पार्टी के नेताओं ने अहंकार और अभिमान के मामले में राज्य के पूर्व नवाबों और रजवाड़ों को पीछे नहीं छोड़ दिया था? क्या मुसलमानों को इस बात पर नाराज होने का अधिकार नहीं था कि कितनी ही पूजा स्थलों को वक्फ़खोर निगल गए मगर सीबीसीआईडी की रिपोर्ट के बावजूद वक्फ बोर्ड माफिया का कोई व्यक्ति इसलिए गिरफ्तार नहीं हुआ कि वे समाजवादियों के लिंक में था?

क्या समाजवादी पार्टी मंच से विभिन्न उलेमा की शान में गुस्ताखियाँ नहीं की गईं? क्या कांग्रेस के कार्यकाल में बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाने और बाबरी मस्जिद के विध्वंस को केंद्र सरकार के चुपचाप देखते रहने के अपराध को इसलिए मुसलमान माफ कर देते हैं कि उसने समाजवादियों से समझौता कर लिया है?क्या मुसलमानों की नाराजगी को समाजवादी पार्टी के नेताओं ने अपने अहंकार के कारण देखने में कोताही नहीं की? क्या जिस पार्टी की नीतियों से मुसलमान संतुष्ट नहीं थे उसकी गोद भराई इसलिए कर देते कि ऐसी पार्टी आ जाएगी जिससे मुसलमानों को हमेशा डराया जाता रहा है? धर्मनिरपेक्ष वोटों के बंटवारे का रोना रोने वालों को चाहिए कि अपने घर में झांक कर देखें कि उन्होंने मायावती, डॉक्टर अय्यूब और ओवैसी के साथ गठबंधन करने की बात क्यों नहीं सोची? उन्होंने प्रशांत किशोर के जोड़, घटाव, गुणा और भाग को ही अंतिम अक्षर क्यों समझ लिया? दिलचस्प बात तो यह है कि अभी भी मात खाने वाले यह जानने की कोशिश नहीं कर रहे हैं कि मुसलमानों ने यह जानने के बावजूद कि उनके वोट बेकार जाएंगे, पीस पार्टी और मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन को वोट देने का फैसला क्यों किया। यह बात मालूम होने के बाद भी कि बहुजन समाज पार्टी को वोट देने से मुस्लिम वोट बट जाएगा यूपी के मुसलमानों ने समाज वादियों को एकजुट होकर वोट क्यों नहीं दिए? क्यों मुसलमानों ने इस बार किसी को जितवाने का काम नहीं किया बल्कि उन लोगों को हरवाने में भूमिका निभाई जो काम बोलता है के नाम पर मुसलमानों की ज़ुबानों को बंद करनें में लगे रहे? अब भी समय है अपना आत्मनिरीक्षण कीजिए और 2019 की तैयारी आज के आईने में कीजिये।

21 मार्च, 2017 स्रोत: इन्केलाब, नई दिल्ली

URL for Urdu article: https://newageislam.com/urdu-section/there-no-issue-accepting-defeat/d/110479

URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/there-no-issue-accepting-defeat/d/110815


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