संजय तिवारी
09/08/2014
अमेरिका द्वारा इराक पर हवाई हमले की कार्रवाई की इजाजत के साथ ही एकदम से इस कार्रवाई से भी ज्यादा एक कौम चर्चा में आ गयी। यजीद कौम। वही यजीद जो इस्लाम के अस्तित्व में आने के बाद अरब दुनिया के सिर्फ इराक देश में मौजूद है। बहुत ही थोड़ी मात्रा में। इतनी जितनी की दुनिया के मानचित्र पर कोई आंकड़ा ही न बन सके। लेकिन आइसिस के आतंकवादी इस बची खुची जनसंख्या को खत्म कर देना चाहते हैं। मोहसुल के बाद अब निवेनेह प्रांत के अराबिल शहर पर जब आइसिस के आतंकियों ने धावा बोला तो सबसे पहले उनके निशाने पर यही यजीदी आये जो बड़ी तादात में इसी कुर्द बहुल हिस्से कुर्दिस्तान में रहते हैं। आखिर कौन हैं ये यजीदी और क्यों इस्लाम के नाम पर लड़नेवाले इस कौम को नेस्तनाबूत कर देना चाहते हैं?
संजर पर्वत पर यजीदी मंदिर जहां इस वक्त करीब पचास हजार यजीदी शरणार्थी जान बचाने के लिए भटक रहे हैं
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शुरूआत इतिहास से ही करते हैं। वर्तमान में जो यजीद कौम है उसके संस्थापक शेख इदी इब्न मुसाफिर को बताया जाता है जो कि एक सूफी संत थे। लेकिन ऐसा है नहीं। दसवी सदी में यजीदी समुदाय में पधारे शेख इदी ने यजीदियत को संगठति जरूर किया लेकिन यजीद समुदाय की धारणाएं, धार्मिक मान्यताएं और कर्मकाण्ड में कोई बदलाव नहीं किया। अरब के समाज में यजीद की मौजूदगी मोहम्मद साहब ही नहीं बल्कि यहूदियों से भी बहुत पहले तब से है जब वर्तमान अरब में पारसी साम्राज्य कायम था। यजीद मानते हैं कि वे धरती पर इतने पुराने है कि इब्राहिम से पहले भी उनका अस्तित्व था। यजीद समुदाय पर कोई खास अध्ययन और काम तो उपलब्ध नहीं है लेकिन कुछ पश्चिमी रिसर्चर मानते हैं कि यजीद वर्तमान अरब में छह हजार साल से मौजूद हैं। यजीदी कौम का उदय इरान के उसी यज्द में हुआ था जो कभी पारसी लोगों का गढ़ हुआ करता था। लेकिन समय बीतने के साथ साथ यज्द से निकलकर यजीदी वर्तमान इराक के कुर्दिस्तान में कब कैसे बसते चले गये इसका कोई प्रामाणिक इतिहास भले ही हमारे सामने उपलब्ध न हो लेकिन वर्तमान समय में दुनिया में जो कुल सात लाख यजीदी लोग बचे हुए हैं उसमें करीब पांच लाख अकेले इराक के कुर्दिस्तान में रहते हैं। हो सकता है कुर्दिस्तान के आसपास बसने का एक कारण उनके अपने खलीफा शेख इदी का इन्हीं पहाड़ियों में निवास और समाधि रही हो लेकिन हकीकत यही है कि वर्तमान समय में अधिकांश यजीदी उत्तरी इराक के निनवेह प्रांत के अराबिल शहर और उसके आसपास रहते हैं। बहुत सीमित संख्या में यजीदी अमेरिका, रूस और जर्मनी में भी निवास करते हैं।
इसलिए जैसे ही उत्तरी इराक पर सलाफी इस्लाम और मुस्लिम ब्रदरहुड से प्रेरित आइसिस चरमपंथियों ने कब्जा करने के बाद इस्लामिक स्टेट स्थापित करने का प्रयास शुरू किया उन्होंने शुरूआत ही दो तीन कामों से की। पहला काम था, उत्तरी इराक के मोहसुल प्रांत में उन मस्जिदों और गिरजाघरों को गिरा देना जो कि शिया मुस्लिम या फिर ईसाई समुदाय से जुड़ी हुई थीं। इसके बाद बड़े पैमाने पर शिया और ईसाईयों के कत्लेआम के साथ साथ यजीद लोगों का भी कत्लेआम शुरू किया गया। क्योंकि यजीद लोगों की ज्यादा बड़ी आबादी निनेवेह प्रांत में बसती है इसलिए जैसे ही मोहसुल के बाद निनेवेह पर धावा हुआ इस्लामिक मुजाहिदीनों के निशाने पर सबसे पहले वही यजीदी आ गये जिनके बारे में इस्लाम में कहा जाता है कि यह यजीद ही थे जिन्होंने कर्बला का युद्ध लड़ा और हजरत मोहम्मद के नाती हजरत हुसैन को शहीद कर दिया था। लेकिन केवल इस कारण से अगर यजीदी और और मुसलमानों में दुश्मनी होती तो सबसे पहले शिया समुदाय के लोग यजीदियों का कत्ल करते लेकिन ऐसा नहीं है। कर्बला युद्ध के कारण शिया मुसलमान भी यजीद को अपना दुश्मन समझता है, क्योंकि यह युद्ध एक हजरत हुसैन ने यजीद फौज के साथ ही लड़ा था। यजीद शिया बहुल इराक में कुर्द बहुल कुर्दिस्तान में रहते हैं। कुर्द सद्दाम हुसैन के समय में भी इन यजीदियों को निशाना बनाया गया था और आश्चर्य यह है कि आज जो सुन्नी समुदाय के कथित मुजाहिद शिया समुदाय का कत्लेआम कर रहे हैं वे यदीजियों को भी समाप्त करने की कोशिश कर रहे हैं। शिया और सुन्नी दोनों ही इन्हें अपना दुश्मन समझते हैं।
इस्लाम में यजीद को शैतान का उपासक कहा जाता है शायद इसीलिए समय समय पर इस्लामिक जेहादियों द्वारा उनका कत्लेआम किया जाता रहा है। एक बार फिर इराक में यजीद कौम पर खतरा मंडरा रहा है। अगर यजीद लोगों का कत्लेआम नहीं रुकता है तो यह सिर्फ एक धर्म या कौम का नुकसान नहीं बल्कि समूची इंसानियत का नुकसान होगा क्योंकि अतीत की सभ्यताओं से वर्तमान के बीच यजीद मानव श्रृंखला की बहुत महत्वपूर्ण कड़ी हैं जिनकी हर कीमत पर रक्षा होनी चाहिए।दुश्मनी का कारण ऊपर से देखने में बहुत छोटा लेकिन अंदर से बहुत गहरा है। यजीदी अपनी जिस पूजा परंपरा में विश्वास करते हैं उसके मूल में जिस देवदूत की कल्पना है वह 'मलक ताउस' है। मलक ताउस एक मोर है जिसके बारे में यजीदी यकीन करते हैं कि यह पक्षी देवदूत है जो कि संसार में उनका रक्षक है। शेख इदी इब्न मुसाफिर यजीदियत के रहनुमा इसीलिए हैं क्योंकि यजीदी यकीन करते हैं कि वे मलक ताउस का वरदान थे। लेकिन अपनी इसी मान्यता के कारण उन्हें इस्लाम और ईसाइयत में शैतान का उपासक कहा जाता है। यह मलक ताउस (मोर) ही है जिसके कारण मुसलमान और ईसाई दोनों ही उन्हें अपना दुश्मन और शैतान का उपासक मानते हैं। इस्लाम में शिया हों कि सुन्नी दोनों ही यजीद को अपना दुश्मन समझते हैं। यह यजीद ही थे जो कर्बला के युद्ध के गुनहगार हैं और इमाम हसन को शहीद करने का गुनाह किया। दूसरा वे जिस मलक ताउस (मोर) की पूजा करते हैं वह 'मलक' ही इस्लाम और ईसाइयत दोनों में शैतान के रूप में चिन्हित है। ईसाईयत ने तो यजीद लोगों को मिटाने का ऐसा कोई प्रयास कभी नहीं किया लेकिन यजीद हमेशा ही इस्लाम के निशाने पर रहे हैं। कर्बला के युद्ध के बाद अब तक 72 बार यजीदियों का नरसंहार करवाया जा चुका है। सद्दाम हुसैन के समय भी यजीदियों का दमन किया गया था और अब जबकि इस्लामिक स्टेट के नाम पर आइसिस आतंकवादी इराक में कत्लेआम कर रहे हैं तब उनके निशाने पर वही यजीद आ गये हैं जो अपनी जान बचाने के लिए संजर की पहाड़ियों पर शरण लिये हुए हैं। यजीद लोगों को डर है कि जिस तरह से आइसिस के आतंकवादियों ने उन्हें निशाने पर ले रखा है उससे यह उनके इतिहास का तिहत्तरवां कल्तेआम न साबित हो।
यजीद कौम के बारे में जितनी जानकारी उपलब्ध है उससे उन्हें धर्म कहने की बजाय एक विश्वास परंपरा का वाहक कहा जा जा सकता है। वे जिन मूल्यों में विश्वास करते हैं वह प्राचीन ताम्र युग की मान्यताओं का दर्शन होता है। यजीदियत पर पारसी समुदाय का असर तो दिखता ही है लेकिन वे इण्डो इराननियन सभ्यता का हिस्सा भी नजर आते हैं। उनके मंदिर हिन्दू शैली के होते हैं और वे भी हिन्दुओं की तरह पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं। हालांकि आज उनकी मान्यताओं और जीवनशैली में इस्लाम और ईसाईयत के हिस्से भी शामिल हैं। अपनी इन्हीं विविधताओं के कारण ही वे बहुत अनोखी कौम के रूप में विकसित हो गये हैं। यजीद बहुत शुद्धतावादी होते हैं और खान पान तथा शादी विवाह के मसले में अपनी शुद्धता से कोई समझौता नहीं करते। अगर उनके कौम की लड़की या लड़का किसी बाहर वाले कौम के साथ रिश्ता बना ले तो उसकी हत्या कर देने तक की घटनाएं सामने आती रही हैं। जर्मनी में बीते कुछ साल पहले इसी तरह का मामला सामने आया था जब एक यजदी परिवार ने अपनी लड़की की इसलिए हत्या कर दी थी कि उसने एक गैर यजीदी से मोहब्बत कर लिया था। इसी तरह यजीदी लोगों ने इराक की फौज में भर्ती होना इसलिए बंद कर दिया क्योंकि उन्हें गैर यजीदियों के साथ रहना पड़ता था और बहुत बार उन्हीं के कप में पानी भी पीना पड़ता था और उन्हीं के साथ सोना पड़ता था। यजीदियों को यह अपनी शुद्धता में खलल नजर आया और उन्होंंने सेना में भर्ती होना बंद कर दिया। जाहिर है, यजीदी दुनिया की कुछ उन बिरली इंसानी प्रजाति में शुमार हैं जो अपनी रक्त शुद्धता और विशिष्ट जीवन शैली के साथ अतीत की एक धरोहर अपने साथ लिए वर्तमान में मौजूद हैं। कुछ शोधकर्ताओं ने पाया है कि अपने इसी शुद्धतावाद के कारण उनकी रेस बहुत बिरली इंसानी प्रजाति में शामिल हो चुकी है। लेकिन आज जिस तरह से उन पर कट्टर इस्लामिक चरमपंथियों ने धावा बोला है उससे वह काबिल कौम जो कमोबेश छह हजार साल से अपनी शुद्धता के साथ धरती पर मौजूद है, के खत्म होने का खतरा मंडराने लगा है।
आइसिस के चरमपंथी एक तरफ तो यजीद पुरुषों और बच्चों को मार रहे हैं लेकिन उनकी महिलाओं (35 साल की उम्र तक) को जीवित पकड़ रहे हैं। अब तक इस तरह की अनेख खबरें आ चुकी हैं कि कथित मुजाहिद इन लड़कियों और महिलाओं से जबरन निकाह करने की कोशिश कर रहे हैं। जिस तरह से यजीद इतिहास रहा है उससे उम्मीद कम है कि इस्लामिक लड़ाके उनकी लड़कियों को बंधक बनाने में सफल हो पायेंगे। वे जान दे देंगे लेकिन शायद अपनी शुद्धता, शरीर और आत्मा के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे। यह तो उनकी अपनी कौम का संघर्ष होगा लेकिन वक्त है कि अमेरिकी कार्रवाई ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से इस कौम को बचाने की आवाज उठे जो धार्मिक विश्वास के नाम पर न सही लेकिन एक विशिष्ट मानवीय कड़ी के रूप में समूची इंसानियत के लिए एक धरोहर से कम नहीं है। यजीदियों को कठमुल्लापने के नाम पर कुर्बान हो जाने देना निरा इंसानी बेवकूफी के अलावा कुछ नहीं होगी।
स्रोत: http://visfot.com/index.php/current-affairs/11315-khatre-me-yazidiyat.html
URL: https://newageislam.com/hindi-section/massacre-humanity-name-yazidiat-/d/98563