सादिया देहलवी
09 जुलाई, 2013
(अंग्रेजी से अनुवाद- न्यु एज इस्लाम)
रमज़ान का महीना मुसलमानों के घरों में एक सम्मानित अतिथि की तरह है जो कि अल्लाह की तरफ से एक तोहफा है। रमज़ान खुदा की तरफ वापस और दुनिया के मामलों से दूर होने, और "अल्लाहो अकबर" या "खुद बहुत बड़ा है" कहने का एक शानदार मौका है। रमज़ान विचार और ध्यान का महीना है। एक ऐसा महीना जब हमें तौबा (पश्चाताप) के लिए विशेष अवसर प्रदान करते हुए, खुदा अपनी उदार के साथ रहमत के दरवाज़े खोल देता है। इस्लाम में मानव जाति की कहानी आदम अलैहिस्सलाम की कहानी से शुरू होती है जो हमें गुनाहों की सम्भावना और तौबा के ज़रिए खुदा की तरफ वापस होने की सम्भावना को पेश करती है। माफी के बाद खुदा ने आदम अलैहिस्सलाम को अपना रसूल नियुक्त किया। ज़मीन पर आदम अलैहिस्सलाम का आना इस बात की निशानी है कि खुदा की रहमत ने उसके क्रोध पर प्रभुत्व हासिल कर लिया।
इस पवित्र महीने में ज़रूरी है कि मुसलमान दुश्मनी, गुस्सा और बुराई से छुटकारा हासिल करते हुए लगातार खुदा को याद करते रहें। इस्लामी विद्वानों का कहना है कि इंसान को बात करने समय बहुत सावधान रहना चाहिए, अपनी कमियों पर नज़र रखनी चाहिए और उन्हें बेहतर बनाने के तरीके तलाश करते रहना चाहिए।
रमज़ान इस्लामी सिद्धांतों के दो आधारों सब्र (धैर्य) और शुक्र (धन्यवाद) की पुष्टि करता है। रोज़ा दिन में सब्र करना और खुदा की सखावत (उदारता) और रहमतली (दया) का शुक्रिया अदा करने में रात गुज़ारना है। क़ुरान ये कहता है कि रात के ज़रिए दिन का जाना खुदा की एक निशानी है। रोज़ा हमें ब्रह्मांड की असाधारण प्रकृति पर विचार करने को प्रेरित करता है और खुदा के असीमित लक्षणों द्वारा हमें खाकसार बनाता है।
क़ुरान सब्र की व्याख्या एक ऐसे रास्ते के रूप में करता है जो लोगों को अंधेरे से रौशनी की ओर ले जाता है। क़ुरानी सिद्धांत की रौशनी वास्तविक है जबकि सायें सिर्फ रौशनी की वजह से मौजूद हैं। रोज़ा के ज़रिए से एक महान आध्यात्मिक जागरूकता साधक को उस "एक प्रकाश" के एक साये के रूप में पैदा की गयी दुनिया को देखने के क़ाबिल बनाती है। धैर्य अपने ऊपर दूसरे व्यक्ति को प्राथमिकता देने की मांग करता है, और इन विशेषताओं के साथ वही लोग हैं जिन्हें खुदा के पास एक उच्च आध्यात्मिक दर्जा हासिल है। नबी मोहम्मद (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने फरमाया कि "सब्र (धैर्य) आधा ईमान (विश्वास) है।"
रमज़ान ज़बरदस्त इबादत, क़ुरान की तिलावत और सद्क़ा (दान) और दूसरे अच्छे कार्मों में संलग्न होकर अपने व्यवहार को सुधारने का एक मौका है। ये दोस्तों और परिवार के साथ आपसी सामंजस्य स्थापित करने का एक मौका है। इस्लाम की पवित्र किताब ये कहती है कि जो अपने प्यारें लोगों से सम्बंध तोड़ लेते हैं वो उस वक्त तक जन्नत में दाखिल नहीं होंगे जब तक कि उनके साथ वो अमन बहाल न कर लें। इफ्तार को एक नॉंमत के तौर पर प्रोत्साहित किया गया है ताकि परिवार और दोस्त एक दूसरे के लिए समय निकाल सकें।
सादिया देहलवी दिल्ली की एक स्तंभकार हैं और Sufism: The Heart of Islam की लेखिका हैं।
स्रोत: http://www.asianage.com/mystic-mantra/get-closer-god-578
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