सादिया देहलवी
3 नवंबर, 2016
क़यामत के दिन का जिक्र करते हुए कुरान कहता है, "अपनी किताब (आमाल) पढ़ ले, आज तु अपना हिसाब जांचने के लिए खुद ही काफी है।" जब तक हम जीवित हैं हम अल्लाह की नेअमत से समृद्ध होते हैं और इससे लाभान्वित होते हैं लेकिन अक्सर हम यह भूल जाते हैं कि जो हमें प्राप्त हो रहा है वह वास्तव में केवल हमारे लिए नहीं है। हमारी स्थिति एक अमानतदार की है जिसकी जिम्मेदारी प्राप्त खुशी को बांटना है क्योंकि अंत में प्राप्तकर्ता को सभी आनंद का हिसाब देना होगा।
ऐसे स्वार्थी और कंजूस जो गरीब और पिछड़े लोगों के साथ सहानुभूति व्यक्त नहीं करते उनके लिए यह खतरा बरकरार है कि उन्हें खुदा की असीम दया और करुणा की छाया से वंचित कर दिया जाए।
उंद्लिस में 12 वीं सदी के एक महान सूफी और प्रतिष्ठित विद्वान शेख इब्ने अल-अरबी ने एक बार कहा, "किसी भी इंसान पर अल्लाह की इससे बड़ी कोई नेअमत नहीं हो सकती कि अल्लाह ने उसे किसी वरदान से सम्मानित किया हो और वह उस नेअमत को खुदा की मखलूक में बांटे और लोगों के साथ प्यार और करुणा की बातें करे। " उनके अनुसार नैतिकता का सार सहानुभूति है। अल्लाह पाक के साथ एक उच्च रब्त का उस्तुवार करने पर सलाह देते हुए वह लिखते हैं कि कैसे हमें प्रतिदिन न केवल अपने कार्यों बल्कि भावनाओं और विचारों पर भी विचार करने की जरूरत है।
वह कहते हैं, "अल्लाह पाक तुम्हारे दिल की आंख खोले ताकि तुम यह देख सको और यह याद कर सको कि तुमने क्या पालन किया है और किया कहा है। याद रहे कि तुम्हें क़यामत के दिन उसका हिसाब देना होगा।" उद्धार का एक ही रास्ता सभी ऋण का भुगतान करना है। हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि "अपना हिसाब करो इससे पहले कि तुम्हारा हिसाब किया जाए। अपने पापों को तौलो इससे पहले कि उन्हें तुम्हारे लिए तौला जाए। जब तक तुम्हारे पास समय है अपने अच्छे कर्मों से अपनी अपराधों का नाप कर लो। "
तीन चीजें हैं जो अक्सर हमें अपना आत्मनिरीक्षण करने से रोकती हैं। पहली चीज़ हमारा अपनी आत्मा की हालत से अनजान और लापरवाह होना है। दूसरी वस्तु वे कल्पनाशील और काल्पनिक खुशियां हैं जो इंसान के अंदर अना छल से पैदा होती है। और तीसरी वस्तु मनुष्य की अपनी आदतों का गुलाम बना रहना है।
शैख इब्ने अरबी ने अपना पूरा जीवन ध्यान और विचार में बिताया। वह अपने एक ऐसे शिक्षक के बारे में लिखते हैं कि कागज के एक टुकड़े पर वह सब कुछ लिख लेते जो वह सारा दिन करते, कहते और सोचते। और रात में वह अपने दिन के सभी शब्दों और कर्मों का हिसाब लेते। अगर उनहों ने इस दिन कोई गलत काम किया होता तो वह इस पर अफसोस करते और अगर कोई अच्छा काम किया होता तो उस पर खुदा का शुक्र करते।
शैख इब्ने अल-अरबी का मानना था कि सभी मनुष्यों के साथ सम्मान और दया का प्रदर्शन किया जाए और उनके साथ नेक नीयती के साथ मामले अंजाम दिए जाएं। उनका कहना है कि, "सभी मनुष्यों के साथ समान व्यवहार करो चाहे वह राजा हो या भिखारी, छोटा हो या बड़ा, यह जान लो कि सभी मानव जाति एक शरीर की तरह है और लोग इसके सदस्य हैं। एक शरीर अपने जुज़ईयात के बिना पूरा नहीं। विद्वानों का अधिकार सम्मान है और जाहिलों का अधिकार सही सलाह है, लापरवाह व्यक्ति का अधिकार है कि उसे जागरूक किया जाए और बच्चों का अधिकार है कि उनके साथ सहानुभूति और प्यार का मामला हो। अपने परिवार और दोस्तों के साथ अपने कर्मचारियों के साथ, अपने पालतू जानवरों के साथ और अपने बगीचे के पेड़ पौधों के साथ अच्छा व्यवहार करो। उन्हें खुदा ने तुम्हारी अमानत में रखा है और तुम अल्लाह पाक की अमान में हो। हमेशा हर इंसान के प्रति प्यार, उदारता, सहानुभूति, अनुग्रह और सुरक्षा का प्रदर्शन करो। "
स्रोत:
asianage.com/mystic-mantra/god-s-mercy-compassion-599#sthash.1OpIVWQK.dpuf
URL for English article: https://newageislam.com/islam-spiritualism/god’s-mercy-compassion/d/108994
URL for this article: https://newageislam.com/urdu-section/god’s-mercy-compassion-/d/109014
URL: https://newageislam.com/hindi-section/god’s-mercy-compassion-/d/110363