एस. अरशद, न्यु एज इस्लाम डाट काम (अंग्रेज़ी से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाट काम)
कुरान के मुताबिक संतोष एक सच्चे मुसलमान की विशेषता है। धैर्य, खुदा का आभारी (शुक्रगुज़ार) होना, धर्मपरायणता (तक़्वा) संतोष का हिस्सा हैं। एक सच्चा मुसलमान सभी परिस्थितियों में खुदा का शुक्रगुज़ार होता है। खुदा ने जो भी उसे दिया है उस पर वो संतोष करता है और अधिक के लिए लालच नहीं रखता है और न तो हद से ज़्यादा के लिए आरज़ू (इच्छा) रखता है। खुदा जिसे चाहता है बेशुमार देता है और जिसे चाहता है ज़रूरत के मुताबिक ही देता है। वो हम में से कुछ बंदों को भूख, दरिद्रता (गरीबी), कठिनाई, भय और कारोबार में नुक्सान वगैरह की हालत में रख कर परीक्षा लेता है। एक सच्चा मुसलमान संतोष के गुण के कारण हर एक इम्तेहान में पास हो जाता है।
‘उसके बाद जो खुदा ने तुम्हें हलाल रोज़ी दिया है उसे खाओ, और अल्लाह की नेमतों का शुक्र करो, अगर उसकी इबादत करते हो।’ (16:114)
लालच हर आदमी के दिल में मौजूद है, और दूसरों के मालो दौलत, खुशहाली और भौतिक संसाधन देख कर आरज़ू करता है। ये आरज़ू अक्सर गलत रूख पर ले जाती है और वो दुनिया की सुविधाओं को हासिल करने के लिए सभी तरकीबों को इस्तेमाल करता है। क़ुरान ऐसे बर्ताव के खिलाफ सभी इंसानों को चेतावनी देता हैः
‘और जिस चीज़ में खुदा ने तुम में से किसी को किसी पर फज़ीलत दी है, उसकी हवस मत करो।’ (4:32)
क़ुरान फरमाता है कि अगर किसी को खुदा ने मालो दौलत, खुशहाली और भौतिक संसाधन प्रदान किये हैं, तो इसमें खुदा की हिकमत है। जिस तरह ग़रीबी और भूखमरी की हालत में रख कर खुदा इम्तेहान लेता है, उसी तरह खुदा लोगों को मालो दौलत और भौतिक संसाधन देकर भी परीक्षा लेता है। इसलिए किसी से मुकाबले में दुनिया की सहूलतों और दौलत की ख्वाहिश रखना हिमाकत है।
खुदा ने सबकी किस्मत पहले से ही मुकर्रर (निर्धारित) कर दी है। इसलिए अपनी क़िस्मत की शिकायत करना खुदा की नाफरमानी और नाशुक्री करने के बराबर है। और खुदा की नाशुक्री एक संगीन जुर्म है। खुदा ने कई देशों को नाशुक्री के कारण ही तबाह कर दिया। कुरान फरमाता हैः
‘हमने तुम्हें ज़मीन दी और तुम्हारी किस्मत भी उसमें तय कर दी और तुम शुक्र अदा करते रहो।’
इसलिए संतोष इंसान को धैर्य और धर्मपरायणता (तक़्वा) सिखाता है। खुदा के ऐहसान और ईनाम कुबूल करने के साथ ही दिल को इत्मीनान और अधायात्मिक सुकून हासिल होता है। एक शुक्रगुज़ार बंदा न तो दुनियावी मिलकियत में गैर ज़रूरी फख्र करता है और न ही जो उसके पास नहीं है उस पर मायूसी का इज़हार करता है।
‘कोई मुसीबत मुल्क पर और खुद तुम पर नहीं पड़ती मगर पेशतर इसके कि हम इसको पैदा करें एक किताब में (लिखा हुआ) है, (और) ये (काम) खुदा को आसान है। ताकि जो (मतलब) तुमसे फौत हो गया हो उसका ग़म न खाया करो और जो तुमको उसने दिया हो उस पर इतराया न करो। और खुदा किसी इतराने और शेखी बघारने वाले को दोस्त नहीं रखता है।’ (57:22-23)
इस तरह कुरान चार मौकों पर संतोष पर ज़ोर देता है। किसी के मालो दौलत और खुशहाली पर हसद करने से कुरान मना फरमाता है और साथ ही ये हुक्म भी देता है कि औऱ ज़्यादा की हवस नहीं रखनी चाहिए। क़ुरान फरमाता हैः
‘और तुम अगर सब्र और परहेज़गारी करते रहोगे तो ये बहुत हिम्मत के काम है’ (3:186)
लिहाज़ा कुरान मुसलमानों को संतोष की शिक्षा देता है, इसलिए कि ये इंसान को खुदा का शुक्रगुज़ार बनाता है और ये लोभ और लालच खत्म करने में मदद करता है, क्योंकि लालच मालो दौलत और भौतिक संसाधन हासिल करने के लिए इंसान को अच्छे या बुरे सभी तरीकों को इस्तेमाल करने को मजबूर करता है, जबकि संतोष इंसान को परहेज़गार और दूरअंदेश बनाता है।
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