सुहैल अरशद, न्यू एज इस्लाम
कुरआन के अनुसार, शब्द मुस्लिम का इतलाक केवल एतेहासिक इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए प्रयोग नहीं होताl इसके विपरीत, इस शब्द का प्रयोग आदम अलैहिस्सलाम से लेकर आखरी नबी हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तक के अनुयायियों के लिए होता हैl शब्द मुस्लिम इस्लाम से मुशतक़ है जिसका अर्थ है आत्मसमर्पण, आज्ञाकारिता या अनुपालन (इस्लाम का शाब्दिक अर्थ अमन नहीं है जिसा कि कुछ लोग कहते हैं)l हर वह व्यक्ति जो अल्लाह के आगे आत्मसमर्पण करता है, उसकी वहदत पर ईमान लाता है और उसे ही सर्वशक्तिमान जानता है मुस्लिम हैl कुरआन विभिन्न नबियों के जीवन से घटनाएं बयान करता है जहां नबियों और उनके अनुयायी खुद को मुस्लिम कहते हैंl (कुरआन में उनके लिए ‘मुस्लिम’ मुस्लिमीन और मुस्लिमून के शब्द लाए गए हैं)l यहूदी और ईसाई जैसे शब्द को कुरआन में स्वीकृति नहीं दी गईl यह शब्द एतेहासिक पृष्ठभूमि में तैयार किये हैं जिनसे किसी ख़ास धार्मिक फिरके को प्रतिष्ठित किया जाता हैl हम कुरआन से कुछ आयतें नक़ल करते हैंl
१) खुदा ने अपने बंदों का नाम कुरआन में और इससे पहले नाज़िल किये गए सहिफों में मुस्लिम रखा है
“ताकि तुम कामयाब हो और जो हक़ जिहाद करने का है खुदा की राह में जिहाद करो उसी नें तुमको बरगुज़ीदा किया और उमूरे दीन में तुम पर किसी तरह की सख्ती नहीं की तुम्हारे बाप इबराहीम ने मजहब को (तुम्हारा मज़हब बना दिया उसी (खुदा) ने तुम्हारा पहले ही से मुसलमान (फरमाबरदार बन्दे) नाम रखा और कुरान में भी (तो जिहाद करो) ताकि रसूल तुम्हारे मुक़ाबले में गवाह बने और तुम पाबन्दी से नामज़ पढ़ा करो और ज़कात देते रहो और खुदा ही (के एहकाम) को मज़बूत पकड़ो वही तुम्हारा सरपरस्त है तो क्या अच्छा सरपरस्त है और क्या अच्छा मददगार हैl” (अल हज: ७८)
२) हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम मुसलमान थे
हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम को यहूदी और नसरानी अपने फिरके का इमाम बताते हैं जबकि कुरआन कहता है कि वह ना तो यहूदी थे औए ना ही नसरानीl इबराहीम की की औलादें और उनकी उम्मत में से जो लोग खुदा की वहदत पर ईमान लाए उनहें मुसलमान कहा गयाl
“और इसी तरीके क़ी इबराहीम ने अपनी औलाद से वसीयत की और याकूब ने (भी) कि ऐ फरज़न्दों खुदा ने तुम्हारे वास्ते इस दीन (इस्लाम) को पसन्द फरमाया है पस तुम हरगिज़ न मरना मगर मुसलमान ही होकरl” (अल बकरा: १३२)
“इबराहीम न तो यहूदी थे और न नसरानी बल्कि निरे खरे हक़ पर थे (और) फ़रमाबरदार (बन्दे) थे और मुशरिकों से भी न थेl” (आल ए इमरान: ६७)
३) हज़रत इबराहीम, हज़रत इस्माइल, हज़रत इसहाक और हज़रत याकूब और उनकी औलादें यहूदी और ईसाई नहीं थीं
“क्या तुम कहते हो कि इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौदें याकूब सब के सब यहूदी या नसरानी थे (ऐ रसूल उनसे) पूछो तो कि तुम ज्यादा वाक़िफ़ हो या खुदा और उससे बढ़कर कौन ज़ालिम होगा जिसके पास खुदा की तरफ से गवाही (मौजूद) हो (कि वह यहूदी न थे) और फिर वह छिपाए और जो कुछ तुम करते हो खुदा उससे बेख़बर नहीं”l (अल बकरा: १४०)
४) हज़रत यूसुफ मुसलमान थे
हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने अल्लाह से दुआ की कि उन्हें एक मुसलमान की मौत अता करे क्योंकि वह सारी ज़िन्दगी एक मुसलमान थेl
“(उसके बाद यूसुफ ने दुआ की ऐ परवरदिगार तूने मुझे मुल्क भी अता फरमाया और मुझे ख्वाब की बातों की ताबीर भी सिखाई ऐ आसमान और ज़मीन के पैदा करने वाले तू ही मेरा मालिक सरपरस्त है दुनिया में भी और आख़िरत में भी तू मुझे (दुनिया से) मुसलमान उठाये और मुझे नेको कारों में शामिल फरमाl” (यूसुफ:१०१)
५) हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने सबा की मलका बिलकीस को मुस्लिम होने की दावत दीl
“(और मज़मून) यह है कि मुझ से सरकशी न करो और मेरे सामने मुस्लिम बन कर हाज़िर होl” (अन नमल:३१)
६) मलका ए सबा ने कहा हम मुस्लिम हैं
जब मलका ए सबा हज़रत सुलेमान के महल आई तो कहा कि हमें पहले ही हज़रत सुलेमान की अज़मत का इल्म हो गया था इसलिए मैं मुसलमान हो गई हूँl
“(चुनान्चे ऐसा ही किया गया) फिर जब बिलक़ीस (सुलेमान के पास) आयी तो पूछा गया कि तुम्हारा तख्त भी ऐसा ही है वह बोली गोया ये वही है (फिर कहने लगी) हमको तो उससे पहले ही (आपकी नुबूवत) मालूम हो गयी थी और हम तो आपके फ़रमाबरदार थे ही”l (अन नमल: ४२)
७) सबा की मलका कहती है असलम्तु
हज़रत सुलेमान के दरबार में आकर जब वह इल्म की करिश्मा साज़ी देखती है तो खुदा की ज़ात पर ईमान ले आती है
“फिर उससे कहा गया कि आप अब महल मे चलिए तो जब उसने महल (में शीशे के फर्श) को देखा तो उसको गहरा पानी समझी (और गुज़रने के लिए इस तरह अपने पाएचे उठा लिए कि) अपनी दोनों पिन्डलियाँ खोल दी सुलेमान ने कहा (तुम डरो नहीं) ये (पानी नहीं है) महल है जो शीशे से मढ़ा हुआ है (उस वक्त तम्बीह हुई और) अर्ज़ की परवरदिगार मैने (आफताब को पूजा कर) यक़ीनन अपने ऊपर ज़ुल्म किया”l अन नमल:४४)
८) हज़रत लूत अलैहिस्सलाम मुस्लिम थे
जब फरिश्ते खुदा के हुक्म से हज़रत लूत अलैहिस्सलाम की कौम को तबाह करने आए तो उनहोंने देखा कि पूरे शहर में केवल हज़रत लूत अलैहिस्सलाम का घर ही मुसलमानों का घर थाl
“और वहाँ तो हमने एक के सिवा मुसलमानों का कोई घर पाया भी नहीं”l (अज़ ज़ारियात:३६)
९) हज़रत मुसा अलैहिस्सलाम और उनकी कौम मुसलमान थी, यहूदी नहीं थी
“और मूसा ने कहा ऐ मेरी क़ौम अगर तुम (सच्चे दिल से) ख़ुदा पर ईमान ला चुके तो अगर तुम मुस्लिम हो तो बस उसी पर भरोसा करो”l (यूनुस:८४)
१०) हज़रत नूह अलैहिस्सलाम भी मुस्लिम थे
हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने अपनी कौम से फरमाया:
“फिर भी अगर तुम ने (मेरी नसीहत से) मुँह मोड़ा तो मैने तुम से कुछ मज़दूरी तो न माँगी थी-मेरी मज़दूरी तो सिर्फ ख़ुदा ही पर है और (उसी की तरफ से) मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं उसके फरमाबरदार बन्दों में से हो जाऊँl” (यूनुस:७२)
११) हज़रत याकूब के बेटों ने कहा ‘हम मुस्लिम हैं’
कुरआन हज़रत याकूब और उनके बेटों के बीच आयोजित बात चीत बयान करता है जिसके बीच वह खाते हैं कि हम सब मुस्लिम हैंl (यहूदी नहीं)
“(ऐ यहूद) क्या तुम उस वक्त मौजूद थे जब याकूब के सर पर मौत आ खड़ी हुई उस वक्त उन्होंने अपने बेटों से कहा कि मेरे बाद किसी की इबादत करोगे कहने लगे हम आप के माबूद और आप के बाप दादाओं इबराहीम व इस्माइल व इसहाक़ के माबूद व यकता खुदा की इबादत करेंगे और हम उसके फरमाबरदार (मुस्लिमून) हैं”l (अल बकरा:१३३)
१२)हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम की औलादें (बनी इसराइल) यहूदी या ईसाई नहीं थीं
“कुरआन यहूदियों के इस दावे को झूठा करार देता है कि हज़रत याकूब और उनकी औलादें यहूदी या ईसाई थींl
“क्या तुम कहते हो कि इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौदें याकूब सब के सब यहूदी या नसरानी थे (ऐ रसूल उनसे) पूछो तो कि तुम ज्यादा वाक़िफ़ हो या खुदा और उससे बढ़कर कौन ज़ालिम होगा जिसके पास खुदा की तरफ से गवाही (मौजूद) हो (कि वह यहूदी न थे) और फिर वह छिपाए और जो कुछ तुम करते हो खुदा उससे बेख़बर नहीं”l (अल बकरा:१४०)
१३) हजरत ईसा अलैहिस्सलाम के ह्वारियों ने कहा ‘हम मुस्लिम हैं’
जब हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को अपने ह्वारियों के ईमान पर शक हुआ तो उन्होंने उनसे पूछा कि अल्लाह की राह में मेरे मददगार कौन लोग हैं तो उन्होंने जवाब दिया कि हम अल्लाह के मददगार हैं और हम मुस्लिम हैंl
“पस उसकी इबादत करो (क्योंकि) यही नजात का सीधा रास्ता है फिर जब ईसा ने (इतनी बातों के बाद भी) उनका कुफ़्र (पर अड़े रहना) देखा तो (आख़िर) कहने लगे कौन ऐसा है जो ख़ुदा की तरफ़ होकर मेरा मददगार बने (ये सुनकर) हवारियों ने कहा हम ख़ुदा के तरफ़दार हैं और हम ख़ुदा पर ईमान लाए”l (आल ए इमरान: ५२)
१४) फिरऔन के जादूगरों ने कहा “हम मुसलमान हुए”
जब फिरऔन के जादूगरों ने हज़रत मुसा के मोजज़े देखे तो अल्लाह की ज़ात पर ईमान ले आएl फिरऔन जादूगरों पर गुस्सा हो गया और उन्हें सख्त सज़ा की धमकी दीl इस पर जादूगरों ने कहा कि उन्हें खुदा ए पाक की निशानियाँ पहुँच चुकी हैं और अब कोई धमकी या कोई ताकत खुदा के रस्ते से उन्हें हटा नहीं सकतीl
“तू हमसे उसके सिवा और काहे की अदावत रखता है कि जब हमारे पास ख़ुदा की निशानियाँ आयी तो हम उन पर ईमान लाए (और अब तो हमारी ये दुआ है कि) ऐ हमारे परवरदिगार हम पर सब्र (का मेंह बरसा) और हमें मुस्लिम ही मारना”l (अल आराफ़:१२६)
१५) अंततः फिरऔन भी कहने पर मजबूर हुआ कि “मैं मुस्लिम होता हूँ”
कुरआन में खुदा कहता है कि हम ने बनी इसराइल को अपनी हिफाज़त में समुंद्र पार करा दिया मगर फिरऔन और उसकी फ़ौज डूब गईl डूबने से पहले उसने भी कहा मैं बनी इसराइल के खुदा पर ईमान लाता हूँl
“और हमने बनी इसराइल को दरिया के उस पार कर दिया फिर फिरऔन और उसके लश्कर ने सरकशी की और शरारत से उनका पीछा किया-यहाँ तक कि जब वह डूबने लगा तो कहने लगा कि जिस ख़ुदा पर बनी इसराइल ईमान लाए हैं मै भी उस पर ईमान लाता हूँ उससे सिवा कोई माबूद नहीं और मैं फरमाबरदार बन्दों से हूँ”l (यूनुस:९०)
१६) हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अनुयायी भी मुसलमान हैं
“(और ऐ मुसलमानों तुम ये) कहो कि हम तो खुदा पर ईमान लाए हैं और उस पर जो हम पर नाज़िल किया गया (कुरान) और जो सहीफ़े इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकूब और औलादे याकूब पर नाज़िल हुए थे (उन पर) और जो किताब मूसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पैग़म्बरों को उनके परवरदिगार की तरफ से उन्हें दिया गया (उस पर) हम तो उनमें से किसी (एक) में भी तफरीक़ नहीं करते और हम तो खुदा ही के फरमाबरदार हैं”l (अल बकरा: १३६)
१७) हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दीन ए इब्राहीमी के ही अनुयायी थे
“और वह आख़िरत में भी यक़ीनन नेको कारों से होगें ऐ रसूल फिर तुम्हारे पास वही भेजी कि इबराहीम के तरीक़े की पैरवी करो जो बातिल से कतरा के चलते थे और मुशरेकीन से नहीं थे”l (अन नहल: १२३)
उपर्युक्त आयतों से यह स्पष्ट हो जाता है कि दीन केवल एक है और वह है इस्लामl सभी नबी इस्लाम के पैगम्बर थे और सभी नबी और उनके अनुयायी मुस्लिम थेl वह खुद यह दावा करते थे कि वह मुस्लिम हैं जैसा कि कुरआन ही के घटनाओं से स्पष्ट हैl खुदा कुरआन में यह भी कहता है कि दीन केवल एक है और बाद में लोगों ने इसमें फिरके और कौमियतें तखलीक कर लीं और अपने फिरकों को दोसरों से अलग करने के लिए अलग अलग नाम रख लिए जिसका वह समर्थन नहीं करता या जिसकी उसने सैंड नहीं उतारीl कुरआन यहूदी और ईसाई जैसी इस्तेलाहात को रद्द करता है और कहता है कि इबराहीम अलैहिस्सलाम, हज़रत मुसा अलैहिस्सलाम और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और उनके अनुयायी यहूदी या ईसाई नहीं थे बल्कि मुस्लिम थेl सभी नबियों और उनके अनुयायिओं को मुस्लिम कह कर कुरआन इंसानों को यह संदेश देना चाहता है कि खुदा पर ईमान रखने वाले सभी लोग मुसलमान हैंl फिरके और अलग अलग धर्म इंसानों की इख्तिरा हैं जो खुदा के नज़दीक स्वीकार्य नहीं हैंl
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