सुहैल अरशद, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद, न्यू एज इस्लाम
(बालिका दिवस के अवसर पर)
इस्लाम से पहले अरब में महिलाओं को सामाजिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। उन्हें पुरुषों की बालादस्ती और अत्याचार और अन्याय का शिकार होना पड़ता था। ख़ास कर कम उम्र मासूम बेटियों को ज़िंदा दफन कर दिया करते थे। बेटियों के साथ यह अत्याचार केवल अरब में ही नहीं होता था बल्कि दूसरे देशों में भी बेटियों को बोझ समझा जाता था। मगर इस्लाम ने महिलाओं और विशेषतः बेटियों को ज़िंदा रहने और उन्हें सम्मान के साथ जीवन व्यतीत करने का अधिकार दिया। कुरआन ने सबसे पहले बेटियों को क़त्ल करने को एक बड़ा गुनाह करार दिया। इस सिलसिले में कुरआन में कई आयतें मौजूद हैं:-
“बेशक खराब हुए जिन्होंने क़त्ल किया अपनी औलाद को नादानी से बिना समझे।“ (अल इनआम: 140)
“और न मारो अपनी औलाद को मुफलिसी के डर से।“(बनी इस्राइल-31)
“और जब लड़की से पूछा जाएगा कि वह किस जुर्म में मारी गई।“(अल तक्वीर:8)
इस्लाम के आने के बाद अरब बेटियों को ज़िंदा दफन करने की गैर इंसानी रस्म का खात्मा हो गया। हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुसलमानों को बेटियों को मुहब्बत के साथ पालने का दर्स दिया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुद अपनी बेटी फातमा रज़ीअल्लाहु अन्हा से बहुत मुहब्बत रखते थे। एक बार आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की महफ़िल में एक व्यक्ति अपने कमसिन बेटे और बेटी के साथ आया और बैठ गया। उसने अपने बेटे को गोद में बिठा लिया और बेटी को अपने सामने फर्श पर बिठाया। हुजूर पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस शख्स से कहा कि अपनी बेटी को भी अपनी गोद में बिठाओ।
इस्लाम ने मां-बाप की विरासत में से बेटियों का भी हिस्सा निर्धारित किया है। कुरआन की सुरह निसा में खुदा ने बेटियों का हिस्सा इस प्रकार निर्धारित फरमाया:
“खुदा तुम्हारी औलाद के बारे में तुमको इरशाद फरमाया है कि एक लड़के का हिस्सा दो लड़कियों के हिस्से के बराबर है। और अगर औलाद केवल लडकियां ही हों दो से अधिक तो कुल तरके में उनका दो तिहाई। और अगर केवल एक लड़की हो तो उसका हिस्सा आधा। (अल निसा: 11)
इस तरह इस्लाम केवल बेटियों से मुहब्बत का ही दर्स नहीं देता बल्कि उन्हें सामाजिक सुरक्षा भी प्रदान करता है। उन्हें विरासत में से हिस्सा दे कर उनके भविष्य को सुरक्षित कर देता है ताकि वह तलाक या विधवा होने की स्थिति में दरबदर की ठोकर न खाएं। संक्षिप्त यह कि कुरआन और सुन्नत में बेटियों के लिए मुहब्बत और शफकत और सामाजिक सुरक्षा को निश्चित बनाया गया है जो सभी समाज के लिए रास्ते की मशाल है।
Urdu Article: The Rights of Daughters in Islam اسلام میں بیٹیوں کے حقوق
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