रियाज़ फिरदौसी
३ जुलाई, २०१९
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में शब्द टेररिज्म के यह अर्थ दर्ज हैं कि राजनीतिक उद्देश्यों के प्राप्ति या किसी चयनित या अचयनित सरकार को किसी काम पर मजबूर करने के लिए हिंसक कार्यों के प्रयोग को टेररिज्म कहा जाता हैl शब्द आतंकवाद को इस्लाम और मुसलामानों के साथ जोड़ने का खेल वैश्विक षड्यंत्र का हिस्सा हैl जिसका खाका बनाने और व्यावहारिक उपाय में लाने में इस्लाम दुश्मन तत्व यहूदियत ही हैl जिनकी जी हुजूरी और आज्ञा पालन में मुस्लिम देशों के कुछ इस्लाम धर्म से ऊबे हुए शासक और दोसरे देशों की मुस्लिम दुश्मन संगठने पुरे मक्र व फरेब के साथ आतंकवाद को इस्लाम और मुसलमानों के साथ जोड़ने की नापाक कोशिश कर रही हैं और वह इस्लाम को “आतंकवाद” धर्म और मुसलमानों को “आतंकवादी” कौम साबित करना चाहती हैंल क्योंकि हमें दुनिया का हाकिम और दुनिया वालों के लिए अल्लाह की नेअमत बनाया गया था लेकिन हमारे बड़ों के अलावा हम इस मुकाम की अहमियत से गाफिल रहें, हाकिमियत का फर्ज़ अदा ही नहीं कियाल इसके कारण आज हमारा वजूद किसी के लिए भी नेअमत नहींल यहाँ तक कि हम अपने भाइयों को शिया सुन्नी आयर दोसरे नामों से मौसूम कर के अपने से दूर कर चुके हैंl
हम मस्जिदों को ए सी और संगमरमर से सजाने में व्यस्त हैं हालांकि हमारी एक आबादी भीख मांगने में लगी हैl मजारों को बेहतरीन तरीके से सजाने में लगे हैं हालांकि वहाँ सवाल करने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही हैl
जनाब नेल्सन रोहीला मंडेला को अमेरीकी सरकार एक ज़माने तक आतंकवादी बताती रही हालांकि उन्होंने जातीय भेद भाव के खिलाफ आन्दोलन में भरपूर भाग लियाल अमेरीका और ताग़ूती प्रणाली के इशारों पर दक्षिण अफ्रीका की अदालतों ने उन पर हत्या, आतंकवाद, देश का गद्दार और कई झूटे आरोप लगा कर कैद ए बामुशक्कत की सज़ा सुनाईल नेल्सन मंडेला इसी आंदोलन के बीच लगाए जाने वाले आरोपों की पादाश में लगभग २७ वर्ष जेल में रहे, और आतंकवादी कहलाते रहेल उन्हें रॉबिन द्वीप पर कैद रखा गयाल लेकिन आंदोलन की सफलता के बाद १९९३ ई० का नोबल पुरस्कार अमन के लिए दिया गयाl एक व्यक्ति का आतंकवादी दोसरे के लिए आज़ादी का मुजाहिद होता हैl
नेता जी सुभाष चन्द्र बौस, चन्द्रशेखर आज़ाद, लाला लाजपत राय, राम प्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह, राज गुरु, सुखदेव और दोसरे देशप्रेमियों और देश के शहीदों को अंग्रेजी अखबारों और रिसालों ने आतंकवादी, लुटेरा, चोर, और डाकू ही लिखते थेल लेकिन हम्भाग्त सिंह और उनके सभी साथियों को आज़ादी के आंदोलन का महान हीरो कहते हैं और उन सब को ‘शहीद’ के खिताब से नवाज़ते हैंल १७८५ ई० में फ्रांसीसी क्रान्ति के बीच और १७९२, १७९३ ई० को फ्रांसीसी क्रांति के सालों में मैक्स मिलन ने पांच लाख से अधिक लोगों को गिरफतार किया जिन में चालीस हज़ार लोग मारे गए जबकि दो लाख लोगों को भूक और प्यास के जरिये मारा गया थाल अप्रील १९२६ ई० कप बुल्गारिया के सदर मकाम सुफिया के चर्च के धमाके में पचास लोग हलाक और ५०० घायल हो जाते हैं, यह धमाके बुल्गारिया की कम्युनिस्ट पार्टी ने किया था जो मुसलमान नहीं थेl विश्व युद्ध १९३० ई० में हुआ जिसमें १७, लाख से अधिक लोग मारे गएल दोसरा विश्व युद्ध १९३९- १९४५ में हुआ जिसमें ५५ लाख मौतें हुईंl १९३४ ई० में योगोस्लाविया के बादशाह को क़त्ल कर दिया गया और क़ातिल यहूदी था, १९६१ ई० में पहला अमेरीकी जहाज़ अपहरण हुआ जिसका जिम्मेदार एक रुसी थाल १९४५ ई० में अमेरिका ने जापान पर परमाणु हमला किया और इस हमले में डेढ़ लाख से अधिक जापानी हलाक हुएl
दोसरी बड़ी जंग के बाद १९४१ ई० के बाद १९४१ ई० से लेकर १९४८ ई० तक यहूदियों ने २६० से अधिक आतंकवादी कार्यवाहियां कीं, हिटलर ने साठ लाख से अधिक यहूदियों को मौत के घाट उताराl
वियतनाम की जंग में ५ लाख से अधिक लोग मारे गएल १९७५- १९७९ ई० कम्बोडिया में ३ लाख से अधिक लोगों की जानें गईल जोज़फ़ स्टालिन ने २० लाख इंसानों की जान लील जिसमें १५ लाख से अधिक इंसानों की जान तड़पा तड़पा कर लील मौतसे तुंग ने १५ लाख से २० लाख लोगों को निर्ममता से क़त्ल करवाया हैl बेनितो मुसेलिनी ४ लाख लोगों को क़त्ल कर के ही शासन प्राप्त की हैl सम्राट अशोक ने कलिंग लड़ाई के बीच एक लाख से अधिक लोगों का नरसंहार करके कलिंग की लड़ाई फतह कील अमबार्गो को जॉर्ज बुश ने ईराक भेजा वहाँ उसने ज़ालिमाना तरीके से २ लाख से अधिक इंसानों की जान लीl जिसमें अधिकतर बेगुनाह शामिल थेल हिटलर ने ६० लाख से अधिक यहूदियों का नरसंहार किया और नाजियों के आफिस में उन यहूदियों के बालों के कालीन थे, यह उनकी दरिंदगी का चरम थाल उनमेंसे एक भी मुसलमान नहीं थाl फिर हम कैसे आतंकवादी? और हमारा कैसा आतंकवाद?
अजीब तर्फे तमाशा है फ़िलिस्तीन में जबरन कब्ज़ा करके इस्राइली तागुती निजाम बेगुनाह मुसलमानों का नरसंहार कर रही हैl मुस्लिम बहनों की इज्जत को तार तार किया जा रहा है और इसके बावजूद अगर वह गैरतमंद मुसलमान विरोध की आवाज उठाते हैं तब वही आतंकवादी हैं? क्या किसी का आतंकवादी, किसी का हुर्रियत पसंद होता है? कई सालों तक रुसी सरकार का अफगानिस्तान जवानों के जवाबी हमलों को लगातार रुसी सरकार का अफगानिस्तान में कब्ज़ा रहा और अफगान जवानों के जवाबी हमलों को लगातार रुसी अखबारों ने आतंकवादी हमला ही लिखा थाl
वसनिया हर्ज़िग्वेना में सर्बों ने मुसलमानों पर चढ़ाई करके १० हज़ार बेगुनाह माएं, बहनें, बच्चे और बच्चियों को अत्याचार और क्रूरता का निशाना बनायाल एक कंटेनर में बंद करके हाथ पाँव बाँध कर उन मज़लूम मुसलमानों को गोलियों से छलनी कर दिया गयाल ईराक में ५ लाख ईराकी शहीद किये गएल लीबिया में ५९ हज़ार लीबिया के मुसलमान जिनमें दूध मुहें बच्चे और बच्चियां शामिल थीं शहीद किये गएल अफगानिस्तान में रूस ने जब चढ़ाई की थी तो जिसके परिणाम में डेढ़ लाख निर्दोष अफगानी शहीद किये गए और इसके बाद ९/११ का बहाना बनाते हुए अमेरिका और उसके सहयोगियों ने अफगानिस्तान पर हमला किया जिसके नतीजे में २० लाख आम नागरिक जंग का इंधन बन गएल सीरिया में ६ लाख निर्दोषों को मौत के घात उतार दिया गयाल कुंबा का कुंबा खत्म हो गया लेकिन मानवाधिकारों की बात करने वाली संगठनों को इन मजलूमों की आह कहाँ सुनाई देती, इसलिए की वह इंसान कहाँ________वह तो मुसलमान हैं? और हम इंसान नहीं होते, इसलिए हमारा कोई हक़ कहाँ______हम तो मुसलमान हैं?
म्यांमार में मुसलमानों का नरसंहार किया गया हैl उनकी कोई पहचान नहीं कि वह भी इंसान हैं? कोई घर नहींl कोई ज़मीन नहींल कश्तियों में समुन्द्र में रहने पर मजबूर हैंl वहाँ भी उनको पनाह नहीं हैl समुन्द्र में पीने के पानी की कमी है, इसलिए वह मजलूम अपना पेशाब जमा करके फिर उसे साफ़ करके पीते हैं, उनको मारने वाले बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं जिनके बारे में कहा जाता है की वह चुंटी को भी नहीं मारतेl बौद्ध धर्म में किसी की जान लेना बड़ा गुनाह हैl लेकिन लाखों निर्दोषों को क़त्ल करने के बाद भी उनको कोई भी आतंकवादी नहीं कह रहाl सारा दोष मुसलमानों का ही है, और इसे ज़ालिम प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से फैलाया भी गया हैl इन मजलूमों का सबसे बड़ा दोष यह है कि वह मुसलमान हैं?
कुछ दिनों पहले इस्राइल के कुछ युवक अपने हाथों में एक बैनर ले कर सड़कों पर नज़र आए जिस पर लिखा था:
खैबर आपका आखरी मौक़ा थाल यहूदी आज भी ऐसी ही मानसिकता को ले कर अपने दिल व दिमाग में दुश्मनी निभा रहे हैंl जिस पर लिखा होता हैl “मुसलमानों खैबर की फतह तुम्हारी आखरी जीत थी” अब तुम हमसे कभी नहीं जीत सकते?
भारत देश में मुसलमानों पर अब जय श्री राम ना कहने पर जय बजरंग बली, जय हनुमान ना कहने की स्थिति में दिन प्रतिदिन भयानक हमले ही नहीं बल्कि जान तक ली जा रही हैl केवल इसलिए कि हम डर से मुर्तद हो जाएंl लेकिन यह ज़ालिम नहीं जानते कि मुसलमान मौत से नहीं डरता बल्कि अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इज्ज़त और नामूस के लिए ज़िंदा है, जिस दिन उसे लगे गा दीन खतरे में है, नामूस ए रिसालत का मामला है फिर उसकी गैरत ए इमानी इंशाअल्लाह दुनिया देखेगील मुसलमान अपने उपर हर ज़ुल्म तो बर्दाश्त कर सकता है, लेकिन कानून ए शरीअत पर एक हर्फ भी हमसे बर्दाश्त नहीं होगाl
हमें उमर रज़ीअल्लाहु अन्हु का न्याय याद है कि अपने बेटे को कानून ए इलाही तोड़ने के पादाश में सख्त सज़ा डी थील यहाँ तक कि उनका देहांत हो गयाल हमें उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु याद हैं जिन्होंने ख़ूँरेज़ी नहीं होने दिया और खुद को अल्लाह के दीन पर कुर्बान कर दियाl हमें वह बेगुनाह अली रज़ीअल्लाहु अन्हु भी याद हैं जो अपनी शहादत पर ख़ुशी मना कर एलान करते हैं कि काबे के रब की कसम मैं कामयाब हो गयाल हमारे बड़ों ने अपनी अपनी कुर्बानी दे कर इस शजर ए इस्लाम की आबयारी की हैl अगर आवश्यकता महसूस हुई तो हम भी उनकी सुन्नत पर अमल करेंगेl
मुसलमान जान दे सकता है______मगर ईमान नहींl
जिहाद शब्द को शरपसंद तत्वों ने केवल और केवल हमारे खिलाफ इस्तेमाल किया हैl रागिब अस्फहानी जिहाद की तारीफ़ करते हुए फरमाते हैंl
अनुवाद: दुश्मन के मुकाबले व बचाव में फ़ौरन अपनी पूरी ताकत खर्च करना जिहाद कहलाता हैl (रागिब असफहानी, अल मुफरदात: १०१)
इस्लामी शरीअत की इस्तेलाह में “दीन ए इस्लाम की इशाअत व तरवीज, सरबुलंदी व एलाअ और अल्लाहु की रज़ा को प्राप्त करने के लिए अपनी पूरी जानी, माली, जिस्मानी, जुबानी और ज़हनी सलाहियतों और इस्तेदाद को वक्फ़ करना जिहाद कहलाता हैl मौलाना सैयद सुलेमान नदवी लिखते हैं: “जिहाद का अर्थ साधारणतः किताल और लड़ाई के समझे जाते हैंl मगर मफहूम की यह तंगी बिलकुल गलत है, लुगत में इसका अर्थ मेहनत और कोशिश के हैं” (सीरतुन्नबी जिल्द-५ पृष्ठ २१० तबा अव्वल- दारुल इशाअत कराची नंबर -१) जिहाद को इन किस्मों में कुरआन और हदीस ने बांटा हैl
नफ्स और शैतान के खिलाफ जिहादl जिहाद बिल कुरआन अर्थात दावत व तबलीग- जिहाद बिल माल- जिहाद बिल सैफ (तलवार से या हथियारों से) और सबसे बढ़ कर ज़ालिम के ज़ुल्म का मुंह तोड़ जवाब देने के लिए जिहाद आवश्यक हैl चाहे ताकत से हो, हथियार से हो या जुबान सेl
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