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Hindi Section ( 28 Jan 2014, NewAgeIslam.Com)

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The Prophet’s Legacy पैगम्बर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की विरासत

 

क़ासिम ए. मोईनी

14 जनवरी, 2014

सभी विचारधाराओं और पंथों से अलग नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का व्यक्तित्व सभी मुसलमानों के लिए एकता और आपसी सहमति का बिंदु है। नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम पर नाज़िल होने वाला क़ुरान सभी मुसलमानों के लिए  केन्द्रीय महत्व रखता है। जबकि नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की सुन्नत पर सभी मुसलमानों को अमल करना चाहिए। वास्तव में, क़ुरान में नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की को उस्वतुल हुस्ना (एक शानदार मिसाल) के रूप में बयान किया गया है।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मिसाल पर अमल करने के लिए ज़रुरी है कि मुसलमान ये जाने कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्का में अपने शुरुआती दौर में और हिजरत (पलायन) के बाद में मदीना में किस तरह अपने मिशन को आगे बढ़ाया, और मुसलमानों के लिए ये भी जानना ज़रुरी है कि नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने दुनियावी और रुहानी (आध्यात्मिक) समस्याओं का सामना कैसे किया। संक्षेप में, इस्लाम मुसलमानों से ये उम्मीद करता है कि वो नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के पवित्र जीवन के बारे में जानने की हर सम्भव कोशिश करेगें ताकि वो नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की मिसाल के मुताबिक़ अपना जीवन बिता सकें।

और ये सब कुछ हदीस, जीवना (सीरत) और इतिहास का अध्यन करके किया जा सकता है और साथ ही साथ इस सम्बंध में मशहूर उलमा की बातों और उनके विचारों को भी सुना जा सकता है।

वास्तव में अगर हर प्रकार के पूर्वाग्रहों को पीछे रख कर नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के पवित्र जीवन का अध्ययन किया जाए तो सांप्रदायिक और सैद्धांतिक मतभेद, मुसलमानों में आम सहमति और एकता की भावना पैदा कर सकते हैं और जो मुसलमानों को खुद अपनों और साथ ही दूसरों के साथ शांतिपूर्ण जीवन जीने के लायक बना सकता है।

और इसके विपरीत अगर नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की जीवनी का अध्ययन न किया जाए तो ये इस्लामी दुनिया में केवल मतभेद को ही बढ़ायेगा, जैसा कि सभी समूह अपने ही विचारों को 'प्रामाणिक' सुन्नत होने का दावा करते हैं।

अगर नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के जीवन, उनकी शिक्षाओं और उपदेशों के बारे में वाद विवाद, बातचीत और शोध किया जाए, तो इसके नतीजे में इस्लामी सिद्धांतों के विभिन्न पहलू उभर कर सामने आएंगें। कोई भी व्यक्ति ये कहने का साहस कर सकता है कि मुसलमानों ने नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के व्यक्तित्व का न तो अध्ययन किया है और न ही उसे समझने की कोशिश की है। यही वजह है कि आज सही इस्लाम का दावा करने वालों की भारी संख्या है।

नफरतों से भरे हुए उग्रवादी ये कहते हैं कि उनके सारे काम इस्लाम के नाम पर हैं और यही दावा शांतिप्रिय सूफी लोग  भी करते हैं, जबकि बड़े बड़े इस्लामी विद्वान और सक्रिय मिशनरी भी ये दावा है कि उनके गतिविधियों की प्रेरणा इस्लाम ही है।

नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से सम्बंधित केवल प्रामाणिक और विश्वसनीय स्रोत का अध्ययन करने के बाद ही क्या हम इस सहमति तक पहुँच सकते हैं कि क्या बातें इस्लामी हैं और क्या गैर-इस्लामी हैं।

अब जबकि मुसलमान नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के जीवन से सम्बंधित विभिन्न किताबों का अध्ययन कर सकते हैं, नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के जन्म और आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के निवास से सम्बंधित ऐतिहासिक स्थानों को मिटा दिया गया है।

सऊदी अधिकारियों के द्वारा दशकों तक जारी रहे मक्का और मदीना के विकास से ये नतीजा सामने आया कि इसने मुसलमानों का रिश्ता उन स्थानों से तोड़ दिया जिनका नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से बहुत गहरा रिश्ता रहा है। शायद यही वजह है आज मुसलमान आपस में इतने बँटे हुए और उलझन का शिकार हैः हमें हमारे इतिहास और हमारे नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की विरासत से अलग कर दिया गया है।

सऊदी अरब के वास्तुकला के विशेषज्ञ और हेजाज़ की इस्लामी विरासत की रक्षा के लिए अभियान छेड़ने वाले समी अंगावी का अनुमान है कि लगभग आधी सदी में मक्का और मदीना के तीन सौ से अधिक ऐतिहासिक स्थलों को तबाह कर दिया गया है।

दूसरे आंकड़े बताते हैं कि मक्का की सदियों पुरानी इमारतों में से लगभग 95 प्रतिशत को तबाह किया जा चुका है। आज इस्लाम के पवित्र शहर को पूरी तरह बदल दिया गया है और इसके लिए पूंजीवादी लालच और कट्टरपंथी उत्साह ज़िम्मेदार है।

आज जो मुसलमान वहां की यात्रा करते हैं उनके चारों तरफ नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम और उनके सहाबा से जुड़े ऐतिहासिक अवशेषों के बजाय चमक धमक से भरे शानदार होटल, शॉपिंग मॉल और फास्ट फूड बेचने वाले स्टोर्स हैं।

नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के जीवन और इस्लामी इतिहास से सम्बंधित अनमोल खज़ाने हमेशा के लिए बर्बाद हो चुके हैं। जिनमें मक्का में हज़रत ख़दीजतुल कुबरा रज़ियल्लाहु अन्हा का घर, मदीना में जंग खंदक से सम्बंधित कई मस्जिदें, जन्नतुल बक़ी में नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के परिवार वालें, सहाबा और बाद के ताबेईन के मज़ारात शामिल हैं। ये तो सऊदी अरब की कारस्तानियों का केवल एक छोटा सा नमूना है।

हर विचारधारा के मानने वालों को इस बात का प्रचार करने का अधिकार है कि जिसमें वो विश्वास करते हैं वही असल  इस्लाम है। लेकिन बेरहमी से इन विरासतों को तोड़ कर मुसलमानों को उनके महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कड़ी से अलग कर दिया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक़ अब सऊदी अधिकारियों की नज़र नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जन्म स्थान बैतुलमौलीद पर है।

क्या ये विडंबना नहीं है कि आज जबकि पूरी दुनिया में मुसलमान जश्न ईद मिलादुन्नबी मनाने में लगे हुए हैं, नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के जन्मस्थान पर खतरों के बादल मंडरा रहे हैं?

आशा की जा सकती है कि लोगों को समझ आयेगी और बैतुलमौलीद को बरकरार रखा जायेगा। पहले ही बहुत बर्बादी हो चुकी और खुद हमारे इतिहास को नष्ट करने का परिणाम बहुत भयावह हो चुका है। आज मुसलमान बीच मंझधार हैं और उनका मार्गदर्शन करने वाला कोई नहीं है, ऐसा इसलिए है कि उन्हें उनके इतिहास से अलग कर दिया गया है। और ये काम औपनिवेशिक ताक़तों का नहीं और न ही गैर मुस्लिमों का है बल्कि इसके ज़िम्मेदार मुसलमान ही हैं।

नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की विरासत का सम्बंध दुनिया के अरबों लोगों से है। तो आइए नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से सम्बंधित बची हुई जीवित विरासत की रक्षा के लिए संघर्ष शुरू करें।

कासिम ए. मेईनी डान अखबार से जुड़े हैं।

स्रोत: http://www.dawn.com/news/1080323/the-prophets-legacy

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