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Hindi Section ( 14 Jun 2012, NewAgeIslam.Com)

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Miraj and Event of the Highest Perfection of Human Being वाक़ेआ मेराज आदम ख़ाकी के उरूज का मुंतहाए कमाल


मेराज की शब में रसूले करीम की ज़ात को कायनात की हर बुलंदी से ऊपर ले जाकर इस ऐलान की अमली ताबीर पेश कर दी गई और बता दिया गया कि मक़ाम अबदियत ही सबसे बुलंद मक़ाम है

प्रोफ़ेसर अख़्तरुल वासे

14 जून, 2012

(उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम)

मेराज का वाक़ेआ नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की ज़िंदगी का एक अहम वाक़ेआ है। ये जिन हालात के तनाज़ुर में पेश आया वो अपने अंदर इंसानियत के लिए कई सबक़ रखता है। वाक़ेआ मेराज आदम ख़ाकी के उरूज का मुंतहाए कमाल है, ये वहदते आदम और वहदते दीन का इज़हार है, ये इंसानी रिफ़अत व बुलंदी का वो अज़ीम मक़ाम है, जहां तक पहुंचने में सारी मख़लूक़ात दरमांदा हैं। ये वाक़ेआ पैग़ाम भी देता है कि इंसान की सरबुलन्दी उसकी अबदियत में पोशीदा है, यही मक़ामे अबदियत है क़ाब क़ौसैन अवादनी, की इस रिफ़अत तक रेसाई मिलती है जहां जिब्रईल अमीन के भी पर जलने लगते हैं।

मेराज का अज़ीमुश्शान वाक़ेआ रजब के महीना में पेश आया, जिस माह रजब के आख़िरी अय्याम की एक शब का वाक़ेआ है। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम हज़रत उम्म हानि के घर में या एक रिवायत के मुताबिक़ ख़ानए काबा में हतीम के अंदर आराम फ़रमा हैं, ये वो दिन हैं जब रसूले करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम पर ज़ुल्मो सितम की इंतेहा कर दी गई है, जिस क़ौम ने आपकी बेदाग़ जवानी और ख़ुश ख़िसाली को सादिक़ और अमीन का लक़ब दे रखा था, उसी क़ौम के लोगों ने आपको सताने, अज़ीयत देने और नुक़्सान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है। नबी अक़्दस सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की ज़ात सरापा सब्र व रज़ा और शुक्र व इस्तक़लाल है। एक जानिब ज़ुलमो जब्र और अज़ीयत व सितम के ऐसे ना रवा सुलूक हैं और दूसरी तरफ़ यही वो मौक़ा है जब यके बाद दीगर आप की दो महबूब शख्सियतें जो इन तमाम परेशानियों और मुसीबतों में आपका सहारा और तस्कीन व क़रार थीं एक आपकी वफ़ा शुआर चहेती बीवी हज़रत ख़दीजा कुबरा रज़ियल्लाहू अन्हा, और दूसरे आप के सरपरस्त व सहारा और हर आड़े वक़्त में पूरी क़ुव्वत के साथ सीना सिपर रहने वाले आप के चचा हज़रत अबू तालिब, दोनों इस दुनिया से रुख़्सत हो जाते हैं। ये ग़म इतना बड़ा है कि आपने इस साल को ही ग़म का साल (आमुल हज़न) कहा है।

ये पूरा वो माहौल है जिसमें अल्लाह का प्यारा नबी, वो उम्मी लक़ब और सरापा रहमत, दिल शिकस्ता, ग़म व अंदोह से निढाल, लेकिन मर्ज़ीए रब के आगे सरापा तस्लीम और अपनी उम्मत को जहन्नुम से बचाने की फ़िक्र में ग़र्क़, हतीमे काबा के अंदर शब में आराम फ़रमा हैं और वाक़ेआ मेराज पेश आता है।

मेराज रसूले अकरम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के लिए अल्लाह की नुसरत और क़ल्ब की तक़्वियत का सामान ही नहीं बल्कि आपके एज़ाज़ व इकराम और आपकी बुलंदी मर्तबत का मुशाहिदा भी है। यहां से वाक़ेआ मेराज शुरू होता है। जिब्रईल अलैहिस्सलाम आते हैं, बुर्राक़ की सवारी पेश की जाती है ,जो अपनी बर्क़ रफ़्तारी और ख़ूबसूरती में वाक़ई इस्म बामस्मा है। इसके एक क़दम की मसाफ़त ताहदे निगाह है, बैतुल मोक़द्दस में आपकी सवारी ठहरती है। एक चट्टान के हल्क़ा से सवारी को बांधते हैं, अज़ान दी जाती है, दुनिया में अब तक आए हुए तमाम अंबिया व रसूल सफ़ बस्ता खड़े हो जाते हैं, जिब्रईल अमीन आपको इमामत के लिए आगे बढ़ाते हैं, और आपकी इमामत में नमाज़ अदा होती है, फिर यहां से आसमान का सफ़र शुरू होता है, पहले आसमान पर अव्वलीन इंसान व नबी हज़रत आदम अलैहिस्सलाम,  फिर छटे आसमान तक हज़रत ईसा व यह्या अलैहिमुस्सलाम, हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम, हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम, हज़रत हारून अलैहिस्सलाम, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और अख़ीर में सातवें आसमान पर अबवाल अंबिया हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से आपकी मुलाक़ात होती है, वो सब आपको ख़ुश आमदीद कहते हैं, फिर बैतुल मामूर और सदरतुल मुंतहा तक तशरीफ़ ले जाते हैं, यहां से आगे फ़रिश्तों के सरदार जिब्रईल नहीं बल्कि सिर्फ़ हमारे नबी हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम बढ़ते हैं। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त वलजलाल आप को नमाज़ का तोहफ़ा अता फ़रमाता है। और ये तोहफ़ा आपके तवस्सुत से आपकी उम्मत को भेजा जाता है, इसीलिए नमाज़ को मेराजुल मोमिनीन कहा जाता है। इसी सफ़र में आप कौसर की ज़ेयारत करते हैं जो क़ुरान के सूरे अलकौसर के मुताबिक़ सिर्फ आपको अता किया गया है, जन्नत व दोज़ख़ को देखते हैं, दोज़ख़ में आमाले बद की सज़ाएं पाने वालों को देखते हैं। और ये सारा सफ़र उसी शब में तमाम हो जाता है। सुबह जब इस वाक़ेआ इसरा, व मेराज का ज़िक्र आप करते हैं तो इसकी सबसे पहले और बलाचों व चेरा तस्दीक़ हज़रत अबु बकर रज़ियल्लाहू अन्हू करते हैं। और इसी लिए सिद्दीक़ का लक़ब हासिल कर लेते हैं।

क़ुरान ने इस सफ़र मुबारक व मसऊद का ज़िक्र करते हुए कहा कि, पाक है वो ज़ात जो अपने बंदे को एक शब में मस्जिदे हराम से इस मस्जिद अक्सा तक ले गई जिसके गिर्द हमने बरकत रखी है ताकि हम उसे अपनी निशानियों में से कुछ दिखाएं, बेशक वो सुनने वाला और देखने वाला है (सूरे इसरा आयत नंबर 1)। मेराज की शब में आसमान के सफ़र से पहले मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक्सा तक का सफ़र कराया गया और वहां वो तमाम रसूल और नबी जो क़ुरान के मुताबिक़ दुनिया की हर क़ौम में भेजे गए थे, एक सफ़ में खड़े हुए और सरकारे दो आलम की इमामत में नमाज़ अदा की। ये इस बात का वाज़ेह ऐलान था कि दुनिया के तमाम इंसान ख़्वाह वो किसी क़ौम, नस्ल और रंग से ताल्लुक़ रखते हों, अगर उनके पैग़ंबर और हादी एक सफ़ में खड़े हैं तो इन सबकी उम्मतें भी एक हैं, क्योंकि वो सब एक आदम की औलाद हैं और इस बात का भी ऐलान था कि अगरचे तारीख़ के मुख़्तलिफ़ ज़मानों में आने वाले मज़ाहिब अलैहदा नामों से मशहूर हुए लेकिन इन सबका बुनियादी पैग़ाम एक ही है और इसीलिए आज इन सबकी नमाज़ एक इमामत में अदा हो रही है।

मेराज के वाक़ेआ में उम्मते मुस्लिमा के लिए कई पैग़ाम हैं,  क़ुरान ने कई आयतों में जिस बात का ऐलान किया है कि अल्लाह ने इंसान के लिए सूरज व चाँद, पहाड़ व दरिया और दिन व रात सबको मुसख़्ख़र कर दिया है, इंसान की अज़मत के आगे आसमान की बुलंदियाँ हेच हैं। मेराज की शब में रसूले करीम की ज़ात को कायनात की हर बुलंदी से ऊपर ले जाकर इस ऐलान की अमली ताबीर पेश कर दी गई और बता दिया गया कि मक़ाम अबदियत ही सबसे बुलंद मक़ाम है। और नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की उम्मत अपने मक़ामे अबदियत के साथ तसख़ीरे कायनात के सफ़र में नई मंज़िलों से आश्ना होती रहेगी।

रह यक गाम है हिम्मत के लिए अर्श बरीं

कह रही है ये मुसलमान से मेराज की रात

वाक़ेआ मेराज इंसान को सबक़ देता है कि वो पूरी कायनात में सबसे अफ़ज़ल व अशरफ़ है और कौनों मकाँ की वुसअत इसके फ़िक्रो नज़र की जोला निगाह है, उसकी फ़िक्री परवाज़ उसी आसमान तक महदूद नहीं बल्कि उसके लिए सितारों से आगे और जहां भी हैं, और उसके मक़ासिद सिर्फ उसी दुनिया के रोज़ व शब में उलझ कर ना रह जाएं कि इसके ज़माँ व मकाँ और भी हैं। इक़बाल का ये शेर हमें इसी बात की याद दिला रहा है कि

सबक़ मिला है ये मेराजे मुस्तफा से मुझे

कि बशरियत की ज़द में है आलम गर्दूं

मेराज के सफ़र की तफ़्सीलात में भी कई बातें हमें दावत फ़िक्रो नज़र देती हैं, जब आपकी सवारी बुर्राक़ मस्जिदे अक्सा पहुंचती है तो आप सवारी से उतर कर उसे एक चट्टान के हलक़ा से बांध देते हैं, ये सवारी जो ख़ास आपके लिए भेजी गई थी और हुक्मे इलाही पर मामूर थी लेकिन आपने उसे बांध कर उम्मत को ये पैग़ाम दिया कि वो अस्बाब व वसाइल को इख़्तियार करें कि यही इस दुनिया में अल्लाह की सुन्नत है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने जो मिसाल यहां पेश फ़रमाई अपने एक फ़रमान में इस बात की तशरीह करते हुए फ़रमाया कि तवक्कल अलल्लाह ये है कि पहले सवारी की रस्सी को बांध दो फिर अल्लाह पर भरोसा करो। यही उम्मत मुस्लिमा को अपनी ज़िंदगी के सफ़र में तमाम जायज़ वसाइल को इख़्तियार करना होगा, तभी वो सुन्नते इलाही को मोकम्मल करते हुए कामरानी से हमकिनार हो सकते हैं।

इसी तरह इस सफ़रे मेराज में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के सामने दो प्याले पेश किए गए, एक में दूध था और दूसरे प्याले में शराब। आप ने दूध वाला प्याले को मुंतख़ब किया और पी गए। इस पर जिब्रईल ने कहा कि आपको सही फ़ित्रत की हिदायत मिली। ये गोया एक इम्तिहान था जिसमें आप ने सही फ़ैसला फ़रमाया। इंसान की पूरी ज़िंदगी इम्तेहानों और आज़माईशों से भरी है। इसकी कामयाबी इस में है कि वो सही वक़्त पर दुरुस्त फ़ैसला करे।

आज मुसलमान जब माहे रजब में अपने नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के इस मुबारक सफ़रे मेराज की याद ताज़ा कर रहे हैं मेराज व इसरा का सबक़ उन्हें दोहराना चाहिए। इंसानी अज़मत व रफ़अत का सबक़, इंसान के हौसला व हिम्मत और नासाज़गार हालात में भी न सिर्फ़ ख़ुदावंदी की उम्मीद का दामन थामे रहने का सबक़, तहक़ीक़ व तलाश और जुस्तजू के अमल पैहम का सबक़, और इस बात का सबक़ कि सरबुलन्दी व उरूज की मंज़िल आज भी हमारे सामने है। हम ज़माने के तक़ाज़ों को पूरा करते हुए और जायज़ अस्बाब व वसाइल को बरुए कार लाते हुए अपनी जद्दो जहद जारी रखें तो यक़ीनन हम इस तसव्वुर को ग़लत साबित कर सकते हैं कि सितारों की गुज़र गाहों पर अपने नक़्शे पा छोड़ने वाले नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की उम्मत अपने अफ़्क़ार की दुनिया में सफ़र ना कर सकी है। यही मेराज का सबक़ है।

मज़्मूननिगार जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली के शोबए इस्लामियात के सरबराह हैं

14 जून, 2012 बशुक्रियाः इन्क़लाब, नई दिल्ली

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