परवेज हूदभॉय
30,दिसंबर 2014
पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल में हुए हत्याकांड ने पाकिस्तान को स्तब्ध और दुखी कर दिया है, लेकिन यह घटना पाकिस्तान के भीतर गहरे विभाजन को खत्म कर देगी ऐसा सोचना गलत होगा। कुछ दिनों बाद यह घटना अन्य आतंकी हमलों की घटना जैसी हो जाएगी।
सारी त्रासदियां भावुकता को जन्म देती हैं। लक्की मारवात में वॉलीबॉल मैच के 105 दर्शकों के आत्मघाती हमले में मारे जाने से कुछ नहीं बदला और न स्नूकर क्लब में दोहरे आत्मघाती हमले में 96 हाजराओं के मारे जाने से कुछ हुआ। पेशावर के ऑल सेंट्स चर्च पर बम हमले में 127 मारे गए, नमाज पढ़ रहे 90 अहमदियों की हत्या। ये सब अब कोरे आंकड़ें भर हैं। यदि पाकिस्तान की कोई सामूहिक चेतना है तो बच्चों को पोलियो से बचाने के लिए काम करने वाले 60 कार्यकर्ताओं की हत्या की एक ही घटना उसे जगाने के लिए काफी होती। भयावह घटनाओं के न थमने की वजह यही है। समय-समय पर पाकिस्तान ऐसी त्रासदियों का गवाह बनता रहेगा। किसी भी तरह के सुरक्षा इंतजाम स्कूलों जैसे स़ॉफ्ट टार्गेट को महफूज नहीं रख सकते। एक ही संभावित समाधान है- मानसिकता बदलना। इसके लिए हमें तीन कठोर तथ्यों का सामना करना पड़ेगा।
पहला, पहली बात तो हमें मानना होगा कि हत्यारे न तो बाहर से आए हैं और न कािफर हैं। वे उसी उद्देश्य से युद्ध लड़ रहे हैं, जिसके लिए नाइजीरिया में बोको हरम, इराक-सीरिया में आईएस, केन्या में अल शबाब आदि लड़ रहे हैं। हमारे बच्चों की हत्या करने वाले एक सपने के लिए लड़ रहे हैं -मुस्लिम राज्य के रूप में पाकिस्तान को नष्ट कर इसका इस्लामी राज्य के रूप में पुननिर्माण करना।
हत्यारों की पहचान के लिए किसी को अटकलें लगाने की जरूरत नहीं है। तालिबानी प्रवक्ता मोहम्मद उमर खोरासानी ने उन आठ ‘शहीदों’ के फोटो जारी किए हैं। हदीस का हवाला देकर बच्चों की हत्या का औचित्य सिद्ध कर रहा है ( बेशक, यह भयावह विकृत व्याख्या है।) मजहबी जुनून में पागल हो गए आतंकी स्कूल में डेस्क के नीचे छिपे बच्चों को खोजते फिर रहे थे और गोली मारने के पहले ‘अल्लाह हो अकबर’ चिल्ला रहे थे। दोनों पैरों में गोली का शिकार 16 साल का शाहरुख इसलिए बच गया, क्योंकि उसने मरने का नाटक किया। एक अन्य छात्र आमिर अली ने बताया कि दो बिना दाढ़ी वाले बंदूकधारियों ने बच्चों को कई-कई बार गोलियां मारने के पहले कलमा पढ़ने को कहा।
दूसरा, पाकिस्तान को उन लोगों को सजा देनी चाहिए और उनका बहिष्कार करना चाहिए, जो आतंकियों की पहचान के बारे में या तो झूठ बोलते हैं या खुले आम उनका समर्थन करते हैं। टेलीविजन एंकर और राजनेताअों ने अजीब-अजीब सी कहानियां गढ़ के खूब पैसा कमाया है। मसलन रिटायर्ड जनरल हामिद गुल और उनके बेटे अब्दुल्ला गुल ने ऐसे हमलों के बाद ढीठता से कई बार टीवी पर कहा है कि चूंकि आत्मघाती हमलावरों की सुन्नत नहीं हुई है, इसलिए वे मुस्लिम नहीं हैं। हालांकि, इन दिनों ऐसे हमलावरों के शव पुष्टि के लिए मौजूद हैं, लेकिन वे अपने दावे से बाज आने को राजी नहीं हैं। जो सरकारी वेतन लेते हैं और देश के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देते हैं उन्हें तत्काल बर्खास्त किया जाना चाहिए। इस्लामाबाद की सरकारी लाल मस्जिद के मौलाना अब्दुल अजीज ने 2007 में पाकिस्तानी के खिलाफ ही बगावत कर दी थी। उसने पेशावर हत्याकांड की आलोचना करने से साफ मना कर दिया। कुछ अन्य सरकारी कर्मचारियों ने आह्वान किया है कि पेशावर हमले में मारे गए सैनिकों के लिए नमाज न पढ़ी जाए। जमात-उद-दावा सुप्रीमो हाफीज सईद अलग ही राग अलाप रहा है। हमलावरों के पाकिस्तानी होने के खुले सबूतों को नजरअंदाज करके वह लोगों को शत्रु की पहचान के बारे में गुमराह कर रहा है।
नेताओं में तो लाखों अपरिपक्व दिमागों के मसीहा इमरान खान से ज्यादा किसी को दोष नहीं दिया जा सकता। उन्होंने तो तालिबान को कभी आतंकी कहा ही नहीं फिर चाहे यह गुट विभिन्न वारदातों की खुलेआम जिम्मेदारी लेता रहा है। टीटीपी पेशावर हत्याकांड में शामिल हो सकता है, यह पहली बार उन्होंने कहा है और वह भी ट्वीट में। इससे पहले तो हालत और भी खराब थी। 2009 में तालिबान ने स्वात पर कब्जा कर लिया। हामिद मीर के शो ‘कैपिटल टॉक’ में वे कहते हैं कि स्वात तालिबान तो अमेरिका के खिलाफ मुक्ति युद्ध लड़ रहा है। जब मैंने उनसे पूछा कि वे पाकिस्तान के खिलाफ क्यों लड़ रहे हैं और हमारे फौजियों व पुलिस वालों की हत्या क्यों कर रहे हैं तो उन्होंने मुझे अमेरिकी एजेंट बता दिया। बाद में तो मुझ पर हमला करने की कोशिश भी की। पाठकों को इसका वीडियों गूगल पर मिल सकता है।
तीसरा, यदि पाकिस्तान को शांति से रहना है तो इसे अपने पड़ोसियों के साथ शांति स्थापित करनी होगी और इसके लिए अपने जेहादी तंत्र को खत्म करने की शुरुआत करनी होगी। कड़वा सच तो यही है कि आप वही काटते हैं, जो बोते हैं। आज विशाल आतंकी गुटों ने पाकिस्तान को बंधक बना रखा है। वे अपने ट्रेनिंग सेंटर, अपने अस्पताल और अपने आपदा राहत कार्यक्रम चला रहे हैं। जब विदेश मामलों पर प्रधानमंत्री के सलाहकार सरताज अजीज ने यह बयान दिया कि पाकिस्तान उन आतंकी गुटों को निशाना नहीं बनाएगा, जो उसके लिए खतरा नहीं हैं, तो उन्होंने अनजाने में भांडा फोड़ दिया था। वास्तव में वे तो पाकिस्तान के इस आधारभूत सिद्धांत को ही व्यक्त कर रहे थे कि ‘हम दूसरों को चोट पहुंचाने के लिए जीते हैं, अपने को बेहतर बनाने के लिए नहीं।’
हमारे बच्चों की मौत का विलाप करते हुए आइए यह स्वीकार करें कि पाकिस्तान की जमीन का बार-बार इस्तेमाल दुनियाभर में दुख व तकलीफें देने के लिए किया गया है। आज सिर्फ भारत व अफगानिस्तान ही हमें दोष नहीं देते, अब तो चीन और ईरान भी यही कह रहे हैं। जर्ब-ए-अर्ब शुरू करके जनरल रहील शरीफ ने अपने डरपोक पूर्ववर्ती जनरल कयानी से अलग रास्ता अख्तियार किया है। उत्तरी वजीरिस्तान आतंकवाद का केंद्र कभी नहीं बनना चाहिए। उन्होंने काबुल में राष्ट्रपति अशरफ घनी से मिलकर टीटीपी के मुल्ला फजलुल्लाह को सौंपने की मांग करके ठीक ही किया, जो अफगानिस्तान में छिपा बैठा है, लेकिन मुल्ला उमर का क्या? पाकिस्तानी तालिबान और अफगानी तालिबान एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। मैं सोच रहा था कि क्या अफगान राष्ट्रपति ने जनरल शरीफ से मुल्ला उमर का प्रत्यर्पण करने को कहा ताकि अफगानिस्तान के लोगों के सामने उसे कानून के कठघरे में खड़ा किया जा सके।
Source: http://www.bhaskar.com/news/ABH-bhaskar-editrorial-on-peshawar-terrorist-attack-4856354-NOR.html
URL: https://newageislam.com/hindi-section/reap-sow-/d/100847