गुलाम गौस सिद्दीकी, न्यू एज इस्लाम
21 अक्टूबर, 2023
ये लड़ाई मज़हब की नहीं बल्की इंसानियत और शैतानियत की लड़ाई है, खुदा के कई नाम हैं और उसने जिनते नबी और रसूल भेजे सब का मकसद लोगों के दिलों को खुदा से जोड़ना और उससे मुहब्बत पैदा करना था, तो जिसके अन्दर खुदा या गॉड की मुहब्बत होती है उसका दिल इतना नर्म, रहम और मुहब्बत वाला हो जाता है कि पूरी इंसानियत उसकी रौशनी में सुकून पाती है वरना इंसानियत तबाही और ज़ुल्म के दहाने पर खड़ी हो जाती है. शैतान इंसानों को आपस में खून बहाने पर उकसाता है, कभी मज़हब के नाम पर, कभी ज़ात पात के, कभी भूमि बटवारे में, कभी भाई भाई में, बल्कि इंसानी ज़िन्दगी की कोई ऐसी सीमा नहीं जहाँ शैतान इंसान को न बहकाता हो, जहाँ खुदा से दूर रखने की कोशिश न हो, मगर इंसान गफलत में शैतानी चालों को भूल कर आपस में जंग में लगा हुआ है, जबकि कुरआन में साफ़ लिखा है कि शैतान इंसान का खुला दुश्मन है.
1. जब खुदा ने तमाम मखलूक को कहा कि पहले इंसान आदम को सजदा करो तो सबने सजदा इसी लिए कर दिया कि ये हुक्म खुदा का था, मगर शैतान ने protest किया
2. शैतान ने कहा था कि वो इंसानों को बहकाकर उनके दरमियाँ ज़मीन पर फसाद पैदा करवाएगा, आपस में खूनरेज़ी करवाएगा, एक भाई को दुसरे भाई से लड़ाएगा
3. जब शैतान जन्नत से निकाला गया तो उसने खुदा से एक ताक़त मांगी कि वो इंसानों को गलत बातों में उलझाकर और बहकाकर रखेगा, खुदा ने शैतान को ताक़त तो देदी मगर साथ में ये भी कहा कि जो मेरा सच्चा बंदा होगा वो कभी तेरी बातों में नहीं भटकेगा, फिर इंसान का ये इम्तिहान शुरू हुआ
4. खुदा ने कुरआन में अपने बन्दों को ज्ञान हासिल करने की नसीहत की क्योंकि बिना ज्ञान हासिल किये शैतान की चाल को नहीं समझ सकते, तुम मेरे सच्चे बन्दे हो तो ज्ञान हासिल करोगे, बार बार कुरआन ने कहा कि सोचो, फ़िक्र करो, गौर करो, धयान लगाओ, जानो, पहचानो, समझो, सच की भी तलाश करो, खुदा की पहचान करो, शैतान की चाल को समझो, और कई बार ये भी फ़रमाया कि शैतान तुम्हारा खुला हुआ दुश्मन है.
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ये दुनिया में अमन व शान्ति का कानून बनाते हैं ताके लोग इनकी तारीफों के पुल बांधें और ज़हनी तौर पर इनके गुलाम बन जाएँ और फिर इनको अपनी मनमानी करने की पूरी दुनिया में खुली छुट मिल जाए. अमन व शान्ति के कानून बनाने वालों का मकसद इंसानियत रहा हो मगर जब शैतान अपनी रंग बिरंगी चाल चलता है तो अमन व शान्ति के तमाम कानून बस इंटरनेशनल charters पर सिर्फ ink बन कर रह जाते हैं.
मेरे मुर्शिद गौस-ए-पाक की सरज़मीन इराक को तबाह कर दिया, ९/११ के बाद हज़ारों अफगानी शहरियों को मौत के घाट उतार दिया, जापान का बड़ा हिस्सा हलाक हुआ, यहूदियों का होलोकॉस्ट हुआ, मुसलमानों पर ज़ुल्म हुआ, हिन्दुओं पर ज़ुल्म हुआ, पूरी इंसानियत पर हमला हुआ.
एक जालीम तस्वीर थी उन अंग्रेजों कि जो कभी हमारे हिंदुस्तान में बिज़नस के बहाने घुसे और यहाँ वो माहौल बनाया की धीरे धीरे इस मुल्क पर क़ब्ज़ा कर लिया, फिर आजादी की जंग लड़ी गयी, हज़ारों बल्कि लाखों हिन्दुस्तानी शहरियों को अपनी शहादत पेश करनी पड़ी.
अंग्रेजों ने हिंदुस्तान के अन्दर आजादी की जंग में हिन्दू मुस्लिम की एकता को देखकर ये समझ लिया था कि इस एकता को तोड़े बगैर कोई कामयाबी हासिल नहीं की जा सकती, वो जानते थे कि हिंदुस्तान में अपना शाशन हमेशा भी चलाते रहे तो इसके बावजूद वो इस एकता के माहौल में कुछ ज्यादा नाजायज फायदा उठा नहीं पायेंगे, लेकिन उन्हें ये समझ मिल गयी की इस एकता को तोडना ज़रूरी है इसी लिए जाते जाते ऐसा शोशा छोड़ गए की इस प्यारे वतन का बटवारा हो गया, इसकी ताक़त का बटवारा हो गया, हमारे प्यारे हिंदुस्तान का एक टुकड़ा पाकिस्तान और कुछ दिनों बाद दूसरा बांग्लादेश बन गया, और फिर हमारे हिंदुस्तान में तीन ऐसे बॉर्डर बन गए जिसमे एक न ख़त्म होने वाली जंग शुरू हो गई, इतनी बड़ी ताक़त का बटवारा और फिर बची कुछ ताक़त थी उसका इस्तेमाल भी इन तीन बॉर्डर पर शुरू हुआ. वो बहुत बेवकूफ थे जो बटवारे की बात करने लगे थे, जालिमों की चाल को सहीह से पढ़ नहीं पाए, और शायद बिना ये सब समझे, अंग्रेजों के मिशन को फायदा दे बैठे.
हिंदुस्तान दुनिया कि बड़ी ताक़त थी मगर सबसे बड़ी ताक़त बन्ने से रुक गयी.
अंग्रेजों ने सबसे बड़ी ताक़त का फायदा अपने मुल्क में जाकर इस तरह उठाया कि दुनिया के बहुत सारे मुल्कों के अन्दर बगावत पैदा करने का माहौल बनाया और आपस में फिर लड़ने के लिए छोड़कर फिर अपने मुल्क से peace peace चिल्लाने लगे, ऐसा सो कॉल्ड इंटरनेशनल कानून बनाया जिसमे peace के इतनी बातें लिखी गयीं मगर जब कभी दुनिया में कहीं ज़ुल्म होता है, इसके सारे कानून सिर्फ charter में ink बन कर रह जाते हैं, इसकी so called power का इस्तेमाल सिर्फ उन लोगों के हाथों में होकर रह गयी जो इसकी कुर्सी पर सेठ बन कर बैठे रहे, ये कुर्सी पर दिखावे के लिए कभी दूसरों को भी बिठाते हैं लेकिन हकीक़त में एक झूट होता है, कुर्सी पर बैठने के बावजूद ताक़त की कमान उनके हाथों में ही रहती है, दुसरे मुल्क के प्रेसिडेंट तो यहाँ सिर्फ एक मोहरा बन कर रह जाते हैं, (माफ़ कीजियेगा सच बहुत कड़वा होता है, मगर आप हमारे हिन्दुस्तानी बल्कि इंसानी भाई हैं, कहने दीजिये).
झूट और मकर के बारे में बहुत बातें कुरआन में बतायी गयी हैं, कैसे पुरानी कौमों में कुछ ऐसे भी लीडरान होते थे जो मकर और झूट की बुनियाद पर लोगो के दिलों से खुदा की मुहब्बत मिटाती थी, उन्हें अपने आगे झुकाने के लिए हर तरह से मजबूर कर देते, और फिर उन पर मुसलसल ज़ुल्म करते, गुलामी की ज़िन्दगी जीने पर मजबूर कर देते थे, नमरूद, फिरऔंन, और इस तरह दूसरी कौमे भी थीं जिनके आम लोग इन लोगों के ज़ुल्म से बहुत परेशान थे, हमेशा उनको अपनी जान पर ज़ुल्म होने का खतरा रहता, वो अपने खुदा से खुल कर मुहब्बत का इज़हार भी नहीं कर सकते थे, खुदा ने अपनी रहमत से हर कौम में एक हादी (हिदायत देने वाले) को भेजा, नबी को भेजा, रसूलों को भेजा, और खुदा ने कभी अपने किसी एक नबी के वास्ते से, कबी किसी एक रसूल के वास्ते से उन कौमों की आम जनता को जालिमों के ज़ुल्म से आज़ाद करवाया, और फिर लोगों को खुदा की बंदगी और दुनिया में हकीकी आज़ादी का मौक़ा मिला, फिर नबियों के जाने के बाद, रसूलों के जाने के बाद, दुबारा हर दौर में ज़ालिम पैदा होते रहे, और फिर ये सिलसिला आखिरी नबी पर आकर ख़त्म हुआ, दुनिया में खुदा के इन्साफ का कानून बना, हर इंसान को खुदा के सामने बराबरी का दर्जा मिला, नेकी को पसंद किया गया, बुराई को नापसंद किया गया, फिर जब वो प्यारे नबी भी दुनिया से पर्दा फरमा गए, तो चार पांच सहाबा-ए-कराम के बाद फिर ज़ुल्म की दास्तान शुरू हुई, एक अज़ीम दास्तान कर्बला के मैदान से शुर हुई, खुद प्यारे नबी के खानदान को शहीद कर दिया गया, जालिमों ने फिर नबियों की तालीमात में करप्शन करके हुकूमत भी कायम की, सिर्फ यहूदी, इसाई और मुस्लिम लफ़्ज़ों और नारों में ना बांटिये बल्कि इसकी रूहानियत के बारे में सोचें, हर एक के मज़हब को इस्तेमाल क्या गया, हर मज़हब का गलत इस्म्तेमाल क्या गया, आखिरी नबी के आने से पहले भी मज़हब का गलत इस्तेमाल क्या गया, हर दौर में ज़ालिम रहे हैं, उनका मकसद अपनी बादशाहत बरक़रार रखने के लिए लोगों के दिलों से खुदा की मुहब्बत और बंदगी छिनना होता है, जालिमों का मकसद तो सिर्फ खुदा से इंसानों को दूर करना था, उनको तो हर इंसान को अपना गुलाम बनाना था, वो तो यहूदी कौम में भी पाए गए, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की तालीमात में भी करप्शन कर दिया, लफ़्ज़ों को बदल दिया, अनुवाद को बदल दिया, इसाई में भी हज़रत इसा अलैहिस्सलाम की तालीमात को बदला गया, और फिर खुदा ने अपनी आखिरी किताब कुरआन को नाजिल किया जिसमे उसने वादा किया कि वो खुद इस किताब की हिफाज़त फरमाएगा और तब इसकी आयत बदली नहीं जा सकती, मगर खुदा ने ये वादा नहीं लिया कि मुसलामानों में अनुवाद में मत्भेद नहीं होगा, मुस्लिम कौम में भी ज़ालिम पैदा हुए, लेकिन किसी मज़हब में ज़ालिम पैदा होने का मतलब ये नहीं है कि वो मज़हब ज़िम्मेदार है, ये ग़लतफ़हमी अगर है तो बहुत बड़ी है, जब जब शैतान ने इंसानियत पर हमला क्या तो कुछ लोग हमेशा अंधे हो गए जो ये नहीं देख पाए कि शैतान ही सबसे बड़ा दुश्मन है, जो इंसान को बहकाकर ज़ुल्म करवाता है, इंसान को दुसरे इंसान के खिलाफ दरंदिगी करने पर तैयार कर लेते है, ये शैतान हैं जो इन सबके ज़िम्मेदार हैं मगर इंसान समझ नहीं पाता कि ये ज़ुल्म उसके मज़हब से नहीं बल्कि शैतान की वजह से आ रही है.
एक घर में कभी ज़मीन का विवाद होता है, बात बात पर लड़ाई होती है, माल दौलत ज़मीन जायदाद की जंग होती है, हर जगह शैतान ही असल में इंसान को बहकाता है और उनको आपस में लड़ने पर मजबूर कर देता है. यहाँ जंग मज़हब की नहीं, यहाँ हिन्दू मुस्लिम की जंग नहीं, यहाँ तो ज़मीन के बटवारे की जंग होती है, यह मत सोचिये की जंग सिर्फ मज़हब के नाम पर ही होती है
शैतान क्यों शैतान बना
वो शैतान जन्नत से ही इंसान को पसंद नहीं करता था, जब खुदा ने तमाम मखलूक को कहा कि पहले इंसान आदम को सजदा करो तो सबने सजदा इसी लिए कर दिया कि ये हुक्म खुदा का था, मगर शैतान ने protest किया कि वो इस इंसान के सामने सजदा नहीं करेगा, उसने खुदा के सामने दलीलें देनी शुरू कर दी, मगर वो ये नहीं देख पा रहा था अपनी दलीलों में वो इतना मसरूफ हो गया कि अपने खुदा के हुक्म की भी मुखालफत कर दी उसने फिर कहा कि वो खुदा के तमाम बन्दों को बहकायेगा, उनके दरमियाँ ज़मीन पर फसाद पैदा करवाएगा, आपस में खूनरेज़ी करवाएगा, एक भाई को दुसरे भाई से लड़ाएगा, आज वो शैतान कामयाब भी है कि मज़हब मज़हब के नाम पर फसाद हो रहा है, दौलत और ताक़त के नशे में फसाद हो रहा है, शैतान ने कहा था की वो खुदा के बन्दे को इबादत से रोकेगा, आज मज़हब के नाम पर लड़ने वाले ये नहीं देखते कि उनकी साड़ी एनर्जी जंग में गुज़र रही है, बिला किसी जुर्म के निहत्ते शहरियों का खून बहाने में मसरूफ हैं, और वो ये समझते हैं कि खुदा को या गॉड, या भगवान को खुश कर रहे हैं, वो यह इतना आसान सबक क्यों भूल जाता है कि खुदा खूंरेजी को पसंद नहीं फरमाता, कुरआन में उसने कई बार फ़रमाया की धरती पर फसाद मत पैदा करो
आप सोच रहे होंगे कि नबी ने भी तो जंग लड़ी है, मैं कहूँगा कि हाँ लड़ी है लेकिन ज़ुल्म के खिलाफ और उस जंग में भी नबी ने ये सख्ती से कानून बनाया था कि औरतों को नहीं मारा जाएगा, बच्चो को नहीं मारा जाएगा, उस वक़्त तलवार से जंग होती थी, औरतों और बच्चों के मरने का कोई खतरा नहीं था, वहां सिर्फ ज़ुल्म के खिलाफ लड़ाई होती थी, अब ज़माने में नुक्लेअर है, अब तो हर जंग में शहरियों की ही जाने जाती हैं
शैतान बहुत चालाक था जब वो शैतान बना और जन्नत से निकाला गया तो उसने खुदा से एक ताक़त मांगी कि वो इंसानों को गलत बातों में उलझाकर और बहकाकर रखेगा, खुदा की मर्ज़ी के आगे हम बेबस हैं, हम उसकी हिकमत को सही से नहीं समझ सकते जब तक वो खुद न हमे बता दे, मगर इतना जानते हैं कि खुदा ने शैतान को ताक़त तो देदी मगर साथ में ये भी कहा कि जो मेरा सच्चा बंदा होगा वो कभी तेरी बातों में नहीं भटकेगा, फिर कुरआन में अपने बन्दों को सबस पहले ये नसीहत भी कि ज्ञान हासिल करो क्योंकि बिना ज्ञान हासिल किये शैतान की चाल को नहीं समझ सकते, तुम मेरे सच्चे बन्दे हो तो ज्ञान हासिल करोगे, बार बार कुरआन ने कहा कि सोचो, फ़िक्र करो, गौर करो, धयान लगाओ, जानो, पहचानो, समझो, सच की भी तलाश करो, खुदा की पहचान करो, शैतान की चाल को समझो, और कई बार ये भी फ़रमाया कि शैतान तुम्हारा खुला हुआ दुश्मन है
मगर हम कैसी सोच रखते हैं कि सही सोचने की सलाहियत भी हमारे अन्दर से गायब हो रही है, आज सोशल मीडिया पर कुछ हमारे इंसानी भाई ऐसा ज़हर उगल रहे हैं जिनको देखकर बस यही लगता है शैतान ने हमारे इंसानी भाई को पूरी तरह अपनी जकड में क़ैद कर लिया है. फिर हम दुआ करते हैं या अल्लाह खैर और रहम फरमा.
शैतान की चाल को समझना सिर्फ खुदा की दी हुई तालीमात से ही मुमकिन है, यहूदी, इसाई, मुसलमानों की एक बड़ी आम जनता भी इन शैतानी चालों को नहीं समझ सके, और आपस में खूब लड़ने मारने की तारीख बनाते चले गए, इन तारीखी जंगों में एक पार्टी हक और इंसानियत पर हो सकती है तो दूसरी नाहक और शैतानियत पर भी. लेकिन बिना कोई नाम लिए बस हमें अपना मुहासबा करना है, कैसे हम इंसानियत की राह पर एक साथ मिलकर चलें और शैतानियत के राह को छोड़ दें
ज़ालिम होना ये असल में शैतान का रूप है, मगर शैतान कभी किसी इंसान को ज़ालिम बना कर पेश करता है, आज ज़ालिम अपने मकसद में कामयाब हुए, इंसानियत जिसकी सबसे बड़ी खूबी ये थी की ये हर तरह की गुलामी से आज़ाद होती है, मगर जालिमों ने इंसानियत को भी अपना गुलाम बना लिया, आज ज़ुल्म के आगे लोग इतने झुक गए हैं, कि हकीक़त जान्ने के बावजूद खुल कर सच बोल नहीं सकते, लेकिन इंसानियत का कलेजा रखने वाले इन कमज़ोर लोगों को भी इस बात की समझ हो चुकी है कि ज़ुल्म ने पूरी दुनिया को अपना गुलाम बना लिया है, मगर मजबूर हैं कि खुल कर बोल नहीं सकते. अब खुदा से ही दुआ कर सकते हैं कि ज़ुल्म को इस धरती से मिटा दे
जालिमों ने ही आजादी के नाम पर देश कर बटवारा कर दिया, और अपने मोहरों को हर कोने पर बिठा दिया की हमेशा समझौता होते होते किसी एक मुल्क का लीडर बदल जाता, बात लम्बी नहीं करूँगा, बस इतना जान लीजिये, ज़ालिम ही है जो हर मुल्क को आजादी के नाम पर ठग रखा है, और एक को जैसे चाहता है घुमाता है, एक मुल्क का बटवारा करवाने में अहम् रोल अदा करता है, फिर दो बॉर्डर में अमन पैदा नहीं होने देता, ये किसी एक जगह की बात नहीं, दुनिया के कई मुल्क ज़ालिम की मकर के जाल में फंसे हुए हैं,
हर मज़हब में कुछ मज़हबी रहनुमा होते हैं, वो खुदा से मुहब्बत की बाते बताते हैं, लेकिन बहुत का हाल ऐसा होता कि वो सिर्फ मज़हब की किताबों में इतने मसरूफ होते हैं, कि उनको दुनिया में जालिमों की खबर भी नहीं होती कि किस तरह वो अपना शैतानी एजेंडा चला रह हैं, क्या बताऊँ ये इतने नादान होते हैं, कह लीजिये, सीधे साधे होते हैं कि कुछ खबर भी होती कि चल क्या रहा है, वो कहते हैं, हमे बस खुदा के ज़िक्र में लगे रहना चाहिए, लेकिन वहां कुछ ऐसे भी नादाँन होते हैं जो माहौल को सही से समझ भी नहीं पाते हैं, और फिर ऐसे ऐसे फतवे देने शुरू कर देते हैं, की लोगो में नासमझी पैदा होना शुरू हो जाती है, लोग भी ये समझना शुरू कर देते हैं कि साड़ी लड़ाई मज़हब की वजह से है, मज़हब तो खुदा से मुहब्बत की तालीम देता है, मज़हब तो मुहब्बत की बात सिखाता है, मज़हब इन्सान के दिल में खुदा से ऐसी मुहब्बत पैदा कर देता है की दिल में नरमी, रहमत, और मुहब्बत की ऐसी चिंगारी पैदा होती है जिसका फायदा तो पूरी इंसानियत को होता है, जिससे तो लोगों को सुकून मिलता है, बेचैनी ख़त्म होती है, लोग चैन और सुकून की नींद पाते हैं, मगर माफ़ कीजियेगा जालिमों की चालों के सामने हमारे कुछ फतवे देने वालों ने अपनी अक्ल और समझ का ऐसा जनाज़ा उठाया कि शैतान की चाल को नहीं समझ पाए और फिर वो ख़ुद इसका शिकार हुए और अपनी कौम को भी इसका शिकार करवाने में अहम् किरदार अदा किया, मायूस और ग़म की बड़ी narrative फैलाई, और फिर कभी अपनी मायूसी की भड़ास कभी अपने ही आपस पर निकालते रहते हैं,
सच कहा है किसी ने कि जब तक बीमारी की पहचान ना हो, इलाज नहीं तलाश कर पायेंगे,
हम मायूस फिकरों के साथ इस तरह
ज़िन्दगी गुज़ार रहें हैं कि हमारी अकलों पर गफलत का पर्दा पड़ गया है और हम ये नहीं समझ
पा रहे हैं, इस धरती पर इंसान शैतान से जंग करने आया है. वो शैतान कहाँ है, वो शैतान हमारे रग रग में बसा
हुआ है, झूट, बुरी सोच, इंसानों को नफरत से देखना,
मोबाइल और इन्टरनेट देखकर इंसानों
को गलत निगाह से देखना, बेचैनी का माहौल बनाना, दौलत की लालच, हसद, जलन, उंच नीच, और ना जाने कितनी बुराई इस पूरी
धरती पर खुले आम घूम रही हैं. एक सच्चा इंसान बन्ने के लिए हमे सबसे पहले अपने दिलों
को साफ़ करना होगा, हमें खुदा से सच्ची मुहब्बत करनी होगी, इंसानियत का दर्द अपने सीनों में रखना होगा,
अगर हम ऐसा बन्ने में कामयाब
हैं तो इसका मतलब है हम एक अच्छे शहरी हैं, एक अच्छे इंसान हैं और एक अच्छे हिन्दुस्तानी भी हैं.
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URL: https://newageislam.com/hindi-section/partition-palestine-india-britishers-satanic/d/130941
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