निकोलस क्रिस्टॉफ
10 जनवरी 2015
फ्रांसीसी अखबार शार्ली एबदो सभी धर्मों और पृष्ठभूमि के लोगों को कुरेदता है। इसके एक कार्टून में टॉयलेट पेपर का रोल दिखाया गया था, जिसमें बाइबिल, टोरा और कुरान अंकित थे और लिखा था, सभी धर्म शौचालय में।
जब नकाबपोश बंदूकधारियों ने शार्ली एबदो के पेरिस स्थित कार्यालय पर हमला कर 12 लोगों की जान ली, तो कइयों ने तुरंत यह अनुमान लगा लिया कि अपराधी कोई ईसाई या यहूदी कट्टरपंथी नहीं, बल्कि इस्लामी अतिवादी थे। दरअसल नाराज ईसाई, यहूदी या नास्तिक फेसबुक या ट्विटर पर अपनी भड़ास निकाल सकते हैं। हालांकि अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि इस घटना का जिम्मेदार कौन है, लेकिन अनुमान यही है कि इस्लामी चरमपंथियों ने एक बार फिर अपनी नाराजगी गोलियों के रूप में प्रकट की है।
कई लोग पूछते हैं कि क्या इस्लाम में कुछ ऐसा है, जिसकी वजह से नृशंस हिंसा, आतंकवाद और महिलाओं के दमन को बढ़ावा मिलता है? यह सवाल इसलिए उठता है, क्योंकि कट्टर मुसलमान अमूमन अल्लाह के नाम पर हत्या करते दिखते हैं। 2004 में मेड्रिड में ट्रेन में हुए विस्फोट, जिसमें 191 लोगों की मौत हुई थी, से लेकर पिछले महीने सिडनी के एक कैफे में लोगों को बंधक बनाने की घटना तक में ऐसा दिखता है। पैगम्बर मोहम्मद के अपमान के गलत मामले में फंसे विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर का बचाव करने की वजह से पिछले वर्ष मेरे एक पाकिस्तानी दोस्त और वकील राशिद रहमान की हत्या कर दी गई थी। इस घटना के बाद मैंने लिखा था कि इस्लामी दुनिया में असहिष्णुता तेजी से बढ़ रही है। ईसाई और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों (बहाई से लेकर यजीदी तक) का उत्पीड़न तो लगातार इस्लामी दुनिया में किया ही जाता रहा है। महिलाओं के दमन की बात करें, तो लैंगिक अंतर से संबंधित वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम की रिपोर्ट में दस सबसे निचले पायदानों पर अवस्थित देशों में नौ मुस्लिम बहुल हैं। लिहाजा मेरा यही मानना है कि शार्ली एबदो के दफ्तर पर हुए हमले की पृष्ठभूमि में यही इस्लामी असहिष्णुता और अतिवाद है।
बहरहाल, आतंकी घटनाओं के कारण मुसलमान कई पश्चिमी देशों की नजर में स्वाभाविक उग्रवादी माने जाते हैं, पर मेरा मानना है कि यह बहुत सरलीकरण है। चंद आतंकवादी भले ही सुर्खियां बनते हैं, पर वे 1.6 अरब अनुयायियों वाले विविधताओं से संपन्न धर्म के नुमाइंदे नहीं हैं। मुसलमानों की अधिकतर आबादी इन हमलों से जुड़ी नहीं रहती, सिवाय इसके कि वह भी उनका शिकार होती है। शार्ली एबदो पर ही हुआ हमला बुधवार का सबसे घातक आतंकी हमला नहीं था। उस दिन यमन में भी पुलिस कॉलेज से बाहर एक विस्फोट हुआ था, जिसे संभवतः अल कायदा ने अंजाम दिया। उस हमले में भी कम से कम 37 लोगों की जान गई है।
पत्रकारिता में मैंने यह सीखा है कि सामान्य नजरों से दुनिया को देखने से बचना चाहिए, क्योंकि तभी नई जानकारी खुले मन से अपनी स्टोरी में डाली जा सकती है। मॉरिटानिया से लेकर सऊदी अरब तक और पाकिस्तान से लेकर इंडोनेशिया तक की मेरी यात्राओं के दौरान अतिवादी मुस्लमानों ने अमेरिका को लेकर अपना झूठा नजरिया मुझसे साझा किया कि अमेरिका एक ऐसा दमनकारी राष्ट्र है, जो न सिर्फ यहूदियों द्वारा नियंत्रित है, बल्कि इस्लाम को खत्म करना चाहता है। यह एक बेतुकी सोच है और हमें भी इस्लाम को, जो इतना वैविध्यपूर्ण है, हास्य के रूप में पेश करने से बचना चाहिए।
हमें यह भी पता होना चाहिए कि पश्चिम एशिया के शांतिप्रिय और साहसी लोग, जो मुस्लिम चरमपंथियों के खिलाफ खड़े हो रहे हैं, खुद भी इस्लाम धर्मावलंबी हैं। बेशक कुछ ऐसे मुसलमान हैं जो कुरान भी पढ़ते हैं और लड़कियों के स्कूल ध्वस्त कर देते हैं, मगर ऐसे लोगों की संख्या अधिक है, जो कुरान भी पढ़ते हैं और लड़कियों के लिए स्कूल भी बनवाते हैं। यदि तालिबान इस्लाम का एक पक्ष है, तो दूसरा पक्ष नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई हैं। यहां मुझे एक कहानी याद आ रही है, हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है, कि गांधी जी से एक बार पूछा गया था कि वह पश्चिमी सभ्यता के विषय में क्या सोचते हैं? उनका जवाब था, मुझे लगता है कि यह एक अच्छा विचार होगा।
लिहाजा बंटवारा किसी धर्म के बीच नहीं है। बल्कि यह आतंकवादियों और उदारवादियों के बीच होना चाहिए, यह उन लोगों के बीच होना चाहिए, जिसमें एक सहिष्णु है और दूसरा 'असहिष्णु'। ऑस्ट्रेलिया में बंधक संकट के बाद कुछ मुसलमान बदले के हमलों से चिंतित थे। तब गैर-मुस्लिम ऑस्ट्रेलियाइयों ने मुसलमानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ट्विटर पर एक हैशटैग #आईविल राइड विद यू चलाया। इस हैशटैग के साथ ढाई लाख से अधिक कमेंट ट्विटर पर पोस्ट किए गए, जो आतंकी हमलों के बाद उदारता का बड़ा मॉडल बना। शाबाश! यही भावना होनी चाहिए। हमें शार्ली एबदो के समर्थन में खड़ा होना चाहिए। हमें इस्लामी दुनिया या विश्व के किसी भी हिस्से में मौजूद आतंकवाद, उत्पीड़न और महिलाओं के दमन की निंदा करनी चाहिए। मगर हां, यह जरूर ध्यान रखना चाहिए कि आतंकी असहिष्णुता हमारे अंदर न पनपे।
Source: http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/columns/cartoon-terrorism-and-islam-hindi/
URL: https://newageislam.com/hindi-section/cartoon,-terrorism-islam-/d/100940