नाज़िया इरम
30 मई, 2017
दो महीने पहले की बात है हम अपने किराए के अपार्टमेंट को बदलने की सोच रहे थे। हमारे बढ़ते बच्चे को देखते हुए हमने पाया कि क्षमता बढ़ाने की जरूरत है और हमनें सप्ताह के अंत में दौड़ धूप शुरू कर दी कोई अधिक बड़ा मकान खोज लिया जाए। हम सभी जानते हैं कि किसी मुसलमान के लिए मकान का अधिग्रहण कितना कठिन मामला है और हमनें इस मुद्दे पर तथ्य प्रकट करते हुए आगे बढ़ने का तरीका अपनाया। हमनें अपने ब्रोकर को शुरू में ही कह दिया कि हम मुसलमान हैं और कृपया हमारी पहचान छिपाने से बचना। हमनें इससे सुनिश्चित कहा कि मकान मालिक को मुसलमानों को किराए पर रखने में बिलकुल कोई दिक्कत न हो और तब ही हम वहाँ जाकर मकान देखेंगे।
ब्रोकर युवक था और हमारी खरी खरी बातों से आश्चर्य में पड़ गया,और लज्जा के साथ मुस्कुरा दिया। हालांकि इससे हमारे लिए संभावनाएं सीमित हो गए लेकिन पर्याप्त समय और ऊर्जा का बचाव भी हुआ। नई जगह स्थानांतरण के लिए दो महीने की गतिविधि के बाद हमें आखिरकार एक अपार्टमेंट पसंद आया बल्कि हम बेहद प्रभावित हुए। इस विशाल, हवादार, उचित स्थान पर हमारे बजट में था और हमें जीवन शैली वह गुणवत्ता में कुछ बदलाव की जरूरत नहीं थी जो हम चाहते थे। संपत्ति का मालिक अच्छे स्वभाव का और मिलनसार व्यक्ति था और हमें अचानक लगा कि हमने आखिरकार नया मकान पालिया है।
जब हम नए अपार्टमेंट चले गए तो हम रोजमर्रा की विभिन्न आवश्यकताओं से निपटना शुरू किया। तरकारी व्यापारी, फूल वाला, दूध वाला और स्थानीय मीत शाप ... ... सबको घर पर सामान पहुंचाने के लिए कह दिया गया। हमारे बिल्डिंग के गार्ड जब भी कोई आगंतुक आए उसे प्रवेश की अनुमति देने से पहले 'इंटरकॉम' पर हमसे बात कर लेते हैं। कभी कभी जब हमारा मांस वाला हमारे आर्डर पहुंचाने आए, चाहे वह मछली हो, चिकन या मटन, हमको फोन आता है कि '' मटन आया है ''। और जब कभी ऐसा हो हमें परेशां ख्याली सताती है।
शुरू में हमनें गोश्त पहुंचाने आए लड़के की तम्बीह की कि बस इसे 'खाने'की चीज ही कहा करे। लेकिन वह भूल जाता है और हर बार हम इंटरकॉम पर सुनते हैं कि '' मटन आया है ''। ये शब्द ही बुरे शगुन वाले मालूम होते हैं। हमारे सख्त नाराज़गी को देखते हुए मांस वाले लड़के ने आखिरकार पूछ ही लिया कि लेकिन क्यों आप लोग मुझसे कहते हैं कि 'मटन' न बोलूं? मैंने जवाब दिया, '' क्या पता तुम्हारा मटन कब गोमांस बन जाए? ''
आजकल किसी मुसलमान के घर में पकने वाला कोई मांस आखिर गोमांस ही तो समझा जाने लगा है। मेरी मुस्लिम दासी मुझे बताती है कि कई बार इससे अन्य दासियों ने पूछा कि क्या हम घर में गोमांस बनाती है?हम नहीं बनाती है। लेकिन हम फिर भी बे ऐतेबारी में जीते हैं। अपने अगल बगल घटी घटनाओं के समाचार देखें,स्पष्टीकरण के लिए समय ही कहां है,केवल शक पर्याप्त है कि किसी मुसलमान को अपमानित किया,या बदतर उपाय करते हुए उसे मार डाला जाए। अगर कभी भी हमारे अपार्टमेंट पहुंचाए जाने वाले मीट के प्रकार के बारे में भ्रम की स्थिति पैदा हो,भले ही अनजाने में हो,हम इस समुदाय के खिलाफ पकड़े जाने वालों में बस एक और वृद्धि हो जाएंगे। क्योंकि '' हलाकू भीड़ '' एक या दो जगह तक सीमित तो है नहीं, यह तो हमारे आस-पास सभी जगह हैं।
मुझे याद है,उस मकान को सटीकता देते समय हम आसपास घूमकर क्लब हाउस,स्विमिंग पूल और उपलब्ध अन्य स्पोर्ट्स सुविधाओं का संतोष किया था। हम दोनों बहुत प्रसन्न हुए और हमारे नए घर के लिए योजना बनाने लगे। हमने तय किया कि हमारी बिल्डिंग में एक मकान पर दस्तक देते हुए भी पार्टमनट के हुस्न व कबह के संबंध में पूछ ताछ कर लिया जाए। जब दरवाजा खुला तो भावुक जोड़ी ने गरम जोशाना मुस्कुराहट के साथ हमारा स्वागत किया जिससे त्वरित पसंदीदगी पैदा हो जाती है। हमनें उन्हें बताया कि हम स्थानांतरण की योजना बना रहे हैं और वे हम से बातचीत करते हुए खुश दिखाई दिए। कुछ औपचारिक बातों के बाद उन्होंने हमें चाय पेश की और हम उनके सोफा सिट पर आराम से चाय नोश करने लगे।
फिर अचानक उन्होंने हमसे पूछा,''आपका नाम क्या है?''हमने जाना कि नए लोगों से मुलाकात के उत्साह में हम में से किसी ने भी खुद के परिचय की कष्ट नहीं की। इसलिए,हमनें अपने नाम बताए। अचानक, अभी हमारे हाथ में चाय की पियालियाँ मौजूद थीं कि हमें कुछ झिझक और अचानक चुप्पी का एहसास हुआ। कुछ देर तक एक दूसरे नज़र डालने का बे आवाज तबादला हुआ। मैंनें कहीं सुना था कि मुसलमानों के इतेमाल किये हुए चाय की पियालयाँ लोग नष्ट कर देते हैं। मुझे मेरे हाथ में मौजूद उत्कृष्ट चीनी कप के संभावित हश्र का सोचकर दुख हुआ। इतनी सुंदर कप का कैसा बर्बादी है!उसकी केवल इतनी गलती है कि यह मेरे हाथ में आ गई।
मैंनें यह भी जान लिया कि अब पहले जैसे हालात नहीं रहे और आपको किसी के घर में प्रवेश के लिए एक दो बार संतोष कर लेना चाहिए कि क्या आपके धर्म को जानने के बाद वह आपका स्वागत करेंगे या नहीं। लेकिन जानकारी और व्यक्तिगत अनुभव समान बातें नहीं हैं। वैसे तो हम मकान मालिकों का मुस्लिम किरायेदारों को मकान न देने से परिचित थे, लेकिन हम शिक्षित और समकक्ष विशेषाधिकार के हामिल पड़ोसियों से झिझक का सामना करने के लिए तैयार नहीं थे। हाँ,कट्टरपंथी को उसकी सारी प्रकृति में स्वीकार करना धीरे-धीरे होता है। लेकिन आज मुसलमान होने का मतलब दैनिक जीवन में ऐसे घटनाओं से बेपरवाह होकर जीना है। ऐसे आगंतुक पर अब हमें हल्के मुस्कान आ रहा है जो हमारे घरों में एक गिलास पानी तक पीने से इनकार कर देते हैं।
दूसरी ओर, हमें कुछ संपत्ति के मालिक मिलते हैं जो हमें उत्कृष्ट मकान किराए पर देते हैं। दोस्तों को खो देने और बेबुनियाद नफरत का शिकार बनने के आदी होने में हमें समय लगेगा। लेकिन इसके साथ हम निराश नहीं हैं क्योंकि हम नए दोस्त बना लेते हैं जो धर्म या राजनीतिक झुकाव भले अन्याय के खिलाफ सीना सुपर होते हैं। हमें '' हलाकू भीड़ '' और '' आतंकवादी न्याय '' को लेकर भी बहुत कुछ सुनने में आ रहा है, जो केवल एक समुदाय को निशाना बना रहे हैं। यदि कई 'सही फ़िक्र वाले' पर्यवेक्षकों पर विश्वास करें तो यह कोई सांप्रदायिक घटना नहीं बल्कि सोची-समझी कार्रवाई हैं। यह बात हमें चिंतित,बहुत चिंतित करती है।
हमारे यानी भारतीय मुस्लिम बहुमत परिचित है कि हमें हम अस्ल या हम नस्ल समूह माना जाता है ... उम्मत जो कार्यों और एतेकादों में बटने वाली नहीं है। हम ऐसे वाक्यांश सुनते आए हैं कि ''ओह!आप मुस्लिम जैसे दिखाई नहीं देते ''या ''आपके यहाँ तो होंगे चाकू छुरी चलाने वाले ''। हम बहुत ही रूढ़िवादी हैं और वर्ग,धर्म या आकांक्षाओं के अंतर में उलझे हुए हैं। और इसकी जानकारी आज मुस्लिम होने के साथ ही अन्तरात्मा है। यह कोई लगा बंधा समाचार लेख नहीं।यह तथ्य है जिसके साथ हम जी रहे हैं।
शायद यही कारण है कि किसी मुस्लिम को हलाकू भीड़ से मार डालने की खबर हमारे लिए बहुत निकटता वाली है और हमारे पड़ोसियों के लिए कहीं दूर उफ़्तादा कोई इत्तेफाकी घटना। मुझे तो ऐसा लगता है कि एक और दिन भलाई से गुजर गया,एक और दिन जी लिए,क्योंकि अच्छी तरह से पता है कि मुझे अगला निशाना बनाया जा सकता है। आश्चर्यजनक बहीमियत और अंतराल से पेश आना,शायद इसलिए मेरे पड़ोसी और सहयोगियों ने खुद को इस तथ्य से उदासीन कर लिया है आज भारत क्या बन चुका है।
इसे मन में तो हाशिए पर रखना आसान है। उसकी आंशिक कारण यह है कि खुद को बहुसंख्यक हिंदू मध्यम और स्वर्ण जाति के इताब से अलग कर लिया जाए। इसलिए वह इस तरह की हिंसा के खिलाफ लैब कुशाई नहीं करेंगे। सामाजिक मीडिया पर कितने कोने हैं जो दुनिया के हर मुद्दे पर बात करते हैं लेकिन (हलाकू भीड़) पर नहीं। इस बारे में सभी '' मन की बातों 'में पूर्ण मौन है। शायद खून खाए व्यक्ति की छवि अब दिलों को नहीं तड़पाती है, जो अपने हाथ जोड़कर जान बचाने की कोशिश कर रहा था। यह एक संकेत है कि हम कितना विकसित है, समाज के तथाकथित महरूम व्यक्ति तक आज स्मार्टफोन रखता है!शायद हमें ऐसी खूनी विवरण नहीं पड़ना चाहिए बल्कि सकारात्मक पहलुओं को देखते हुए विभिन्न विचारों को स्वीकार करना होगा जो हमें इस तरह कि 'यक्का दुक्का'घटनाओं के संबंध में दिलासा देते हैं। ठीक है! कुछ न देखें, कुछ न सुनें और वह डर भी महसूस ना करें जो अपने मुस्लिम पड़ोसी या रफीक के जीवन में करीब में ही पाया जाता है।
(यह लेख News18.com 22 मई 2017 को प्रकाशित हुआ)
30 मई, 2017 स्रोत: रोजनाम जदीद ख़बर, नई दिल्ली
URL for Urdu article: https://www.newageislam.com/urdu-section/new-trial-muslims-/d/111390
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