नास्तिक दुर्रानी, न्यु एज इस्लाम
19 अगस्त, 2013
शुरुआत में ये स्पष्ट कर देना जरूरी है कि फ़िलिस्तीन और क़ुद्स दोनों का क़ुरान में ज़िक्र (उल्लेख) नहीं है, लेकिन सिर्फ बैतुल मोक़द्दस का आया है वो भी सीधे तौर पर नहीं है बल्कि तफ़्सीर और इतिहास की किताबों में नमाज़ के लिए क़िबला बदलने और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के मेराज के वाक़ए के संदर्भ में आया है, तो क्या वास्तव में अलक़ुद्स पहला क़िबला है?
आज के दौर के अरब और इस्लामी ग्रंथों में ये बयान बहुत प्रचलित है कि क़ुद्स "पहला क़िबला" था यानी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम और सबसे पहले मुसलमानों ने इस्लाम के उद्भव के आरंभिक दौर में नमाज़ें बैतुल मोक़द्दस की तरफ तरतरफततओर मुंह करके अदा की तो क्या वास्तव में ऐसा ही था?
इन सवालों के जवाबों के लिए आइए देखते हैं कि सलफ़ ने इस मसले पर क्या कुछ नक़ल किया। हज़रत अनस रज़ियल्लाहू अन्हा से सही मुस्लिम में मरवी है कि " रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम बैतुल मोक़द्दस की तरफ मुंह करके नमाज़ अदा किया करते थे" (सही मुस्लिम जिल्द- 1, पेज- 375, सुनन अबी दाऊद जिल्द- 1, पेज- 340, मसनद अहमद बिन हम्बल जिल्द- 1, पेज 325) और तिबरी की रवायत में "हिजरत (पलायन) से पहले जब पैगंबर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम जब मक्का में थे, वो बैतुल मोक़द्दस की तरफ़ नमाज़ पढ़ा करते थे। हिजरत के बाद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने बैतुल मोक़द्दस की तरफ़ सोलह महीने तक मुंह करके नमाज़ अदा की" (तफ्सीर अलतिबरी जिल्द- 1, पेज- 548, तारीख़ अलतिबरी जिल्द- 2, पेज- 18 और देखिए सियूती की अलदर अलमंसूर जिल्द- 1, पेज- 343 और अलसालेही अलशामी की सबल अलहुदा वलरिशाद पेज- 370) यानी बैतुल मोक़द्दस इन रवायतों के अनुसार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम और मुसलमानों का पहला क़िबला था।
लेकिन अगर हम अपनी तलाश जारी रखें तो मालूम पड़ेगा कि इस बात पर सहमति नहीं है, बल्कि पहले क़िबला के मामले पर दो राय पाई जाती है। बहुत से लोगों के अनुसार पहला क़िबला काबा था और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम "मक्का में काबा की तरफ मुँह कर के नमाज़ पढ़ा करते थे और हिजरत के बाद बैतुल मोक़द्दस की तरफ मुंह करके नमाज़ पढ़ने का हुक्म दिया गया" (ज़मखशरी की अलकिशाफ जिल्द- 1, पेज- 100, तफ्सीर अलबैदावी जिल्द- 1, पेज- 416, तफ्सीर अलनैसाबूरी जिल्द- 1, पेज- 355, शौकानी की फतेहुल क़दीर जिल्द- 1, पेज- 234) क़ुर्तबी इस मतभेद का खुलासा करते हुए कहते हैं: "इस बात पर मतभेद है कि जब मक्का में इन पर पहली बार नमाज़ फर्ज़ (अनिवार्य) की गई तो क्या वो बैतुल मोक़द्दस की तरफ थी या मक्का की तरफ, और उस पर दो राय हैं, एक समूह कहता है कि बैतुल मोक़द्दस की तरफ और मदीना में सत्रह महीने फिर इसके बाद अल्लाह ने उन्हें काबा की तरफ फेर दिया। इब्ने अब्बास और दूसरों ने कहा: सबसे पहले उन पर नमाज़ काबा की तरफ़ फर्ज़ की गई और मक्का के पूरे दौर में वो इसी तरफ मुंह करके नमाज़ पढ़ते रहे और जब मदीना आए तो बैतुल मोक़द्दस की तरफ नमाज़ पढ़ी। फिर अल्लाह ने उन्हें काबा की तरफ़ फेर दिया। अबु उमर ने कहा कि, मेरे यहाँ ये दोनों बातें सही हैं" ( तफ्सीर अलक़ुर्तबी जिल्द- 2, पेज- 150) दूसरे शब्दों में कुछ लोग इस बयान को प्राथमिकता देते हैं और कहते हैं कि काबा ही पहला क़िबला था न कि बैतुल मोक़द्दस। इब्ने अब्बास की रवायत से भी यही पता चलता है कि शुरू में नमाज़ काबा की तरफ़ थी फिर बैतुल मोक़द्दस की तरफ हो गयी और फिर दोबारा से इसे काबा की तरफ़ कर दिया गयाः" रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने नमाज़ की तैयारी की तो बैतुल मोक़द्दस की तरफ मुंह किया और बैते अतीक़ (काबा) को छोड़ दिया, फिर अल्लाह ने उन्हें बैते अतीक़ की तरफ़ फेर दिया और इसे (बैतुल मोक़द्दस को) मंसूख (रद्द) कर दिया" (तफ्सीर इब्ने कसीर जिल्द- 1, पेज- 218) यानी सबसे पहले नमाज़ बैते अतीक़ की तरफ मुंह करके अदा की गई, फिर उसे छोड़कर बैतुल मोक़द्दस की तरफ रुख कर के नमाज़ अदा की जाने लगी और फिर दोबारा बैते अतीक़ की तरफ फेर दिया गया। बल्कि कुछ मोफस्सिरीन (टीकाकार) तो काबा को "अक़दम अलक़िबलतैन" यानी दोनों क़िबलों में से सबसे पुराना लिखा है (तफ्सीर अलबैदावी जिल्द- 1, पेज- 420, तफ्सीर इब्ने अजीबतः जिल्द- 1, पेज- 115)।
इसलिए ऊपर सलफ के ग्रंथों से जो कुछ नक़ल किया गया है उसके अनुसार ये स्पष्ट हो जाता है कि बैतुल मोक़द्दस के पहला क़िबला होने पर कोई आम सहमति नहीं पाई जाती हालांकि वर्तमान समय में ये कथन बड़ा प्रचलित है या सीधे साधे मुसलमानों को बेवकूफ बनाने के लिए प्रचलित कर दिया गया है।
और जिस तरह पहले क़िबला के मामले पर कोई आम सहमति नहीं है उसी तरह इस बात पर भी कोई सहमति नहीं है कि बैतुल मोक़द्दस का चुनाव अल्लाह का हुक्म था या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का अपना चुनाव था। कुछ लोगों के अनुसार बैतुल मोक़द्दस रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का अपना चुनाव था जैसा कि तिबरी उल्लेख करते हैं: "रबी ने कहा कि अबु अलआलिया ने कहा: "अल्लाह के नबी को ये चुनाव करने को दिया गया था कि वो जिस तरफ चाहें रूख़ कर लें तो उन्होंने बैतुल मोक़द्दस का चुनाव किया" (तफ्सीर अलतिबरी जिल्द- 2, पेज- 3) हालांकि एक साथ कुछ दूसरी रवायतें भी हैं जो कहती हैं कि बैतुल मोक़द्दस की तरफ रुख़ खुदाई हुक्म था, जैसा कि इस रवायत से मालूम होता है: "जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम मदीना हिजरत कर गए तो अल्लाह ने उन्हें बैतुल मोक़द्दस की तरफ रुख करने का हुक्म दिया" (तफ्सीर इब्ने कसीर जिल्द- 1, पेज- 458, सियूती की अलदर अलमंसूर जिल्द- 1, पेज- 343, सियूती की ही लुबाब अलनुक़ूल फी अस्बाब अलनुज़ूल जिल्द- 1, पेज- 16) इस मसले ने एक न ख़त्म होने वाली लंबी बहस को जन्म दिया क्योंकि इसका सम्बंध विश्वास था इसलिए यहां इस बहस में पड़ना अनुपयुक्त है।
और सिर्फ यही नहीं, अगर मामले का ध्यानपूर्वक जायज़ा लिया जाए तो पता चलता है कि नमाज़ का रुख आमतौर पर बैतुल मोक़द्दस की तरफ नहीं था बल्कि वास्तव में एक निश्चित बिंदु की तरफ था और ये बिंदु "सोख़रा" है (मस्जिदे अक्सा के गुम्बद के नीचे मौजूद एक चट्टान) जैसा कि तिबरी बयान करते हैं: " रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम बैतुल मोक़द्दस के सोख़रा की तरफ रुख करके नमाज़ अदा किया करते थे" (तफ्सीर अलतिबरी जिल्द- 2, पेज- 3, सियूती की अलदर अलमंसूर जिल्द- 1, पेज- 343, और देखिए सआलबी की अलकश्फ वलबयान जिल्द- 1, पेज- 259) एक और रवायत इस प्रकार है: "क्योंकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम मक्का में काबा की तरफ़ मुंह करके नमाज़ अदा किया करते थे फिर उन्हें हिजरत के बाद बैतुल मोक़द्दस के सोख़रा की तरफ मुंह करके नमाज़ अदा करने का हुक्म दिया गया" (ज़मखशरी की अलकशाफ जिल्द- 1, पेज- 100, तफ्सीर अलबैदावी जिल्द- 1, पेज- 416, तफ्सीर अलनैसाबूरी जिल्द- 1, पेज- 355, और शौकानी की फतह अलक़दीर जिल्द- 1, पेज- 234) आसान शब्दों में नमाज़ का रुख बैतुल मोक़द्दस में मौजूद एक निश्चित बिंदु की तरफ था और वो बिंदु था सोख़रा।
कुछ भी हो इस बात में शक नहीं है कि इस्लामी साहित्य में इस बात पर सहमति है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की मदीना हिजरत के बाद क़िबला सोलह या सत्रह महीने बाद काबा की तरफ़ बदल दिया गया, और इस्लामी परंपराओं के अनुसार ये बदलाव इस्लाम के प्रारंभिक दौर के आदेशों को रद्द करना था और ये "इस्लाम में होने वाली पहला रद्दीकरण था" (सीरत इब्ने कसीर जिल्द- 2, पेज- 372, तफ्सीर इब्ने कसीर जिल्द- 1, पेज- 218) और एक रवायत के अनुसार "कुरान में सबसे पहले क़िबला मंसूख किया गया" (तफ्सीर अलतिबरी जिल्द- 2, पेज- 3, सियूती की अलदर अलमंसूर जिल्द- 1, पेज- 343, अलसालेही अलशामी की सबल अलहुदा वलरिशाद पेज- 370)।
क़िबला का रुख कुछ भी हो, उपरोक्त परंपराओं के संदर्भ में कम से कम ये बात तो ज़रूर स्पष्ट हो जाती है कि ये सारी परंपराएं एक दूसरे से टकराती हैं और वो भी एक ऐसे मसले पर जो बहुत बुनियादी महत्व का है और नमाज़ के रुख का निर्धारण करता है।
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