नसीर अहमद, न्यु एज इस्लाम
3 अगस्त, 2015
कुरान में एक भी आयत ऐसी नहीं है जो संगीत के खेलाफ उतारी गयी हो या जिसमें मौसीक़ी की बुराई ब्यान की गयी हो, लेकिन फिर भी कुछ हदीसों के आधार पर कुछ लोगों का यह मानना है कि मौसीक़ी का उपयोग सीमित मामलों में और विशेष अवसरों पर वैध है जबकि कुछ लोग इसे वर्जित मानते हैं।
मौसीक़ी के संबंध में सही स्टैंड क्या है?
अगर हम हदीसों का अध्ययन करते हैं तो विभिन्न हदीसों के अध्ययन से उपर लिखी गयी अस्पष्ट और भ्रामक तस्वीर सामने आती है, लेकिन ऐसी एक भी हदीस नहीं है जो स्पष्ट रूप से संगीत पर बंधन का उल्लेख करती हो ।
इसलिए, इस्लाम में मौसीक़ी का क्या महत्व है यह जानने के लिए हमें कुरान पर भरोसा करना चाहिए, और जब कुरान में इस विषय पर एक भी आयत मौजूद नहीं है तो हमें यह मानना होगा कि कुरान संगीत को निषेध नहीं करता है, और न ही उसकी बुराई करता है। हालांकि इस तर्क से वे संतुष्ट नहीं होंगे जो हदीसों से मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं। इसलिए, अब हमें यह देखना होगा कि हम एक ऐसे विषय पर कुरान से कैसे प्रतिक्रिया प्राप्त कर सकते हैं जिस पर कुरान खामोश है।
इस तथ्य के अलावा कि कुरान विशेष रूप से हमें कुछ जानवरों का मांस खाने की अनुमति देता है, शाकाहार के पक्ष में और पशु का मांस खाने के खिलाफ बहस करने वालों के खिलाफ एक बेहतर दलील इस तरह दी जा सकती है कि प्रकृति या अल्लाह ने हमें पाचन की एक प्रणाली प्रदान किया है जो मांस और सब्जी दोनों पचा सकता है, और दांत का एक ऐसा संग्रह प्रदान किया है जिससे सब्जियों को भी चबाया जा सकता है और मांस भी चीर कर खाया जा सकता है। इसी तरह जानवरों को भी ऐसी दांत दी गई है जो या तो केवल घास फूस या सिर्फ मांस या दोनों खा सकते हैं। सब्ज़ी खाने वाले पशु के दांत पत्तियों को चबाने के लिए समतल और मजबूत होते हैं। और इन जानवरों के जबड़े नुकीले होते हैं जो मांस खाते हैं, और वे जानवर जो घास फूस और मांस दोनों खाते हैं उनके सामने दांत मांस चबाने को नुकीली और घास फूस चबाने को समतल और मजबूत होती हैं। इंसान को ऐसी दांत दी गई है जिससे वे मांस और सब्जी दोनों खा सकते हैं, इसलिए अल्लाह या प्रकृति की मंशा यह है कि मनुष्य दोनों तरह के भोजन खाएं।
ऊपर दिए गये तर्क का संगीत के साथ क्या संबंध है?
सभी मनुष्यों के बीच संगीत की क्षमता समान नहीं है। कुछ लोग बहरे पैदा होते हैं जबकि कुछ लोग संगीत तैयार कर सकते हैं। अध्ययन से यह बात साबित हो चुकी है कि जो व्यक्ति मौसीक़ी की समझ और प्राकृतिक योग्यता के बिना पैदा हुआ हो उसे सिर्फ अभ्यास और प्रशिक्षण के आधार पर एक अच्छा गायक या संगीत कार नहीं बनाया जा सकता। हम बच्चों की असाधारण प्रतिभा और योग्यता की वास्तविक कहानियों से इस बात को जानते हैं कि संगीत की योग्यता अल्लाह का दिया हुआ एक जन्मजात उपहार है। विज्ञान ने आगे इस तथ्य को साबित कर दिया है कि आनुवंशिक कारकों की एक अहम भूमिका होती है। प्रशिक्षण और लगातार अभ्यास से केवल तकनीकी कौशल में सुधार पैदा होती है। कोई खुद से म्यूजिकल स्कोर बजा सकता है कि लेकिन उसे भरपूर शैली में संगीत के साथ बजाने के लिए कौशल और योग्यता की आवश्यकता होती है। चाहे वह संगीत हो, कविता हो, कला हो, गणित या विज्ञान हो, उन सब में निहित योग्यता या आनुवंशिक कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हर इंसान के अंदर गणित, तर्क, कला, संगीत, किसी विशेष खेल या एथलेटिक्स की योग्यता नहीं होती है। न्यूरोसाइंस (Neuroscience) के विशेषज्ञ इस बात की पुष्टि करते हैं कि जिनके अंदर संगीत की क्षमता होती है उनका दिमाग़ (मानसिकता) भी अलग होता है। हम उन्हीं चीजों को देखते हैं या सुनते हैं जिन्हें हमारा दिमाग समझने में सक्षम हैं, और जिन अंगों से हम सुनते हैं, देखते हैं, गंध महसूस करते हैं या चखते हैं उनमें तेजी या तीव्रता हमें एक अलग क्षमता और योग्यता प्रदान करती है। किसी चीज़ पर ध्यान केंद्रित करने की हमारी योग्यता भी हमारी क़ुव्वते हस्सा पर निर्भर करता है।
इसलिए, ख़ास बात यह है कि अगर लोगों के अंदर अल्लाह या प्रकृति ने संगीत की क्षमता और महान प्राकृतिक योग्यता रखी है तो इस से अल्लाह या प्रकृति की मंशा यह है कि इसका इस्तेमाल किया जाए। कुरान में अल्लाह ने स्पष्ट रूप से उन पर अपनी नारज़गी व्यक्त की है जो खुद अपनी मर्ज़ी से इन बातों के लिए मना करते हैं जिन्हें अल्लाह ने प्रतिबंधित नहीं किया है:
३:९३ - खाने की सारी चीज़े इसराईल की संतान के लिए हलाल थी, सिवाय उन चीज़ों के जिन्हें तौरात के उतरने से पहले इसराईल ने स्वयं अपने हराम कर लिया था। कहो, "यदि तुम सच्चे हो तो तौरात लाओ और उसे पढ़ो।"
९४ - अब इसके पश्चात भी जो व्यक्ति झूठी बातें अल्लाह से जोड़े, तो ऐसे ही लोग अत्याचारी है
जब अल्लाह ने मौसीक़ी के लिए मना नहीं किया है, तो आदमी खुद से उसे मना करके और ।अल्लाह के नाम से वाबिस्ता कर के तानाशाह बन जाता है।
५:८७ - ऐ ईमान लानेवालो! जो अच्छी पाक चीज़े अल्लाह ने तुम्हारे लिए हलाल की है, उन्हें हराम न कर लो और हद से आगे न बढ़ो। निश्चय ही अल्लाह को वे लोग प्रिय नहीं है, जो हद से आगे बढ़ते है
१६:११६ - और अपनी ज़बानों के बयान किए हुए झूठ के आधार पर यह न कहा करो, "यह हलाल है और यह हराम है," ताकि इस तरह अल्लाह पर झूठ आरोपित करो। जो लोग अल्लाह से सम्बद्ध करके झूठ घड़ते है, वे कदापि सफल होनेवाले नहीं
जब यह स्पष्ट हो गया कि संगीत की योग्यता अल्लाह का अनुदान किया गया एक सुंदर उपहार है, और कुरान इसे निषेध नहीं करता, तो अब संगीत स्वेच्छा से हराम क़रार देना अल्लाह की तरफ झूठ को मंसूब करने के बराबर होगा, और ऐसा करने वाला ज़ालिम होगा जिसे कभी कामयाबी हासिल नहीं होगी। जो बात हमें इंसान बनाती है उसके एक हिस्से को निषेध और हराम क़रार देकर हम एक हद तक एक घटिया इंसान बन जाते हैं। दुर्भाग्य से, हमारे यहां ऐसी संस्कृतियों, समाज और और ऐसे देश हैं जहां संगीत को निषेध और हराम करार दिया गया है, और लोगों को एक इंसान के रूप में अपनी पूरी क्षमता प्राप्त करने के अवसर से वंचित कर दिया गया है जो कि अल्लाह की इच्छा और उसकी मंशा के खिलाफ है।
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