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Hindi Section ( 26 Jun 2021, NewAgeIslam.Com)

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Observance Of Namaz Guarantees Spiritual And Physical Health नमाज़ की पाबंदी आध्यात्मिक और शारीरिक स्वास्थ्य की गारंटी है

डॉक्टर मुहम्मद नजीब कासमी संभली, न्यू एज इस्लाम

उर्दू से अनुवाद, न्यू एज इस्लाम

24 जून 2021

अल्लाह पाक ने मनुष्य को इस तरह से बनाया है कि हर व्यक्ति को आराम के साथ-साथ शारीरिक व्यायाम की भी आवश्यकता होती है। इस आवश्यकता को पूरा करने के विभिन्न तरीके हैं। ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका है दिन में पांच बार नमाज़ पढ़ना, क्योंकि दिन में पांच बार ध्यान से नमाज़ पढ़ना आध्यात्मिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों के लिए बहुत उपयोगी है। चिकित्सा विशेषज्ञों के शोध के अनुसार, नमाज़ के दौरान शरीर के विभिन्न जोड़ों में की जाने वाली क्रियाओं और पीठ दर्द में बहुत मदद मिलती है। साथ ही झुकने और साष्टांग प्रणाम (रुकू और सजदे) करने से शरीर के वे अंग मजबूत होते हैं जो आमतौर पर किसी अन्य व्यायाम से नहीं होते। नमाज़ कई तंत्रिका संबंधी और अन्य बीमारियों को ठीक करने का एक प्रभावी तरीका भी है। अनुभव से पता चला है कि नमाज़ पढ़ने से तनाव और चिंता दूर होती है। नमाज़ से मन की शांति भी मिलती है नमाज़ के इस महत्वपूर्ण गुण से हर नमाज़ी अच्छी तरह वाकिफ है। नमाज़ एक ऐसी इबादत है जिससे सिर से लेकर पांव तक, यहां तक कि अंगुलियों और पैर की उंगलियों तक शरीर के हर अंग का व्यायाम होता है। नमाज़ पढ़ने से समय पर काम करने की आदत हो जाती है, जो सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होता है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, जो लोग सुबह जल्दी उठते हैं वे स्वस्थ होते हैं। ईशा और फज्र की नमाज की पाबंदी से डॉक्टरों की इन दोनों सलाह का भी पालन हो जाता है जिसमें स्वास्थ्य का रहस्य छिपा है।

नमाज अदा करने के लिए शरीर और जगह पाक व साफ होनी चाहिए। शरीर और स्थान की शुद्धि (पाकी) से ही अनेक रोगों का नाश किया जा सकता है। बाहरी पवित्रता के साथ-साथ नमाज अदा करने के लिए आध्यात्मिक शुद्धता (पाकी) भी जरूरी है, यानी जनाबत (नापाकी) की स्थिति में नमाज नहीं पढ़ी जा सकती, इसलिए पहले ग़ुस्ल करना ज़रूरी है। स्वच्छता का मुद्दा हर धर्म में कुछ हद तक मिल जाएगा, लेकिन इस्लाम धर्म द्वारा प्रस्तुत पाकी और तहारत की जो व्यवस्था इस्लाम ने पेश की है उसकी कोई मिसाल नहीं है। तथ्य यह है कि तहारत शब्द का किसी अन्य भाषा में अनुवाद इस तरह से नहीं किया जा सकता है कि शब्द के अर्थ को सही ठहराया जा सके। तमाम बाहरी सफाई के बावजूद इस्लाम धर्म ने नमाज अदा करने से पहले वुजू जरूरी कर दिया है, यानी बिना वुजू किए नमाज अदा करना संभव नहीं है।

वुजू में शरीर के उन अंगों को धोने और साफ करने की आज्ञा दी जाती है जो अक्सर खुले रहते हैं और उन पर बाहर से धूल, गंदगी और कीटाणु आते रहते हैं, जिससे कई तरह की बीमारियां होती हैं। दिन में पांच बार वुज़ू करने से इन खतरनाक बीमारियों से बचा जा सकता है। दुनिया भर के वैज्ञानिक और चिकित्सा विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि स्वच्छता और व्यायाम की कमी के कारण कई बीमारियां होती हैं। सभी प्रकार की आध्यात्मिक और शारीरिक सफाई और फिर सिर से पैर तक हर अंग का व्यायाम नमाज़ में मौजूद है।

हिंदुओं की धार्मिक पुस्तकों (वेद और भगवत गीता) में योग की शिक्षाएं हैं, जो केवल एक व्यायाम नहीं है, बल्कि समय और स्थान से स्पष्ट है कि यह हिंदू धर्म के संस्कारों से संबंधित है। योग भी वर्षों से राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने का एक साधन बन गया है। इस अवसर पर, हम मुसलमानों से अनुरोध करते हैं कि वे दैनिक आधार पर नमाज़ की पाबंदी करें। इसमें अल्लाह पाक के आदेश को पूरा करने के अलावा, शरीर के लिए आवश्यक व्यायाम भी है।

ईमान के बाद पहली आज्ञा जो मानव जीवन से संबंधित है, वह नमाज़ है, जिसमें ब्रह्मांड के निर्माता और पालनकर्ता से प्रार्थना की जाती है, जो कि अल्लाह से मांगने का एक महत्वपूर्ण साधन है। इस्लाम के मूल सिद्धांतों में से, ईमान के अलावा, मक्का में केवल नमाज़ की फर्जियत हुई, और लगभग सभी अन्य अहकाम मदीना में नाज़िल किए गए थे। अल्लाह पाक ने जिब्रील अलैहिस्सलाम के माध्यम से दुनिया में पवित्र पैगंबर  सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए सभी अहकाम को नाज़िल किया, मगर नमाज़ ऐसा मोहतम बिश्शान अमल है की इसकी फर्जियत का तोहफा अल्लाह पाक ने नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बड़े एजाज़ के साथ आसमानों के उपर बुला कर मेराज की रात में अता फरमाया। अल्लाह पाक को सबसे अधिक प्रिय अमल नमाज़ को उसके समय पर अदा करना है।

पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अंतिम इच्छा और वसीयतनामा भी नमाज़ की पाबंदी के बारे में था, भले ही उस समय पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुबारक जुबान से शब्द नहीं निकल रहे थे।

क़यामत के दिन तक लोगों के मार्गदर्शन के लिए अल्लाह तआला ने जो किताब उतारी है उसमें नमाज़ों की पाबंदी पर बहुत ज़ोर दिया गया है, इसलिए क़रीब 7000 जगहों पर नमाज़ों का ज़िक्र किया गया है। पवित्र कुरआन में, अल्लाह पाक ने मोमिनों की विशेषताओं में नमाज़ की समय पर अदायगी और उसमें खुसू व खुजू का ख़ास तौर पर उल्लेख किया है, लेकिन एक विशेष कारण के रूप में स्वर्ग में प्रवेश करने के लिए नमाज़ के एहतिमाम का भी ज़िक्र फरमाया है। पवित्र कुरआन में, अल्लाह पाक घोषणा करता है कि जब भी कोई समस्या या परेशानी हो, तो एक मुसलमान को इसके साथ धैर्य रखना चाहिए और विशेष प्रार्थनाओं की पाबंदी करके अल्लाह पाक के साथ संबंध स्थापित करना चाहिए। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पांच अनिवार्य नमाज़ों के अलावा तहज्जुद की नमाज़, इशराक़ की नमाज़, चश्त की नमाज़, तहैयतुल वुजू 'और तहैयतुल मस्जिद का एहतिमाम करते थे। यदि सूर्य या चंद्र ग्रहण होता, तो वे मस्जिद जाते। अगर भूकंप, आंधी या तूफ़ान या तेज हवा भी होती, तो वे मस्जिद जाते और नमाज अदा करते। अकाल (फाके) या किसी अन्य संकट या परेशानी की बारी आती तो वह मस्जिद जाते। अगर वह यात्रा से लौटते तो सबसे पहले मस्जिद जाते और नमाज अदा करते।

नमाज़ एक ऐसी इबादत है जो प्रतिदिन अल्लाह के घरों (यानी मस्जिदों) में जमात के साथ अदा किया जाता है जो पृथ्वी के सभी हिस्सों में अल्लाह को सबसे प्रिय हैं और जो आकाश के लोगों के लिए चमकते हैं जैसे आकाश में तारे चमकते हैं पृथ्वी के लोगों के लिए। जो लोग अंधेरे में इन मस्जिदों में बार-बार आते हैं, उन्हें पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम द्वारा कयामत के दिन पूर्ण प्रकाश की खुशखबरी सुनाई गई है और ईमानदार होने की गवाही दी गई है। नमाज़ एक ऐसी इबादत है जिसे हर नमाज़ को कायम करने से पहले पुकारा जाता है और फिर एक बार और इक़ामत कहकर यह सन्देश पहुँचाया जाता है कि इस वक़्त सिर्फ़ इबादत की ज़रूरत है ताकि हर कोई अपनी व्यस्तता छोड़कर इस ज़रूरी इबादत को अंजाम दे सके।

नमाज़ ही एक ऐसी इबादत है जो हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बचपन से ही इसके एहतिमाम की शिक्षा दी है, इसलिए उन्होंने (वालिदैन) माता-पिता से कहा कि वह उन्हें सात साल की उम्र में नमाज़ पढ़ने के लिए कहें और दस साल की उम्र में नमाज़ न पढ़ने पर उन्हें पीटने का आदेश दे, ताकि बालिग़ होने के बाद एक भी नमाज़ छूट न जाए, क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इरशाद में नमाज़ों के छोड़ने पर कड़े वईद किए गए हैं, लेकिन कुछ हदीसों में कुफ्र की वईद है। इन्ही हदीसों के आधार पर उलेमा के एक समूह की स्थिति यही है कि जो व्यक्ति जानबूझकर नमाज छोड़ता है वह काफिर है। क़ुरआन और हदीस में नमाज़ में कोताही जो निफाक की निशानी माना गया है। साथ ही कुरआन में यह भी कहा गया है कि जो लोग नमाज़ में सुस्ती करते हैं उन्हें वेल नामक नरक की घाटी में फेंक दिया जाएगा। अल्लाह हम सभी को नमाज़ में काहिली और सुस्ती के शक्लों से बचाएं। आमीन सुम्मा आमीन।

नमाज़ ही एक ऐसी इबादत है जिसमें ज़कात जैसी दौलत की कोई शर्त नहीं है और हज जैसी सामर्थ्य की कोई शर्त नहीं है, लेकिन हर समय पर नमाज़ अदा करना ज़रूरी है चाहे वह पुरुष हो या महिला, गरीब हो या अमीर, स्वस्थ हो या बीमार, शक्तिशाली हो या कमजोर, बूढ़ा या जवान, यात्री या निवासी, राजा या दास, शांति या भय, सुख या दुख, गर्मी या सर्दी, युद्ध के मैदान में भी जिहाद और किताल के क्षण में भी मुआफ नहीं किया जाता है।

प्रामाणिक हदीसों में पवित्र पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के निर्देशों को देखते हुए, संपूर्ण मुस्लिम उम्मत इस बात से सहमत हैं कि कयामत के दिन, पहले नमाज़ का हिसाब लिया जाएगा। पवित्र पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़ के एहतिमाम  पर आखिरत में सफलता का वादा किया है, लेकिन यह आवश्यक है कि नमाज़ पवित्र पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शिक्षाओं में मौजूद शर्तों और शिष्टाचार के साथ अदा किया जाए। नमाज़ इबादत का एक ऐसा कार्य है जिसके बारे में पवित्र पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा कि मेरी आंखों की ठंडक नमाज़ की अदायगी में है। नमाज़ मनुष्य को अनैतिकता और पापों से बचाती है। इबादत के इस महान कार्य के लवाजमात, जैसे कि वुजू, ग़ुस्ल और मिसवाक, मस्जिद जाना आदि, खुद स्थायी इबादत हैं जिनका शरीअत में विशेष महत्व और फजीलत है। यह एक ऐसी इबादत है जिसमें अल्लाह पाक के कलाम की तिलावत फर्ज़ है।

यह उस तरह की इबादत है जिसमें अल्लाह के सामने सजदा करना अनिवार्य है और नमाज़ के दौरान सजदे की स्थिति में बंदा अपने रब के सबसे करीब होता है। नमाज़ अदा करने का मुख्य उद्देश्य अल्लाह पाक की आज्ञा का पालन करना है। इस महत्वपूर्ण उद्देश्य के अलावा, नमाज़ अदा करने से होने वाले लाभों को जानना और दूसरों के साथ साझा करना महत्वपूर्ण है। विशेष रूप से भारत में वर्तमान स्थिति को देखते हुए, नमाज़ में व्यायाम के पहलू को उजागर करना समय की आवश्यकता है।

आइए हम संकल्प करें कि, इंशाअल्लाह, हम मृत्यु तक अपने प्यारे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आँखों की ठंढक अर्थात नमाज़ को नहीं छोड़ेंगे, हम खुसूअ व खुजूअ के साथ नमाज़ का समय पर एहतिमाम करेंगे और विशेष रूप से हमारे बच्चों  की नमाज़ की निगरानी करेंगे ताकि वह भी नमाज़ों का एहतिमाम करने वाले बनें, आमीन सुम्मा आमीन।

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Urdu Article: Observance Of Namaz Guarantees Spiritual And Physical Health نماز کی پابندی روحانی وجسمانی صحت کی ضامن

URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/namaz-spiritual-physical-health/d/125019

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