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Hindi Section ( 4 May 2014, NewAgeIslam.Com)

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Life between Grieves सदमों के बीच ज़िंदगी

 

 

 

 

मुजाहिद हुसैन, न्यु एज इस्लाम

29 अप्रैल, 2014

पाकिस्तान को एक दिलचस्प स्थिति का सामना है और कई बुज़ुर्ग करार दिए गए बुद्धिजीवी और साज़िश करने वाले तत्वों की बू को दूर से सूँघ लेने में माहिर लोग आपस में गुत्थम गुत्था हैं। जियो टेलीविजन के एंकर हामिद मीर पर हमले को लेकर न सिर्फ मुल्क में राजनीतिक उत्तेजना छाई नज़र आ रही है बल्कि पत्रकारिता और राज्य सहित राज्य के संस्थानों के बारे में दोबारा से परिभाषा तय करने के प्रयास जारी हैं। मैं बहुत ज़ोर से हँसना चाहता हूँ और इसकी वजह ये है कि कहीं भी कोई भी गंभीर और वस्तुनिष्ठता का तलबगार नहीं। जहां राज्य की अमलदारी की रूप रेखा स्पष्ट न हों वहाँ अक्सर संस्थाएं, व्यक्ति और समूह सभी प्रकार के फैसले और कदम खुद ही उठा लेते हैं और एक समय आता है कि राज्य तबाह हो जाता है और शक्तिशाली लोग ही राज्य का रूप धर लेते हैं।

ये बिल्कुल समझ में आने वाली और पाकिस्तान में सामान्य घटना है कि एक मशहूर पत्रकार की हत्या करने की कोशिश की गई है। अगर हम हामिद मीर की महानता के बयान को थोड़ी देर के लिए थाम लें तो ऐसी घटनाएं हमारे यहाँ बहुत ज़्यादा हुई हैं और अज्ञात अवधि तक होते रहने की स्पष्ट संभावना है। पूर्व प्रधानमंत्री, सेना के जनरल, उलमा, डॉक्टर, वैज्ञानिक, ब्युरोक्रैट्स यहाँ तक कि जीवन के हर क्षेत्र से जुड़े सफल और प्रसिद्ध लोग लाचारी की हालत में पाकिस्तान की सड़कों और गलियों में मारे गए हैं। अल्पसंख्यकों के सैकड़ों लोगों की कुछ ही क्षणों में हत्या कर दी गयी लेकिन पाकिस्तान के स्पष्ट रूप से बहुत अधिक स्वतंत्र मीडिया पर सिवाय सामान्य खबरों के इन घटनाओं की ज्यादा चर्चा नहीं हुई। और न ही ये बहस हो सकी है कि ऐसी घटनाओं की रोकथाम कैसे संभव है। इस प्रकार की चर्चा के तो हम कभी लायक ही नहीं कर सके कि इस तरह की घटनाओं का स्रोत क्या है और हम एक समाज के रूप में किस दिशा में जा रहे हैं?

ये सवाल अपनी जगह महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तान दुनिया का एकमात्र देश है जहां पचास हजार से अधिक लोगों को धार्मिक कट्टरपंथियों ने मौत के घाट उतार दिया है लेकिन इन मौतों और इनके ज़िम्मेदारों की पहचान और इन पर लिखना बहुत मुश्किल है। अनगिनत पत्रकार और विश्लेषक कट्टरपंथियों की वकालत में लगे नज़र आते हैं और उन्हें इस बात का बहुत मलाल है कि हज़ारों पाकिस्तानियों के हत्यारों के बारे में हमदर्दाना रवैया क्यों नहीं रखा जाता। मौत और तबाही के व्यापारियों से इतनी निकटता और सहानुभूति एक समझ में नहीं आने वाला जुनून है कि क्यों ऐसा सम्भव हुआ है कि हत्यारों की प्रशंसा को ईमान और देश भक्ति के प्रमाणपत्र के साथ नत्थी कर दिया गया है? समाज के एक मामूली से हिस्से में भी मतभेद करने वाली राय को सहन करने की कोई परम्परा बाकी नहीं रही और हिंसक सोच के धारे हर दिशा में पूरी ताकत के साथ बहना शुरू हो गए हैं। जहां मतभेद गंभीर रूप धारण कर जाते हैं वहाँ फतवा अपरिहार्य हो जाता है और अपने से अलग के बारे में राय तुरंत हिंसक हो जाती है। जंग के लिए तैयार समाजों में जिस तरह विभिन्न दृष्टिकोणों और राय को बलपूर्वक रोकने का रुझान आम तौर पर स्वीकार्यता का दर्जा  ले लेता है, वही कहानी पाकिस्तानी समाज की भी है जहां विरोधी को उसकी राय या दृष्टिकोण की बदौलत नेस्तनाबूद करना सवाब (पुण्य) का कारण समझ लिया गया है।

हामिद मीर पर हमला निश्चित रूप से निंदनीय है और इससे पता चलता है कि पाकिस्तानी समाज में सहन करने की क्षमता का खात्मा हो चुका है। अब सिर्फ जुनून की भावना, सांप्रदायिकता, भाषागत व धार्मिक उग्रवाद और हर प्रकार की लड़ाई और मार काट बची है। लेकिन हमले के बाद जो स्थिति पैदा हुई है वो हमारे लिए सोच के कई और दर खोलती है।  उदाहरण के लिए हामिद मीर और उसके परिवार का कहना है कि इस हमले में आईएसआई और उसके प्रमुख सीधे तौर पर शामिल हैं। जिस संस्थान पर आरोप लगाया गया है उसकी तरफ से इस आरोप को एक गंभीर हमले के रूप में देखा गया है और संभावना ये है कि हामिद मीर जिस संस्थान में नौकरी करते हैं उसको भी इस आरोप के प्रचार के अपराध में सज़ा दी जाएगी। चूंकि देश का सबसे बड़ा और प्रभावी मीडिया संस्थान होने का दावा करने वाले समूह के लिए ये एक मुश्किल काम है कि वो किसी गंभीर गलती को स्वीकार करे और उसके सुधार के लिए तैयार हो। इसलिए ये कहा जा सकता है कि उक्त समूह इस बात पर कायम रहेगा कि उसकी तरफ से जो कुछ हुआ वो बिल्कुल ठीक है और पत्रकारिता के  सिद्धांतों के अनुरूप था। इसमें शक नहीं कि किसी नुकसान की स्थिति में पीड़ित पक्ष अपने आरोपियों की तरफ इशारा कर सकता है लेकिन उसको पीड़ित पक्ष के दृष्टिकोण के रूप में पेश करना चाहिए था न कि स्वयं एक पक्ष बन कर खड़ा हो जाना उचित था।

किनारे के दूसरी तरफ असंख्य ऐसे तोपची निशाना साधे बैठे थे जो पेशेवराना प्रतिस्पर्धा और संस्थागत तनाव के घातक हथियार से लैस थे। इसलिए एक ऐसी लड़ाई शुरू हो गई जिसके हिस्से नफरत पैदा करने वाले हें। उदाहरण के लिए हामिद मीर को पाकिस्तान में निष्पक्ष और असली पत्रकारिता का संस्थापक करार दे दिया गया हालांकि हामिद मीर ने  ही कुछ समय पहले अपने विशेष सम्बंधों का उपयोग करते हुए एक पूर्व खुफिया एजेंट के बारे में ऐसी टेलीफोनिक बातचीत की कि एजेंट को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। हामिद मीर साहब के पिछले सम्बंधों के बारे में कौन परिचित नहीं है जबकि एक सक्रिय पत्रकार होने के नाते उनकी अनगिनत बार निष्पक्ष और विशेष गुटों के नुमाइंदा के रूप में पहचान की गई। पाकिस्तान की विविध परिस्थितियों में अगर इस समय हामिद मीर सत्ता पक्ष के साथ सहमत नहीं तो ये कोई अनहोनी बात नहीं, पाकिस्तान में अक्सर ऐसा होता है।

दूसरी तरफ स्वतंत्र पत्रकारों की एक बड़ी संख्या ताल ठोंक कर खड़ी हो गई और हामिद मीर के परिवार के द्वारा आरोपियों की स्पष्ट पहचान को राज्य  का दुश्मन मान लिया गया। निश्चित रूप से ये एक चौंका देने वाला इल्ज़ाम है लेकिन आरोप ही तो है, और आरोप गलत साबित होते हैं और ऐसा हर जगह होता है। हमें आरोप और फैसले में अंतर को ध्यान में रखना चाहिए। अगर दूसरी तरफ के तोपची थोड़ा सा धैर्य रख लेते और इस घटना की निष्पक्ष जांच को आगे बढ़ने दिया जाता तो जितना उपहास उड़ाया जा चुका है उससे बचा जा सकता था। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका और ऐसा महसूस होता है कि पाकिस्तानी पत्रकारिता के दामन में जो थोड़ी बहुत निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता बाकी थी, अब उसका भी आखरी वक्त है। दोनों ओर से इस घटना के बाद निष्पक्षता और आरोप प्रत्यारोप की ऐसी परंपरा कायम की है कि कुछ भी उजला नज़र नहीं आता। इसमें कोई शक नहीं कि पत्रकारिता में से जब निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता विदा हो जाती है तो केवल अपमानजनक रूप से पक्ष लेना बचता है, जिससे अपने दुश्मनों की पहचान की जा सकती है और आर्थिक हित पूरे हो सकते हैं, इसके अलावा कुछ नहीं। ये एक ऐसी हतोत्तसाहित कर देने वाली स्थिति है कि जिसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती।

मुजाहिद हुसैन ब्रसेल्स (Brussels) में न्यु एज इस्लाम के ब्युरो चीफ हैं। वो हाल ही में लिखी "पंजाबी तालिबान" सहित नौ पुस्तकों के लेखक हैं। वो लगभग दो दशकों से इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट के तौर पर मशहूर अखबारों में लिख रहे हैं। उनके लेख पाकिस्तान के राजनीतिक और सामाजिक अस्तित्व, और इसके अपने गठन के फौरन बाद से ही मुश्किल दौर से गुजरने से सम्बंधित क्षेत्रों को व्यापक रुप से शामिल करते हैं। हाल के वर्षों में स्थानीय,क्षेत्रीय और वैश्विक आतंकवाद और सुरक्षा से संबंधित मुद्दे इनके अध्ययन के विशेष क्षेत्र रहे है। मुजाहिद हुसैन के पाकिस्तान और विदेशों के संजीदा हल्कों में काफी पाठक हैं। स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग की सोच में विश्वास रखने वाले लेखक मुजाहिद हुसैन, बड़े पैमाने पर तब्कों, देशों और इंसानियत को पेश चुनौतियों का ईमानदाराना तौर पर विश्लेषण पेश करते हैं।

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