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Hindi Section ( 4 Dec 2013, NewAgeIslam.Com)

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Pakistan: A Glimpse of a Deepening Crisis पाकिस्तानः गहराते संकट की एक झलक

 

 

मुजाहिद हुसैन, न्यु एज इस्लाम

5 दिसंबर, 2013

पाकिस्तान के कुछ बाखबर करार दी गई संस्थाओं और व्यक्तियों में इन दिनों ये धारणा पाई जाती है कि जनरल कियानी की सेवानिवृत्ति के बाद पाक सेना के नए प्रमुख जनरल राहील शरीफ़ का चुनाव प्रधानमंत्री की पारंपरिक राजनीतिक सोच का द्योतक है। वहाँ इस तरह की अफ़वाहें भी हैं कि राज्य से संघर्षरत धार्मिक कट्टरपंथियों की भावनाओं का भी ध्यान रखा गया है। ऐसी सूचनाओं का किसी तरफ से कोई खंडन भी अभी सामने नहीं आया और न ही पाक फौज की तरफ से इस पर कोई प्रतिक्रिया सामने आई है।

पाकिस्तान की मुहिम चलाने वाली मीडिया की तरफ से इस तैनाती के बारे में अत्यधिक बढ़ी हुई दिलचस्पी और अनुमानों ने विभिन्न प्रकार की अफवाहें को पोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक विशुद्ध संस्थागत और पेशेवर पद के मामले को इतनी चर्चा का विषय बनाया गया कि अब कहने को कुछ बाक़ी नज़र नहीं आता। बहुत से बुद्धिजीवी हैरान हैं कि सेना की तरफ से उन्हें किसी प्रतिक्रिया का सामना नहीं करना पड़ा। कई क्षेत्र इस बात पर हैरान हैं कि देश के क़बायली इलाकों में लड़ाई में लगे चरमपंथियों की तरफ से भी इस नियुक्ति को सुखद बताया गया है। हालांकि चरमपंथियों की तरफ से जारी अपुष्ट बयान का मकसद नए सेना प्रमुख को वेलकम कहने से ज़्यादा पूर्व सेनाध्यक्ष को नापसंद करने को व्यक्त करना है।

विशेषज्ञ जिस बात से डरे हैं वो प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ और उनकी पार्टी की तरफ से स्थानीय उग्रवादियों की तरफ स्पष्ट झुकाव और नरम लहजे वाला व्यवहार है, जिसकी कई मिसाले पंजाब और केंद्र में देखी जा सकती हैं। मिसाल के तौर पर नवाज शरीफ के छोटे भाई और पंजाब के मुख्यमंत्री मियां शहबाज़ शरीफ़ ने अपनी पिछली सरकार के दौरान स्थानीय तालिबान से अनुरोध किया था कि वो पंजाब को अपने हमलों का निशाना न बनाएं। इसके बाद पंजाबी तालिबान के एक महत्वपूर्ण नेता और सांप्रदायिक समूह के प्रमुख मलिक मोहम्मद इस्हाक़ को सैकड़ों गंभीर मामलों के बावजूद रिहा किया गया। ऐसी घटनाओं के बाद पंजाब सरकार को 'अतिवादियों की दोस्त' सरकार का खिताब दिया गया।  अतीत की इन्हीं चिंताओं के मद्देनज़र इस बार भी ये आशंका व्यक्त की जा रही है कि मियां बंधु उग्रवादियों को अनावश्यक रिआयत देने की रणनीति को जारी रखेंगें जो समग्र रूप से राज्य के लिए हानिकारक साबित हो सकती है। क्योंकि अतीत में ऐसा कई बार हो चुका है। मियां बंधुओं का मानना ​​है कि इस रणनीति के कारण वो सरकार चलाने की अवधि को बढ़ा सकते हैं और उनकी सरकार आम लोगों की पंसद का प्रमाण भी हासिल कर सकती है।

एक भयानक और महत्वपूर्ण बिंदु जिसे पूरी तीव्रता के साथ नजरअंदाज किया जा रहा है, वो आम लोगों में राज्य के मुकाबले में अराजकीय तत्वों और उनकी जंगी कार्रवाईयों की स्वीकृति का बढ़ना है। मिसाल के तौर पर तहरीके इंसाफ और जमाते इस्लामी का नेतृत्व अच्छी तरह जान चुका है कि वास्तव शक्ति कहां निहित है और इसको किस तरह इस्तेमाल में लाना है। मूल रूप से ये एक ऐसी दौड़ है जिसका मकसद दम तोड़ते हुए राज्य के मुकाबले में संभावित प्रभुत्व में आने वाली ताकतों का हाथ थामना है। इन सब कोशिशों में ध्यान देने योग्य भूमिका पाकिस्तान के प्रमुख मीडिया संस्थानों की है जो लगातार पाकिस्तानी जनता को ये विश्वास दिलाने में जुटे हैं कि पाकिस्तान के सभी मौजूदा समस्याओं का स्रोत पाकिस्तान के भ्रष्ट शासकों का पश्चिम का तुष्टिकरण है, जिन्होंने पाकिस्तान के हितों को पीछे डालकर पश्चिमी देशों के घिनौनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा किया है। आम धारणा ये है कि पश्चिमी देश पाकिस्तान को इसके परमाणु बम से वंचित करना चाहते हैं। इसकी इस्लामी पहचान को खत्म करना चाहते हैं और इस कोशिश में जुटे हैं कि उसको पड़ोसी हिंदू भारत और अरब मुसलमानों से संघर्षरत यहूदी इसराइल के अधीन कर दिया जाए। ये एक ऐसी मान्यता प्राप्त कल्पना है जिसे लगातार खाद पानी दिया गया है। सोशल मीडिया ने सोने पे सुहागा का काम किया है और करोड़ों बेरोज़गार और उकताए हुए भावुक लोगों के पास इसके सिवा करने के लिए कोई काम बाकी नहीं कि मुसलमान उम्मत के ताज में जड़े हीरे पाकिस्तान के बारे में सशंकित देशभक्ति का पाठ दिया जाए। हैरानी की बात ये है कि हमारे यहां देशभक्ति केवल युद्ध की शर्त पर है। जब तक एक पाकिस्तानी मुसलमान भारत, इजरायल और अमेरिका सहित लगभग सभी पश्चिमी देशों से नफरत का इज़हार नहीं करता उसकी देशभक्ति संदिग्ध रहती है। मज़े की बात ये है कि देशभक्ति के सक्रिय प्रतिनिधियों ने पाकिस्तान के भीतर ही ऐसे लोग भी खोज लिए हैं जिनकी जहाँ तक सम्भव हो निंदा भी अनिवार्य है। मिसाल के तौर पर देशभक्त लोग पाकिस्तानी मानवाधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष अस्मा जहांगीर को पाकिस्तानी मानने को तैयार नहीं और उनका दावा है कि अस्मा जहांगीर दुश्मन की एजेंट हैं। यही मामला मशहूर पत्रकार नजम सेठी के साथ है क्योंकि नजम सेठी अस्पष्ट बयान देने से परहेज़ करते है और उनकी अंतर्राष्ट्रीय दुश्मनी की अवधारणा बहुमत से अलग है। वो पाकिस्तान में लड़ रहे इस्लामी उग्रवादियों को पसंद नहीं करते। इनसे मिलता जुलता विचार अस्मा जहांगीर का भी है जो पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न और भेदभाव को अपनी आलोचना का निशाना बनाती हैं। ऐसा दृष्टिकोण प्रसिद्ध वैज्ञानिक  परवेज़ हूद भाई के भी है जिन्हें बाकायदा धमकियां दी जाती हैं और हो सकता है किसी दिन जन्नत को चाहने वाला कोई आतंकवादी उन पर हमला कर दे। इम्तियाज़ आलम भी इसी लाइन में खड़े हैं क्योंकि वो पाकिस्तान में मीडिया की आजादी की बात करते हैं जो अक्सर ताकतवर संस्थाओं को हज़म नहीं होता।

दूसरी तरफ देशवासी अब पूरी तैयारी और ताक़त के साथ सांप्रदायिक लड़ाई को बड़े पैमाने पर लड़ने के लिए तैयार हो रहे हैं और ऐसा लगता है कि किसी भी वक्त बिगुल बज सकता है। धार्मिक कट्टरपंथियों की तैयारी चरम पर है क्योंकि उन्हें बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक खून खराबे के लिए जितने लोगों और इस पर अमल करने की आज़ादी की ज़रूरत है। नवाज़ शरीफ़ सरकार तेजी के साथ घेरे में आ रही है। कुरर्म एजेंसी, कराची, उत्तरी क्षेत्र और ख़ैबर पख्तूनख्वाह में शिया अल्पसंख्यक निशाने पर हैं और आए दिन इनके लोग मारे जा रहे हैं। उग्रवादियों को विश्वास है कि राज्य उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता क्योंकि ज्यादातर अशांत क्षेत्रों में राज्य मशीनरी उनके साथ सहयोग करती है। जेलों में उन्हें विशेष रिआयत हासिल है जहां उनकी संख्या बढ़ जाती है, वहां वो आसानी के साथ जेल तोड़ लेते हैं और कोई भी कुछ नहीं कर सकता। बन्नू और डेरा इस्माइल खान की जेलों को जिस तरह तोड़ा गया और उसके बाद जितने भी आतंकवादी इन जेलों से भागे सब राज्य के खिलाफ लड़ रहे हैं और पहले से अधिक मज़बूत इरादों के साथ राज्य को उखाड़ फेंकना चाहते हैं।  पाकिस्तान के प्रमुख मीडिया पर विराजमान दक्षिणपंथी हिंसावादियों ने आज तक इन घटनाओं को चर्चा का विषय नहीं बनाया और न ही सरकार पर किसी प्रकार का दबाव डाला कि वो इन आतंकवादियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करे।

मुजाहिद हुसैन ब्रसेल्स में न्यु एज इस्लाम के ब्युरो चीफ हैं। वो हाल ही में लिखी "पंजाबी तालिबान" सहित नौ पुस्तकों के लेखक हैं। वो लगभग दो दशकों से इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट के तौर पर मशहूर अखबारों में लिख रहे हैं। उनके लेख पाकिस्तान के राजनीतिक और सामाजिक अस्तित्व, और इसके अपने गठन के फौरन बाद से ही मुश्किल दौर से गुजरने से सम्बंधित क्षेत्रों को व्यापक रुप से शामिल करते हैं। हाल के वर्षों में स्थानीय,क्षेत्रीय और वैश्विक आतंकवाद और सुरक्षा से संबंधित मुद्दे इनके अध्ययन के विशेष क्षेत्र रहे है। मुजाहिद हुसैन के पाकिस्तान और विदेशों के संजीदा हल्कों में काफी पाठक हैं। स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग की सोच में विश्वास रखने वाले लेखक मुजाहिद हुसैन, बड़े पैमाने पर तब्कों, देशों और इंसानियत को पेश चुनौतियों का ईमानदाराना तौर पर विश्लेषण पेश करते हैं।

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