मोहम्मद यूनुस, न्यु एज इस्लाम डाट काम (उर्दू से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाट काम)
(सहलेखक) इस्लाम का असल पैगाम, आमना पब्लिकेशन, यूएसए 2009
‘और इस तरह हमने तुमको उम्मेते मोअतदल बनाया, ताकि तुम लोगों पर गवाह बनो...........’(2:143)
फूल की एक पंखुड़ी हीरे के दिल को चाक कर सकती है...............लेकिन आला आल्फाज़ भी जाहिल पर कोई असर नहीं करते हैं। (मोहम्मद इक़बाल)
आज के प्रदर्शन और आमदनी पर आधारित और मनोरंजन और खरीदारी के प्रभाव वाली दुनिया में इंसानी व्यवहार को पुराने समय के मूल्य समझकर अलग रख दिया गया है, लेकिन सच्चाई ये है कि एक खास अंदाज़ का व्यवहार इंसान के करीबी सम्बंधों को खत्म कर सकता है, शादी या पुरानी दोस्ती को खत्म हो सकता है। इसके अलावा करीबी सम्बंधों से परे हर एक इंसान दूसरे इंसान जैसेः मालिक, सहयोगी, अधीनस्थ और दूसरे अन्य श्रेणी के लोगों के साथ बातचीत करता है और दूसरे रूप की तुलना में हमेशा ये अच्छा है कि खुशगवार अंदाज़ में व्यवहार किया जाये। कुरान ऐसे मानदंड पेश करता है जिनकी मदद से कोई भी दोस्तों का दिल जीत सकता है, पति और पत्नी एक दूसरे का प्यार हासिल कर सकते हैं और सहयोगियों का आदर पा सकते हैं और रोज़ बरोज़ की पेशेवराना और वैवाहिक जीवन की छोटी छोटी परेशानियों से निजात हासिल की जा सकती है। ये मशहूर तकरीर का हिस्सा नहीं है। इनको पाठकों की सहूलत को ध्यान में रखते हुए नीचे दिया गया है।
‘अफू अख्तियार करो और नेक काम करने का हक्म दो और जाहिलों से किनारा कर लो’ (99)
‘और बुराई का बदला तो उसी तरह की बुराई है। मगर जो दरगुज़र करे और (मामले) को दुरुस्त कर दे, तो उसका बदला खुदा के ज़िम्मे है। इसमें शक नहीं कि वो ज़ुल्म करने वालों को पसंद नहीं करता।’ (42:40)
‘मोमिनों से कह दो कि जो लोग खुदा के दिनों की (जो आमाल के बदले के लिए मुकर्रर हैं) तवक्को नहीं रखते उनसे दरगुज़र करें। ताकि वो उन लोगों को उनके आमाल के बदले दे।’ (45:14)
‘…….. और लोगों की दुश्मनी इस वजह से कि उन्होंने तुमको इज़्ज़त वाली मस्जिद से रोका था तुम्हें इस बात पर अमादा न करे कि तुम उन पर ज़्यादती करने लगो और (देखो) नेकी और परहेज़गारी के कामों में एक दूसरे की मदद किया करो और गुनाह और ज़ुल्म की बातों में मदद न किया करो और खुदा से डरते रहो। कुछ शक नहीं कि खुदा का अज़ाब सख्त है।’ (5:2*)
‘जो आसूदगी और तंगी में (अपना माल खुदा की राह में) खर्च करते हैं और गुस्से को रोकते हैं और लोगों के कुसूर माफ करते हैं और खुदा नेकोकारों को दोस्त रखता है। (3:134) और वो कि जब कोई खुला गुनाह या अपने हक़ में कोई और गुनाह कर बैठते हैं, तो खुदा को याद करते हैं और अपने गुनाहों की बख्शिश माँगते हैं और खुदा के सिवा गुनाह बख्श भी कौन सकता है? और जानबूझ कर अपने अफआल पर अड़े नहीं रहते।’(3:135)
‘(खुदा का अजर उन लोगों के लिए है) जो बड़े बड़े गुनाहों और बेहयाई की बातों से परहेज़ करते हैं। और जब गुस्सा आता है तो माफ कर देते हैं।’ (42:37)
‘और जब कोई तुमको दुआ दे तो (जवाब में) तुम उससे बेहतर (कल्मे) से (उसे) दुआ दो या उन्हीं लफ्ज़ों से दुआ दो, बेशक खुदा हर चीज़ का हिसाब लेने वाला है।’ (4:86)
‘और खुदा इस बात को पसंद नहीं करता कि कोई उसे ऐलानिया बुरा कहे मगर वो जो मज़लूम हो। और खुदा (सब कुछ) सुनता (और) जानता है।’ (4:148)
‘और मेरे बंदो से कह दो कि (लोगों से) ऐसी बाते कहा करें जो बहुत पसंदीदा हों। क्योंकि शैतान (बुरी बातों से) उनमें फसाद डलवा देता है। कुछ शक नहीं की शैतान इंसान का खुला दुश्मन है।’ (7:53)
‘और ज़मीन पर अकड़ कर (और तन कर) मत चलो कि तू ज़मीन को फाड़ तो नहीं डालेगा और न लम्बा होकर पहाड़ों (की चोटी) तक पहुँच जायेगा।’ (17:37)
‘और (अज़राहे गुरूर) लोगों से गाल न फुलाना और ज़मीन में अकड़ कर न चलना। कि खुदा किसी इतराने वाले खुदपसंद को पसंद नहीं करता है। (31:18) और अपनी चाल में ऐतेदाल किये रहना और (बोलते वक्त) आवाज़ नीची रखना क्योंकि (ऊँची आवाज़ गधों की है औऱ कुछ शक नहीं की) सब आवाज़ों से बुरी आवाज़ गधों की है।‘ (31:19)
‘मोमिनों अगर कोई बदकिरदार तुम्हारे पास कोई खबर लेकर आये तो खूब तहकीक कर लिया करो (मोबादा) कि किसी कौम को नादानी से नुक्सान पहुँचा दो। फिर तुमको अपने किये पर नादिम होना पड़े।’ (49:6)
‘जो लोग परहेज़गार और बुरे कामों से बेखबर और ईमानदार औरतों पर बदकिरदारी की तोहमत लगाते हैं उन पर दुनिया और आखिरत (दोनों) में लानत है। और उनको सख्त अज़ाब होगा।’ (24:23*)
‘जो खुद भी बुख्ल करे और लोगों को भी बुख्ल सिखाये और जो (माल) खुदा ने उनको अपने फज़ल से अता फरमाया है उसे छिपा छिपा कर रखें और हमने नाशुक्रों के लिए ज़िल्लत का अज़ाब तैय्यार कर रखा है।‘ (4:37)
‘देखो तुम वो लोग हो जो खुदा की राह में खर्च करने के लिए बुलाये जाते हो। तो तुम में ऐसे शख्स भी हैं जो बुख्ल करने लगते हैं। और जो बुख्ल करता है। और खुदा बेनियाज़ है और तुम मोहताज। और अगर तुम मुँह फेरोगे तो वो तुम्हारी जगह और लोगों को ले आयेगा और वो तुम्हारी तरह के नहीं होंगे।’ (47:38)
‘और जिस ने बुख्ल किया और बेपरवाह बना रहा। और नेक बात को झूठ समझा। उसे सख्ती में पहुँचायेगा। और जब वो (दोज़ख के गड्डे में) गिरेगा तो उसका माल उसके कुछ काम न आयेगा।’ (92:8-11)
‘मोमिनों! कोई कौम किसी कौम से तमस्खर न करे मुमकिन है वो लोग उनसे बेहतर हों और न औरतें औरतों से (तमस्खर करें) मुमकिन है कि वो उन से अच्छी हों। और अपने (मोमिन भाई) को ऐब न लगाओ और न एक दूसरे का बुरा नाम रखो। ईमान लान के बाद बुरा नाम (रखना) गुनाह है। और जो तौबा न करें वो ज़ालिम हैं।’ (49:11)
‘ऐ अहले ईमान! बहुत गुमान करने से एहतेराज़ करो कि बाज़ गुमान गुनाह हैं। और एक दूसरे के हाल का तजस्सुस न किया करो और न कोई किसी की ग़ीबत करे। क्या तुम में से कोई इस बात को पसंद करेगा कि अपने मरे हुए भाई का गोश्त खाये? इससे तो तुम ज़रूर नफरत करोगे। (तो ग़ीबत न करो) और खुदा का डर रखो बेशक खुदा तौबा कुबूल करने वाला मेहरबान है।’ (49:12)
‘हर तान आमेज़ इशारते करने वाले चुगलखोर की खराबी है। जो माल जमा करता है और उसको गिन गिन कर रखता है।’ (104:1-2)
‘ऐ बनी आदम! हर नमाज़ के वक्त अपने तईं मोज़य्यन किया करो और खाओ और पियो और बेजा न उड़ाओ कि खुदा बेजा उड़ाने वालों को दोस्त नहीं रखता।’ (7:31)
‘और खुदा के बंदे तो वो हैं जो ज़मीन पर आहिस्तगी से चलते हैं और जब जाहिल लोग उनसे (जाहिलाना) गुफ्तुगू करते हैं तो सलाम कहते हैं। (25:63) और जब वो खर्च करते हैं तो न बेजा उड़ाते हैं और न तंगी को काम में लाते हैं बल्कि ऐतेदाल के साथ। न ज़रूरत से ज़्यादा न कम।’ (25:67)
निष्कर्षः परम्परागत तौर पर मुसलमान अपनी धार्मिकता को केवल विश्वास के पांच स्तम्भों तक ही सीमित रखता है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सांकेतिक धार्मिकता के इशारों जैसे मस्जिद और मीनारों की ऊँचाई और उनका आकार, महिलाओं के पर्दे के लिए जाना जाता है लेकिन इस्लाम धर्म के प्रवचनों या परिवारों में नौजवान बच्चों की परविरश के वक्त अच्छे व्यवहार की बातें बमुश्किल ही आती हैं। कुरान मुसलमानों से आशा करता है कि वो इंसानियत के लिए गवाह रहें जिस तरह नबी करीम स.अ.व. अपने वक्त के लोगों के लिए गवाह थे। वो मुसलमान नबी करीम स.अ.व की नुमाइंदगी ज़िंदगी भर नहीं कर पायेंगें जो अन्य चीज़ो के अलावा व्यवहार के इन बुनियादी मानदंडों से अंजान रहेंगे जिनका ज़िक्र ऊपर किया गया है।
मोहम्मद यूनुस ने आईआईटी दिल्ली से केमिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा हासिल की है और कार्पोरेट इक्ज़ीक्युटिव के पद से रिटायर हो चुके हैं और 90 के दशक से क़ुरान का गहराई से अध्ययन और उसके वास्तविक संदेश को समझने की कोशिश कर रहे हैं। इनकी किताब ‘इस्लाम का असल पैग़ाम’ को साल 2000 में अलअज़हर अलशरीफ, काहिरा की मंज़ूरी प्राप्त हो गया थी और यूसीएलए के डॉ. खालिद अबुल फ़ज़ल का समर्थन भी हासिल है। मोहम्मद यूनुस की किताब ‘इस्लाम का असल पैग़ाम’ को आमना पब्लिकेशन मेरीलैण्ड, अमेरिका ने साल 2009 में प्रकाशित किया।
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