मोहम्मद यूनुस, न्यु एज इस्लाम
20 जुलाई 2017
(संयुक्त लेखक (अशफाकुल्लाह सैयद), इस्लाम का असल पैग़ाम, आमना पब्लिकेशंज़, अमेरिका, 2009)
सामाजिक न्याय के शीर्षक से कुरआनी आयतों पर आधारित यह लेख हाल ही में इसी शीर्षक से प्रकाशित होने वाले भाग 1की निरंतरता है और इसका उद्देश्य लोगों को उनकी व्यापक सामाजिक जिम्मेदारियों से अवगत करना है। जैसा कि भाग 1में हम ने कुछ कुरआनी आयतों का हवाला दिया था और पाठकों को निम्नलिखित कुरआनी आदेश की भावना के साथ उन पर विचार करने का अवसर प्रदान किया।
'' यह किताब बरकत वाली है जिसे हमने आप की तरफ़ नाजिल फ़रमाया है ताके दानिशमंद लोग इसकी आयतों पर सोच-विचार करें और इससे शिक्षा हासिल करें। '' (38:29) ।
'' तो क्या वे क़ुरआन में सोच-विचार नहीं करते या उनके दिलों पर ताले लगे हैं? '' (47:24)
कुरआन का आदेश है:
'' और नातेदार को उसका हक़ दो मुहताज और मुसाफ़िर को भी - और फुज़ूलख़र्ची न करो (26) निश्चय ही फ़ु़ज़ूलख़र्ची करनेवाले शैतान के भाई है और शैतान अपने रब का बड़ा ही कृतघ्न है।-(27)किन्तु यदि तुम्हें अपने रब की दयालुता की खोज में, जिसकी तुम आशा रखते हो, उनसे कतराना भी पड़े, तो इस दशा में तुम उनसें नर्म बात करो (28)और अपना हाथ न तो अपनी गरदन से बाँधे रखो और न उसे बिलकुल खुला छोड़ दो कि निन्दित और असहाय होकर बैठ जाओ (29) (17: 26-29)
'' अतः नातेदार को उसका हक़ दो और मुहताज और मुसाफ़िर को भी। यह अच्छा है उनके लिए जो अल्लाह की प्रसन्नता के इच्छुक हों और वही सफल है। '' (30:38)
संयुक्त परिवार प्रणाली के समाप्त होने, सिर्फ एक बच्चे या कुछ करीबी रिश्तेदारों तक परिवार के सीमित होने और वैश्वीकरण के प्रभाव के कारण परिवार के संबंध कमजोर पड़ जाने के कारण -क्यों कि आज रिश्तेदार दुनिया भर में फैल गया है और हमारे शहरों में या हमारे पड़ोस में अकेले यात्रा की कोई व्यवस्था नहीं है l उपर्युक्त कुरआनी आदेश प्राचीन और पुरानी मालूम होती हैं और लोग उन पर ध्यान भी नहीं देते। लेकिन अगर हम कुरआन पर विश्वास रखते हैं और उसके दिशा निर्देशों के प्रति अगर हम ईमानदार हैं तो कुरआन हमसे इन शिक्षाओं पर विचार करने की मांग करता है। इसलिए हमें कुरआन के उपर्युक्त आदेश को समकालीन वास्तविकताओं से जोड़ने के लिए उन कुरआनी शब्दों का गहराई के साथ अध्ययन करने की जरूरत है। ऐसा करने के बाद हमें निम्नलिखित परिणाम प्राप्त होते हैं:
1. पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दौर में शब्द कुरबा से एक जनजाति या समाज के सभी सदस्य मुराद होते थे। इसलिए, इसमें आज घरेलू सहायता के कर्मचारी, दोस्त और साथी शामिल होंगे।
2. वर्तमान युग के शब्द में '' अधिकार '' का मतलब एक निर्विवाद दावा है। इसलिए, आज की भाषा में इस आयत के प्रारम्भिक आदेश 'रिश्तेदारों का अधिकार उन्हें दे दो' का मतलब आसान शब्दों में यह होगा कि '' अपने लोगों को वह अता कर दो जिनके वह सही तौर पर हकदार हैं।'
3. शब्द 'ابن السبیل' का शाब्दिक अर्थ है 'सड़क का बेटा' और इसका अर्थ '' एक बेघर और असहाय यात्री है जो खाली हाथ व खली दामन सड़कों पर घूम रहा हो अपने घर की वापसी के लिए। आज के संदर्भ में 'ابن السبیل' का अर्थ उन अनगिनत बेघर बार लोगों और शरणार्थियों से हो सकता है जो सड़कों के किनारे, पार्क में,फ्लाईओवर के नीचे और रेलवे स्टेशनों के पास घाटों पर और दुनिया के कई देशों में कब्रिस्तान में जीवन जीने को मजबूर हैं।
इसलिए,यदि हम उक्त शब्दों के प्रकाश में कुरआन की संदर्भित आयतों पर विचार करें तो यह साबित होता है कि हमें आगे बढ़ना चाहिए और जहां तक संभव हो नस्ल,धर्म या राष्ट्रीयता की परवाह किए बिना अनिवार्य रूप से हर प्रकार के जरूरतमंद और शरण चाहने वालों की भी वित्तीय सहायता करनी चाहिए और अपने सहयोग का हाथ उनसे कभी नहीं खीचना चाहिए। यह न तो कुरआनी आयतों की तज़ईन कारी है और न ही कुरआनी इस्लाह का कोई प्रयास है,लेकिन यह कुरआन की सच्चाई को ईमानदारी के साथ पाठकों के सामने पेश करने के लिए एक प्रयास है जिसमें कुरआन उन ईबादत करने वालों पर लानत करता हैं " जो अपनी नमाज़ (की आत्मा) से बेखबर हैं (यानी उन्हें केवल अल्लाह का हक़ याद हैं बन्दों का हक़ भुला बैठे हैं), वे लोग (पूजा में) दिखलावा करते हैं, और वे बरतने की मामूली सी चीज़ भी मांगे नहीं देते "(107: 5 -7)।
जनाब मोहम्मद यूनुस ने आईआईटी से केमिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा हासिल की है और कार्पोरेट एग्जिक्यूटिव के पद से रिटायर हो चुके हैं और 90 के दशक से क़ुरआन के गहन अध्ययन और उसके वास्तविक संदेश को समझने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी किताब 'इस्लाम का असल पैगाम को 2002 में अल अज़हर अल शरीफ, काहिरा की मंज़ूरी प्राप्त हो गयी थी और यूसीएलए के डॉo खालिद अबुल फ़ज़ल का समर्थन भी हासिल है। मोहम्मद यूनुस की किताब 'इस्लाम का असल पैग़ाम' मैरीलैंड, अमेरिका ने 2009 में प्रकाशित किया।
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