मोहम्मद यूनुस, न्यु एज इस्लाम
25 अगस्त, 2017
(संयुक्त लेखक (अशफाकुल्लाह सैयद), इस्लाम का असल पैग़ाम, आमना पब्लिकेशंज़, अमेरिका, 2009)
अधिकांश मुस्लिम ईमान के पांच स्तंभों को इस्लामी शिक्षाओं का आधार मानते हैं जिसमें नमाज़ को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैl
जब वह एक दुसरे से मिलते हैं तो सामान्य रूप से यह पूछते हैं कि “क्या तुमने नमाज़ अदा कर ली?” लेकिन वह कभी एक दुसरे से या अपने रिश्तेदारों से यह नहीं पूछते कि क्या तुम ने कोई नेक काम किया हैl
“आमाले सालेहा” (अच्छे कर्म) को सभी धर्मों के अन्दर केन्द्रीय स्थान प्राप्त है, और इस संसार में आतंकवाद और बेदीनी को छोड़ कर और कोई धर्म नहीं है जो बुराई और पाप को बढ़ावा देता होl इसलिए, कुरआनी शिक्षाओं पर आधारित यह विचार मुसलमानों के लिए क्यों!
कुरआनी शिक्षाओं पर आधारित इस विचार का उत्तेजक एक विश्व प्रसिद्ध विद्द्वान अकबर अहमद का इंटरव्यू है जो उन्होंने एक ज़माने में एम टी वी के सबसे प्रसिद्ध मेज़बान क्रिस्टन बुकर का इस शीर्षक पर लिया था कि उन्हें किस चीज ने इस्लाम कुबूल करने पर मजबूर किया (1)l
जब क्रिस्टन बुकर ने क्रिकेटर इमरान खान से प्रश्न किया कि इस्लाम क्या है, तो उनहोंने उत्तर दिया कि “अल्लाह पर ईमान रखना और नेक अमल करना ईमान की बुनियाद पर”l उनके इस उत्तर ने उनके अन्दर इस्लाम को जानने का और पढ़ने का जज़्बा पैदा किया जिसके नतीजे में उन्होंने अंततः इस्लाम स्वीकार कर लियाl
ज्यादातर मुसलमानों को इमरान खान का यह उत्तर इस्लामी शिक्षाओं में कटौती मालूम होता होगाl उन्होंने न पैगम्बरे इस्लाम के बारे में बताया और न ही इस्लाम के पांच अरकान के बारे में कोई बात की, बल्की उनहोंने अच्छे कर्म को इस्लाम का जौहर और उसकी रूह करार दियाl लेकिन इमरान खान ने कुरआन की सही शिक्षा पेश कीl
कुरआन का फरमान:
“हाँ अलबत्ता जिस शख्स ने खुदा के आगे अपना सर झुका दिया और अच्छे काम भी करता है तो उसके लिए उसके परवरदिगार के यहाँ उसका बदला (मौजूद) है और (आख़ेरत में) ऐसे लोगों पर न किसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐसे लोग ग़मग़ीन होगे”l (2:122)
“और उस शख्स से दीन में बेहतर कौन होगा जिसने ख़ुदा के सामने अपना सरे तसलीम झुका दिया और नेको कार भी है और इबराहीम के तरीके पर चलता है जो बातिल से कतरा कर चलते थे और ख़ुदा ने इब्राहिम को तो अपना ख़लिस दोस्त बना लिया”l (4:125)
इसलिए, कुरआन भी इस बात की गवाही देता है कि मज़हब और पैगंबर से कतए नज़र अल्लाह पर जिसका ईमान उसके अन्दर नेकी का जज़्बा पैदा करता है उसे अल्लाह की बारगाह से इसका अच्छा बदला मिलेगाl इसी लिए जैसा कि इमरान खान ने कहा “अल्लाह पर ईमान रखना और नेक अमल करना ईमान की बुनियाद है”, या इस्लामी शिक्षाओं का प्रतिबिम्ब हैl
लेकिन यह अवधारणा इस्लाम के स्तंभ नमाज़, रोज़ा, हज और ज़कात का महत्व न तो कम करता है और न ही उसे समाप्त करता हैl बल्की यह उन स्तंभों को एक शानदार ढांचा प्रदान करता हैl
यह दीन या जीवन प्रणाली के साथ एक समझौता होगा अगर कोई मुसलमान इस्लाम के इन स्तंभों को स्वीकार करे लेकिन एक दोसरे की सहायता न करेl कुरआन के शब्दों में :
“क्या तुमने उस शख़्श को भी देखा है जो रोज़ जज़ा को झुठलाता है (1) ये तो वही (कम्बख्त) है जो यतीम को धक्के देता है (2) और मोहताजों को खिलाने के लिए (लोगों को) आमादा नहीं करता (3) तो उन नमाज़ियों की तबाही है (4) जो अपनी नमाज़ से ग़ाफिल रहते हैं (5) जो दिखाने के वास्ते करते हैं (6) और रोज़मर्रा की मालूली चीज़ें भी आरियत नहीं देते (7)” (107:1-7)
उपरोक्त कुरआनी आयतों से यह साबित होता है कि कुरआन क़यामत के दिन रज़ा ए इलाही के हासिल करने का एक एकमात्र स्रोत अच्छे कर्म को ही करार देता हैl जिस पर हम आगे आने वाले भाग-6 में रौशनी डालेंगेl
मोहम्मद यूनुस ने आईआईटी से केमिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा हासिल की है और कार्पोरेट एग्ज़िक्युटिव के पद से रिटायर हो चुके हैं और 90 के दशक से क़ुरआन के गहन अध्ययन और उसके वास्तविक संदेश को समझने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी किताब 'इस्लाम का मूल संदेश को 2002 में अल अज़हर अल शरीफ, काहिरा की मंज़ूरी प्राप्त हो गयी थी और यूसीएलए के डॉ० खालिद अबुल फ़ज़ल का समर्थन भी हासिल है। मोहम्मद यूनुस की किताब 'इस्लाम का असल पैग़ाम' आमिना पब्लिकेशंज़ मैरीलैंड, अमेरिका ने 2009 में प्रकाशित किया।
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