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Hindi Section ( 31 Oct 2017, NewAgeIslam.Com)

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Reflections on Qur'anic Message - Part-9 तक़वा और नमाज़ के बीच अंतर (भाग 9)

 

 

 

मोहम्मद यूनुस, न्यु एज इस्लाम

22 सितंबर, 2017

(संयुक्त लेखक (अशफाकुल्लाह सैयद), इस्लाम का असल पैग़ाम, आमना पब्लिकेशंज़, अमेरिका, 2009)

शीर्षक पिछले लेख के उन समापन अंक को आगे बढ़ाने वाली है कि नामज़ जो कि निश्चित रूप से इस्लामी रूहानियत के मील का पत्थर है और पैगंबरे इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के माद्ध्यम से खुदा की तारीफ़ करने का एक संगठित और विनियमित तरीका है, नमाज़ी को मुत्तक़ी (अल्लाह से डरने वाला) बनाती और क्या नमाज़ एक मुसलमान को जन्नत का हक़दार बनाती है (13:35، 47:15، 51:15، 52:17، 54:54، 77:41)।

तक़वा एक ऐसा तकनीकी शब्द है जिसका वर्णन कुरआन बुराई के विरुद्ध अवरुद्ध एक तहरिकी कुव्वत के तौर पर करता है (91: 7-8) सबसे पहले इस शब्द का प्रसिद्ध भाषाओं मे अनुवाद किया जाना आवशयक है कि पाठक इसके संक्षिप्त लेकिन विशेष अर्थ को समझ सकेंl

शब्द तक़वा और इसका शाब्दिक नाम मुत्तकी और इसके माद्दह से मिलते जुलते दुसरे शब्द सैंकड़ों कुरआनी आयात में वारिद हुए हैंl मुस्लिम उलेमा ने इसकी विभिन्न परिभाषाएं पेश की हैं जैसे खुदा की तरफ आकर्षित होना, खुदा का रास्ता दिखाना, खुदा से डरना, खुदा को याद रखना, बुराई से बचना, खुद की बुराई से सुरक्षा करना और परहेज़गारी आदिl संदर्भ व एक विस्तृत दृष्टिकोण में व्यक्तिगत शब्द के मुताबिक़ तक़वा का अर्थ इंसान का अपनी उन सार्वभौमिक और व्यवहारिक जिम्मेदारियों से सचेत रहना है [1] जिनका खुदा ने उसे अमीन बनाया है, या एक शब्द में यह अखलाक़ी दयानतदारी  है जैसा कि शीर्षक मे प्रयोग किया गया हैl

यहाँ उद्देश्य नमाज़ और तक़वा के बीच लिंक की तहकीक करना हैl यह मुसलामानों के लिए बहुत विशेष है क्यूँकि वह केवल नमाज़ पर जोर देते हैं लेकिन तक़वा में महारत हासिल करने या ऐसे अच्छे और नेक कामों पर कोई ताकीद नहीं करते जिन का सम्बन्ध तक़वा से है (लेख 7, इख्तेतामी बयान)

इस हकीकत से कोई इनकार नहीं कर कि नमाज़ बहुत से नेक लोगों को बुराईयों से रोकती है और उन्हें तक़वा की दौलत से माला माल कर देती है (29:45) लेकिन बहुत सारे ऐसे दुसरे लोग हैं जो नमाज़ को अल्लाह पाक के नजदीक एक मामूली फ़र्ज़ से अधिक महत्व नहीं देते इस बात को जाने बिना कि केवल कुरआनी आयात की तिलावत करना और तक़वा हासिल करने की एक बाशऊर कोशिश के बिना केवल अरकाने नमाज़ अदा करना नमाज़ के कथित मकसद के हुसूल में एक बहुत बड़ी असफलता है, जैसा कि नमाज़ के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

सूरत अल फातिहा की शिक्षा के अनुसार नमाज़ केवल अल्लाह की तस्बीह करने तक ही सीमित नहीं है जैसा कि इस सूरत के निम्नलिखित अनुवाद से आसानी के साथ समझा जा सकता है जो कि प्रतिदिन अदा की जाने वाली इस्लामी नमाज़ का खुलासा हैl

अल्लाह के नाम से प्रारम्भ जो मेहरबान हमेशा दया फरमानेवाला है

सब तारीफें अल्लाह ही के लिए हैं जो सारे जहानों की परवारिश फरमाने वाला है

सबसे दयालु बहुत रहम फरमाने वाला है

बदले के दिन का मालिक

(ऐ अल्लाह!) हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझ ही से मदद चाहते हैं

हमें सीधा रास्ता दिखा

उन लोगों का रास्ता जिन पर तू ने इनाम फरमाया उन लोगों का नहीं जिन पर गज़ब किया गया है और ना (ही) गुमराहों काl

पहली चार आयतें अल्लाह की हम्द व सना के साथ ख़ास हैंl

आयत नंबर 4 और 5 में खुदा की बारगाह में इंसान की हतमी जवाब देही, अल्लाह की इबादत करने के उसके फ़रीज़े और उसकी मदद चाहने को स्वीकार किया गया हैl

नमाज़ का असल मकसद आयत नंबर 6 और 7 में मजकुरा अल्लाह की हम्द व सना कर लेने के बाद (1 से 3) और उसकी बरतरी और अपनी अजज़ व विनम्रता को स्वीकार कर लेने के बाद बंदा अल्लाह से सीधा रास्ता (सिराते मुस्तकीम) या हकीकी हिदायत का तलबगार होता हैl

इसके अगले पृष्ठ में कुरआन अपने बंदे की दुआ का जवाब सुरह बकरा की प्रारंभिक आयतों में इस तरह देता है:

“ यह वह अजीम किताब है जिसमें किसी शक की गुंजाइश नहीं, (यह) मुत्त्कीन के लिए हिदायत हैं (2:2)” दुसरे शब्दों में केवल मुत्तकीन ही कुरआन से हिदायत हासिल कर सकते हैं “ और इसी लिए वह अपने रब की जानिब से सच्ची हिदायत या सिराते मुस्तकीम पर हैं”l (2:5)

इसलिए, कुरआन को हमारे सामने सच्ची हिदायत या सिराते मुस्तकीम की तरफ एक रहनुमा की हैसियत से पेश किया गया है और इस पर केवल मुत्तकी ही चल सकते हैंl

नम्नलिखित कुरआन की अनेकों आयतों में कुरआन हिदायत के अपने उसूल या वहि को सिराते मुस्तकीम करार देता हैl

इस पुरअज़ हिकमत कुरान की क़सम (2) (ऐ रसूल) तुम बिलाशक यक़ीनी पैग़म्बरों में से हो (3) (और दीन के बिल्कुल) सीधे रास्ते पर (साबित क़दम) हो (4) जो बड़े मेहरबान (और) ग़ालिब (खुदा) का नाज़िल किया हुआ (है) (5) ताकि तुम उन लोगों को (अज़ाबे खुदा से) डराओ जिनके बाप दादा (तुमसे पहले किसी पैग़म्बर से) डराए नहीं गए (36:2-6)l

और (इसलिए भी) ताकि जिन लोगों को (कुतूबे समावी का) इल्म अता हुआ है वह जान लें कि ये (वही) बेशक तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से ठीक ठीक (नाज़िल) हुईहै फिर (ये ख्याल करके) इस पर वह लोग ईमान लाए फिर उनके दिल खुदा के सामने आजिज़ी करें और इसमें तो शक ही नहीं कि जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया उनकी खुदा सीधी राह तक पहुँचा देता है (22:54)

इसलिए, इस्लामी नमाज़ केवल रूहानियत का स्रोत नहीं है बल्कि कुरआन की रहनुमाई (सिराते मुस्तकीम) की पैरवी करने का एक मुसलसल अहद भी हैl

इसलिए, नमाज़ एक मोमिन बंदे को तक़वा हासिल करने और उस पर अमल करने और अपने प्रतिदिन के दिनचर्या और दोसरों के साथ अपने तमाम मामलों में कुरआन की हिदायत पर अमल करने का पाबंद करता हैl

इसलिए, मुसलमान जो केवल नमाज़ी पर ही जोर देते हैं उन्हें यह समझना आवश्यक हा कि नमाज़ में वह सिराते मुस्तकीम को तलब करते हैं वह केवल कुरआन की हिदायत ही है और उन्हें इसकी पैरवी करने के लिए तक़वा पर अमल करने की जरुरत हैl

इसलिए मुसलमान को यह महसूस करना ज़रुरी है कि जब तक वह तक़वा हासिल करने या इस पर अमल करने और कुरआनी हिदायत की पैरवी करने की बाशउर कोशिश के साथ अपनी नमाज़ों की ताईद नहीं करते तब तक वह उस चीज से गाफिल ही रहेंगे जिसके लिए वह नमाज़ अदा करते हैंl वह रूहानी तौर पर खुशी महसूस कर सकते हैं और खुदा की बारगाह में खड़े होने और उसकी हमद व सना बजा लाने के जज़्बात से सरशार भी हो सकते हैं लेकिन वह इलाही रहनुमाई से महरूम ही रहेंगे जिसके लिए वह ओनी नमाज़ में दुआ करते हैं और जो खुदा ने कुरआन में उनके लिए नाज़िल किया हैl

[1] Essential Message of Islam, Chap. 8.2

जनाब मोहम्मद यूनुस ने आईआईटी से केमिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा हासिल की है और कार्पोरेट एग्जिक्यूटिव के पद से रिटायर हो चुके हैं और 90 के दशक से क़ुरआन के गहन अध्ययन और उसके वास्तविक संदेश को समझने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी किताब 'इस्लाम का असल पैगाम को 2002 में अल अज़हर अल शरीफ, काहिरा की मंज़ूरी प्राप्त हो गयी थी और यूसीएलए के डॉo खालिद अबुल फ़ज़ल का समर्थन भी हासिल है। मोहम्मद यूनुस की किताब 'इस्लाम का असल पैग़ाम' मैरीलैंड, अमेरिका ने 2009 में प्रकाशित किया।

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