मोहम्मद नजीब कासमी संभली, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
25 फरवरी 2022
मां बाप की फरमांबरदारी कुरआन व हदीस में मां बाप के साथ अच्छा सुलूक करने की खुसूसी ताकीद की गई है। अल्लाह पाक ने कई जगहों पर अपनी तौहीद व इबादत का हुक्म देने के साथ मां बाप के साथ अच्छा बर्ताव करने का हुक्म दिया है, जिससे मां बाप की इताअत उनकी खिदमत और उनके अदब व एहतेराम की अहमियत वाज़ेह हो जाती है। हदीसों में भी मां बाप की फरमांबरदारी की ख़ास अहमियत व ताकीद और इसकी फ़ज़ीलत बयान की गई है। अल्लाह पाक हम सबको मां बाप के साथ अच्छा बर्ताव करने वाला बनाए। उनकी फरमांबरदारी करने वाला बनाए। उनके हुकूक की अदायगी उनके हक़ के मुताबिक़ करने वाला बनाए।
कुरआन की आयतें
“और तुम्हारे परवरदिगार ने तो हुक्म ही दिया है कि उसके सिवा किसी दूसरे की इबादत न करना और माँ बाप से नेकी करना अगर उनमें से एक या दोनों तेरे सामने बुढ़ापे को पहुँचे (और किसी बात पर खफा हों) तो (ख़बरदार उनके जवाब में उफ तक) न कहना और न उनको झिड़कना और जो कुछ कहना सुनना हो तो बहुत अदब से कहा करो (23) और उनके सामने नियाज़ (रहमत) से ख़ाकसारी का पहलू झुकाए रखो और उनके हक़ में दुआ करो कि मेरे पालने वाले जिस तरह इन दोनों ने मेरे छोटेपन में मेरी मेरी परवरिश की है (24) इसी तरह तू भी इन पर रहम फरमा तुम्हारे दिल की बात तुम्हारा परवरदिगार ख़ूब जानता है अगर तुम (वाक़ई) नेक होगे और भूले से उनकी ख़ता की है तो वह तुमको बख्श देगा क्योंकि वह तो तौबा करने वालों का बड़ा बख़शने वाला है” (सुरह बनी इस्राइल 23-24) जहां अल्लाह पाक ने अपनी इबादत करने का हुक्म दिया वहीँ मां बाप के साथ एहसान करने का हुक्म भी दिया। एक दूसरी जगह अपने शुक्र बजा लाने के साथ मां बाप के वास्ते भी शुक्र का हुक्म दिया। अल्लाहु अकबर, जरा गौर करें कि मां बाप का मुकाम व मर्तबा क्या है तौहीद व इबादत के बाद मां बाप की इताअत व खिदमत जरूरी करार दिया गया क्योंकि जहां इंसानी वजूद का हकीकी सबब अल्लाह है तो वहीँ ज़ाहिरी सबब मां बाप। इससे यह भी मालुम हुआ कि शिर्क के बाद सबसे बड़ा गुनाह मां बाप की नाफरमानी है, जैसा कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि अल्लाह के साथ शिर्क करना और मां बाप की नाफ़रमानी करना बहुत बड़ा गुनाह है। बुखारी
मां बाप की नाफरमानी तो दूर, नाराजगी व नापसंदिदगी के इज़हार और झिड़कने से भी रोका गया है और अदब के साथ नर्म गुफ्तगू का हुक्म दिया गया है ’’ وَلَاَ تْنہَرْ ہُمَا وقُلْ لَّہُما قَوْلًا کَرِیْمَا‘‘ साथ ही साथ ज़िल्लत के बाजू पस्त करते हुए तवाज़ो व इन्किसारी और शफकत के साथ बर्ताव का हुक्म होता है ’’ واخْفِضْ لَہُمَا جَنَاحَ الذُّلِّ مِنَ الرَّحْمۃِ‘‘ और पुरी जिंदगी मां बाप के लिए दुआ करने का हुक्म उनकी अहमियत को दोबाला करता है وقُلْ رَّبِّ ارْحَمْہماکَما رَبّیَانِی صَغِیْرًا और तुम सब अल्लाह की इबादत करो और उसके साथ किसी चीज को शरीक न करो और मां बाप के साथ नेक बर्ताव करो। सुरह निसा 36
“हमने हर इंसान को अपने मां बाप के साथ अच्छा सुलूक करने की नसीहत की है।“ ( सुरह अनकबूत 8)
हदीसें:
* हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ीअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा कि अल्लाह को कौनसा अमल ज़्यादा महबूब है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: नमाज़ को उसके वक्त पर अदा करना। हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ीअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं मैंने कहा कि इसके बाद कौन सा अमल अल्लाह को ज़्यादा पसंद है? तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: मां बाप की फरमांबरदारी। हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ीअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं मैंने कहा कि इसके बाद कौन सा अमल अल्लाह को ज़्यादा महबूब है? तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: अल्लाह के रास्ते में जिहाद करना। बुखारी, मुस्लिम
* हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ीअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि एक शख्स रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और कहने लगा कि मैं अल्लाह पाक से अज्र की उम्मीद के साथ आप के हाथ पर हिजरत और जिहाद करने के लिए बेअत करना चाहता हूँ। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: क्या तुम्हारे मां बाप में से कोई जिंदा है? उस शख्स ने कहा: (अलहमदुलिल्लाह) दोनों हयात हैं। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस शख्स से पूछा: क्या तू वाकई अल्लाह पाक से अज्रे अज़ीम का तालिब है? उसने कहा हाँ। तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: अपने मां बाप के पास जा और उनकी खिदमत कर। मुस्लिम
* एक शख्स ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हो कर पूछा: मेरे हुस्ने सुलूक का सबसे ज़्यादा हकदार कौन है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: तुम्हारी मां। उस शख्स ने पूछा फिर कौन: आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: तुम्हारी मां। उसने पूछा फिर कौन? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: तुम्हारी मां। उसने पूछा फिर कौन? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: तुम्हारा बाप। बुखारी
* रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: बाप जन्नत के दरवाजों में से बेहतरीन दरवाज़ा है। इसलिए तुम्हें इख्तियार है चाहे (उसकी नाफ़रमानी करके और दिल दुखा के) उस दरवाज़े को ज़ाया कर दो या (उसकी फरमांबरदारी और उसको राज़ी रख कर) उस दरवाज़े की हिफाजत करो। तिरमिज़ी
* रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: अल्लाह पाक की रज़ामंदी वालिद की रज़ामंदी में है और अल्लाह की नाराज़गी वालिद की नाराज़गी में है। तिरमिज़ी
* रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: जिस शख्स को यह पसंद हो कि उसकी उम्र दराज़ की जाए और उसके रिजक को बढ़ा दिया जाए उको चाहिए कि अपने मां बाप के साथ अच्छा सुलूक करे, और रिश्तेदारों के साथ सिलह रहमी करे। मुसनद अहमद
* रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: जिसने अपने मां बाप के साथ अच्छा सुलूक किया उसके लिए खुशखबरी है कि अल्लाह पाक उसकी उम्र में इज़ाफा फरमाएंगे। मुस्तदरक हाकिम
* रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: वह शख्स ज़लील व ख्वार हो ज़लील व ख्वार हो, ज़लील व ख्वार हो। अर्ज़ किया गया: या रसूलुल्लाह! कौन ज़लील व ख्वार हो? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: वह शख्स जो अपने मां बाप में से किसी एक या दोनों को बुढ़ापे की हालत में पाए फिर (उनकी खिदमत के जरिये) जन्नत में दाखिल न हो। मुस्लिम
कुरआन व हदीस की रौशनी में उम्मते मुस्लिमा का इत्तेफाक है कि मां बाप की नाफ़रमानी बहुत बड़ा गुनाह है। मां बाप की नाराज़गी अल्लाह की नाराज़गी का सबब बनती है। इसलिए हमें मां बाप की इताअत और फरमांबरदारी में कोई कोताही नहीं करनी चाहिए। ख़ास कर जब मां बाप या दोनों में से कोई बुढ़ापे को पहुँच जाए तो उन्हें डांट डपट करना यहाँ तक कि उनको उफ़ तक कहना नहीं चाहिए। अदब व एहतिराम और मोहब्बत व खुलूस के साथ उनकी खिदमत करनी चाहिए। संभव है कि बुढ़ापे की वजह से उनकी कुछ बातें या आमाल आपको पसंद न आएं, आप उस पर सब्र करें, अल्लाह पाक इस सब्र करने पर भी अज़ीम अज्र अता फरमाएगा, इंशाअल्लाह।
कुरआन व हदीस की रौशनी में उलमा ने मां बाप के निम्नलिखित हुकूक मुरत्तब किये हैं, अल्लाह पाक हम सबको मां बाप के हुकूक अदा करने वाला बनाए:
ज़िन्दगी के दौरान हुकूक: उनका अदब व एहतिराम करना। उनसे मोहब्बत करना। उनकी फरमांबरदारी करना। उनकी खिदमत करना। उनको जहां तक हो सके आराम पहुंचाना। उनकी जरूरियात पुरी करना। समय समय पर उनसे मुलाक़ात करना।
जिंदगी के बाद के हुकूक: उनके लिए अल्लाह पाक से मुआफी और रहमत की दुआएं करना। उनकी जानिब से ऐसे आमाल करना जिनका सवाब उन तक पहुंचे। उनके रिश्तेदार, दोस्त व संबंधियों की इज्ज़त करना। उनके रिश्तेदार, दोस्त व संबंधियों की जहां तक हो सके मदद करना। उनकी अमानत व क़र्ज़ अदा करना। उनकी जायज़ वसीअत पर अमल करना। कभी कभी उनकी कब्र पर जाना।
नोट: मां बाप की भी जिम्मेदारी है कि वह औलाद के बीच बराबरी कायम रखें और उनके हुकूक की अदायगी करें। साधारणतः गैर शादी शुदा औलाद से मोहब्बत ज़्यादा हो जाती है, जिस पर पकड़ नहीं है, लेकिन बड़ी औलाद के मुकाबले में छोटी औलाद को मामलों में तरजीह देना मुनासिब नहीं है, जिसकी वजह से घरेलू मसाइल पैदा होते हैं, इसलिए मां बाप को जहां तक हो सके औलाद के बीच बराबरी का मामला करना चाहिए। अगर औलाद घर वगैरा के खर्च के लिए बाप को रकम देती है तो उसका सहीह इस्तेमाल होना चाहिए। अल्लाह पाक हमें अपने मां बाप की फरमांबरदारी करने वाला बनाए और हमारी औलाद को भी इन हुकूक की अदायगी करने वाला बनाए।
Urdu
Article: Obedience to Parents والدین کی فرمانبرداری
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