मोहम्मद इज़हारुल हक़
माथा तो मेरा उसी वक्त ठनक गया था जब शाहरुख खान ने भारत के हवाले से अपनी मुश्किलों का ज़िक्र किया। फिर जब हमारे एक तथाकथित धार्मिक नेता ने बहुत भारी भरकम प्रकार की दावत भी खान को दे मारी तो माथा ठनकने के साथ आंख भी फड़कने लगी और फिर ... वही हुआ जिसका डर था।
आसमाँ बारे अमानत नतवानस्त कशीद
क़ुरआ फाल बनामे मन दीवाना ज़दन्द
शाहरुख ने मुझे टेलीफोन किया कि उसने पाकिस्तान आने का फैसला कर लिया है।
''ममलकते खुदादाद ही अब मेरा वतन होगा। तुम ये बताओ कि मैं किस शहर को अपना ठिकाना बनाऊँ”
मैंने अपनी तरफ से और तथाकथित नेता द्वारा और पूरी क़ौम की तरकफ से खान को खुश आमदीद (स्वागत) कहा और खूब विचार करने के बाद उसे कराची में आबाद होने का सुझाव दिया। खान ने शुक्रिया अदा करने के बाद ये भी कहना जरूरी समझा कि मेरी राय मालूम करने के बाद अब वो किसी और से इस बारे में कभी सम्पर्क नहीं करेगा। मेरी राय उसके अनुसार उचित थी। मैंने बहरहाल ये राज़ अपने तक ही रखा। मुझे ज़रूरत भी क्या थी कि एक शख्स ने अगर मेरी बुद्धि और ज्ञान और समझ पर भरोसा कर के सलाह लिया है तो उसका प्रचार करता फिरूँ। चाँद चढ़ेगा तो पूरी दुनिया देख लेगी। शाहरुख की कराची की तरफ हिजरत (प्रवास) कोई साधारण घटना नहीं होगी कि छिपा रहेगा।
लेकिन मुझे क्या पता था कि ये सलाह ऐसे कई सुझावों की भूमिका साबित होगी और ये सिलसिला आख़िरकार मेरे लिए दुखदायी बन जाएगा। दूसरे ही दिन खान का फिर फोन आया कि कौन सा इलाका रहने के लिए उपयुक्त होगा। लगता था उसने पाकिस्तान का नया सांस्कृतिक रुझान इधर उधर से मालूम कर लिया था। कहने लगा,''तुम्हारे देश में यानि मेरे नए वतन में फिरौती के लिए अपहरण नई सांस्कृतिक प्रगति है इसलिए जाहिर है कि डिफेंस जैसे अमीर इलाका उपयुक्त नहीं होगा। ऐसे इलाके में ऐबैद होने का मतलब होगा कि आ बैल मुझे मार। मैंने उसकी जाँच की पुष्टि की और सुझाव दिया कि इसके लिए गुलिस्तान जौहर का मोहल्ला उचित रहेगा क्योंकि ये डिफेंस की तरह मालदार है न लालू खेत की तरह कंगाल''।
शाहरुख खान को कराची में आबाद हुए दस दिन गुज़रे होंगे कि उसका टेलीफोन आया। कहने लगा,''एक बात पूछनी है, क्योंकि विश्वास तुम्हारी समझ और बुद्धि पर है इसलिए तुम्हीं से पूछ रहा हूँ। बाजार काम से गया था। वापस आया तो घर वालों ने बताया कि कोई व्यक्ति एक पर्ची दे गया है जिस पर संदेश लिखा है कि दस लाख रुपये तैयार रखो 'हम कल दोपहर ज़ोहर की नमाज़ के बाद आएंगे और वसूल कर लेंगे।''
सच्ची बात ये है कि जब मैंने शाहरुख खान को कराची आबाद होने की सलाह दी थी तो मुझे पर्ची के बारे में सब कुछ पता था। वो इस तरह कि एक दोस्त ने कुछ दिन पहले बताया था कि अब इस तरह के पर्ची नुमा संदेश दुकानों के अलावा घरों में भी भेजे जाते हैं। एक फ्लैट में रहने वाले मालिक ने इस संदेश पर अमल करने से इन्कार किया तो उसे वहीं, दिन दहाड़े, कई अन्य निवासियों के सामने मार मार कर लहूलुहान कर दिया गया था। इससे उसने तो सबक हासिल किया था, गवाहों ने भी सबक़ हासिल कर लिया था। लेकिन बात ये है कि कराची जैसे बेमिसाल शहर में ज़िंदगी गुज़ारने के लिए इन छोटे मोटे ताज़ा तरीन सांस्कृतिक प्रवृत्तियों का साथ देना ही पड़ता है, इसलिए मैंने शाहरुख खान को समझाया कि देखो खान! तुम अगर डिफेंस या बाथ आइलैंड जैसे चमकदार इलाके में रहते और अगवा हो जाते तो करोड़ों अरबों रुपये देने पड़ते। मिडिल क्लास मोहल्ले में रहने का ये फायदा है कि मामला दस पन्द्रह लाख से आगे नहीं बढ़ेगा। महीने दो महीने बाद इतनी रक़म अदा करना तुम्हारे लिए कौन सा मुश्किल है!
पंद्रह सोलह दिन बाद फिर खान का फोन आया। बड़ा कंफ्यूज़्ड था। कहने लगा,''यार ये अक़ीदे (विश्वास) का क्या चक्कर है? भारत में तो मुझसे कभी किसी ने मेरा विश्वास नहीं पूछा था। यहां विभिन्न प्रकार की पोशाकों, लबादों और विभिन्न रंगों की पगड़ियाँ पहने समूह दरवाजे पर आकर पूछते हैं कि आपका अक़ीदा क्या है? ताकि उसी विश्वास की राजनीतिक पार्टी आपको अपना मेम्बर बनाए। आखिर विश्वास का राजनीतिक दलों से क्या सम्बंध है? मैंने उसे समझाया कि जनता की आसानी के लिए यहाँ हर अक़ीदे की अलग राजनीतिक पार्टी है और माशा-अल्लाह सभी का चुनावों में भाग लेने का पक्का इरादा है। तुम अगर अहले हदीस हो तो मौलाना साजिद मीर साहब से सम्पर्क करो। देवबंदी हो तो मौलाना फ़ज़लुर्रहमान साहब से मिलो और बरेलवी हो तो हाजी फ़ज़ल करीम साहब या सर्वत क़ादरी साहब की खिदमत में हाज़िरी दो। क़ादरी साहब का नाम सुनकर वो कहने लगा कि ''तुम्हारे यहाँ एक और कादरी साहब भी तो हैं जो दसावर से आए हैं।'' मैंने समझाया कि उनकी चिंता तुम मत करो। उनकी चिंता करने वाले और बहुत लोग हैं और सभी ताक़तवर है।
मुश्किल से एक हफ्ता गुज़रा था कि फिर शाहरुख खान ने फोन किया। पूछने लगा ''महेंद्र सिंह को क्यों क़त्ल दिया गया और रघुबीर सिंह को क्यों अग़वा किया गया है? मैं जानते बूझते हुए अनजान बन गया (उलमा इसे तजाहिले आरिफाना कहते हैं)। कौन सा महेंद्र सिंह? लेकिन शाहरुख खान बच्चा नहीं था। कहने लगा,''तुम्हें अच्छी तरह मालूम है कि ख़ैबर पख्तूनख्वाह में बसे सिख समुदाय के सैकड़ों लोगों का अपहरण और हत्या की जा रही है। मैंने उसे बताया कि ये यहूदी व ईसाईयों की साज़िश है और इसमें अमेरिका और इस्राइल शामिल हैं। पूछने लगा ''वो कैसे?'' मैंने समझाया कि पाकिस्तान में रहना है तो ये बात अच्छी तरह समझ लो कि जो भी घटना हो, उससे इन्कार कर के उसे साज़िश करार देना होगा!
ये सिलसिला चलता रहा। कभी वो हज़ारा बिरादरी के बारे में मुश्किल मुश्किल सवाल करता, कभी चलास की घटनाओं का ज़िक्र करता। एक दिन पूछने लगा कि ''ये हर महीने जो कई हिंदू परिवार पलायन करके भारत जा रहे हैं, क्यों जा रहे हैं? और जिस आदरणीय धार्मिक नेता ने मुझे पाकिस्तान आने का निमंत्रण दिया था, क्या उसे इन हिंदू परिवारों के पलायन के बारे में मालूम है?
मेरा सब्र का पैमाना भर चुका था। मैंने गुस्से से फोन पटक दिया।
स्रोत: http://columns.izharulhaq.net/2013_01_01_archive.html
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