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Hindi Section ( 16 Jul 2017, NewAgeIslam.Com)

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The Victim: Muslims Or Islam? पीड़ित कौन, मुसलमान या इस्लाम?

 

 

 

मिसबाहुल हुदा कादरी, न्यु एज इस्लाम

11 नवंबर 2016

इस तथ्य को साबित करने के लिये किसी तर्क की जरूरत नहीं है कि इस्लाम एक ऐसा वैश्विक और सार्वभौमिक धर्म है जो क्षेत्रीय घेरे,राज्यों और सरकारों की हदबंदी,कौमियत के रोग,नस्लवाद की महामारी और सीमा की घेराबंदियों से मुक्त अथाह विस्तार गिराई और गहराई,चौतरफा सार्वभौमिक मूल्यों और वैश्विकता का हामिल है।

इसके विपरीत ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस्लाम धर्म के इतने चौतरफा सार्वभौमिक मूल्यों और वैश्विकता का हामिल होने के बावजूद आज पूरा मुस्लिम समाज आपसी मतभेद और अराजकता, धार्मिक, पंथीय और सांप्रदायिक विवाद, राष्ट्रीय स्तर पर अप्राकृतिक सामाजिक विभाजन, इस्लाम विरोधी तत्वों की विनाशकारी फाइबर जाल,शत्रुतापूर्ण कार्रवाई और आर्थिक, युद्ध, नैतिक, सामाजिक और राजनितिक शोषण का शिकार क्यों हुई। और उसके इरादे और बारीकियां क्या हैं जिन्होंने वास्तव में संयुक्त विश्व के बीच इस्लाम की आत्मा,उसकी बुनियादी बातों को और सार्वभौमिक मूल्यों को आहत और मुसलमानों को अपमानित और रुसवा कर रखा है।

अगर इस्लामी शिक्षाओं और कुरआनी आयतों से उत्तर खोजा जाए तो इसकी वजह स्पष्ट है।

मुसलमान निम्नलिखित कुरआनी आदेश और शिक्षाओं से लगभग विद्रोह कर रहे हैं:

وَاعْتَصِمُوا بِحَبْلِ اللَّهِ جَمِيعًا وَلَا تَفَرَّقُوا ۚ وَاذْكُرُوا نِعْمَتَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ كُنْتُمْ أَعْدَاءً فَأَلَّفَ بَيْنَ قُلُوبِكُمْ فَأَصْبَحْتُمْ بِنِعْمَتِهِ إِخْوَانًا وَكُنْتُمْ عَلَىٰ شَفَا حُفْرَةٍ مِنَ النَّارِ فَأَنْقَذَكُمْ مِنْهَا ۗ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمْ آيَاتِهِ لَعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ۔(3:103

और तुम सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थाम लो और फूट मत डालो,और अपने ऊपर अल्लाह की उस नेमत को याद करो जब तुम (एक दुसरे के)दुश्मन थे तो उसनें तुम्हारे दिलों में उलफ़त पैदा कर दी और तुम उसकी आशीर्वाद के कारण आपस में भाई-भाई हो गए, और तुम (नरक की) आग के गड्ढे के किनारे पर (पहुँच चुके) थे तो उसने तुम्हें गड्ढे से बचा लिया इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी संकेत खोलकर बयान करता है, ताकि तुम हिदायत पा जाओ। (अनुवाद, इरफानुल कुरआन)

وَلَا تَهِنُوا وَلَا تَحْزَنُوا وَأَنتُمُ الْأَعْلَوْنَ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ۔(3:139  (

और तुम हिम्मत मत हारो और न शोक करो और तुम ही प्रबल रहोगे अगर तुम (पूरा)ईमान रखते हो। (अनुवाद, इरफानुल कुरआन)

इसके अलावा और भी अन्य कई कुरआनी आयतें हैं जिनकी रोशनी में मुसलमानों के पतन का आत्मनिरीक्षण किया जा सकता है और मुसलमानों में इस उत्पातक मतभेद और अराजकता का अनुमान लगाया जा सकता है। लेकिन हम मुसलमानों की वर्तमान स्थिति के संदर्भ में फिलहाल मौजूद इन दो कुरआन की आयतों का एक सरसरी समीक्षा करेंगे।

पवित्र कुरआन की आयत "3: 103" में अल्लाह सर्वशक्तिमान ने स्पष्ट तौर पर मुसलमानों को इतना ही नहीं कि आपसी मतभेद और धार्मिक, साम्प्रदायिक और वर्ग विवाद और घृणा की सभी दीवारों को गिरा कर अपने खेमे में एकता और सहमति बनाने का आदेश दिया है बल्कि अल्लाह ने सदियों से चली आ रही उनकी आपसी आदिवासी और जातीय दुश्मनी को ईमानऔर इस्लाम की बरकतों से खत्म करके और ईमान के प्रकाश से उनके दिल एक दूसरे के लिए (जो कि सदियों से आपसी दुश्मनी और बैर की आग में जल रहे थे) भाईचारे, प्रेम, दया, जान न्यौछावर करनें और त्याग की भावना और बलिदान से भर दिया और उसे अपनी नेअमत करार दिया।

अधिक यह है कि इसी आयत में अल्लाह ने यह कह कर,  "وَكُنْتُمْ عَلَىٰ شَفَا حُفْرَةٍ مِنَ النَّارِ فَأَنْقَذَكُمْ مِنْهَا

अनुवाद: और तुम (नरक की) आग गड्ढे के किनारे पर (पहुँच चुके) थे तो उसने तुमको उस गड्ढे से बचा लिया)"इस बात की भी स्पष्ट घोषणा कर दी कि आपसी मतभेद और अराजकता और धार्मिक, साम्प्रदायिक और वर्ग विवाद और घृणा तुम्हारे लिए नरक का कारण है और आपसी भाईचारे, प्रेम, दया, जान न्यौछावर करना और जुनून त्याग व बलिदान अल्लाह के आशीर्वाद का प्रतीक और नरक से उद्धार का कारण है।

अगर हम ऐतिहासिक दृष्टि कोण से मुसलमानों में आपसी मतभेद और अराजकता और धर्म व संप्रदाय, देश और मिल्लत और वर्गों के आधार पर विवाद,घृणा,कट्टरता,असहिष्णुता और अलगाववाद का समीक्षा लेने की कोशिश करते हैं तो इस संबंध में वहाबी सांप्रदाय सबसे प्रतिष्ठित और प्रमुख दिखाई देता है वस्तुतः जिसका जन्म नजद की धरती पर हुआ और जिसने धीरे-धीरे मुसलमानों के एक बड़े वर्ग को अपने भ्रष्ट और विध्वंसक विचारों की आगोश में ले लिया। अरब जगत और अधिकांश एशियाई देशों में नजदियत,सल्फ़ियत,देवबंदीयत और तबलीगी जमाअत के नाम से पहचाने जाने वाली पार्टियों को सांप्रदायिक वहाबियत की ही शाखा करार दिया जा सकता है।

इस संप्रदाय के अधिकांश सैद्धांतिक आधार जिन उलेमा की शिक्षाओं पर है उनमें इब्ने तैमिया, मोहम्मद इब्न अब्दुल वहाब, सैयद कुतुब, मौलाना अबुल आला मौदूदी जैसे अतिवादी विचारधारा के निर्माताओं के नाम सर्वोपरि हैं।

अब थोड़ा विवरण के साथ उन अतिवादी और रूढ़िवादी विचारधारा निर्माताओं की इन शिक्षाओं की समीक्षा करते हैं जिन्होंने इस्लाम के शांतिपूर्ण माहौल को मैला कर दिया और इसमें धर्म, पाठशाला, पंथ और फ़िक़्ही सिद्धांतों और सैद्धांतिक आधार पर मतभेद, अराजकता और आपसी द्वेष व दुश्मनी का जहर घोल दिया।

वहाबी साम्प्रदाय के सबसे प्रभावशाली कट्टरपंथी विचारक सैयद कुतुब ने इस्लाम के नाम पर अपने राजनीतिक हितों को प्राप्त करने के लिए इस्लामी जिहाद के एक गलत अवधारणा की बीज बोते हुए यह सिद्धांत पेश किया कि:

"हम सिर्फ एक ऐसी इस्लामी नेतृत्व का पालन करना स्वीकार करते हैं जिसका उद्देश्य व्यावहारिक जीवन में इस्लाम को पुनर्जीवित करने की कोशिश करना है,और इसके अलावा सभी प्रकार के समाज और नेतृत्व से अपनें अलग होनें की घोषणा करते हैं *।"[फी ज़िलालुल कुरआन [अंग्रेजी से अनुवाद।], 7/143]

वहाबी सांप्रदाय का एक मील का पत्थर की हैसियत रखने वाले मौलाना मौदूदी ने दो कदम आगे बढ़कर पूरी दुनिया के राज्यों और सरकारों को इस्लामी शासन में बदलने की एक नई अवधारणा प्रस्तुत की और पूरी दुनिया के काफिरों और मुशरिकों के खिलाफ (जिसमें पूरी दुनिया के वे मुसलमान भी शामिल हैं जो वहाबी साम्प्रदाय के सिद्धांतों को अस्वीकार करते हैं)जिहाद फी सबीलिल्लाह का नारा बुलंद किया, जिसने जिहाद जैसे पवित्र इस्लामी अवधारणा को तहो बाला करके रख दिया,और जिसको आधार बनाकर उनके बाद पैदा होने वाले वहाबी साम्प्रदाय के प्रतिनिधियों ने पूरी दुनिया के काफिरों, मुशरिकों समेत शांतिप्रिय गैर वहाबी और गैर सल्फ़ी मुसलमानों को मुबाहुद्दम करार दिया, यानी उनके खून बहाने और उनके धन और इज्ज़त लूटने को वैध करार दिया।

"इस्लाम धरती पर उन सभी राज्यों और सरकारों को नष्ट करना चाहता है जो इस्लामी विचारधारा और परियोजनाओं का विरोध करते हैं,उस देश या राष्ट्र की परवाह किए बिना जो उन पर शासन करती है। इस्लाम का उद्देश्य अपने विचारों और और परियोजनाओं पर आधारित एक राज्य की स्थापना करना है, इस बात पर ध्यान दिए बिना कि कौन सा देश इस्लाम के मानक भूमिका का हामिल है या किस देश का शासन सैद्धांतिक रूप से इस्लामी राज्य की स्थापना की प्रक्रिया में कमजोर है। इस्लाम केवल एक हिस्सा नहीं बल्कि पूरी धरती की मांग करता है ....... पूरी मानवता को इस्लामी विचारधारा और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त करना चाहिए ..... इस लक्ष्य की प्राप्ती में इस्लाम उन सभी शक्तियों का उपयोग करनें का इच्छुक है जो एक क्रांति पैदा कर सकें। इन सभी शक्तियों का उपयोग करने के लिए एक व्यापक शब्द 'जिहाद' है ...... इस्लामी 'जिहाद' का उद्देश्य गैर इस्लामी शासन को खत्म करना और इसके बजाय एक इस्लामी व्यवस्था कायम करना है *। "

(मौदूदी, अल जिहाद इस्लाम)

इसी धारणा को आधार बनाकर स्वयंभू खलीफा बगदादी ने इस्लाम के आधार को पूरी तरह से ध्वस्त करते हुए यह घोषणा की कि '' इस्लाम कभी एक दिन के लिए भी शांति का धर्म नहीं रहा है "।

उपरोक्त तथ्यों के प्रकाश में अब ज्ञान और अंतर्दृष्टि वालों से यह बात छिपी नहीं कि इसी सांप्रदाय वहाबियत व नजदियत और सल्फ़ियत की नई शाखा आईएस के स्वयंभू खलीफा अबू बकर अल बगदादी के यह सभी प्रकोप और पीड़ित मनुष्य पर यह सब कयामत ढाने वाले अत्याचार कुछ और नहीं बल्कि वहाबी सांप्रदाय के संस्थापकों की उन्हीं शिक्षाओं की व्यावहारिक व्याख्या हैं।

मामला सिर्फ यह नहीं है कि यह सभी उग्रवादी दल केवल युद्धक्षेत्र में ही उन्हें गुमराह गर सिद्धांत निर्माताओं की शिक्षाओं और सैद्धांतिक विचारों को अमली जामा पहना रही हैं बल्कि यह सभी झूठी शक्तियां संगठित होकर शिक्षा और ज्ञान केन्द्रों को अपने जहरीले सिद्धांतों की पदोन्नति के लिये उपयोग कर रही हैं। और पूरी दुनिया में उनकी इस वैचारिक आंदोलन को सऊदी अरब की पूरी तरह से संरक्षण और समर्थन प्राप्त है।

इस संदर्भ में प्रोफेसर अब्दुल्ला दोमतो की एक प्रसिद्ध पुस्तक "(Teaching Islam) 'शिक्षण इस्लाम" से कुछ अंश नकल करना लाभ से खाली नहीं जो सऊदी पाठ्यक्रम में शामिल है:

'' यह एकेश्वरवाद का एक कानून है कि मुसलमानों को (मुवह्हिद, वहाबी) मुसलमानों के साथ वफादारी का मामला रखना चाहिये 'और मूर्तिपूजक (सूफी,गैर मुस्लिमों)से दुश्मनी रखनी चाहिए:"[नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि जो कोई खुदा के लिये प्यार करता है और खुदा के लिये नफरत करता है खुदा के लिए किसी से वफादारी दिखाता है और खुदा के लिए किसी से बैर रखता है, वह अपने इस प्रक्रिया की वजह से अल्लाह का संरक्षण प्राप्त कर लेगा,और जब तक कोई मोमिन ऐसा नहीं करता तब तक उसे ईमान का स्वाद नहीं मिल सकता चाहे वह नमाज़ और रोज़े में अधिक हो (10b: 110) *। ''

"वह मुशरिक दुश्मन कौन हैं और मुवह्हिद मुसलमानों को किन से दुश्मनी रखनी चाहिए? अब्दुल वहाब के लिए मुशरिक कोई और नहीं बल्कि अन्य मुसलमान ही हैं, विशेष रूप से उस्मानी तुर्की, शिया, सूफी और हर व्यक्ति जो तावीज़ आदि करता है या जादू करता है *। "(B: 11110)।

"काफिरों को ईद मुबारक कहना सलबत (सूली पर चढ़ाया हवा )  की पूजा की तरह बुरा है, शराब के साथ जाम व पैमाना पेश करने से भी बदतर पाप है,यह आत्महत्या से भी बदतर है और यह हरामकारी में शामिल होने से भी बुरा है और कई लोग ऐसा कर देते हैं और उन्हें एहसास भी नहीं होता कि उन्होंने कितना बड़ा पाप किया है *। (b: 11810)।

"हिजरी के बजाय" ईसवी "का उपयोग करते हुवे काफिरों की नकल भी एक अलग मुद्दा है," ईसवी "से हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की जन्म तिथि का संकेत मिलता है जिसके कारण काफिरों के साथ एक संबंध और लिंक प्रकट होता है .......... जैसा कि इब्ने तैमिया ने कहा है कि: "अहले किताब ( यहूदी, ईसाई आदि) के साथ उन बातों पर सहमत होना जो हमारे धर्म में नहीं हैं और जो हमारे पूर्वजों की परंपरा नहीं रही है धर्म में ख़राबी है *। "

"अगर कोई एक भी ऐसा मुस्लिम मौजूद हो जो यह काम कर सकता है तो किसी काफिर को कर्मचारी नहीं बनाना चाहिए,और अगर उनकी कोई जरूरत न हो तो कभी भी उनकी सेवा नहीं लेनी चाहिए क्योंकि काफिरों पर भरोसा नहीं किया जा सकता *। (10b: 121)।

किसी भी मुसलमान को स्थायी रूप से काफिरों के दरमाान नहीं रहना चाहिए क्योंकि इससे उसके ईमान के साथ समझौते की संभावना बढ़ जाती हैं यही कारण है कि अल्लाह ने मुसलमानों को (बिलादे कुफ्र) से (बिलादे इस्लाम) की ओर पलायन करने का आदेश दिया है *। (B: 12110)।

जबकि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में ऐसे भी कुछ उदारवादी और प्रबुद्ध विचारकों और अरबाबे ईल्म व दानिश मौजूद हैं जो समय-समय पर उनके झूठे सिद्धांतों और शिक्षाओं का खंडन करते रहते हैं और उनके झूठे साम्प्रदाय के शुद्ध एकेश्वरवाद (तहीद) के भ्रम को दुनिया के सामने बेपर्दा करते रहते हैं। उन्हीं में से एक मशहूर नाम डॉ। खालिद अबुल फ़ज़ल का है।

"डॉ। खालिद अबुल फज़ल (2003) का कहना है कि, '' जन्मदिन समारोह विशेष रूप से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्मदिन के निषेध और ललित कला को हराम क़रार दिया जाना यह सभी के सभी वहाबी संस्कृति की ऐतिहासिक विरासत हैं और इनकी आधुनिक संरचना का हिस्सा हैं। "ऐसे किसी भी मानव दिनचर्या के खिलाफ वहाबियों की दुश्मनी जो रचनात्मकता और तख्लीकात को ऊंचाई दे सकते हैं शायद वहाबियों की बेहद हास्यास्पद और घातक प्रकृति है। उन्होंने कहा कि "हर प्रक्रिया जो रचनात्मकता की दिशा में एक कदम आगे ले जाता है वह वहाबियों के पास कुफ्र की ओर एक कदम है *।"

यह सभी बातें और यह सभी तथ्य वे हैं जो ऊपर लिखे हुवे पहले कुरआनी आयत के संदर्भ में आती हैं, और जहां तक बात दोसरे कुरआनी आयत की है जिसमें अल्लाह ने फरमाया है कि:

अनुवाद: “और तुम हिम्मत मत हारो और न शोक करो और तुम ही प्रबल रहोगे अगर तुम (पूरा) ईमान रखते हो।“ (अनुवाद, इरफानुल कुरआन)

मैं इस आयत के संदर्भ में केवल एक बात निवेदन करना चाहूंगा कि समकालीन संदर्भ में यह आयत जिस तरह मुसलमानों की नैतिक और बौद्धिक पिछड़ेपन,बौद्धिक बदहाली और सैद्धांतिक रेखा के कारण निर्धारित करती है उसी तरह मुसलमानों को इस बात की दावते फ़िक्र भी देती है कि मुसलमान अभी भी अपनी खोई हुई इज्ज़त को प्राप्त कर सकता है, और अभी भी पूरा मुस्लिम राष्ट्र एक सभ्य, मुतमद्दन, सम्मानजनक और साहबे ईज्ज़त व सरवत कौम के रूप में अपनी प्रतिष्ठा फिर से बहाल कर सकती है बशर्ते वह इस्लाम की उन शांति प्रियता, विविधता, प्यार और हमदर्दी, भाईचारे और बंधुत्व और शांति का संदेश देने वाली उनकी शिक्षाओं को फिर अपना कर वास्तविक इस्लाम को गले लगा ले जिस पर ईमान की जड़ और पूरा आधार है। और सामूहिक रूप से पूरे मुसलमान इन चरमपंथियों और आतंकवादियों के खिलाफ और खुद उनके संरक्षक और प्रधान सऊदी अरब के खिलाफ भी एक सैद्धांतिक और वैचारिक युद्ध की घोषणा कर दे और हर मोर्चे पर उनसे प्रतिस्पर्धा के लिए अपनी पूरी ऊर्जा खर्च कर दे।

(* बहवाला, सुल्तान शाहीन, एडिटर, न्यु एज इस्लाम। अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक करें:

http://www.newageislam.com/urdu-section/سلطان-شاہین،-ایڈیٹر،-نیو-ایج-اسلام/preventing-further-radicalisation-is-the-challenge-muslims-must-undertake--بنیاد-پرستی-کی-مزید-پیش-قدمی-کو-روکنا-مسلمانوں-کے-لیے-سب-سے-پڑا-چیلنج--چند-ٹھوس-تجاویز/d/102808

 

 

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