मिसबाहुल हुदा कादरी, न्यू एज इस्लाम
२९ जून २०१९
दीन और धर्म का असल उद्देश्य इंसान की दुनियावी ज़िन्दगी को आसमानी वही के जरिये संवारना और इसे सफल बनाना है ताकि इंसान की आख़िरत बेहतर हो सकेl ना कि आख़िरत की डर सुनाना और अज़ाब से आगाह करना ताकि मजबूरन इंसान नेकी के रास्ते पर चलेl हर चंद कि इससे भी दीन का मकसद हासिल होता है लेकिन यह कुरआन की तरतीब, मंशा और उसके रूह के खिलाफ हैl कुरआन कहता है:
وَمِنْهُم مَّن يَقُولُ رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الْآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ ِ(201) أُولَـٰئِكَ لَهُمْ نَصِيبٌ مِّمَّا كَسَبُوا ۚ وَاللَّـهُ سَرِيعُ الْحِسَابِ (2:202
अनुवाद: और कोई कहता है कि ऐ रब हमारे! हमें दुनिया में भी भलाई दे और हमें आख़िरत में भलाई दे और हमें दोज़ख के अज़ाब से बचाl ऐसों को उनकी कमाई से भाग (खुश नसीबी) है और अल्लाह जल्द हिसाब करने वाला हैl कंज़ुल ईमान
कुरआन की तरतीब और मंशा यह है कि इंसान वही की सुरत में अल्लाह के कानून के अनुसार अपनी ज़िन्दगी गुज़ारे और दुनिया व आख़िरत दोनों में अल्लाह से भलाई का तलबगार बनेl और कुरआन कहता है कि जब इंसान इस तौर पर अपनी ज़िन्दगी गुजारता है तो उसकी ज़िन्दगी इस दुनिया में अमल का नमूना तो बनती ही है लेकिन आख़िरत में भी उसे खैर से एक बड़ा हिस्सा अता किया जाता हैl लेकिन जिसकी सारी ज़िन्दगी इस दुनिया को ही बेहतर बनाने में गुज़र जाती है और अल्लाह से भी केवल इसी दुनिया की खैर व बरकत और भलाई तलब करने में आख़िरत को भुला देता है’ कुरआन कहता है:
فَإِذَا قَضَيْتُم مَّنَاسِكَكُمْ فَاذْكُرُوا اللَّـهَ كَذِكْرِكُمْ آبَاءَكُمْ أَوْ أَشَدَّ ذِكْرًا ۗ فَمِنَ النَّاسِ مَن يَقُولُ رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا وَمَا لَهُ فِي الْآخِرَةِ مِنْ خَلَاقٍ (2:200
अनुवाद: फिर जब अपने हज के काम पुरे कर चुको तो अल्लाह का ज़िक्र करो जैसे अपने बाप दादा का ज़िक्र करते थे बल्कि उससे अधिक और कोई आदमी ये कहता है कि ऐ रब हमें दुनिया में दे और आख़िरत में उसका कोई हिस्सा नहींl कंज़ुल ईमान
आख़िरत की चिंता और दुनिया की भलाई
कुरआन के नाज़िल होने और हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के भेजे जाने का उद्देश्य यही है कि इंसान के दुनियावी मामले बेहतर हो जाएं चाहे वह मामले ज़ाती हों, समाजी हों, पारिवारिक हों, वैवाहिक हों, व्यक्तिगत हों चाहे क्षेत्रीय या वैश्विक होंl असल उद्देश्य यह है कि इंसान की शख्सियत संवर जाए और इसकी सारी ताकत आख़िरत को बेहतर बनाने में खर्च होl और उसके लिए आवश्यक है कि इंसान आख़िरत की चिंता को अपने पल्ले बांध लेइंसान जिस तरह के भी मामलों से डील (Deal) कर रहा हो’ ये बात सामने हो कि इससे कोई ऐसी बात सरज़द ना हो जाए जो इसकी आखिरत तबाह कर देl यही वजह है कि कुरआन ने ऐसे लोगों का जन्नत में होना बयान किया है जो इस दुनिया में अल्लाह के ज़िक्र में डूब कर और आख़िरत की चिंता में हैरान परेशान रहते थे, देखें सुरह अल तूर की यह आयतें:
وَالَّذِينَ آمَنُوا وَاتَّبَعَتْهُمْ ذُرِّيَّتُهُم بِإِيمَانٍ أَلْحَقْنَا بِهِمْ ذُرِّيَّتَهُمْ وَمَا أَلَتْنَاهُم مِّنْ عَمَلِهِم مِّن شَيْءٍ ۚ كُلُّ امْرِئٍ بِمَا كَسَبَ رَهِينٌ (21) وَأَمْدَدْنَاهُم بِفَاكِهَةٍ وَلَحْمٍ مِّمَّا يَشْتَهُونَ (22) يَتَنَازَعُونَ فِيهَا كَأْسًا لَّا لَغْوٌ فِيهَا وَلَا تَأْثِيمٌ (23) ۞ وَيَطُوفُ عَلَيْهِمْ غِلْمَانٌ لَّهُمْ كَأَنَّهُمْ لُؤْلُؤٌ مَّكْنُونٌ (24 وَأَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ يَتَسَاءَلُونَ (25) قَالُوا إِنَّا كُنَّا قَبْلُ فِي أَهْلِنَا مُشْفِقِينَ (26) فَمَنَّ اللَّـهُ عَلَيْنَا وَوَقَانَا عَذَابَ السَّمُومِ (27 إِنَّا كُنَّا مِن قَبْلُ نَدْعُوهُ ۖ إِنَّهُ هُوَ الْبَرُّ الرَّحِيمُ (28) فَذَكِّرْ فَمَا أَنتَ بِنِعْمَتِ رَبِّكَ بِكَاهِنٍ وَلَا مَجْنُونٍ (52:29(
अनुवाद: और जो ईमान लाए और उनकी औलाद ने ईमान के साथ उनकी पैरवी की हम ने उनकी औलाद उनसे मिला दी और उनके अमल में उन्हें कुछ कमी ना दी सारे आदमी अपने किये में गिरफ्तार हैंl और हम ने उनकी मदद फरमाई मेवे और गोश्त से जो चाहेंl वक दोसरे से लेते हैं वह जाम जिसमें ना बेहूदगी और गुनहगारीl और उनके खिदमत गार लड़के उनके आस पास फिरेंगे गोया वह मोती हैं छिपा कर रखे गएl और उनमें एक ने दोसरे की तरफ मुंह किया पूछते हुएl बोले बेशक हम इससे पहले अपने घरों में सहमे हुए थेl तो अल्लाह ने हम पर एहसान किया और हमें दोज़ख के अज़ाब से बचा लियाl बेशक हम ने अपनी पहली ज़िन्दगी में उसकी इबादत की थी, बेशक वही एहसान फरमाने वाला मेहरबान हैl कंज़ुल ईमान
फकीह अबुल्लैस समरकंदी अपनी किताब ज़िक्र लिज्ज़ाकिरीन में अपनी सनद के साथ हजरत उमर बिन खत्ताब रज़ीअल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं:
قال عمر بن الخطاب رضی اللہ تعالیٰ عنہ : زنواانفسکم قبل ان توزنوا‘ و حاسبواانفسکم قبل ان تحاسبوا‘ وتزینواللعرضالاکبر‘ ذالک یوم القیامۃ (يَوْمَئِذٍ تُعْرَضُونَ لَا تَخْفَىٰ مِنكُمْ خَافِيَةٌ (69:18)۔ (ذکرللذاکرین(
अनुवाद: हज़रात उमर बिन खत्ताब रज़ीअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं: “लोगों अपने आमाल को (हक़ व बातिल के तराजू पर) खुद ही तौल लो इससे पहले कि वह अमल के तराजू पर तोले जाएं (अर्थात नेकियों के काम इसी दुनिया में मौत से पहले अंजाम दो)l और इसी दुनिया में अपनी ज़िन्दगी का हिसाब कर लो इससे पहले कि (क़यामत) में तुम से (तुम्हारे आमाल का) हिसाब लिया जाएl और सबसे बड़ी पेशी के दिन के लिए (इसी दुनिया में नेक काम से अपनी शख्सियत को) सजा लो और वह दिन कयामत का है, अल्लाह का इरशाद है: “يَوْمَئِذٍ تُعْرَضُونَ لَا تَخْفَىٰ مِنكُمْ خَافِيَةٌ” अनुवाद: उस दिन तुम सब पेश होगे कि तुम में कोई छिपने वाली जान चिप नहीं सके गीl
URL for Urdu article: https://www.newageislam.com/urdu-section/the-purpose-religion-/d/119172
URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/the-purpose-religion-/d/119196